Thursday 14 February 2013

मेरी दृष्टि में यदुवंशियों का इतिहास

यादव यह शब्द यदु से उत्पन्न हुआ है। गांवों में यादवों को अधिकतर 'राउतÓ के नाम से पुकारा जाता है। गांवों में अधिकतर राउत निर्धन पाये जाते हैं तथा उनकी आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय होती है। इसका मुख्य कारण उनका शिक्षित न होना। शिक्षित न होने की वजह से वे अपने अधिकारों को समझ नहीं पाते हैं।
यादव तथा अहीर क्षत्रीय वर्ण के अंतर्गत आते हैं। महाभारत कालीन में यादव अत्यंत समृद्धशाली ही नहीं बल्कि पूरी पृथ्वी पर उनका शासन था। यादव कुल के पूर्वज श्री कृष्ण है। इन्होंने गीता में उपदेश दिया है। इन्होंने गीता में मुक्ति के लिए देवी संपदा तथा बंधन के लिए बाँसुरी संपदा की बात कही है। भगवान श्रीकृष्ण के अनेक रुप हैं । वे गोपी, ग्वाल, बालसखा आदि भी हैं।
इनकी एक मुख्य विशेषता यह थी कि वे घर-घर जाकर माखन चुराते तथा खाते  थे। यादव क्षत्रिय कुल में उत्पन्न हुआ है। राजा सुबल की गंधारी नामक कन्या एवं पुत्र शकुनि आदि दस पुत्र थे।
कैकरा- एक राजा थे तथा कुन्ती बहन श्रुति कीर्ति से इनका विवाह हुआ।
शाक्य लिच्छयि- ये क्षत्रिय थे तथा इनका प्रसिद्ध गणराज्य था। इसके शासन काल में सबसे शक्तिशाली राज्य गंगा की घाटी में कोशल, माधव, मगध और वत्स।
बिंबसार- यह मगध का राजा था। इन्होंने अंग राज्य को जीत लिया था।
अजातशत्रु- बिम्बसार के पुत्र थे तथा इन्होंने भी अपने पिता के साम्राज्य को आगे बढ़ाने की अत्यंत कोशिश की।
नंद- चौथी सदी में मगध पर राजा नंद का शासन था वह भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य था।
चाणक्य- यह एक ब्राह्मणमंत्री थे। आगे चलकर ये कौटिल्य के नाम से जाने गये।
चंद्रगुप्त- चाणक्य के शिष्य तथा इन्होंने अपनी सेना का संगठन किया।
चालुक्य- इसका केन्द्र वातापी में थे। यहां चालुक्य पुलकेशन द्वितीय का शासन था। उसकी महत्वाकांक्षा समूचे दक्षिण भारत पर शासन करने की थी।
राष्ट्रकुल तथा पल्लव- चालुक्य राजा के दो शत्रु थे राष्ट्रकुल तथा पल्लव । राष्ट्रकुल का शासन उत्तरी दक्षिणी भारत के एक छोटे से राज्य पर था।
हमारे छत्तीसगढ़ गांवों में तथा शहर दोनों में अगर कोई एक व्यक्ति तरक्की कर ले तो उसके मन में अन्य यादवों (व्यक्तियों) के प्रति घृणा की भावना आ जाती है। जबकि उसे भाई चारे की भावना रखना चाहिये तथा यदि वह उच्च पदों पर नियुक्त हो तो यादव कुल को महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करना चाहिये।
मैं तो कहती हूं कि छत्तीसगढ़ ही खुद अपनी बरबादी, निर्धनता, गरीबी, अशिक्षा आदि का जिम्मेदार है। वे चाहते तो वे भी खुशी एवं कुशल रूप से जीवन यापन कर सकते हैं, वे चाहे तो वे शिक्षित हो सकते हैं तथा शिक्षा के माध्यम से उच्च पदों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। मैंने अधिकतर गांवों में यादव का शोषण होते देखा है। गाँवों में राउत का मुख्य काम गाय चराना कृषि कार्य है। मंै यह नहीं कहती की वे ये काम न करें लेकिन मैं यह जरुर कहूंगी कि उन्हें अपने आने वाली पीढ़ी को समृद्धशाली बनाना चाहिए तथा उनकी आने वाली पीढ़ी शिक्षित हो, जागरुक हो।
छत्तीसगढ़ में खासकर गाँवों में राउत को अपने ढंग सुधारना चाहिये तथा गाँव में यदि मुखिया या जागीरदार कोई गलत कदम उठाए तो यादव भाईयों को उनका साथ न देकर उन्हें सही मार्ग पर लाना चाहिये। सभी को आपस में भाई-चारे की भावना रखनी चाहिये सभी कहते हैं कि बड़ी की बातें हमेशा माननी चाहिये तथा उनका आदर सत्कार करना चाहिये लेकिन मेरा कहना है कि कभी-कभी कुछ कार्यों में छोटों की सलाह भी लेना चाहिये। हो सकता है कि कल वही बालक एक भावी नागरिक बनकर उभरे। अगर यादव भाई-बहन लोग इन सब कार्यों का पालन उचित रूप से करे तो मैं ईश्वर से कामना करती हूं कि भविष्य में यादव कुल प्रतिष्ठित हो इस शब्द का तथा इस जाति का अधिकाधिक विकास हो। यदि इन सब बातों का ठीक ढंग से पालन किया गया तो मैं निश्चित रूप से कह सकती हूँ कि प्राचीन  समय की तरह आज भी यादव पृथ्वी पति तो नहीं किन्तु समृद्धशाली अवश्य ही हो जाएंगे। यादव में खासतौर से यह भावना होनी चाहिये कि वे बहकावे में आकर आपस में न लड़ें बल्कि संकट का मिलजुलकर सामना करना चाहिए।
 बिलासपुर-रऊताही 1994

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