Thursday 14 February 2013

आपसी सद्भावना का प्रतीक यादव शौर्य प्रदर्शन महोत्सव

भारत त्यौहारों का देश है, जहाँ विभिन्न जाति, धर्म को मानने वाले एवं भाषा बोलने वाले लोग निवास करते हैं, एक दूसरे के सुख दुख में शामिल होकर खुशी और दुख का इजहार करते हैं वर्ष भर बारी-बारी पडऩे वाले पर्व त्यौहार को मिल जुलकर मनाते हैं। निस्वार्थ भाव से हमारे हृदय में अनवरत पनप रहा ये आपसी प्रेम सद्भाव निश्चय ही हमारी भारतीय संस्कृति की देन है, हमारी परंपरा है और शायद यही वजह है कि पूरे विश्व में एक अकेला अखण्ड भारत ही 'धर्म निरपेक्षÓ राष्ट्र है। ये समूचा राष्ट्र एक गुलदस्ते के समान है जिसमें तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूल सजे हुए हैं और हर फूल गुलदस्ते की शोभा बढ़ाने में सहायक है, किसी की महत्ता को कम करके आंका नहीं जा सकता, ठीक ऐसे ही यहां का जनजीवन है जिसमें विविधता है। यह देश विशाल है यहां की जनसंख्या विशाल है इसलिए विविधता स्वाभाविक है, किन्तु यह विविधता ही गुलदस्ते की भांति जनजीवन को सुंदर बनाने में सहायक है। खान-पान, रहन-सहन, नृत्य-संगीत में विधिता ही हमारी पहचान है, हमारा परिचायक है वहीं नृत्य संगीत खुशियों के इजहार का एक सशक्त माध्यम भी है।
हमारे देश में सैकड़ों प्रकार के नृत्य का चलन है, मसलन राजस्थान में 'घूमरÓ पंजाब का 'भांगड़ाÓ असम में 'बीहूÓ हिमाचल प्रदेश में नटी, इसी प्रकार अलग-अलग राज्यों में नृत्य प्रसिद्ध है। मध्यप्रदेश में भी तरह-तरह के लोकनृत्य प्रचलित है जिसमें 'सुआनाचÓ, 'डंडा नाचÓ  'करमाÓ 'पंथीÓ 'रावतनाचÓ आदि समूह नृत्य प्रसिद्ध है। छत्तीसगढ़ के लोक नृत्यों में पंथी नृत्य आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित कर चुका है, वहीं रावत नाच महोत्सव आज जिला स्तर (बिलासपुर) से बढ़कर प्रादेशिक तथा राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो चुका है, छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहते हैं जहां इसकी पहचान आज पंडवानी एवं पंथीनृत्य के माध्यम से होने लगी है वहीं 'रावतनाचÓ का नाम आते ही छत्तीसगढ़ का ध्यान बरबस ही हो आता है।
'रावत नाचाÓ एक समूह नृत्य है जिसे यादव भाई गोलबन्द होकर लय-ताल के साथ करते हैं। इस अवसर पर सभी पारंपरिक वेशभूषा धारण किये रहते हैं जिसकी शोभा देखते ही बनती है। सिर में कागज के फूलों की पगड़ी जिसमें मयूर पंख के साथ रंग-बिरंगी कलगी खोंसे, चेहरे पर पीतराम रस पोते कमर से घुटने तक चुस्त धारीदार धोती, पीले कमीज के ऊपर काला मखमली जैकेट, भुजा और कलाई में कौड़ी से गुंथे पट्टा पांव में घुंघरु एक हाथ में लाठी तथा एक हाथ में फरी (कवच) बांधे जब इनकी टोली निकलती है तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे अपने सेनापति के निर्देशन में वीरों की टुकड़ी (टोली) रणक्षेत्र के लिए कूच कर रही है। शौर्य, उत्साह और सद्भावना का अद्भुत संगम देखने को मिलता है, इस समूह में इस नृत्य के इतिहास पर यदि नजर डालें तो यह उतना ही पुराना लगता है जितनी यादव जाति। लोककथा एवं जनश्रुति के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पहाड़ उठाकर मेघराज इन्द्रदेव की नाराजगी से गोप ग्वालों की रक्षा की थी, इसी खुशी में यादव भाई जो अपने को यदुवंशी श्रीकृष्ण के वंशज मानते हैं, ये त्यौहार मनाते जा आ रहे हैं। ये पर्व गोवर्धन पूजा से प्रारंभ होकर करीब एक माह भर तक क्षेत्र अनुसार चलते रहता है। दीपावली पर्व के अवसर पर मनाये जाने के कारण इसे 'देवारीÓ भी कहते हैं।
अखरा, सुहई, काछन, मातर जागरण, बाजार बिहाना और मड़ई, 'रावत नाचÓ के महत्वपूर्ण अंग है। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में यह पर्व देवउठनी एकादशी से प्रारंभ होता है। प्रारंभिक चरण में पशु पूजा के साथ ही सुहई बांधने का कार्य तथा आसपास के साप्ताहिक हाट बाजार में नृत्य कौशल का प्रदर्शन जिसे बाजार बिहाना कहते हैं, होता है। गड़वा बाजा जो आज बहुत महंगा हो चुका है। उनके भुगतान के लिए  पशुमालिकों (किसान) के यहां अपना नृत्य कौशल प्रदर्शन कर बदले में उपहार स्वरूप धन प्राप्त करते हैं। पशु मालिकों द्वारा उदारतापूर्वक मुक्त हस्त से उपहार प्रदान करना, इनके आपसी सौहाद्र्र का परिचायक है।
'रावत नाचÓ का एक महत्वपूर्ण अंग मातर जागरण, अर्थात माता की आराधना है इसमें यादव भाई जिनकी मूल सम्पत्ति पशुधन ही है इनकी सेवा देखरेख ही इनका व्यवसाय है, इनकी सलामती के लिए दैहान में ये कार्यक्रम संपन्न होता है। इस कार्यक्रम में गौ मांस की पूजा, हल के टुकड़े (जो गड़ाया जाता है) की पूजा, पशु को रोगमुक्त रखने होम हवन तथा पशुमालिकों को ससम्मान आमंत्रित कर उन्हें दूध, खीर, मिष्ठान आदि खिलाना शामिल होता है और शाम को बाजार भरता है जहां आसपास के यादव दल जो कि इस पर्व के आमंत्रित टोली रहते हैं अपने नृत्य का प्रदर्शन करते हैं। नृत्य टोली में मड़ई भी रखा जाता है जो बांस का बना होता है तथा बिजली के टावर की भांति होता है। मड़ई को रंगीन कागज, फूलों, मयूर पंख, मुर्गी के पंख आदि से सजाया जाता है जिसे एक व्यक्ति सम्हाले नृत्य टोली के साथ घूमता है।
इस पूरे कार्यक्रम में महोत्सव में आसपास के गांवों के यादवों को टोली सहित आमंत्रित करना, पशु मालिकों को ससम्मान आमंत्रित कर दैहान में उनका स्वागत करना, नृत्य प्रदर्शन तथा पशुमालिकों द्वारा मुक्त हाथों से उपहार प्रदान करना आपसी सद्भाव और प्रेम को बढ़ाता ही है साथ ही प्राचीन परम्परा को जीवित रखने, स्वस्थ मनोरंजन करने में यह महोत्सव सहायक है, जरुरत है इसे और आगे बढ़ाने के लिए सार्थक पहल की यादव भाइयों के चहुंमुखी विकास एवं उन्नति के लिए योजना बनाने की ताकि देश एवं समाज में इसकी प्रतिष्ठा बने रहे।
इस दिशा में डॉ.एम.आर. यादव तथा अहीर नृत्य कला परिषद देवरहट के सदस्यों का प्रयास सराहनीय है, यह उनके प्रयासों का ही प्रतिफल है जो 'रऊताहीÓ स्मारिका का चतुर्थ पुष्प आपके हाथों में है। यह 'स्मारिकाÓ छत्तीसगढ़ के इस पर्व के तमाम अछूते पहलुओं से लोगों को रुबरु कराने मददगार साबित होगी जिससे हम, आप अब तक अनभिज्ञ थे।
शुभकामनाओं सहित !
साभार - रऊताही 1996

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