Tuesday 19 February 2013

राउत जाति का उद्भव व उपभेद

जाति भारत की प्राचीनतम और एक प्रमुख संस्था है जिसने शताब्दियों से भारतीय एवं विचारकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। अत: यह कहा जा सकता है कि भारतीय संगठन को स्थायी बनाने और व्यवस्थित रुप से व्यक्ति के पद तथा कार्य को सुनिश्चित करने के लिए हमारा संपूर्ण अतीत तरह-तरह के परीक्षणों से भरा पड़ा है। परीक्षण के तौर पर बनाई गई व्यवस्थाओं में से कुछ व्यवस्थाएं स्थायी रूप से प्रभावपूर्ण रही जबकि अनेक व्यवस्थाएं सिद्धांत रुप में रहकर समाप्त हो गई। इन सामाजिक व्यवस्थाओं में जाति व्यवस्था ने हमारे समाज को जितना प्रभावित किया है उसकी तुलना में अन्य व्यवस्थाओं से नहीं की जा सकती है।
भारतीय समाज में जन्म के आधार पर ऊंच-नीच का स्तरीकरण पाया जाता है। भारत वर्ष की जाति प्रथा इसका ज्वलंत उदाहरण है। चाल्र्स फूले कहते हैं- जब एक वर्ग पूर्णतया वंशानुकरण पर आधारित होता है तब उसे हम जाति कहते हैं। जाति की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है, असल में हिन्दुओं की जटिल तथा अनूठी जाति व्यवस्था की परिभाषा एवं व्याख्या के प्रसंग में अनेक विद्वानों ने बहुत कुछ कहा है।
हट्टन के कथानुसार-हिन्दुओं की सामाजिक श्रेणी विभाजन को व्यक्त करने के लिए यूरोपवासियों ने सबसे पहले पुर्तगालियों ने 'काष्ठाÓ शब्द का प्रयोग किया जिसका अर्थ है नस्ल, गोत्र या प्रकार के भेद हैं।
डॉ. मजुमदार एवं मदान के विचार में 'यदि किसी परिस्थिति समूह का सदस्य बनना सभी के लिए खुला न होकर मात्र ऐसे लोगों के लिए खुला हो, जो कतिपय प्रदत्त या जन्मनता विशेषता को पूरा करता है, जिन्हें अन्य व्यक्ति उपार्जित न कर सकते हो तब ऐसे परिस्थिति समूह को जाति कहते हैं, जाति एक बन्द वर्ग है।Ó
इस प्रकार आरंभ से ही जाति प्रथा भारतीय जीवन की मूलधारा से जुड़कर जीवित रही है और आज भी इस व्यवस्था को नजर अंदाज कर भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक व्यवस्था का अध्ययन नामुमकिन है। दरअसल जाति व्यवस्था भारतीय जीवन की एक अनूठी विशेषता है एक महत्वपूर्ण संगठन है, इतिहास में हुए कई परिवर्तनों के बावजूद भी इसे नहीं मिटाया जा सका है।
राउत- छत्तीसगढ़ में विविध जातियां निवास करती हैं। इन जातियों में राउत जाति अपनी विशेषताओं के कारण अलग महत्व रखती है। राउत जाति अन्य जातियों की तरह अलग-अलग क्षेत्रों में आकर छत्तीसगढ़ में बस गयी है। गोपालन और दुग्ध व्यवसाय करने वाली इस जाति को यहां के सामाजिक कार्यों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
राउत शब्द की व्युत्पत्ति- 'राउतÓ शब्द अपने साथ एक दीर्घ ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक परंपरा लिए हुए है। शब्दकोष में 'राउतÓ शब्द को राजपुत्र मानते हुए राजवंश का (कोई) व्यक्ति, क्षत्रिय, वीर पुरुष अथवा बहादुर अर्थ दिया है।
डॉ. पाठक ने शब्द उत्पत्ति के आधार पर 'राउतÓ शब्द को 'रावÓ से व्युत्पत्ति 'रावतÓ का अपभ्रंश माना है।
रसेल और हीरालाल के अनुसार 'राउतÓ शब्द राजपूत का विकृत रूप है। चूंकि छत्तीसगढ़ में आज भी 'अहीरÓ को 'राउतÓ ही कहा जाता है। अत: एक अन्य मत के अनुसार अहीर की उत्पत्ति 'अमीराÓ जाति से मानी जाती है, जिसका विवरण पुरातात्विक अभिलेखों एवं हिन्दू लेखों में सुरक्षित है। लेकिन अनेक मानव शास्त्रियों का स्पष्ट मत है कि अहीर 'अमीराÓ जाति के वंशज नहीं है और उसका पूर्ण प्रतिनिधित्व भी नहीं करते।
कुछ विद्वानों के राउत शब्द की व्युत्पत्ति व अर्थ की ओर ध्यान दें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि गोचारण एवं दुग्ध वाहन की वृत्ति के लिए कुछ राउत जाति पहले राज्य का संचालन करती रहीं होमीं और राजवंशी थे।
जाति नाम- श्री कृष्ण राउत जाति के आराध्य देव हैं। इन्हें ही राउत जाति के लोग अपना पूर्वज मानते हैं अत: इनकी कार्यप्रणाली व नामकरण श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है। श्रीकृष्ण ने गौ का पालन किया तथा गोपाल कहलाए। नाग (सर्प) को नाथा था, इसलिये अहीर कहलायें और ये यदुवंशी तो थे ही इन सबसे प्रेरित होकर ही राउत जाति को लोग अपने आपको गोपाल, अहीर और यादव मानते हैं। महाभारत युद्ध के पश्चात यदुवंशी सैनिक अस्त्र-शस्त्र त्याग कर गो पालन और दुग्ध व्यवसाय को अपनाकर देश भर में फैल गये, इन्हें देश के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न नाम से पुकारा जाता है-
1. आंध्रप्रदेश- ग्वाला, धनगर, इडयार, कोनार, कुरुवा, यादव, ग्वाला।
2. आसाम- घोष, ग्वाल, ग्वाला, गोप, गोपाल, अहीर।
3. बिहार- यादव, गोपाल, अहीर, गोप, सदगोप, मंडल, रावत
4. गुजरात-अहीर, अय्यर, यादव, जड़ेजा, भखाड़
5. हरियाणा- अहीर, राव, यादव
6. हिमाचल प्रदेश- ग्वाल, गद्दी, ग्वाला, यादव, अहीर
7. कर्नाटक- वर्डियार, ग्वाला, गवली, गोपाल, यादव, अस्थाना, गोल्ला, आदवी, ग्वाला, गोपाल, गोपाली, हनबरु, कृष्ण, ग्वाला, अटनबरु, दोधी, ग्वाला।
केरल - यादवन्, एरुमान, कोलायन, कोलन, अय्यर, नय्यर, नायाणी, अयदूर, उरली, नायर।
9. मध्यप्रदेश- अहीर, ग्वाला, गोला, ग्वाल, ठाकुर, यादव, रावत, राउत।
10. महाराष्ट्र-  अहीर, यादव, ग्वाला, जाधव
11. मणिपुर - अहीर, यादव, घोष
12. मेघालय - घोष, गोप, गोपाल, यादव
13. उड़ीसा- ग्वाला, पारदव, सद्गोप, अहीर, गौर, गोड़ा, मेकला, गोला, पूनाग्वाल, यादव।
14. पंजाब- ग्वाल, यादव, अहीर, यदुवंशी
15. राजस्थान- अहीर, यादव, भट्ठी, यादव।
16. तमिलनाडु- यादवन, इडयान, यादव, इडिय़ार, अय्यर, कोणे, कोणार, पिल्लई।
17. त्रिपुरा- ग्वाला, गोप, यादव
18. उत्तरप्रदेश- अहीर, गोपाल, यदुवंशी, यादव, ठाकुर
19. बंगाल- अहीर, ग्वाला, गोप, सद्गोप, घोष, मंडल
20. अंडमान निकोबार- यादव, कोनार, पिल्लई, इंडायन
21. चंडीगढ़- अहीर, यादव, गोपाल
22. दिल्ली- यादव, अहीर
23. गोवा- यादव, ग्वाला, जाधव
24. पांडिचेरी- यादव, कोनार, कोलया,आयर, मायर, इरुमान, मणियानी।
वर्तमान में सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव प्राप्त करने के लिए समान जातियों में एक हो जाने की प्रवृत्ति दिखाई पड़ती है। इसी तारतम्य में 1941 में एक व्यापक जन आंदोलन चला था जिसके माध्यम से पशुपालकों की अनेक जातियां जैसे अहीर, अहार, ग्वाला, गोल्ला, गोप, इंडेयन आदि जातियों में एकता का भाव आया और इन सबने अपना एक सम्मिलित नाम 'यादवÓ माना। उक्त भारत की गोपालक जातियां अहीरों, गोड़वालों, गोपों आदि ने भी ऐसा ही किया और अपने को मूल राजपूत कहा। किन्तु यह कहना कठिन है कि इस आंदोलन में उपजी एकता के फलस्वरूप आपस में किस सीमा तक विवाह कर सकेंगे।
साभार- रऊताही 2000

15 comments:

  1. 1)कृपया कोसरिया,झेरिया और ठेठवार के जितने भी गोत्र है बता सकते हैं क्या?
    2)और इनकी कुल देवी कौन है क्या यह बता? सकते हैं क्या, या email कर सकते हैं क्या? प्लीज़! Email - renny988@gmail.com

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  2. Kya rauth mehtar cast se belong karte hain?

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  3. Raut Zamindar, Jo Udisa see migrate hoke Bihar MP hote hue Maharashtra aaye unke bare me jankari kaha mil sakti hai?

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  4. हमारी बरेली जिला उत्तरप्रदेश में राउत वहुत है जोकि खुद को जादों के साथ जोड़ते हैं ।।
    राउत को लातुर/लाटौर भी कहते है हमारे यहां ।

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  5. छत्तीसगढ़ में राउत समाज के लोग आदीवासीयो के गाय चराते है एवं वैवाह आदी अवसरो पर उनकें घर में पानी भरते हैं!

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    1. Beta jo garib hoga wo majburi me karta hoga hum to tere jaise ko naukar rakhte hai korba ka raut hu

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  6. यादव समाज की दो कुरियां हैं जिनका नाम रावते और राऊत, क्या ये दोनों अलग अलग है ।
    Plz reply me .

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  7. म.प्र. के रीवा संभाग के सीधी सिंगरौली जिले के कोल जनजाति के लोग अपने नाम के आगे रावत राउत रौतेल इत्यादि को लिखते हैं वे बताते हैं कि ये उनकी "कुरा" है।

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  8. राउत जी आप बिलासपुर के हैं जो कि छत्तीसगढ़ राज्य के अंतर्गत आते हैं और चूंकि मैं स्वयं भी छत्तीसगढ़ से हूं इसलिए मुझे ज्ञात है कि राउत जाति ग्वाला जाति का मूल रूप है और यह जाति अन्य जाति वालो के गाय बैल चराते हैं और शादियों में पानी भरने का काम करते हैं,जिस तरह से शादी में ब्राम्हण, नाई इत्यादि जरूरी होते हैं उसी प्रकार राउत जाति के लोग भी जरूरी होते हैं क्योंकि शादी में पानी भरने के लिए इनकी आवश्यकता पड़ती है इनके अलावा कोई अन्य पानी नहीं भरते और जो स्वयं पानी भरे उनको तुच्छ समझा जाता है।

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  9. Chutiya hai kya aukat me baat kar mai khud chattisgarh ka jheriya raut hu beta raut kisi ke ghar pani nahi Bharta tere jaise ko naukar rakhte hai hum aa kabhi korba tera pura khandan kharid lunga

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