Thursday 14 February 2013

रऊताही, राऊत, अहीर

रऊताही (वीर) को याद करते हुए यह कह सकते हैं कि रऊताही (वीर) कौन होता है। रऊताही (वीर)  वे होते हैं जो समाज और राष्ट्र की सेवा करें दुखित पीडि़त मानवता के कष्ट दूर करें। अधर्म अत्याचारों, अपराधों को समाज से खत्म करने के लिए संघर्ष करें।
एक समय था जब हमारे देश का हर युग 'रऊताहीÓ (वीर)  हुआ करता था जैसे- अर्जुन-कर्ण, छत्रपति वीर शिवाजी, भीम, राणा प्रताप सिंह आदि।
जब हमारे  देश का हर युग वीर क्षत्रिय (रऊताही) हुआ करता था। वह समाज में व्यापत बुराईयों को मिटाने के लिए संघर्ष करता था। समाज और राष्ट्र की रक्षा करना अपना धर्म कत्र्तव्य समझता था। लेकिन आज हमारे देश का युवा अपने यादव धर्म कत्र्तव्य को भूल गया है। इसलिये समाज में अपराध अत्याचार बढ़ गये हैं। इसलिये सारा समाज परेशान है। आज का यह 'रऊताहीÓ (वीरता) इस बात का संदेश लेकर आया है कि देश के युवाओं अहीरों यादवों उठो और अपने यादव धर्म का कत्र्तव्य का पालन करो देश और समाज को इन कुरीतियों से छुटकारा दिलाओ।
आज सारा देश अहीर/ यादव की गुहार कर रहा है। यही है जो हमारे रऊताही/वीरता का आदर्श मकसद। इस प्रकार हमारी नजरों में हमारे डॉ. मन्तराम यादव एवं उनकी टीम की सूझ-बूझ कहिए जो 'रऊताहीÓ नाम देकर इस पत्रिका को चमका दिया।
राऊत- प्रत्येक के मन में उठा था मेरे मन में उठा है शादय उन असंख्य लोगों के मन में उठा है और उठा रहेगा। जो राऊत-वादी हैं। जो राऊत-रावत समाज में विश्वास करते हैं छत्तीसगढ़ का एक बहुत प्रचलित शब्द है राऊत जिसका विच्छेद करने से दो शब्द बनते हैं। रा और ऊत याने रा+ऊत यान राजपुत्र यह अपने गुणों और कत्र्तव्यों में राजपुत्र कहलाते हैं। इस राऊत-रावत का भावार्थ इस प्राकर है कि राऊत रा+ऊत याने राजपुत्र जो क्षत्रिय वर्ग के हैं। अभी भी क्षत्रिय वर्ग के लोग राऊत या रावत शब्द को अपने नाम के अंत में गौरव के साथ लिखते हैं क्योंकि शूरवीर प्राप्त राऊत रजवंश के लोग ऐसा ही लिखते आए हैं। जो हम रावत समाज को उस राजपूत या राउत के रुप में देखते हैं जो एकांगी होता हुआ भी शेर की तरह दहाड़ता है और सिंह की तरह गर्जना करता है जो धरती के पाप ताप अज्ञान को मटाने के लिए सूर्य की तरह चमकता है। धरती पर ऐसा कोई उत्पन्न नहीं हुई जो हमारे राऊत-रावत को अहीर-यादव समाज से अलग कर सके इसी भावार्थ को सभी समझ सकते हैं।
राऊत-रावत तो उसे कहते हैं जो बहुधा बलशाली, बलवान शक्तिशाली प्रतापी वीर होते हैं। यही कारण है कि लोग राऊत (रावत) का प्रचलन छत्तीसगढ़ में प्रचार हुआ।
पं. डॉ. बलीराम पाण्डेय ने रावत की निज पुस्तक 'यदुवंश का इतिहासÓ  में रावत को 'राजाÓ जिसकी पदवी में लिखी है कि रावत एक ऐसी 'राजाÓ पदवी है। किन्तु छत्तीसगढ़ में राऊत जादू इस कदर चढ़ा कि पूरा छत्तीसगढ़ राऊत का दीवाना हो गया अहीर-यादवों सज्जनों इन्हें आप पढ़ें समझें और अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें।
अहीर- अहीर उसे कहते हैं जिसकी मार से शत्रु अनवरत निरंतर सदैव रूप से कांपा करते है या थर्राया करते हैं। ऐसी वरीता क्षत्रियों के अतिरिक्त और किस वर्ग में हो सकती है। मध्यकाल में शासक प्राय: क्षत्रिय होते थे जो बहुधा बलवान शक्तिशाली प्रतापी वीर होते थे। यही कारण है कि अहीर शासन और सैनिक दोनों ही कार्यों में कुशल होते थे। महाभारत के युद्ध में गोपों की नारायणी सेना का शौर्य संसार में प्रसिद्ध है। स्व. महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन ने निज पुस्तक सम्वाद ही क्यों में लिखा है कि 'अहीरÓ एक ऐसी जाति है जिसमें आर्य रक्त की मात्रा अधिक है जो अपने को अहीर यादव समझते और मानते हैं उनकी दशा यह है कि वह अभाग्य सदियों से अज्ञान और अविद्या की गहरी नींद में सोए हुए हैं कि वह विश्वास नहीं कर पा रहे हैं कि संसार में वह सर्वश्रेष्ठ पुरुष है। उनके पूर्वज इतने महान बलवान विद्वान तेजस्वती और योगी हुए हैं। जिनके चरण चिन्हों पर चलकर ही पूरी मानव जाति का कल्याण हो सकता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि छत्तीसगढ़ ग्रामीण अहीर-यादव बन्धुओं का हृदय सदियों में ऐसा कुचला हुआ है कि ऊंची भावना का उदय उनके हृदय में शीघ्र ही नहीं पाता। मुझे भारी खेद हुआ कि पवित्र यदुवंश ही ग्रामीणों की विडम्बना है। अन्य जाति  के लोग भी अपनी उन्नति दु्रतगति से कर रहे हैं पर यहां के अहीरों यादवों की दुर्दशा देखने से हृदय विदीर्ण हो जाता है। वहाँ के शिक्षित प्रगतिशील और सुधारवादी बन्धु इस ओर सत्वर ध्यान देकर अपने पिछड़े अशिक्षित अज्ञानी भाइयों को गले लगाकर एक साथ अपने को भी गौरवशाली बनावें।
साभार-, रऊताही 1997

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  1. यादव और अहीर अलग-अलग कुल हैं


    यादव-प्राण-कार्ये च शक्राद अभीर-रक्शिणे।
    गुरु-मातृ-द्विजानां च पुत्र- दात्रे नमो नमः।।
    (Garga Samhita 6:10:16)
    Translation: जिन्होंने यादवों की रक्षा की, जिन्होंने राजा इंद्र से अहीरों की भी रक्षा की और अपनी माता, गुरु और ब्राह्मण को उनके खोए हुए बेटों को वापस दिलाया, मैं आपको आदरणीय प्रणाम करता हूँ।

    अन्ध्रा हूनाः किराताश् च पुलिन्दाः पुक्कशास् तथा
    अभीरा यवनाः कङ्काः खशाद्याः पाप-योणयः
    (Sanatakumara Sahmita - Sloka 39)
    Translation : अंध्र, हुण, किरात, पुलिंद, पुक्कश, अहीर, यवन, कंक, खस और सभी अन्य पापयोनि से उत्पन्न होने वाले भी मंत्र जप के लिए योग्य हैं।

    आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघरूप जे ।
    कहि नाम बारक तेपि पावन होहिं राम नमामि ते ॥ (Ramcharitmanas 7:130)
    Translation अहीर, यवन, किरात, खस, श्वपच (चाण्डाल) आदि जो अत्यंत पाप रूप ही हैं, वे भी केवल एक बार जिनका नाम लेकर पवित्र हो जाते हैं, उन श्री रामजी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥

    किरात- हूणान्ध्र- पुलिन्द-पुक्कश आभीर- कङ्क यवनाः खशादयाः।
    येन्ये च पापा यद्-अपाश्रयाश्रयाः शुध्यन्ति तस्मै प्रभविष्णवे नमः।।
    (Srimad Bhagavatam 2:4:18)
    Translation: किरात, हूण, आन्ध्र, पुलिन्द, पुल्कस, अहीर, कङ्क, यवन और खश तथा अन्य पापीजन भी जिनके आश्रयसे शुद्ध हो जाते हैं, उन भगवान् विष्णु को नमस्कार है ॥

    ब्राह्मणादुप्रकन्यायामावृतो नाम जायते ।
    आभीरोऽम्बष्ठकन्यायामायोगव्यां तु धिग्वणः ॥ १५ ॥
    (Manusmriti 10:15)
    Translation: उग्र कन्या (क्षत्रिय से शूद्रा में उत्पन्न कन्या को उग्रा कहते हैं) में ब्राह्मण से उत्पन्न बालक को आवृत, अम्बष्ठ (ब्राह्मण से वैश्य स्त्री से उत्पन्न कन्या) कन्या में ब्राह्मण से उत्पन्न पुत्र अहीर और आयोगवी कन्या (शूद्र से वैश्य स्त्री से उत्पन्न कन्या) से उत्पन्न पुत्र को धिग्वण कहते हैं।

    अन्त्यजा अपि नो कर्म यत्कुर्वन्ति विगर्हितम्‌ आभीरा ।
    स्तच्च कुर्वति तत्किमेतत्त्वया कृतम् ॥ ३९ ॥
    (Skanda Purana: Nagarkhand: Adhyaya 192 Sloka 39)
    Translation: अन्यज जाति के लोग भी जो घृणित कर्म नहीं करते अहीर जाति के लोग वह कर्म करते हैं।

    आभीरैर्दस्युभिः सार्धं संगोऽभूदग्निशर्मणः ।
    आगच्छति पथा तेन यस्तं हंति स पापकृत् ॥ ७ ॥
    (Skanda Puran: Khanda 5:Avanti Kshetra Mahatmyam : Adhyay 24: Sloka 7)
    Translation : उस जंगल में अहीर जाति के कुछ लुटेरे रहते थे। उन्हीं के साथ अग्निशर्मण की संगति हो गयी। उसके बाद बन के मार्ग में आने वाले लोकों को वह पापी मारने लगा।

    उग्रदर्शनकर्माणो बहवस्तत्र दस्यवः ।
    आभीरप्रमुखाः पापाः पिबन्ति सलिलं मम ॥ ३३ ॥
    तैर्न तत्स्पर्शनं पापं सहेयं पापकर्मभिः ।
    अमोघः क्रियतां राम अयं तत्र शरोत्तमः ॥ ३४ ॥
    तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सागरस्य महात्मनः ।
    मुमोच तं शरं दीप्तं परं सागरदर्शनात् ॥ ३५ ॥
    (Valmiki Ramayan -Yudhkand: Sarg22: Shlok 33-35)
    Translation : वहाँ अहीर आदि जातियों के बहुत-से मनुष्य निवास करते हैं, जिनके रूप और कर्म बड़े ही भयानक हैं। वे सब-के-सब पापी और लुटेरे हैं। वे लोग मेरा जल पीते हैं ॥ ३३ ॥ उन पापाचारियों का स्पर्श मुझे प्राप्त होता रहता है, इस पाप को मैं नहीं सह सकता। श्रीराम ! आप अपने इस उत्तम बाण को वहीं सफल कीजिये ॥ ३४ ॥ महामना समुद्र का यह वचन सुनकर सागर के दिखाये अनुसार उसी देश में श्रीरामचन्द्रजी ने वह अत्यन्त प्रज्वलित बाण छोड़ दिया ॥ ३५ ॥

    शूद्राभीरगणाश्चैव ये चाश्रित्य सरस्वतीम्।
    वर्तयन्ति च ये मत्स्यैर्ये च पर्वतवासिनः।। १०।।
    (Mahabharata -Sabhaparva:Adhyay 35:Shlok 10)
    Translation : सरस्वती नदी के तट पर रहने वाले शूद्र अहीर गण थे। मत्यस्यगण के पास रहने वाले और पर्वतवासी इन सबको नकुल ने वश में कर लिया ।

    यादव महिलाओं के साथ अहीरों ने किया बलात्कार
    ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतसः
    आभीरा मंत्रयामासः समेत्याशुभदर्शन का "
    प्रेक्षतस्तवेव पार्थस्य वृषणयन्धकवरस्त्रीय
    मुरादाय ते मल्लेछा समन्ताजज्नमेय् ।
    (Mahabharata: Mausalparva: Adhyay 7 Shlok -47,63)
    Translation: लोभ से उनकी विवेक शक्ति नष्ठ हो गयी, उन अशुभदर्शी पापाचारी अहीरो ने परस्पर मिलकर हमले की सलाह की। अर्जुन देखता ही रह गया, वह म्लेच्छ डाकू (अहीर) सब ओर से यदुवंशी - वृष्णिवंश और अन्धकवंश कि सुंदर स्त्रियों पर टूट पड़े।

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