Thursday 14 February 2013

रौताही बाजार (राउत नाचा)

शब्द कहने में अटपटा लगता है पर यह राउत नाचा महोत्सव बहुत पुराने काल लगभग साढ़े पांच हजार वर्ष पुराने अट्ठाइसवें द्वापर काल से जब परमात्मा के सोलहवें कला ईश्वर  अवतार भगवान कृष्ण का अवतार हुआ था जिसके विषय में ईश्वर अवतार महर्षि व्यास (तत: सप्तदशे जात: सत्यवत्यां पराशरात्।। च के वेद तरो शाखा दृष्टवा पुन्सोस्त्य मेघ स:।। 21 भा.प्र. स्कंध) अपने अपूर्व ग्रंथ श्रीमद्भागवत में प्रथम स्कंध में एते चां श कला: पुन्स: कृष्णास्तु भगवान वयम्।। इन्द्राणीव्याकलं लोकं ऋष्यंति युगे-युगे। श्रीमद् नाचा महोत्सव जो कि अपने मुखिया (राजा) के प्रथम पुत्र जन्मोत्सव के समय अपने गोधन गायों और बछड़ों के सहित अनेक परिधानों में (गायों नृषा वत्सतरा हरिद्रातैत सषिता: 22 निमित्त धातु बर्हस्त्रग्वस्त्र कांच न मालिन:।। महादेवस्त्रानातरणं कंज्त्रु कोंष्णीय भूषिता:।। गोपा: समाययु राजान्नानों पायन पाणय:। दशम स्कँध 15।
नाचते-कूदते नन्दराम को बधाई दिया गया तथा उसी रुप में दूसरा महोत्सव गोवर्धन पूजा के समय इन्द्र का मानमर्दन हेतु दिखाया गया इसी तरह यह महोत्सव अन्याय अत्याचार कंस के द्वारा गरीब गायों के शोषण के विरोध में किया गया शुद्ध अहिंसक एकता का प्रतीक के रुप में पुराणों में लिखा गया है। उक्त महोत्सव का प्रमुख उद्देश्य उस समय अन्याय, अत्याचार के विरोध में ग्वाल बाल जो कि यदुवंशी क्षत्री थे पर गौ ब्राह्मण के ऊपर बढ़ते हुए अत्याचार को देखकर भगवान कृष्ण ने बलिष्ठ यादवों जिन्हें गाय गोधन सेवा के कारण ग्वाल बाल कहा जाने लगा जहां पर मांस मदिरा का बिलकुल निषेध था और बड़े-बड़े असुरों (असुरी प्रवृत्ति के धनी) को बिना किसी हथियार के विनष्ट किया गया था। इसी का प्रतीक आज के दिन ग्वालों के द्वारा गायों की बीमारी एवं पशुधन की खुशहाली हेतु गोष्ठान में कुल देवता भगवान कृष्ण का पूजन कर राउत नाचा महोत्सव किया जाता है। इसमें खासकर छत्तीसगढ़ के सभी वर्ग अपना तन मन धन से सहयोग कर उक्त महोत्सव में सम्मिलित होते है। इसमें खासकर छत्तीसगढ़ के सभी वर्ग अपना तन मन धन से सहयोग कर उक्त महोत्सव में सम्मिलित होते है। इसी हेतु गांव में सभी घरों में ग्वालबाल जाकर राउत नाचा कर उनकी उनके बहुमुखी विकास की दुहाई अनेक दोहे के रुप में दिया करते हैं इस ऐतिहासिक पौराणिक परम्परा को समाज के हर वर्ग को प्रोत्साहित करने एवं इस छत्तीसगढ़ी ही नहीं वरन अनेक रुप में हर प्रांत में यादवों के द्वारा मनाये जाने हेतु प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये एवं ग्वाल बालों को सामाजिक उत्थान हेतु अपने को सभी बुराईयों से बचाते हुए सामाजिक संगठन हेतु प्रयासरत रहना चाहिये।
इस महोत्सव को आज भी मातर जगाने के नाम से ग्वालों के द्वारा मनौती के रुप में माना जाता है। जिसमें यदुवंशी अपने कुल देवता की पूजा करने हेतु अपने मुखियों के घरों से खोड़हर को विधि विधान से बाजे गाजे से नाचते कूदते उल्लास के साथ पूजा कर गोठान के बीच में गड़ाकर उनके सम्मान में खूब पूजन भंडारा तथा उस समय हर वर्ग के ग्वाल चाहे कनौजिया, देशहा, झेरिया, तथा वन्य प्रांत में आदिवासी जन भी एकजुट होकर अपने देवता के सम्मान में खूब उत्सव मनाते हुए विविध परिधान में अनेक दूर-दूर के गांवों में झुण्ड के झुण्ड बाजे-गाजे के साथ अपनी वर्ग भेद जाति ऊंच नीच के कुत्सित विचारों से अलग होकर उक्त उत्सव में सम्मिलित होकर अपने गांव ग्राम देवता, कुल देवता ग्राम के मुखिया के चहुंमुखी विकास तथा परम्परा को कायम रखने तथा अपनी मातृभाषा मातृभूमि गोवंश एवं अपने मालिक एवं स्वयं परिवार के मंगलकामना के दोहे बोल बोल कर इतने भाव विभोर हो जाते हैं कि उन्हें तन-मन की सुधि-बुधि भूल जाती है जिसे काछन चढऩा कहा जाता है ये यदुवंशी क्षत्री इस रुप से उस समय कंस के बढ़ते हुए अत्याचार और आज भी गोवंश के विनाश के प्रति अपना रोष प्रकट कर एकता की दुहाई देकर मानो मर मिटने की शपथ लेते हैं। मातर शब्द का अर्थ मातृ शक्ति को जागृत कर माँ गोवंश की रक्षा हेतु समाज को जागृत कर जगाना होता है तथा स्पष्ट है खोंडहर शब्द खंड हर का अपभ्रंश है जो कंस के अत्याचार से घरबार छोड़कर भागे हुए सीधे-साधे यदुवंशी भोज वंशी क्षत्रिय एकत्र होकर अन्याय को चुनौती देकर अपने छोड़े हुए खंडहरों से अपने कुल देवता को मुक्ति दिलाकर बाजे-गाजे के साथ लाया जाता है आज भी आप लोगों ने देखा होगा मातर जगाने वाला ग्वाल को काछन चढ़ता है वह अपने देवता अपने घर को खडंहर तथा इष्ट को गड्ढे तथा अंधेरे में सिसकते हुए उसमें मातृशक्ति का भाव आ जाता है वह उसमें आक्रोश में अपने ही शरीर व घर छप्पर को पीटने लगता है और अपने आप मना करने वाले प्रतिद्वंद्वी को ललकारने लगता है उस समय उसको शासन द्वारा प्रदत्त सुरक्षा बल भी संभालने में असमर्थ हो जाता है यह एक शुद्ध दैविय शक्ति का जागरण एवं अपने मातृभूति राष्ट्र गोवंश के दीन-हीन दशा के प्रति एक आक्रोश प्रकट होना स्वाभाविक है। उसके बाद अपने जो ग्वाले घर-घर में राउत नाचने को जाते हैं अगर हम लोग इसका सही मूल्यांकन करें।
हमें हमारे समाज एवं पूरे देशवासियों को इस वंश का आभार मानना चाहिए यह कि ये यदुवंशी क्षत्रियवंश का ही लक्षण है जो ये लोग लाठी लेकर अपने शौर्य का प्रदर्शन करते है। हर हिंदुओं मुसलमानों एवं सभी छोटे बड़े लोगों के घर जाकर उनकी गुलामी अंग्रेजों के द्वारा गोवंश का विनाश एवं भारतवासियों को हथियार रखने पर पाबंदी के विरोध में केवल लाठी के बल पर ही अपने आन बान गोवंश एवं राष्ट्र के प्रति हर वर्ग के घर-घर जाकर जगाकर सावधान रहकर अपने ऊपर किये जा रहे अत्याचार शोषण के प्रति अलख जगाना ही है। उसमें जो उन्हें पुरस्कार प्राप्ति होता चला आ रहा है वह एक प्रोत्साहन राशि के रुप में ही था जिसे वे बेचारे सदियों से शोषित अपनी गरीबी समाज से उपेक्षित एवं अशिक्षित रहने के कारण उक्त राशि को समाज संगठन के उत्थान में न खर्च कर अपने पेट तथा कपड़ा बाजा आदि में उड़ाते चले आ रहे हैं। आजादी की लड़ाई में जिस तरह स्व. लोकमान्य तिलक जी ने महाराष्ट्र में गणेश सत्यनारायण की कथा आदि में संगठनात्मक विचार गोष्ठी का रुप दिया था। उसी तरह इस समाज के तरफ छत्तीसगढ़ के समाज सेवियों का ध्यान नहीं गया न ही उन्हें बढ़ावा मिला बल्कि उनकी हंसी उड़ाया जाकर उन्हें दबाने हेतु अनेक कार्य किये गये। इस विषय एवं इस समाज के संबंध में जितना भी कहा जाय, लिखा जाय थोड़ा है। इस समाज ने सदियों से अपना परिश्रम अथक सेवा भाव जो दिन भर हमारे कृषि प्रधान भारत वर्ष के महत्वपूर्ण अंग गोधन की सेवा करने बड़े भोर से ही मालिक को जगाकर गाय भैंसों को बरसात, पानी, गिरते एक कंबल खुमरी ओढ़ कर जंगलों में ले जाकर ईमानदारी पूर्वक चराना न उन्हें उक्त कार्य में ठंड की परवाह न गरमी की चिंता। घर में मवेशियों की सेवा में अपना तन-मन-धन न्यौछावर कर समर्पण भावना से जो इस वर्ग ने सेवा किया है कोई ऐसा मिसाल आज भी जंगलों में जाकर इनके त्याग और तपस्या देखा जा सकता है। जंगलों में आपके पशुधन की सेवा और वे ग्वाल अपना और अपने परिवार को अनेक बीमारी प्रताडऩा के आग में झोंकते चले आ रहे हैं ऊपर से वन विभाग के कर्मचारियों द्वारा इनका शोषण कर दरिंदों से कम नहीं है फिर भी ये बेचारे आपक गायों भैंसो को इस जंगल से उस जंगल में भगाने पर असहाय होकर समाज सेवकों से अपनी गुहार लगाते फिरते हैं क्या किसी ने कोई ध्यान दिया है? मैं समाज से पूछता हूं आप लोगों में से कोई भी बताये इन्हें इसके बदले क्या मिला। थोड़ा सा अनाज बाढ़ी के टुकड़े मात्र हमारे प्रांत में कांग्रेस शासन में हमारे मुख्यमंत्री माननीय दिग्विजय सिंह जी को मैं साधुवाद प्रेषित करता हूं जिन्होंने हमारे समाज चिन्तक श्री बी.आर. यादव जी को हमारे म.प्र. शासन के वनमंत्री के रुप में नियुक्त किया है वे समाज के प्रति जागरुक एवं संवेदनशील रहे हैं। अवश्य ही इस ओर अपना अमूल्य ध्यान देकर इन गरीब भोले-भाले ग्वाल बाल यादवों की दीनदशा पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे। काफी दिनों से मैं उक्त समाज के प्रति हमेशा ही अपनी आवाज उठाता रहा पर किसी ने ध्यान नहीं दिया आप अपने अंतरात्मा की आवाज से सोचें अगर इसी तरह समाज की उपेक्षा होती रही तो हमें समाज सेवा का कार्यबंद कर देना चाहिए अन्यथा वह एक ढोंग ही कहा जावेगा। हमारे समाज सेवी संस्थाओं की सच्ची सेवा भी सार्थक होगी। तय है कि अपने बहुमूल्य प्रहरी की उपेक्षा हमारे उत्थान में राष्ट्र के सुचारू संचालन में महान बाधक बनेगा। मैं तो चाहूंगा कि इस वंश के जो कभी समाज का शासक कहा जाता था आज मजदूर अशिक्षित लठैत कहे जाकर ंसी के पात्र बनते जा रहा है। समाज सेवियों से मेरी अपील है कि वे अपने सामाजिक यश प्रलोभन एवं दंभ से ऊपर उठकर सदियों से शोषित उत्पीडि़त समाज को शिक्षा संगठन सांस्कृतिक पहचान को उज्जवल कर उनके अंतर्रात्मा के आंतरिक भावना के अनुरुप सेवा का अवसर प्रदान कर उनकी खोई हुई अस्मिता उनको दिलाते। कंस के अत्याचार से भागकर विविध प्रांतों में बसे हुए श्रीमद्भागवते दशम स्कंधे द्वितीय अध्याये से पीडि़ता निविविध कुरु पांचाल कैकयान। शाल्वान विदनर्भन विषधान् विदेहान को सलानपि।। एके तमनुरुन्धानांज्ञातय: र्युपासते। हतेषु षटसु वालेषु देव क्या आग्रसेनिना। उन यदुवंशियों को एकत्रित कर उनको सामाजिक धारा की ओर मोड़े और इस प्रकार सदियों से चले आ रहे राउत नाचा को एक सामाजिक राष्ट्रीय एकता के रुप में महत्व देकर अपना योगदान देवें साथ साथ देश के सभी यदुवंशी यादवों से भी अनुरोध करुंगा कि आप लोग अपने अस्मिता को पहचानिये गंदे विचार कि वह झेरिया है यह केंवरई है यह कन्नौजिया है। इन सब झगड़ों में न पड़ा वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से समाज में कुछ व्यापत बुराइयों से दूर रहकर शिक्षा को महत्व देकर अपने आगे आने वाली पीढ़ी को साक्षर बनाइये और ग्राम नगर समाज राष्ट्र के उत्थान में सहभागी बन स्वदेश का नाम रौशन करें। संगठन में इतना ताकत है कि किसी राष्ट्र को उठाने सजाने संवारने में वर्तमान युग में महत्वपूर्ण आवश्यकता है। संघे शक्ति कलीयुगे जिस समाज में एकता है वही जागरुक है। यह तो यादव समाज में कुछ जागरुक लोग हुए जिनका सामाजिक उत्थान के तरफ ध्यान गया जो अब कुछ वर्गों के लिए समाज में जो बुराई है कुछ स्वार्थी लोगों के बहकावे में आकर लठैती कर मारपीट तथा अपने ही यादव समाज से वर्ग भेद लगाकर झगड़ा झांसा करने के प्रवृत्ति पर रोक लगाकर समाज को सुसंस्कृत कर संगठित कर पूरे सामाजिक धारा की ओर यदुवंशियों का ध्यान मोड़ा जाये तो मेरे अंदाज से सबसे उत्तम क्षत्रित्व समाज एवं राष्ट्र के सजग प्रहरी के रूप में खुलकर विकसित होगा। शास्त्रों में जो क्षत्रिय गुण वर्णित समाज माना जा सकेगा। श्रीमद्भागवते दशम स्कंधे वर्तत ब्रह्मण विप्रो राजन्यो रक्षया भुव:।। वैश्यस्तुवतिया जलायनम।। दान भीश्वर भावच्श्र क्षात्रं कर्मस्वभाव जान्। मेरे मन में काफी बचपने से ही यादव समाज के इस रौताही राउत नाचा को देखकर संगठन के बारे में लोकमान्य तिलक डॉ. हेडगेवार महात्मा गांधी जी के अहिंसात्मक आंदोलन याद आता रहा है। यह समाज किसी भी तरह आज भी अहिंसक भावना से ओतप्रोत समाज के सभी वर्ग को साथ लेकर यह कार्य प्रारंभ से आतंक अत्याचार शोपण अनाचार गुलामी के प्रति चेतावनी ही था तो इनके गरीबी अशिक्षा एवं समझ के ऐसे बड़े वर्ग जो आज भी इनके माध्यम से अपनी रोटी सेंक रहे हैं पुन: समाज उत्थान के प्रति अपनी शुभकामना प्रेषित करते हुए सबसे अधिक भाई डॉ. मंतराम यादव जिनके ऊपर मेरा पुत्रवत स्नेह हमेशा ही रहा है। लगातार हमें हमेशा ही इन विषयों पर मेरा ध्यान दिलाते रहे तथा इस पर कुछ अपना विचार लिखने हेतु पे्ररित करते रहे।
मैंने जो कुछ भी अपनी टूटी फूटी भाषा एवं अपने अल्प ज्ञान के द्वारा इस लेख में लिपिबद्ध किया है विद्वानों से क्षमा याचना करते हुए आशा करुंगा कि इसमें वर्णित कमजोरी चाहे वह शाब्दिक हो भावनात्मक हो मेरे जिम्मे छोड़कर सार ग्रहण कर यादव समाज की उन्नति संगठन पर अपना ध्यान लगाकर छत्तीसगढ़ के अमूल्य सामाजिक विधि को हर बुराइयों से दूर कर विकसित कर नया रूप लाकर आदर्श प्रस्तुत करेंगे।
 साभार- रऊताही 1995

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