Tuesday 19 February 2013

प्रखर शोधक : प्रो. आनंद यादव

शिवालिका पर्वत मालाओं की तलहटी में कूर्मांचल की भावनात्मक राजधानी कहे जाने वाले दो देशों की सीमा पर स्थित अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के नगर टनकपुर में यादवों की संख्या नगण्य होते हुए भी व्यवसाय के क्षेत्र में अच्छी ख्याति अर्जित की है। मूल रूप से हरियाणा के निवासी होकर एटा व पीलीभीत में अपनी पहचान बनाते हुए इस नगर में बींसवीं सदी के प्रथम दशक में आकर बसे श्री नारायण सिंह  यादव के परिवार में यह सुमन 6 मई 1948 को पुष्पित हुआ। प्राथमिक शिक्षा नगर में ही प्राप्त कर मीडिल व आगे की शिक्षा हेतु बाहर जाना पड़ा। रुहेलखण्ड मुख्यालय स्थित प्रतिष्ठा प्राप्त बरेली कालेज से एम.ए. की परीक्षा उच्च श्रेणी में उत्तीर्ण की। सन् 70 के दशक में ही विद्वानों की नगरी काशी में विद्या उपार्जन करते समय 'यादव-गांधीÓ संपादक रजिंत सिंह जी से प्रेरणा व निर्देशन प्राप्त कर 'पर दु:खे नापि दुखिता विरलाÓ की उक्ति को चरितार्थ करते हुए यादव समाज की सेवा व महान यादव जाति के लोकसाहित्य को पुनर्जीवन प्रदान करने का बीड़ा उठाया।
दूर देहातों में मीलों-टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों पर पैदल चलकर यत्र तत्र बिखरी यादव जाति की लुप्त प्राय ऐतिहासिक विरासत व लोक संस्कृति को समेटकर सुरक्षित रखने का आपने सराहनीय प्रयास किया व नगर गांव जनसंपर्क कर यादव बंधुओं में जातीय चेतना, संगठन व सुधार तथा शिक्षा के प्रसार का बिगुल बजाया।
आधुनिक श्रवय-दृश्य, साधनों के निरंतर हमलों से आहत ग्वालों के गेय गीतों, विलुप्त लोक गाथाओं, बिखरी पथ गाथाओं को अपनी लेखनी से परिमार्जित कर विविध पुस्तकों व जातीय पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से यादव जाति के सम्मुख 'त्वदीय वस्तु गोविन्द तुम्यदेव समर्पयेÓ की भावना से प्रस्तुत किया जो आने वाली पीढ़ी को अपनी विरासत पर गर्व व शोधकार्य में निश्चय ही काफी सहायक होंगे। हिमालय पर्वत मालाओं में बसे कुमायंू व गढ़वाल क्षेत्र के यादवों की स्थिति, उनके लोक देवताओं, पर्वों, त्यौहारों व संस्कृति को उजागर कर आपने निश्चय ही एक प्रशंसनीय कार्य किया है।
उत्तर भारत के प्रसिद्ध तीर्थ श्री पूर्णागिरी व शारदा घाटी में अन्तर्निहित धार्मिक व पर्यटन स्थलों की महत्ता को लेखों व पुस्तकों के रुप में उजागर किये जाने से आस्थावान जन मानस को महत्वपूर्ण जानकारी होने के साथ ही इन क्षेत्रों के पर्यटन विकास को बल प्रदान हुआ है।
हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू, नेपाली, फ्रेंच आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले सरल, शांत स्वभाव, निव्र्यसनी व शाकाहारी सादा जीवन उच्च विचार में आस्था रखने वाले श्री आनंद यादव सामाजिक-साहित्यिक गतिविधियों से जुड़े समाज के लिए एक समर्पित व्यक्ति हैं। प्रकृति के रमणिक दृश्यों, आस्था केन्द्रों, ऐतिहासिक पर्यटक स्थलों के अध्ययन व अवलोकन में आपका गहन अभिरूचियों ने चिंतन व लेखन को प्रभावित किया है। इस ध्येय से संपूर्ण रूहेलखण्ड, कुमायूं, गढ़वाल व सुदूर नेपाल के पश्चिम का दूर-दूर तक भ्रमण किया है। गत तीन दशकों से साहित्यिक, सांस्कृतिक व स्वजातीय जैसे गंभीर विषयों पर चिंतन, मनन व लेखन ने आपकी काफी ख्याति दिलाई है।
लोक साहित्य व इतिहास के मर्मज्ञ श्री यादव लगभग एक दर्जन से भी अधिक पुस्तकें व अनेक शोधपूर्ण विषयों पर 250-300 से अधिक लेख विविध राष्ट्रीय समाचार पत्रों, प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में यादव इतिहास का एक पृष्ठ लेखमाला के अंतर्गत शोधपूर्ण ऐतिहासिक लेखों की तो पाठकों ने काफी सराहना की है। आकाशवाणी रामपुर से आपकी वार्तायें भी प्रसारित हो चुकी है। संगठन में उनकी अभिरूचि को देखकर स्थानीय यादवों ने यादव महासभा टनकपुर का निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित किया है। जेसीसी क्लब इण्टरनेशनल, भारतीय जन चेतना परिषद, रुहेलखण्ड यादव सभा द्वारा आयोजित विराट यादव सम्मेलन व यादव सेवक समाज (र•ा) नई दिल्ली  द्वारा आपको सम्मानित किया जा चुका है। संप्रति आप एस.डी. कालेज में प्राध्यापक व कृष्णा इंस्टीट्यूट के प्राचार्य पद को सुशोभित कर वर्तमान समय में मानव संसाधन विकास मंत्रालय अंतर्गत केन्द्रीय शासकीय सेवा में कार्यरत हैं।
सचमुच आनंद में ही सभी भूत-प्राणियों का वास है व 'यादव वंश का नाम सुनने मात्र से ही मनुष्य सब पापों से छूटता हैÓ चरितार्थ करते हुए श्री आनंद यादव अपनी ओजपूर्ण लेखनी के माध्यम से यादव जाति को उसके स्वर्णिम अतीत का आभास कराने के सत्प्रयास में लगे हैं। यादव जाति व समाज को आपसे काफी आशाएं हंै।Ó
आनन्दानि सर्वाणि भूतानि जापन्ते। यदोवंश नरों श्रृत्वा सर्व पापे प्रमुच्यते।।
साभार-, रऊताही 2002

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