Sunday 28 August 2011

Master - Abhishek Yadav
Bilaspur (chhattisgarh)


बिलासपुर. जन्माष्टमी महोत्सव 22 अगस्त 2011

शोभा यात्रा में उपस्थित युवा साथी.

बिलासपुर. जन्माष्टमी महोत्सव 22 अगस्त 2011

 यादव समाज द्वारा आयोजित कार्यक्रम में युवा साथी और कालिया मर्दन का दृश्य.

बिलासपुर. जन्माष्टमी महोत्सव 22 अगस्त 2011

 यादव समाज द्वारा आयोजित शोभा यात्रा में भगवान श्री कृष्ण और बलराम की वेशभूषा में बालक
 

बिलासपुर. जन्माष्टमी महोत्सव 22 अगस्त 2011

 यादव समर द्वारा आयोजित रैली एवम शोभायात्रा में शामिल यादव  समाज के युवा भाई.

Monday 22 August 2011

श्री कृष्ण के मार्ग को अपनाने की आवश्यकता-अमर

बिलासपुर जिला यादव समाज द्वारा आयोजित दो दिवसीय श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव व शोभायात्रा का हुआ समापन
बिलासपुर.  श्री कृष्ण ने कर्म का संदेश दिया और विश्व ने उनके चरित्र को अपनाया एेसे भगवान के वंशजों के द्वारा जन्माष्टमी मनाया जाता है. इसके लिये यादव समाज बधाई के पात्र है. उक्त उद्गार जिला यादव समाज द्वारा आयोजित श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव के समापन समारोह में मुख्य अतिथि अमर अग्रवाल ने व्यक्त की.
उन्होंने श्री कृष्ण के चरित्र तथा उनके द्वारा बताए मार्ग अपनाने की आवश्यकता प्रतिपादित की इस अवसर पर श्री अग्रवाल ने यादव भवन के द्वितीय तल पर कमरे निर्माण के लिये आॢथक सहयोग देने की घोषणा की वहीं समाज के पूर्व अध्यक्ष स्व. मटरू लाल यादव पूर्व पार्षद की स्मृति में जूना बिलासपुर स्थित उद्यान को विकसित कर
नामकरण करने की घोषणा की समारोह समारोह में अतिथि के रूप में रामदेव कुमावत
बेदराम यादव, डा. मंतराम यादव रेवाराम यादव डा. आर. यादव उपस्थित थे. स्वागत
भाषण कार्यकारी अध्यक्ष रामशरण यादव व शोभायात्रा प्रमुख शैलेंद्र यादव एवं महिला
विंग अध्यक्ष श्रीमती अहिल्या यादव ने दिया. कार्यक्रम की जानकारी देते हुए संयोजक
डा. सोमनाथ यादव ने बताया कि गत 27 वर्षो से श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव समाज
द्वारा बड़े ही गरिमामय से आयोजित किया जा रहा है.
इसके पूर्व शोभायात्रा का प्रारंभ राघवेंद्र राव सभा भवन से हुआ जो सदर बाजार गोल
बाजार तेलीपारा बस स्टैंड होते हुए श्री कृष्ण धाम यादव भवन पर समापन हुआ.
शोभायात्रा में झांकियों के साथ बिलासपुर सहित लोरमी बिल्हा मुंगेली तखतपुर कोटा
मस्तूरी बेलतरा विधानसभा के महिला पुरूष एवं युवकों की टोली शामिल थी. समारोह
बड़े बुजुर्गों का अभिनंदन किया गया. उनमें सर्वश्री रेवाराम यादव मस्तूरी, भीम यादव घुरू
तिलक यादव केकती श्रीमती उर्मिला यादव सरकंडा, श्रीमती त्रिवेणी यदुराज
कस्तूरबानगर नगर प्रमुख है.
समारोह में प्रतिभावान छात्र-छात्राओं का सम्मान तथा विभिन्न प्रतिस्पर्धा के प्रतिभागियों
को पुरस्कृत किया गया. समारोह का संचालन डा. सोमनाथ यादव ने तथा आभार श्रीमती
अन्नपूर्णा यादव ने किया. इस अवसर पर प्रमुख रूप से रामचरण यादव, रामकुमार यादव,  तेरस यादव,
शरद यादव, विजय यादव, जसवंत यादव, अश्विनी यादव , रामप्रकाश यादव, रामपुरी यादव,  सनत यादव, कुलदीप , यादव सुशील यादव, भैय्याराम यादव, तेजनाथ यादव , सुकुमार यादव , एल.पी. यादव. संतोष, यादव विकास, प्रकाश यादव , विनोद यादव, भागवत यादव , गोपाल यादव ,शिव यादव, सतीश यादव , प्रमोद यादव , बालाराम यादव , नवीन यादव, मयंक यादव , चितरंजन यादव , संजय यादव, नन्हूरामयादव , महेंद्रयादव , दुर्गेश यादव, मनहरण यादव, देवीशंकर यादव , मनोज यादव, अनिल यादव, श्रीमती विद्या, पूणमा, मंजू, त्रिवेणी, सरोज, ललित यादव देवी , यादवमुन्नी, ममता, कविता समस्त यादव बंधु-बांधव सहित समाज के हजारों लोग उपस्थित थे.

Sunday 21 August 2011

देश की पहली सरकार जिसके मंत्री, सांसद जेल में : यादव

रायपुर. भाजपा के राष्ट्रीय सचिव भूपेन्द्र यादव ने रविवार को यहां कहा कि आजादी के बाद केन्द्र की यूपीए सरकार एेसी पहली सरकार है जिसके मंत्री और सांसद भ्रष्टाचार के आरोप में लगातार जेल भेजे जा रहे हैं. इस भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता लोकतंत्र की लड़ाई लड़ रही है.
बढ़ती महंगाई, भ्रष्टाचार एवं विदेशों में जमा कालेधन की वापसी की मांग को लेकर शहर जिला भाजपा द्वारा राजधानी के बूढ़ापारा इंडोर स्टेडियम में आयोजित हॉल मीटिंग
को सम्बोधित करते हुए श्री यादव ने कहा कि देश में पुन: नवनिर्माण का दौर प्रारंभ हो
चुका है. उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबी कांग्रेस सरकार देश की आम
जनता के आंदोलन से घबराई हुई है. जनता की आवाज को कुचलने पर आमादा है. वहीं
वर्तमान यूपीए सरकार की राजनीतिक अपरिपक्वता तथा अदूरदर्शिता पर मुहर लगी है.
यह आश्चर्य की बात है कि सरकार के सभी मंत्री दिल्ली पुलिस की आड़ में अपना
चेहरा छुपाने लगे हैं. आखिर एेसी सरकार शासन करने में कैसे समर्थ हो सकती है जो
देश में उबाल लाने के घटनाक्रम से मुंह मोड़ती नजर आए. यह सुखद संयोग है कि देश
में आजादी के बाद पुन: नवनिर्माण का दौर प्रारंभ हुआ है.

Saturday 13 August 2011

मुलायम सिंह यादव का अखाड़ा पूरा देश

सत्तर साल के हो चुके मुलायम सिंह यादव छोटे कद के जरूर है मगर एक जमाने में अच्छे खासे पहलवान हुआ करते थे। अखाड़े में अपने से दुगुने कद के लोगों को धोबी पाट दांव लगा कर चित कर दिया करते थे और कई दंगलों के वे विजेता हैं। राजनीति में तो वे बहुत बाद में आए। इसके पहले एक स्कूल में पढ़ाया करते थे। संयोग की बात यह है कि मेरी खेती और गांव ग्राम नगला सलहदी, ब्लॉक जसवंत नगर, जिला इटावा में ही हैं और अब फाइव स्टार बन चुका भारत का एक मात्र गांव सैफई सिर्फ एक कोस दूर है। उस जमाने में सैफई भी हमारे नगला सलहदी की तरह बीहड़ी गांव था जहां किसी की छत किसी के आंगन के बराबर होती थी और पानी की कमी दूर करने के लिए गंगा नहर बनाई गई थी। मुलायम सिंह उस जमाने में साइकिल पर चलते थे जो अब उनकी पार्टी का चुनाव चिन्ह हैं। राजनीति में उनकी शुरूआत, उनका आधिकारिक जीवन परिचय कुछ भी कहे, सहकारी बैंक की राजनीति से हुई थी। सैफई और नगला सलहदी दोनों का रेलवे स्टेशन बलरई है जहां अभी कुछ साल पहले थाना बना है वरना रपट दर्ज करवाने के लिए जसवंत नगर जाना पड़ता था। बलरई में सहकारी बैंक खुली। ये चालीस साल पुरानी बात है। मास्टर मुलायम सिंह चुनाव में खड़े हुए और इलाके के बहुत सारे अध्यापकों और छात्रों के माता पिताओं को पांच पांच रुपए में सदस्य बना कर चुनाव भी जीत गए। उनके साथ बैंक में निदेशक का चुनाव मेरे स्वर्गीय ताऊ जी ठाकुर ज्ञान सिंह भी जीते थे। चुनाव के बाद जो जलसा हो रहा था उसमें गोली चल गई। मुलायम सिंह यादव और मेरे ताऊ जी बात कर रहे थे और छोटे कद के थे इसलिए गोली चलाई तो मुलायम सिंह पर गई थी मगर पीछे खड़े एक लंबे आदमी को लगी जो वहीं ढेर हो गया। इस घटना का वर्णन मुलायम सिंह यादव की किसी भी जीवनी में नहीं मिलेगा। सहकारी बैंक में उस समय पचास साठ हजार रुपए होंगे। तीन लोगों का स्टाफ था। चपरासी और कैशियर एक ही था। मैनेजर पार्ट टाइम काम करता था और निदेशकों की तरफ से नियुक्त एक साहब लेखाधिकारी बनाए गए थे जो चूंकि बैंक में सोते भी थे इसलिए चौकीदारी का भत्ता भी उन्हें मिलता था। इसके बाद मुलायम सिंह जसवंत नगर और फिर इटावा की सहकारी बैंक के निदेशक चुने गए। विधायक का चुनाव भी सोशलिस्ट पार्टी और फिर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से लड़ा और एक बार जीते भी। स्कूल से इस्तीफा दे दिया था। पहली बार मंत्री बनने के लिए मुलायम सिंह यादव को 1977 तक इंतजार करना पड़ा जब कांग्रेस विरोधी लहर में उत्तर प्रदेश में भी जनता सरकार बनी थी। 1980 में भी कांग्रेस की सरकार में वे राज्य मंत्री रहे और फिर चौधरी चरण सिंह के लोकदल के अध्यक्ष बने और विधान सभा चुनाव हार गए। चौधरी साहब ने विधान परिषद में मनोनीत करवाया जहां वे प्रतिपक्ष के नेता भी रहे। आज मुलायम सिंह यादव धर्म निरपेक्षता के नाम पर भाजपा को उखाड़ फेकना चाहते हैं। लेकिन पहली बार 1989 में वे भाजपा की मदद से ही मुख्यमंत्री बने थे। उस समय लाल कृष्ण आडवाणी का राम जन्मभूमि की आंदोलन और उनकी रथ यात्रा चल रही थी और मुलायम सिंह ने घोषणा की थी कि वे यात्रा को किसी हाल में अयोध्या नहीं पहुंचने देंगे। लालू यादव ने उत्तर प्रदेश पहुंचने से पहले ही आडवाणी को समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया। विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार गिर गई और मुलायम सिंह यादव ने चंद्रशेखर के जनता दल समाजवादी की सदस्यता ग्रहण की और कांग्रेस की मदद से मुख्यमंत्री बने रहे। कांग्रेस ने अप्रैल 1991 में समर्थन वापस ले लिया। उत्तर प्रदेश में मध्याबधी चुनाव हुए और मुलायम सिंह मुख्यमंत्री नहीं रह पाए। उनकी जगह कल्याण सिंह ने ले ली। सात अक्तूबर 1992 को मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई। कम लोगों को याद होगा कि 1993 में मुलायम सिंह यादव बहुजन समाज पार्टी के साथ मिल कर उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लड़े थे। हालाकि यह मोर्चा जीता नहीं लेकिन भारतीय जनता पार्टी भी सरकार बनाने से चूक गई। मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस और जनता दल दोनों का साथ लिया और फिर मुख्यमंत्री बन गए। उस समय उत्तराखंड का आंदोलन शिखर पर था और आंदोलनकारियों पर मुजफ्फरनगर में गोलियां चलाई गई जिसमें सैकड़ों मौते हुई। उत्तराखंड में आज तक मुलायम सिंह को खलनायक माना जाता है। जून 1995 तक वे मुख्यमंत्री रहे और उसके बाद कांग्रेस ने फिर समर्थन वापस ले लिया। 1996 में मुलायम सिंह यादव ग्यारहवी लोकसभा के लिए मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से चुने गए थे और उस समय जो संयुक्त मोर्चा सरकार बनी थी उसमें मुलायम सिंह भी शामिल थे और देश के रक्षा मंत्री बने थे। यह सरकार बहुत लंबे समय तक चली नहीं और सच यह है कि मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने की भी बात चली थी मगर लालू यादव ने इस इरादे पर पानी फेर दिया। इसके बाद चुनाव हुए तो मुलायम सिंह संभल से लोकसभा में लौटे। असल में वे कन्नौज भी जीते थे मगर वहां से उन्होंने अपने बेटे अखिलेश को सांसद बना दिया। अब तक मायावती मुलायम सिंह यादव की घोषित दुश्मन बन चुकी थी। 2002 में भाजपा और बहुजन समाज पार्टी ने मायावती के साथ मिल कर सरकार बनाई जो डेढ़ साल चली और फिर भाजपा इससे अलग हो गई। मुलायम सिंह यादव तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और विधायक बनने के लिए उन्होंने 2004 की जनवरी में गुन्नौर सीट से चुनाव लड़ा जहां वे रिकॉर्ड बहुमत से जीते। कुल डाले गए वोटों में से 92 प्रतिशत उन्हें मिले थे जो आज तक विधानसभा चुनाव का रिकॉर्ड है। मुलायम सिंह यादव ने लंबा सफर किया है, बार बार साथी बदले हैं, बार बार साथियों को धोबी पाट लगाया है मगर राजनीति वे दंगल की शैली में ही करते हैं। अब उनका अखाड़ा पूरा देश है और इस अखाड़े में उनका उत्तराधिकारी बनने की प्रतियोगिता भी शुरू हो गई है। उत्तराधिकारियों की कमी नहीं हैं क्योंकि मुलायम सिंह यादव परिवार का हर वह सदस्य जो चुनाव लड़ सकता है, राजनीति में हैं और उत्तराधिकारी होने का दावेदार है।
आलोक तोमर

स्पोर्ट्स-एडवेंचर में नाम कमाते यदुवंशी


खेल एवं एडवेंचर की दुनिया में भी यदुवंश के तमाम खिलाड़ी अपना डंका बजा रहे हैं। क्रिकेट के क्षेत्र में एन० शिवलाल यादव, हेमू लाल यादव, विजय यादव, ज्योति यादव, जे0पी0 यादव और उमेश यादव ने देश को गौरवान्वित किया तो आज हरियाणा की अण्डर-19 किक्रेट टीम के कोच विजय यादव, उ0प्र0 की अण्डर-16 किक्रेट टीम के कोच विकास यादव जैसे तमाम नए नाम उभर रहे हैं। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के उपाध्यक्ष एन० शिव लाल यादव, दक्षिण ज़ोन का प्रतिनिधित्व करते हैं और सीनियर टूर्नामेंट कमेटी के अध्यक्ष भी हैं। दक्षिण ज़ोन की महिला समिति में विद्या यादव भी शामिल हंै ज़ो कि आई०सी०सी० महिला टी-20 विश्व कप क्रिकेट की टीम मैनेजर भी रहीं। भारत की टेस्ट और वन डे टीम में खेल चुके विजय यादव 1996 से क्रिकेट कोचिंग दे रहे हैं। उन्हें बीसीसीआई की तरफ से विकेट कीपिंग एकेडमी का कोच भी नियुक्त किया गया है। आई0पी0एल0 के विभिन्न सत्रों में भी विभिन्न यादव क्रिकेट हेतु चयनित हुए। लालू यादव के सुपुत्र तेजस्वी यादव का चयन अण्डर-19 किक्रेट टीम हेतु किया गया एवं आई0पी0एल0-20 कप के प्रथम सत्र में डेयर डेविल्स (दिल्ली) टीम में चयनित किया गया, दुर्भाग्यवश उन्हें खेलने का मौका नहीं मिला। इसी प्रकार पूर्व टेस्ट खिलाड़ी एन० शिव लाल यादव के पुत्र एवं हैदराबाद रणजी कप्तान अर्जुन यादव का चयन डेक्कन चार्जस (हैदराबाद) में किया गया। आई0पी0एल0 के तीसरे सत्र में केदार जाधव व उमेश यादव (दिल्ली डेयरडेविल्स) एवं अर्जुन यादव (हैदराबाद डेक्कन चार्जर्स) का चयन किया गया। आई0पी0एल0 मैचों के दौरान ही नागपुर (महाराष्ट्र) के नजदीक खापरखेड़ा की कोयला खदान के मजदूर के बेटे उमेश यादव (दिल्ली डेयरडेविल्स) एक शानदार गेंदबाज के रूप में उभरे एवं उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम में भी खेलने का मौका मिला। उत्तर प्रदेश रणजी क्रिकेट टीम में आशीष यादव नया चेहरा है। बॉलीवुड के जाने माने-हास्य कलाकार राजपाल यादव टी-10 गली क्रिकेट सीजन-2 के लिए कानपुर गली क्रिकेट टीम के मालिक बन गए हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश क्रिकेट की अण्डर-19 महिला टीम में आगरा की पूनम यादव को कप्तानी सौंपी गई है। नेशनल क्रिकेट अकादमी बंगलौर में इंडिया क्रिकेट टीम के फिजिकल ट्रेनर के रूप में किशन सिंह यादव बखूबी दायित्वों का निर्वाह करते रहे हैं।

भारत के प्रथम व्यक्तिगत ओलंपिक मेडलिस्ट खाशबा दादा साहब जाधव एवं बीजिंग ओलंपिक (2008) में कुश्ती में कांस्य पदक विजेता सुशील कुमार यदुकुल की ही परम्परा के वारिस हैं। वर्ष 2010 में कुश्ती का विश्व चैंपियन खिताब अपने नाम करके सुशील कुमार ऐसा करने वाले प्रथम भारतीय पहलवान बन गए। वर्ष 2009 मंे सुशील कुमार को देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार राजीव गांँधी खेल रत्न से नवाजा गया तो गिरधारी लाल यादव (पाल नौकायन) को अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी परंपरा में दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में जहाँ सुशील कुमार ने कुश्ती में स्वर्ण पदक जीता, वहीं 74 किलोग्राम फ्री स्टाइल कुश्ती स्पर्धा में नरसिंह यादव पंचम (मूलतः चोलापुर, बनारस के, अब मुंबई में) ने भी स्वर्ण पदक जीता। गौरतलब है कि इससे पूर्व सीनियर एशियाई कुश्ती प्रतियोगिता में नरसिंह यादव ने देश को पहला स्वर्ण पदक दिलाकर पूरे देश का नाम रोशन किया था। राष्ट्रमंडल खेलों की निशानेबाजी स्पर्धा में कविता यादव ने सुमा शिरूर के साथ कांस्य पदक जीतकर नाम गौरवान्वित किया। विश्व मुक्केबाजी (1994) में कांस्य पदक विजेता, ब्रिटेन में पाकेट डायनामो के नाम से मशहूर भारतीय फ्लाईवेट मुक्केबाज धर्मेन्द्र सिंह यादव ने देश में सबसे कम उम्र में ‘अर्जुन पुरस्कार’ प्राप्त कर कीर्तिमान बनाया। विकास यादव, मुक्केबाजी का चर्चित चेहरा है। आन्ध्र प्रदेश के बिलियर्डस व स्नूकर खिलाड़ी सिंहाचलम जो कि बिलियर्ड्स के अन्तर्राष्ट्रीय रेफरी भी हैं, बीजिंग ओलंपिक में निशानेबाजी के राष्ट्रीय प्रशिक्षक रहे श्याम सिंह यादव, कुश्ती में पन्ने लाल यादव, श्यामलाल यादव, गंगू यादव जैसे तमाम खिलाड़ी यादवों का नाम रोशन कर रहे हैं। बनारसी मुक्केबाज छोटेलाल यादव ने सैफ खेलों में स्वर्ण पदक हासिल किया। जानी-मानी पर्वतारोही संतोष यादव जिन्दगी में मुश्किलों के अनगिनत थपेड़ों की मार से भी विचलित नहीं हुईं और अपनी इस हिम्मत की बदौलत वह माउंट एवरेस्ट की दो बार चढाई करने वाली विश्व की पहली महिला बनीं। इसके अलावा वे कांगसुंग ;ज्ञंदहेीनदहद्ध की तरफ से माउंट एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ने वाली विश्व की पहली महिला भी हैं। उन्हांेने पहले मई 1992 में और तत्पश्चात मई सन् 1993 में एवरेस्ट पर चढ़ाई करने में सफलता प्राप्त कीे। इण्डियन ओलंपिक एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश कालमाड़ी यदुवंश से ही हैं। अर्जुन पुरस्कार विजेता व महिला हाॅकी टीम की पूर्व कप्तान मधु यादव राष्ट्रीय महिला हाकी टीम की मैनेजर हैं। भारतीय भारोत्तोलन संघ के सचिव सहदेव यादव हंै।
महिला मुक्केबाजी में सोनम यादव (75 कि०ग्रा०) का नाम अपरिचित नहीं रहा। बैंकाक में एशियाई ग्रा0प्रि0 में युवा धावक नरेश यादव ने 1500 मीटर की दौड़ 3।51 सेकण्ड में पूरा कर भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता। 27वीं राष्ट्रीय ताइक्वाण्डो प्रतियोगिता में हरियाणा की सरिता यादव ने रजत व पूनम यादव ने कांस्य पदक प्राप्त किया। बैंकाक में एशियाई गंापी तीरंदाजी चैम्पियनशिप में महिला रिवर्स स्पर्धा में नमिता यादव (झारखण्ड) ने भारत के लिए स्वर्ण पदक जीत कर देश का गौरव बढ़ाया। स्वप्नावली यादव (मुंबई) ने महज 8 साल की उम्र में यूनान स्थित 30 किमी0 लम्बी मेसिनिकोस की खाड़ी मात्र 11 घण्टे 10 मिनट में पार करने का विश्व रिकार्ड कायम कर लोगों को दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर कर दिया। अगस्त 2009 में सम्पन्न उ0प्र0 की सीनियर तैराकी चैम्पियनशिप में कुशीनगर की प्रियंका यादव ने 5 स्वर्ण जीतकर नया कीर्तिमान बनाया। यहीं पर गोताखोरी प्रतियोगिता में डी0एल0डब्ल्यू0 के गोताखोर नवीन यादव व्यक्तिगत चैंपियन बने। रानी यादव (बनारस) एथलेटिक्स में उभरता हुआ नाम है। कहना गलत नहीं होगा कि यदुवंशियों को यदि उचित परिवेश और प्रोत्साहन मिले तो स्पोर्ट्स-गेम और एडवेन्चर के क्षेत्र में वे भारत का नाम वैश्विक स्तर पर रोशन कर सकते हैं। (साभार यदुकुल ब्लागस्पाट.कॉम )

Friday 12 August 2011

जन्माष्टमी पर निकलेगी भव्य झांकी

दो दिवसीय आयोजन में होंगे कई आकर्षण

बिलासपुर. जिला सर्व यादव समाज इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का दो दिवसीय आयोजन
करेगा. इसके अंतर्गत  21 अगस्त को विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन होगा जबकि
22 अगस्त को भव्य झांकी आकर्षण का केन्द्र होगी.
बिलासपुर सर्व यादव स...माज द्वारा गत 27 वर्षों से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव का आयोजन
किया जा रहा है. इसी तारतम्य में इस वर्ष भी इस पावन अवसर पर 21 अगस्त को दोपहर
1 बजे से श्रीकृष्ण धाम यादव भवन, इमलीपारा में 16 वर्ष तक के बच्चों के लिए पेंटिंग,
रंगोली, एकल गीत व एकल नृत्य प्रतियोगिता होगी, वहीं 10 वर्ष तक के बच्चों के लिए
राधा-कृष्ण बनो प्रतियोगिता का आयोजन होगा.  महिलाओं के लिए कुर्सी दौड़
प्रतियोगिता भी होगी. सभी कार्यक्रम दोपहर 1 बजे से 4 बजे तक होंगे.
इसके एक दिन बाद यानी 22 अगस्त को भव्य झांकी निकाली जाएगी, जिसमें श्रीकृष्ण
की लीलाओं की झांकी के साथ भजन-मंडली, राउत नाच, पंथी नृत्य, करमा नृत्य दल
शामिल रहेंगे. झांकी के साथ-साथ चल रही समाज के लगभग 300 युवाओं की बाईक
रैली आकर्षण का केन्द्र होगी. यह शोभायात्रा दोपहर साढ़े 12 बजे  राघवेन्द्र राव सभा
भवन परिसर से प्रारंभ होकर सदर बाजार, गोल बाजार, सिटी कोतवाली, तेलीपारा, बस
स्टैंड होते हुए इमलीपारा स्थित यादव भवन जाकर सभा के रूप में परिवर्तित हो जाएगी.
यहां समापन कार्यक्रम में समाज के  बड़े-बुजुर्गों का अभिनंदन, प्रतिभावान छात्र-छात्राओं
को सम्मान तथा पुरस्कार वितरण के साथ कार्यक्रम का समापन होगा.

Monday 8 August 2011

यादव समाज की बैठक में जिला महिला संघ गठित

कांकेर. यादव भवन टिकरापारा कांकेर में जिला यादव संगठन कर्मचारी संगठन प्रबंंधक कार्यकारिणी समिति के संयुक्त तत्वाधान में जिला महिला संगठन का गठन संरक्षक लतेल यादव, नन्दलाल यादव, मुख्य सलाहकार देवेन्द्र यादव जिला अध्यक्ष सूरज यादव उपाध्यक्ष मधुयादव सचिव महेन्द्र यादव कोषाध्यक्ष लगनू यादव उपाध्यक्ष कर्मचारी
संगठन संरक्षक पी.आर.यादव, अध्यक्ष जीवन यादव उपाध्यक्ष रामचंद यादव सचिव
ईश्वरी यादव को कोषाध्यक्ष राजू दिनेश यादव पार्षद विजय यादव राकेश यादव की
उपस्थिति में सर्वसम्मति से र्निविरोध अध्यक्ष आरती यादव पूर्व पार्षद भंडारीपारा यादव
संबलपुर सचिव विमला यादव टिकरापारा कांकेर पदमनी यादव संबलपुर सचिव सुरेखा
यादव टिकरापारा कोषाध्यक्ष ममता यादव पंडरीपानी जिला संगठक सचिव अनुसुईया
यादव पूर्व पार्षद अन्नपूर्णापारा ललेशवरी यादव बांगाबारी प्रमुख सलाहकार दुलमत यादव
सिदेसर निर्मला यादव टिकरापारा जीवन यादव आमापारा देवेन्द्र यादव पंडरीपानी को
नियुक्त किया गया. कार्यक्रम का शुभारंभ श्री कृष्ण की छाया चित्र पर पूजा अर्चना एवं
माल्या अर्पण कर किया गया कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यादव समाज संरक्षक
लतेल यादव ने सामाजिक एकता पर प्रकाश डालते हुए कहा संगठित समाज ही विकास
कर सकती है संगठन में बड़ी ताकत होती है. प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा से वंचित न करे
समाज की आेर से 10 वीं व 12वीं कक्षा पढऩे वाले छात्र-छात्राआें के लिए यादव भवन
में कोचिंग प्रारंभ करने की घोषणा की विनीता यादव ने सामाजिक संगठन में महिलाआें
की भागीदारी पर कहा जितनी जिम्मेदारी पुरूष की है. उससे बड़ी जिम्मेदारी महिलाआें
की है महिलाएं जो कर सकती है वो कार्य पुरूष नहीं कर पायेगें. कार्यक्रम में भागवत
यादव, रमाशंकर धिरपाल यादव, दशरू यादव, धनेश यादव, देवेन्द्र यादव, विजय यादव,
सुखुराम यादव, नरेश यादव, तरूण यादव प्रीराम यादव, बीरसिंह यादव, धरमसिंह यादव,
उमेश यादव, कमलेश यादव, प्रमिला यादव, अनिता यादव, रामोबाई यादव, राजेशवरी
यादव, रूकमणी यादव सहित तहसील क्षेत्र से सैकड़ो महलाएं व पुरूष उपस्थित थे.

Monday 1 August 2011

यात्रा-संस्मरण

-डॉ. मन्तराम यादव
लौकिक एवं भौतिक सुख में फंसे मनुष्य असली पारलौकिक सुख से सदैव वंचित रहते
है, परिणाम मकडज़ाल की तरह उसी में फंसकर नरदेह समाप्त कर देता है किन्तु ईश्वर
कृपा एवं गुरु माता-पिता की कृपा दृष्टि से  मनुष्य की ज्ञानचक्षु खुल जाती है, तो इस
सुख से उबकर पारलौकिक सुख खोजने लगता है तब गुरु माता-पिता के बताए मार्ग,
बनाए संस्कार का सहारा लेकर, यात्रा में निकल पड़ता है, यह अवसर भाग्योदय से तथा
अनेक जन्मों के सुकर्मों के फलस्वरूप मिल पाता है। ''हानि कुसंग, सुसंगति लाहुÓÓ,
उक्ति को चरितार्थ करते हुए मुझे भी पश्चिम बंगाल की यात्रा में जाने का सुअवसर श्री
आर.एस. यदु सहा. महाप्रबंधक लाफार्ज एवं श्री आर.आर. सिंह जी दुर्गापुर के प्रेरणा से
प्राप्त हुआ। अनजान जगह के दर्शन की चाह बालमन सा होता है, तीव्र जिज्ञासा बनी रहती
है। दिनांक 13.11.09 शनिवार शाम 4 बजे पूणे-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस से बिलासपुर
से यात्रा में निकल पड़ा साथ में श्री भागीरथी यादव (चोरभट्ठी)  थे। मार्ग के अनुपम
दृश्य का आनंद लेते हुए सुबह 5 बजे हावड़ा स्टेशन पहुंच गए, हावड़ा से ब्लैक डायमण्ड
सुपरफास्ट ट्रेन से प्रात: 9.30 बजे  स्टील कारखाना दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) पहुंचे।
अगुवानी हेतु स्टेशन में मौजूद श्री आर.आर. सिंह जी से मुलाकात हुई, प्रत्यक्ष साक्षात्कार
एवं दर्शन पहली बार हुई यद्यपि फोन पर बातें होती रहती थी। बड़े ललक एवं आवभगत
के साथ अपनी गाड़ी में लेकर श्री बाबूराम यादव जो लाफार्ज में अधिकारी हैं, उनके घर
ले गये वे मेरे नजदीकी रिश्तेदार हैं। स्टेशन से रास्ते में पडऩे वाले अनेक कारखाना व
शहर के बसाहट को आर.आर. सिंह जी बताते हुए आ रहे थे, उनके साथ श्री सीताराम
यादव जी थे। दुर्गापुर के बसाहट एवं कारखाना की झांकी देखकर, तन-मन की थकावट
दूर हो गई। इधर अंदर-ही-अंदर मन सोचने लगा कहाँ ये उद्योगपति लोग और हम कहां
साधारण लोग इनके मन में कितना आदर, क्या सेवाभाव, मनभावन मीठी बाते इन्हें पाकर
हम अभिभूत हो गये, साथ ही गौरवान्वित भी। गुरु माता-पिता के दिए संस्कार एवं प्रेरणा
सहसा याद आ गया। इन्हीं संस्कारों की फलस्वरूप इन महान लोगों का साक्षात्कार  हो
सका इनके हृदय में स्थान मिल सका।
पूर्वज से संस्कार प्राप्त, व्यवहार, कुशल, प्रसन्नचित्त, मृदुभाषी रायपुर निवासी लाफार्ज में
सहायक महाप्रबंधक जैसे महत्वपूर्ण पद में आसीन श्री आर.एस. यदु के कारण यह
सौभाग्य हमें प्राप्त हो सका। अन्र्तहृदय श्री आर.एस. यदु का मन ही मन धन्यवाद दे रहा
था। प्रेम से आंखे नम किन्तु मन प्रफुल्लित था। कुछ विश्राम के बाद  40 वें वर्ष आयोजित
भगवान श्री कृष्ण लोक सांस्कृति-महोत्सव ''आसनसोलÓÓ के लिए प्रस्थान किए,
कार्यक्रम के संस्थापक श्री नन्दबिहारी यादव, वरिष्ठ अधिवक्ता एवं नेता राजद आसनसोल
थे, पहुंचते ही जो स्वागत वहां वकील साहब और उनके महोत्सव के सदस्यों ने किया
अविस्मरणीय है। कार्यक्रम का शुभारंभ पूज्य कृपालु महाराज के शिष्यों द्वारा भगवान श्री
कृष्ण की आरती से किया गया। तत्पश्चात माता रासेश्वरी देवी के शिष्यों द्वारा भजन
प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम के अतिथियों द्वारा उद्बोधन हुआ मुझे भी विशिष्ट अतिथि
बनने एवं उद्बोधन का सौभाग्य मिला, भोजन प्रसाद पश्चात रात भर बिरहा गायकी श्री-
--- एवं बिरहा गायिका श्रीमती--- की बिरहा गायन चला, वाद-विवाद प्रतियोगिता
की तरह बिरहा गायन के माध्यम से, राम कथा, महाभारत कथा का गायन करते रहे,
वाहवाही बिना शोर शराबा के दोनों गायक दक्षिणा पाते रहे, हजारों श्रोता किन्तु शांत सभा
मण्डप क्या अलौकिक दृश्य वर्णन के लिए शब्द नहीं है, भाव जरूर है। सदस्यों के
उत्साह देखते बनता था। फूहड़ क्रिया कलाप का नामोनिशान नहीं।  सभी एकटक चित्त
मन से देख सुन रहे थे। छत्तीसगढ़ के पण्डवानी जैसा ही बिरहा गायन है।
उस क्षेत्र की प्रथम यात्रा थी दर्शनीय स्थानों की जानकारी नहीं थी। 15.12.09 को वापस
बिलासपुर आने का रिजर्वेशन था। पर श्री आर.आर. सिंह का आकर्षक व्यक्तित्व उनका
संग छोडऩा नामुमकिन। 15.12.09 को दुर्गापुर से चैतन्य महाप्रभु के जन्म स्थली नवदीप
जहां गंगा मैय्या बहती है, दर्शन हेतु श्री आर.आर. सिंह, आर.एस. यदु, भागीरती यादव
सभी प्रात: 8 बजे निकल पड़े। रास्ते में, आयल डिपो, सैनिक कैम्प, हराभरा क्षेत्र,
लहलहाती धान की फसल,  क्या मनोरम दृश्य शुद्ध जलवायु देखकर मन प्रसन्न हो गया।
चैतन्य महाप्रभु के सिर घुटन का केश आज भी सुरक्षित रखे है वह स्थान भी रास्ता में
पड़ा, वर्धमान शहर देखने लायक है सीता भोग वहां का प्रसिद्ध व्यंजन उसको ग्रहण कर
जी भर गया। नवदीप में गंगा के किनारे लगभग डेढ़ सौ से ज्यादा मंदिरें है दीपावली के
समय एक माह का लीला होता है। गंगा मैय्या पारकर श्री कृष्णानगर होते हुए इस्कान
मंदिर का दर्शन करने मायापुरी पहुंचे।
स्वामी प्रभुपाद जी द्वारा स्थापित भव्य इस्कान मंदिर जहां बारहो महिना दर्शनार्थी पहुंचते
रहते है। ठहरने के लिए कई धर्मशाला 5-6 कि.मी. क्षेत्र में फैला है। बाहर भी कई मंदिर
एवं धर्मशाला है। यथा नाम तथा गुण मायापुरी में पहुंचकर केवल भगवान श्री कृष्ण के
माया ही माया है। सभी मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण कई भाव मुद्रा में विराजमान हैं। स्वामी
प्रभुपाद जी के बचपन से लेकर संन्यासी बनने तथा देह छोडऩे तक के विभिन्न झांकियों
से युक्त मंदिर  है जिसमें म्युजियम भी है बीस रु. के टिकिट ने  भक्तों सहित स्वामी
प्रभुपाद एवं उनके भक्तों की झांकी करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस्कान मंदिर भव्य है
जिसे स्वामी प्रभुपाद जी ने बनवाया था। अंदर गर्भगृह दो भागों में है, एक तरफ  भगवान
श्री कृष्ण के साथ दाएं तरफ भी तुंग विद्या श्री चित्रा, श्री चम्पकलता, श्री ललिता बीच में
श्री कृष्ण श्री राधारानी  बायें में श्री विशाखा, श्री इन्दुलेखा, श्री रंङदेवी, श्री सुदेवी,
विराजमान है। ऊपर चांद के छात्र, सामने तुलसी रानी, राधाकृष्ण की छोटी मूर्ति,
विराजमान है। सभी मुकुट सोने चांदी तथा हीरा मोती से जुड़े हुए हैं। माधव जी के सामने
श्री गणेशमूर्ति ऐसा लग रहा है मानो द्वारपाल है। दूसरे कोने में बीचो-बीच स्वामी प्रभुपाद
जी का विग्रह है जो राधाकृष्ण को अपलक दर्शन कर रहे है। बाये नरसिंह भगवान के
मंदिर है।
गर्भगृह के दूसरे भाग में कृष्णावतार चैतन्य महाप्रभु बीच में है नित्यानंद स्वामी और देव्य
जी है बाएं गदाधर एवं श्रीवास स्वामी जी विराजमान है, मन मोहक झांकी देखते ही बनता
है।
आरती अलग-अलग समय कई बार होती है पर शाम के छै बजे और प्रात: चार बजे के
आरती में भाग लेना अहोभाग्य है। शाम को तुलसी की आरती पहले फिर चैतन्य महाप्रभु
की आरती, इधर राधाकृष्ण की आरती मधुर शंख ध्वनि मन के मैल को धो देता है।
प्रात: भगवान श्री कृष्ण की आरती पहले तत्पश्चात् नरसिंह भगवान की फिर तुलसी रानी
की होती है। आरती पश्चात प्रतिदिन सत्संग  होता है। प्रसाद स्वरूप तुलसी माला भेंट में
दी जाती है।
परिसर में पूजा के सभी प्रकार के प्रसाद एवं सामग्रियां मिलतीहै। मायपुरी वर्धमान से ट्रेन
जाती है तथा बस भी। दर्शन सौभाग्य से मिला जो गुरु माता-पिता के द्वारा दिए संस्कार
एवं प्रेरणा संभव हो सका।
मायापुरी से सिद्धपीठ मां महाकाली के दर्शन हेतु कलकत्ता आ गए, श्री आर.एस. यदु,
आर.आर. सिंह वर्धमान से रेल बैठाकर बिदा हो लिए पर हृदय में सदैव के लिए बस
गए। मां काली की मूर्ति भव्य, भयावह, दर्शनीय है मंदिर में आज भी बलि प्रथा लागू है,
दर्शनकर 16 जनवरी 09 को ग्वालियर एक्सप्रेस से बिलासपुर आ गये। यहां कहूंगा जा
पर कृपा राम के होईता पर कृपा करे सब कोई। बिनु सत्संग विवेक न होई, रामकृपा बिनु
सुल मन न सोई ।
वन्देकृष्ण जगत गुरुम
  संपादक, रऊताही 

चार यादव विभूतियों पर जारी हुए डाक टिकट

-राम शिव मूर्ति यादव
राष्ट्र को अप्रतिम योगदान के मद्देनजर डाक विभाग विभिन्न विभूतियों पर स्मारक डाक टिकट जारी करता है। अब तक चार यादव विभूतियों को यह गौरव प्राप्त हुआ है। इनमें राम सेवक यादव ( 2जुलाई 1997) बी.पी. मण्डल (1 जून 2001) चौ. ब्रह्मा प्रकाश (11 अगस्त 2001) एवं राव तुलाराम (23 सितम्बर 2001) शामिल हैं। जिस प्रथम यदुवंशी के ऊपर सर्वप्रथम डाक टिकट जारी हुआ  वे हैं राम सेवक यादव। उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जनपद में जन्मे राम सेवक यादव ने छोटी आयु में ही राजनैतिक-सामाजिक मामलों में रुचि लेनी आरम्भ कर दी थी। लगातार दूसरी, तीसरी और चौथी लोकसभा के सदस्य रहे राम सेवक यादव लोक लेखा समिति के अध्यक्ष, विपक्ष के नेता एवं उत्तरप्रदेश विधानसभा के सदस्य भी रहे। समाज के पिछड़े वर्ग के उद्धार के लिए
प्रतिबद्ध राम सेवक यादव का मानना था कि कोई भी आर्थिक सुधार यथार्थ रूप तभी ले सकता है जब उससे भारत के गाँवों के खेतिहर मजदूरों की जीवन दशा में सुधार परिलक्षित हो। इस समाजवादी राजनेता के अप्रतिम योगदान के मद़देनजर उनके सम्मान में 2 जुलाई 1997 को स्मारक डाक टिकट जारी किया गया।
वर्ष 2001 में तीन यादव विभूतियों पर डाक टिकट जारी किये गये। इनमें बिहार के पूर्व
मुख्यमंत्री एवं मण्डल कमीशन के अध्यक्ष बी.पी. मण्डल का नाम सर्वप्रमुख है। स्वतंत्रता
पश्चात यादव कुल के जिन लोगों ने प्रतिष्ठित कार्य किये, उनमें बी.पी. मंडल का नाम
प्रमुख है। बिहार के मधेपुरा जिले के मुरहो गाँव में पैदा हुए बी.पी. मंडल 1968 में बिहार
के मुख्यमंत्री बने। 1978 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के रूप में 31 दिसम्बर
1980 को मंडल कमीशन के अध्यक्ष के रूप में इसके प्रस्तावों को राष्ट्र के समक्ष उन्होंने
पेश किया। यद्यपि मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने में एक दशक का समय
लग गया पर इसकी सिफारिशों ने देश के सामाजिक व राजनैतिक वातावरण में काफी
दूरगामी परिवर्तन किए। कहना गलत न होगा कि मंडल कमीशन ने देश की भावी
राजनीति के समीकरणों की नींव रख दी। बहुत कम ही लोगों को पता होगा कि
बी.पी.मंडल के पिता रास बिहारी मंडल जो कि मुरहो एस्टेट के जमींदार व कांग्रेसी थे, ने
'अखिल भारतीय गोप जाति महासभाÓ की स्थापना की और सर्वप्रथम माण्टेग्यू चेम्सफोर्ड
समिति के सामने 1917 में यादवों को प्रशासनिक सेवा में आरक्षण देने की मांग की।
यद्यपि मंडल परिवार रईस किस्म का था और जब बी.पी.मंडल का प्रवेश दरभंगा महाराज
(उस वक्त दरभंगा महाराज देश के सबसे बड़े जमींदार माने जाते थे) हाईस्कूल में कराया
गया तो उनके साथ हॉस्टल में दो रसोईये व एक खवास (नौकर) को भी भेजा गया। पर
इसके बावजूद मंडल परिवार ने सदैव सामाजिक न्याय की पैरोकारी की, जिसके चलते
अपने हलवाहे किराय मुसहर को इस परिवार ने पचास के दशक के उत्तराद्र्ध में यादव
बहुल मधेपुरा से सांसद बनाकर भेजा। राष्ट्र के प्रति बी.पी. मंडल के अप्रतिम योगदान पर
1 जून 2001 को उनके सम्मान में स्मारक डाक टिकट जारी किया गया।
एक अन्य प्रमुख यादव विभूति, जिन पर डाक टिकट जारी किया गया, वे हैं दिल्ली के
प्रथम मुख्यमंत्री चौ. ब्रह्मा प्रकाश। 1952 में मात्र 34 वर्ष की आयु में मुख्यमंत्री पद पर
पदस्थ चौधरी ब्रह्मा प्रकाश 1955 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। बाद में वे संसद हेतु
निर्वाचित हुए एवं खाद्य एवं केन्द्रीय खाद्य, कृषि सिंचाई और सहकारिता मंत्री के रूप में
उल्लेखनीय कार्य किये। 1977 में उन्होंने पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों एवं
जनजातियों व अल्पसंख्यकों का एक राष्ट्रीय संघ बनाया ताकि समाज के इन कमजोर
वर्गों की भलाई के लिए कार्य किया जा सके। राष्ट्र को अप्रतिम योगदान के मद्देनजर 11
अगस्त 2001 को चौधरी ब्रह्मा प्रकाश के सम्मान में स्मारक डाक टिकट भी जारी किया
गया।
1857 की क्रान्ति में हरियाणा का नेतृत्व करने वाले रेवाड़ी के शासक यदुवंशी राव
तुलाराव के नाम से भला कौन वाकिफ नहीं होगा। 1857 की क्रान्ति के दौरान राव
तुलाराम ने कालपी में नाना साहब, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई के साथ मंत्रण की
और फैसला हुआ कि अंग्रेजों को पराजित करने के लिए विदेशों से भी मदद ली जाये।
एतदर्थ सबकी राय हुई कि राव तुलाराम विदेशी सहायता का प्रबंध करने ईरान जायें। राव
साहब अपने मित्रों के साथ अहमदाबाद होते हुए बम्बई चले गये। वहां से वे लोग
छिपकर ईरान पहुंचे। वहां के शाह ने उनका खुले दिल से स्वागत किया। वहां राव
तुलाराम ने रूस के राजदूत से बातचीत की। वे काबुल के शाह से मिलना चाहते थे।
एतदर्थ वे ईरान से काबुल गये जहां उनका शानदार स्वागत किया गया। काबुल के अमीर
ने उन्हें सम्मान सहित वहां रखा। लेकिन रुस के साथ सम्पर्क कर विदेशी सहायताका
प्रबंध किया जाता तब तक सूचना मिली कि अंगे्रजों ने उस विद्रोह को बुरी तरह से
कुचल दिया है और स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को पकड़-पकड़कर फांसी दी जा रही
है। अब राव तुलाराम का स्वास्थ्य भी इस लम्बी भागदौड़ के कारण बुरी तरह प्रभावित
हुआ था। वे अपने प्रयास में सफल होकर कोई दूसरी तैयारी करते तब तक  उनका
स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हो गया था। वे काबुल में रहकर ही स्वास्थ्य लाभ कर कुछ
दूसरा उपाय करने की सोचने लगे। उस समय तुरंतभारत लौटना उचित भी नहीं था।
उनका काबुल में रहने का प्रबंध वहां के अमीर ने कर तो दिया पर उनका स्वास्थ्य नहीं
संभला और दिन पर दिन गिरता ही गया। अंतत: 2 सितम्बर 1863 को उस अप्रतिम वीर
का देहांत काबुल में ही हो गया। वीर-शिरोमणी यदुवंशी राव तुलाराम के काबुल में देहान्त
के बाद वहीं उनकी समाधि बनी जिस पर आज भी काबुल जाने वाले भारतीय यात्री बड़ी
श्रद्धा से सिर झुकाते हैं और उनके प्रति आदर व्यक्त करते हैं। राव तुलाराम की वीरता एवं
अप्रतिम योगदान के मद्देनजर 23 सितम्बर 2001 को उनके सम्मान में स्मारक डाक
टिकट जारी किया गया। (साभार रउताही-2011 )
स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी (सेवानिवृत्त)
 तहबरपुर, पोस्ट-टीकापुर, आजमगढ़ (उ.प्र.)

अपनाना होगा श्रेष्ठ पशु गाय को

-समसेर कोसलिया 'नरेश'
      गाय को धरती के पालतू पशुओं में श्रेष्ठ पशु का दर्जा प्राप्त है। इस पशु को छोड़ अन्य किसी भी पशु को धरती माँ के नाम से संबोधित क्यों नहीं किया जाता है ? इस पर चिंतन करना निहायत जरूरी है। इसका दूध भी इंसान की माँ के दूध के समान हल्का, मीठा एवं पौष्टिक होता है तथा बच्चे के शारीरिक विकास के लिए सहायक आहार होता है। गाय को धेनु, गौ, धनेका, धेनुष्ठरी, गैया, गौरी, कामधेनु, मही, माता, मातृ, मातु, पयस्विनी, वृर्षा, रेवती, सुरभि, धेन आदि नामों से जाना जाता है। गाय की अनेक नस्लें होती हैं- हरियाणी,
देसी, चारणारकर एवं साहीवाल, राठी आदि नस्लें अच्छी एवं श्रेष्ठ हैं।
गाय के दूध का उपयोग मरीज दवाओं के साथ करता है। दूध से क्रीम, निकाला जाता है।
दूध को जमाने के पश्चात दही बन जाता है। दही को हिन्दी में दही, संस्कृत में दधि, दध,
पयंसी, मंगल्य, अनेतर, तक्रजन्म, क्षरत, क्षारोदभव, दिग्ध, तक्रजन्य, बंगाली-गुजराती में
दही, कन्नड़ में भसरू, तेलगू में पेरगु, फारसी में दोग नाम से जाना गया है। घी को हिन्दी
में घी, घृत, नवनीतक, नवीनतज, दहिभोग्य, मराठी में तूप, गुजराती में घी, तेलगू में नेई,
फारसी में रोगने जर्द, अरबी में समन दूहनूलक्कर, नामों से जाना जाता है। मक्खन को
स्तन्यतत्व, मखन, माखन, नवनीत, तक्रजनीन नामों से जाना जाता है। तक्रपिंड व तक्र
कपिका नामों की जननी छाछ को मठा, मट्ठा, छाय, लस्सी, शीत, तक्र, मनित, द्रव्य,
तक्रजननी के नामों से जाना जाता है। दूध को हिन्दी में दूध, संस्कृत में दुग्ध, मराठी में
दूध, गुजराती में दूध, कन्नड़ में हालू, तेलगू में पालू, फारसी में शीरे, अरबी में लवनुख,
लेटिन में लक्टस नामों से जाना जाता है। 'पीयूषÓ गाय ब्याहने से सात दिन तक का दूध
है। दूध, दही, मठा, छाछ के इन्द्रिय सुख गोरस कहलाते हैं।
दूध से बनने वाली वस्तुओं में दही, मक्खन, घी, खोवा, पनीर, रसगुल्ला, बर्फी, गुलाब
जामुन, कलाकन्द, गाजरपाक, रसभरी, हिना मुर्गी, रस मलाई, रसपट, क्रीम, रसराज,
टोटरू, रबड़ी और छाछ मुख्य है। फाड़े हुए दूध के छेना से पनीर बनाया जाता है, पनीर
से जलेबी भी बनती है। रबड़ी को वसौंधी राबड़ी कहते हैं। गाय का दूध दूहना
(दोहना)अन्य पशुओं से कठिन होता है। गाय के मूत्र को गौमूत्र, गौमत नाम प्रसिद्धि है।
इसका मूत्र कीट एवं रोगनाशक एवं सब्जियों एवं फसलों में कीटनाशक के स्थान पर
प्रयोग होता है। गौमूत्र के छिड़काव से कीटों का नाश होता है साथ ही सब्जी अन्न को
खाने पर मानव शरीर पर कोई गलत प्रभाव नहीं पड़ता। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार गौमूत्र
पवित्र है। आजकल अमेरिका जैसे पाश्चात्य संस्कृति के धनी देश ने गौमूत्र का पेटेन्ट कर
दिया है।

गाय के गोबर को गोबर, गोमय, गोपुरीष, गोविष्ठा, गोमल, गोविट्, गोशकृत कहा जाता है।
आधुनिक चिकित्सा शास्त्र के डाक्टर तथा वैज्ञानिक अब कहते हैं कि गाय के गोबर से
लीपने पर ऊर्जा तरंगित होती है। गोबर में गैस शक्ति बहुत होती है। गोबर के विषय में
खोज का श्रेय उत्तरप्रदेश के बरेली जनपद के गांव भूवा के नवोदित पब्लिक स्कूल के
कक्षा सातवीं के छात्र आशुतोष यादव को है। आशुतोष यादव ने सीसे और तांबे की प्लेट
के सिरों में तार जोड़कर एक डिब्बे में रखकर उस डिब्बे में गाय का गोबर भर दिया और
आधे धंटे बाद गाय का गोबर बैटरी की तरह विद्युत ऊर्जा देने लग गया। बाहर निकले
तारों के सिरे स्कूल की घड़ी से जोडऩे पर वह चलने लगी।  'कमल ज्योतिÓ पाक्षिक
लखनऊ के अनुसार 28 अगस्त 2000 की खोज से 16 मार्च 2002 तक स्कूल घड़ी चल
रही है।
      यूनानी मतानुसार महिलाओं के दूध के बाद गाय का दूध सबसे उत्तम है। बच्चा जब तक
40 दिन का न हो जाए तब तक उसे जानवर का दूध देना हानिकारक है। आयुर्वेद में दूध,
मधुर, स्निग्ध, वात-पित्तनाशक, मृददृविरेचक, तत्काल वीर्यजनक, शीतल, सब प्राणियों
की आत्मा, जीवन, वृहण, बलकारक, बुद्धिवर्धक, वाजीकरण, अव्यवस्थापक ओज के
बढ़ाने में विरेचन, वमन और वस्ति के समान गुण करता है। जीर्णज्वर, मानसिक रोग,
क्षयरोग, मूच्र्छा, भ्रम संग्रहणी, पांडुरोग, दाह तृषा, हृदय रोग, शूल उदावर्त गुल्म, गुदांकर,
रक्तपित्त, अतिसार, योनिरोग श्रम और गर्भस्त्राव में निरंतर हितकारी है जो बालक वृद्ध,
क्षतक्षीण भूखे और मैथुन करने से क्षीण हो गए हैं उनको दूध बहुत लाभ पहुंचाता है, मगर
तरुण ज्वर में इसका पीना विष के समान है।

     गाय का दूध रस और पाक मधुर, शीतल, स्तनों में दूध उत्पन्न करने वाला और पित्त को
नष्ट करने वाला, भारी, हमेशा सेवन करने वाले मनुष्यों को बुढ़ापे से बचाने वाला और
सभी रोगों को नष्ट करने वाला है। काली गाय का दूध वातनाशक और अधिक गुणकारी,
पीली गाय का दूध पित्तनाशक और वातनाशक, सफेद गाय का दूध कफकारक लाल
और चितकबरी गाय का दूध वातनाशक और तरुणी गाय का दूध मधुर, रसायन और
त्रिदोषनाशक होता है। वृद्ध गाय का दूध दुर्बलताजनक होता है। जिस गाय को गर्भवती
हुए तीन महीने बीत गए हैं उसका दूध पित्तकारक, खारा मधुर दोष वाला, जिस गाय ने
पहली बार बच्चा दिया है उसका दूध रुखा, दाहकारक, रक्त को कुपित करने वाला और
पित्तनाशक, जिस गाय को बच्चे दिए बहुत दिन बीत गए हो उसका दूध बलवर्धक और
जिन गायों का बछड़ा मर गया हो अथवा छोटा काल का हो उसका दूध भारी, कब्जियत
करने वाला और दुष्पाच्य होता है, अताब्व पथ्य, दीपन और हल्का होता है। (साभार रउताही-2011 )
(धन्वन्तरी कृत- भारतीय, जड़ी-बूटियाँ नामक पुस्तक से)
                                             साहित्य वाचस्पति मुकाम+पोस्ट- स्याणा, 
                                            तहसील व जिला- महेन्द्रगढ़ हरियाणा, पिन 123027

भारतीय सेना की देशभक्ति ने चीनियों को झुकाया था

-राकेश कुमार
च्यांग काई शेक की पार्टी कुओमिनतांग की लिबरेशनवादी ताकतों को परासत कर माओ
त्से तुंग ने 1 अक्टूबर 1949 को चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का ध्वज लहराकर 'चीनी लोक
गणराज्य (चाइनीज पीपुल्स रिपब्लिक) की स्थापना की। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री
पं. जवाहरलाल नेहरु की सरकार ने उसे मान्यता देने में तनिक भी देरी नहीं लगाई। इसमें
लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल और कृष्ण मेनन जैसे विद्वान की सहमति भी रही
लेकिन जब चीन ने अपने नेतृत्व की महत्वाकांक्षा के कारण 24 अक्टूबर 1950 को
तिब्बत पर अधिकार की घोषणा कर दी और 14 वें दलाईलामा ने वर्ष 1959 के भारत में
शरण लेकर यहां निर्वासित तिब्बती सरकार का गठन कर लिया उसके ठीक बाद चीन-
भारत की तल्खियां उजागर होने लगीं। भारत के महान चिंतक अरबिंदो घोष ने सचेत
किया था कि कम्युनिस्ट चीन का उभरना भारत और एशिया के लिए भयंकर खतरा है।
अपने देहावसान से प्राय: एक सप्ताह पहले ऐसा ही वक्तव्य सरदार पटेल ने जारी किया
था। उन्होंने तिब्बत पर चीनी करतूत से उपजने वाले भविष्य के खतरों के प्रति सेचत
करते हुए प्रधानमंत्री नेहरु को एक पत्र लिखा था। उन्होंने कहा था कि भारत ने तिब्बत के
साथ एक स्वतंत्र संधि कर उसकी स्वायत्तता का सम्मान किया। इससे पहले इस बात का
ख्याल रखने की जरूरत थी कि उत्तर-पूर्वी भारत की सीमा रेखा अस्पष्ट होने के कारण
कई राज्य जो चीन के प्रति अधिक लगाव रखते हैं, कभी भी समस्या का कारण बन
सकते हैं। पटेल जी के पत्र को तत्कालीन रक्षामंत्री तथा पंडित जी के खास मित्र कृष्ण
मेनन ने तवज्जों नहीं दी। यहां तक कि जब तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख जनरल तिमैया
ने रक्षामंत्री को सेना के साजो-सामान खरीदने के लिए 300 करोड़ रुपयों का प्रस्ताव सौंपा
तो मेनन ने उन्हें यह कहकर वापस कर दिया कि उनका 300 शब्दों का भाषण इस
समस्या का हल कर देगा। कुछ समय के लिए नेहरु और मेनन की जोड़ी सही साबित
हुई। जब 29 जून 1954 को भारत व चीन के मध्य आठ वर्षीय व्यापारिक समझौता हुआ
और पंचशील सिद्धांत पर एशिया इन दो सबसे बड़े देशों के बीच सहमति बनी तो लगा
कि सब कुछ सही है। उसके दो वर्ष बाद 1956 में भारत और चीन के द्विपक्षीय विवादों
पर आपसी चर्चा हुई जिसमें दोनों पक्षों ने कुछ बिन्दुओं पर सहमति बनाने में सफलता
हासिल की। इनमें मुख्य रूप से जम्मू-कश्मीर की 1100 किमी लम्बी पूर्वी सीमा और
सिक्यांग- तिब्बत सीमा का विवाद लेन-देन के जरिए हल करना था। चीन 90,000 वर्ग
किमी पर अपना दावा छोड़ देता। संधि से पूर्व चीन ने वर्ष 956 में सड़क बनाकर
पाकिस्तान से स्थल मार्ग द्वारा सीधा संबंध बना लिया। उसके बाद वर्ष 1958 की 'चाइना
विक्टोरियस सभा में चीन ने भारत का एक ऐसा मानचित्र प्रस्तुत किया जिसमें भारत की
50,000 वर्ग किमी अधिकृत भूमि को चीन का हिस्सा बताया गया था। भारत इसका
सीधा विरोध करने से कतराता रहा क्योंकि शक्तिशाली राष्ट्र का कोई शत्रु नहीं बनना चाहता
है। वहीं, चीनी गणराज्य के पहले प्रधानमंत्री चाऊ एनलाई भारतीय व अन्य एशियाई
नेताओं को गुमराह कर रहा था कि उनका देश मैकमोहन सीमा रेखा को व्यवहारत:
स्वीकार करता है। सच्चाई यह थी कि इसे वह औपनिवेशिक घटना मात्र मानता था और
भारत के साथ सीमा  विवाद का हल निकालने के लिए वह भारत पर हमले की तैयारी
कर रहा था। उसने उचित अवसर पाकर 8 सितम्बर 1962 को मैकमोहन रेखा पार कर
भारत पर हमले की घोषणा कर दी। भारतीय सेना को रक्षा मंत्रालय से हमले का आदेश
मिलते ही 20 अक्टूबर 1962 में दोनों पक्षों के बीच घमासान युद्ध प्रारम्भ हो गया। चीनी
सैनिक अपने को अजेय मानकर बढ़ते चले आ रहे थे। उन्होंने लेह के पूर्वी क्षेत्र व नेफा
में मैकमोहन सीमा रेखा की भारतीय सैनिक चौकी पर देखते ही देखते फतह कर ली थी।
चौकी पर भारतीय सेना की कोई पेट्रोल पार्टी गश्त नहीं कर रही थी। लद्दाख की
भयानक सर्दी में जवानों के पास न तो पर्याप्त कपड़े, सर्दी के जूते और न ही हथियार थे
लेकिन दुश्मन का सामना करने का हौसला था।
ऊंचे ग्लेशियरों से घिरे सुनसान पहाड़ी इलाके चुशूल रेजांग ला पोस्ट पर मेजर शैतानसिंह
अपनी 13 वीं कुमाऊं बटालियन की 'सीÓ कम्पनी का नेतृत्व कर रहे थे जिसमें 118
जवान थे। 18 नवम्बर 1962 को बर्फीली हवाओं के तेज झोंके, कुहासे की धुंध से जवानों
के हाथ-पांव ठंडे हो रहे थे कि 1310 चीनी सैनिकों का अचानक हमला हो गया। सुबह
4:35 बजे हुए उस हमले के उत्तर में मेजर शैतान सिंह, हवलदार राजकुमार, हरिराम,
सूरजा, रामचंद्र, गुलाब सिंह, रामकुमार सिंह, फूलसिंह, जयनारायण, निहाल सिंह,
हरफूल सिंह आदि ने अपनी प्लाटूनों सहित मोर्चा संभाल लिया। मैदानी क्षेत्र से आए
जवानों ने पहली बार बर्फ से ढंकी पहाडिय़ों पर मोर्चे का तजुर्बा किया था और उनके पास
मौसम का सामना करने के संसाधन नहीं के बराबर थे। मेजर शैतान सिंह अपने संख्या
बल एवं हथियारों की क्षमता से परिचित थे। उन्होंने अपनी हर प्लाटून के मोर्चे तय कर
निर्देश देना आरम्भ किया कि दुश्मन के हथियारों की रेंज में आते ही गोलियां चलाई
जाएं। कुछ देर की प्रतीक्षा के बाद राइफल, मशीनगन और मोर्टांर से हमला बोल दिया
गया परन्तु चीनी सैनिकों ने उस समय तक भारतीय सैनिकों को चारों ओर से घेर लिया
था। उनका हमला जानलेवा था। उनके मोर्टारों से उगलते शोलों के गोले भारतीय सेना के
बंकर व मोर्चे तबाह कर रहे थे। इसके बावजूद भारतीय सैनिक पीछे हटने को तैयार नहीं
थे। नवम्बर माह के उस दिन पूरा देश दीपावली मना रहा था और चुशूल घाटी में भारतीय
वीर खून की होली खेल रहे थे। भारतीय लोकसभा में प्रधानमंत्री द्वारा वक्तव्य दिया जा
रहा था कि जिस हिस्से पर चीन ने कब्जा किया है वहां अन्न का एक दाना भी नहीं
उगता। सदन में कांग्रेस के ही सदस्यों ने उठकर अपनी टोपियां उतारीं और कहा नेहरुजी,
हमारे सिरों पर बाल नहीं है और आपके सिर पर भी नहीं। इसका मतलब यह नहीं कि
सिर कट जाने दिया जाए। उधर, युद्ध मैदान में डटे मेजर शैतान सिंह ने 118 जवानों को
संबोधित करते हुए कहा कि यह हर सैनिक के जीवन का सर्वोत्तम क्षण है कि वे अपनी
मातृभूमि की पवित्रता की रक्षा करें या दुश्मन से लड़ते-लड़ते अपने प्राणों को राष्ट्रहित में
न्यौछावर कर दें। उनके संबोधन ने सैनिकों का जोश दुगुना कर दिया। उसी बीच चीनियों
ने 13 वीं कुमाऊं रेजीमेंट चौकी के पीछे से हमला बोल दिया जिससे तांगात्से छावनी के
जवान सैनिकों के बचने की गुंजाइश भी नहीं बची। फिर भी, भारत के जांबाजों ने शत्रु
सेना को खासा नुकसान पहुंचाया। उसी दौरान चीनी सेना की चलाई गई एक गोली
कम्पनी कमांडर मेजर शैतान सिंह को लगी लेकिन हवलदार हरफूल सिंह के कहने के
बावजूद मेजर शैतानसिंह ने मैदान से हटना कबूल नहीं किया। उन्होंने अपनी कमर से
बेल्ट निकाल कर उनको दी और कहा मैं यहीं लड़ूंगा आप छावनी में जाकर सूचना दो
कि 13 वीं कुमाऊं बटालियन की 'सीÓ कम्पनी का प्रत्येक सैनिक लहू की अंतिम बूंद
और अपनी अंतिम गोली तक दुश्मन से लड़ता रहा। दुश्मन के खिलाफ हमले पर हमले
कर रहे जख्मी मेजर पर शत्रु सैनिकों की मशीनगन से निकली गोली की बौछार आई।
सीने, पेट और जांघ पर गोलियां लगने के बाद मेजर ने मृत्यु को स्वीकार कर भारतीय
वीरता का सर्वोच्च आदर्श प्रस्तुत किया। आगे चलकर तांगात्से को रेजांग ला दर्रे की
लड़ाई चुशूल की लड़ाई के नाम से अविस्मरणीय वीरगाथा बन गई। इस वीरगाथा के तीन
माह बाद बर्फ पिघलने पर भारतीय सीमा के अंदर 114 भारतीय व 1100 चीनी सैनिकों
के शव प्राप्त हुए। रक्षा मंत्रालय ने सैनिकों की सुरक्षा में रेडक्रास की एक टीम रेजांगला
दर्रे भेजी। निगरानी दल ने देखा कि शहीद सैनिकों की उंगलियां राइफलों के ट्रिगर पर थी
तो किसी के हाथ में हथगोले थे। मातृभूमि की रक्षा के लिए भारतीय सैनिकों के अदम्य
साहस और बलिदान को देख चीनी सैनिकों ने जाते समय सम्मान के रूप में जमीन पर
अपनी राइफलें उल्टी गाडऩे के बाद उन पर अपनी टोपी रख दी थी। भारतीय सैनिकों को
शत्रु सैनिकों से सर्वोच्च सम्मान प्राप्त हुआ था। आज भी इंडिया गेट दिल्ली में वीर जवान
ज्योति में यह छवि देखने को मिलती है। वहीं 13 वीं कुमाऊं रेजीमेंट के 114 वीरों की
चुशूल से 12किमी दूर एक स्मारक बना है। इस स्मारक में सभी वीर सैनिकों के नाम
अंग्रेजी के अक्षरों में अंकित हैं। इस विजय प्राचीर के समान ही एक छोटी समधि के रूप
में 'अहीर धाम स्मारक का भी निर्माण किया गया है। उल्लेखनीय है कि 13 वीं कुमाऊं
बटालियन की 'सी कम्पनी में शामिल अधिकांश जांबाज जवान अहीर (यादव) ही थे
परंतु 'रेजांग ला के समर में वे सब भारतीय सैनिक थे। (साभार रउताही -2011)
  मो. 09454718786

लोक साहित्य में पर्यावरण चेतना

-गोवर्धन यादव
'लोक साहित्यÓ लिखने-पढऩे में एक शब्द है, पर वस्तुत: यह दो गहरे भावों का गठबंधन
है। 'लोकÓ और 'साहित्यÓ एक दूसरे के संपूरक...... एक दूसरे में संश्लिष्ट। जहाँ लोक
होगा, वहाँ उसकी संस्कृति और साहित्य होगा। विश्व में कोई भी ऐसा स्थान नही है जहाँ
लोक हो और वहाँ उसकी संस्कृति न हो।
मानव मन के उद्गारों व उसकी सूक्ष्मतम अनुभूतियों का सजीव चित्रण यदि कहिं मिलता
है तो वह लोक साहित्य में ही मिलता है। यदि हम लोक साहित्य को जीवन का दर्पण
कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। लोक साहित्य के इस महत्व को समझा जा सकता
है कि लोककथा को लोक साहित्य का जनक माना जाता है और लोकगीत को काव्य की
जननी। लोक साहित्य में कल्पना प्रधान साहित्य की अपेक्षा लोकजीवन का यथार्थ सहज
ही देखने में मिलता है।
लोक साहित्य हम धरतीवासियों का साहित्य हैं क्योंकि हम सदैव ही अपनी मिट्टी,
जलवायु तथा सांस्कृतिक संवेदना से जुड़े रहते हैं। अत: हमें जो भी उपलब्ध होता है, वह
गहन अनुुभूतियों तथा अभावों के कटु सत्यों पर आधारित होता है, जिसकी छाया में वह
पलता और विकसित होता है। इसलिए लोक साहित्य हमारी सभ्यता का संरक्षक भी है।
साहित्य का केन्द्र लोक मंगल है। इसका पूरा ताना-बाना लोकहित के आधार पर खड़ा
है। किसी भी देश अथवा युग का साहित्यकार इस तथ्य की उपेक्षा नहीं कर सकता। जहाँ
अनिष्ट की कामना है, वहाँ साहित्य नहीं हो सकता। वह तो प्रकृति की तरह ही
सार्वजनहिताय की भावनाओं से आगे बढ़ता है।
प्रकृति साहित्य की आत्मा है। उसका अपनी मिट्टी से, अपनी जमीन से जुड़ा रहना भी
साहित्य की अनिवार्यता है। मिट्टी में सारे रचनाकर्म का 'अमृतÓ वास रहता है। रचनाकार
उसे नए-नए रूप देकर संपादित करता है। गुरू-शिष्य परम्परा हमें प्रकृति के उपादानों के
नजदीक ले आती है। यहाँ कबीर का कथन प्रासंगिक है। 'गुरू कुम्हार सिख कुंभ गढ़ी-
गढ़ी काठै खोट, अन्तर हाथ सहार दे, बाहर वाहे खोट।Ó संस्कारों से दीक्षित व्यक्ति सभी
प्रकार के दोषों-खोटों से विमुख रहता है। इसमें लोकहित की भावना सामाहित है।
मलूकदास भी इन्सानियत की परिभाषा अपने शब्दों में यूं देते हैं- 'मलूका सोई पीर है जो
जाने पर पीर - जो पर पीर न जानई, सो काफिर बेपीर।Ó दूंसरों की पीड़ा समझने वाला
इन्सान पशु-पक्षी का भी अहित नहीं सोच सकता। उसे वनस्पति की पीड़ा का भी भान
होता है। चराचर जगत के प्रति मैत्री का यह विस्तार साहित्य ही तो है।
लोक साहित्य में लोककथा-लोकनाटक तथा लोकगीतों को रखा जा सकता है, जिसमें
जनपदीय भाषाओं का रसपूर्ण-कोमल भावनाओं से विकसित साहित्य होता है। भारतीय
लोक साहित्य के मर्मज्ञ आर.सी टेम्पुल के मतानुसार लोक साहित्य की साहित्यिक
दृष्टिकोण से विवेचना करना उसी सीमा तक उचित होगा, जिस सीमा तक उसमें निहित
सुन्दरता और आकर्षण को किसी प्रकार की हानि न पहुँचे। यदि लोक साहित्य की
वैज्ञानिकी विवेचना की जाती है तो मूल विषय नीरस तथा बेजान हो जाएगा।
लोक के हर पहलू में संस्कृति का दिव्य दर्शन होता है। जरूरत है तीक्ष्ण दृष्टि और सरल
सोच की। लोक साहित्य के उद्भट विद्वान देवेन्द्र सत्यार्थी ने साहित्य के अटूट भंडार को
स्पष्ट तौर पर स्वीार करते हुए कहा था- 'मैं तो जिस जनपद में गया, झोलियाँ भर कर
मोती लाया।Ó
पर्व और त्यौहारों के इतिहास में हमारे देश की संस्कृति और सभ्यता का इतिहास छिपा
है। बहुत सारे त्यौहार ऐसे हैं जो प्रकृत की गोद में और प्रकृत के संरक्षण में मनाए जाते है
जैसे गोवर्धन पूजा, आंवला पूजन, गंगा सप्तमी, माह कार्तिक में तुलसी पूजन आदि। ये
सभी पर्व हमें अपनी प्राकृतिकता से सह संबंधों की परम्पराओं की याद दिलाते हैं। ऐसे
पर्व जो प्रकृति के विभिन्न घटकों को पूजने के दिन के रूप में मनाए जाते हैं। उसी पर्व के
अवसर पर सम्पन्न क्रियाकलाप और समारोह प्रकृति-प्रेम एवं प्रकृति के प्रति
संवेदनशीलता का नया वातावरण हमें प्रदान कर पर्यावरण को शुद्ध रखने के लिए उत्प्रेरित
करते हैं। प्रकृति घटकों के सह संबंध हमें नई भौतिक संस्कृति एवं लोभ मानस-पटल पर
नहीं होंगे तो स्वार्थमय भौतिक संस्कृति जैसे 'प्रदुषण संस्कृतिÓ प्रकट नहीं होगी और
पर्यावरण शुद्ध बना रहेगा।
भारतीय जनजीवन में वृक्षों को देवता की अवधारणा की परम्परा के फलस्वरूप इनकी
पूजा अर्चना की जाती है। पीपल के वृक्ष में श्रीकृष्ण ने अपनी विभूति बनायी है। ऐसा
माना जाता है कि पीपल के वृक्ष के फूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण,
पत्तों में श्री हरि और फलों में सब देवताओं से युक्त 'अच्युतÓ निवास करते हैं। मान्यता है
कि अशोक वृक्ष लगाने से कभी शोक नहीं होता। बिल्व वृक्ष दीर्घायु प्रदान करने वाला
होता है। वल्बल, मधुक (महुआ) तथा अर्जुन वृक्ष सब प्रकार का अन्न प्रदान करता है।
कदम्ब वृक्ष से सुफल लक्ष्मी प्राप्त होती है। आम का वृक्ष सौभाग्य बर्धक होता है।
आज भी विभिन्न भागों  में पीपल, तुलसी, गूलर, बरगद, और आम की पंच-वृक्षों में
गणना होती है और पूजे जाते है। धार्मिक आस्था के अनुसार सभी हरे वृक्ष पूजनीय और
उनको काटना पाप समझा जाता है।
विभिन्न तथ्यों एवं लोक जीवन की शैली के आधार पर निष्कर्ष रूप मेें कह सकते हैं कि
वृक्ष हमारी संस्कृति अभिन्न अंग रहे हैंं। (साभार अक्षरशिल्पी)
                                                                          कावरी नगर, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)