Saturday 16 February 2013

वन गोकुल

ब्रह्मा जी के मानसिक पुत्र अत्रि ऋषि के पुत्र चन्द्रमा हुआ जिसके नाम से इस वंश का नाम चन्द्रवंश पड़ा। चन्द्र के पश्चात क्रमश: चन्द्र के पुत्र बुद्ध, बुद्ध का पुत्र पुरुरवा, पुरुरवा के आठ पुत्र हुए, उनके नाम नीचे लिखे अनुसार है। 1. वायु 2. दृढ़ायु, 3. अश्वायु 4. नामालूम 5. धृतिमान 6. बसु 7. शुचि 8. शतायु इनमें से ज्येष्ठ आयु के पुत्र नहुस हुए। नहुस के पुत्र 2. वर्मा 3. रजि 4. दम्भ 5. विपात्मा।
अब नहुस के धार्मिक पुत्रों के वर्णन निम्न हैं-
1. यति, 2. ययाति 3. संयति 4. उदभव, 5. वाचि, 6. शर्याति 7. मेधजाति। ये सातो वंश विस्तारक थे इनमें से ज्येष्ठ यति सुमारावस्था में योगी हो गए तब दूसरा भाई ययाति धर्म का पालन करते हुए राज्यभर सम्भालने लगे जो कि सम्राट नहुस के बाद शकितशाली सम्राट बने।
ययाति के दो रानियों में से 1. राक्षस, गुरु भार्गव शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी थी। 2. देवयानी के दो पुत्र 1. यदु, 2. तुर्वसु हुए तथा राक्षस राज वृषपर्वा की पुत्रि शर्मिष्ठा से तीन पुत्र उत्पन्न हुए। 1. द्रह्यू, 2. अनु. 3. पुरु।
पुरु सम्राट बने ज्येष्ठ यदु को सम्राट ययाति ने राजगद्ददी से वंचित कर उसके साथ ही द्रह्यू, अनु, तुर्वसु को भी राजगद्दी से वंचित कर दिया गया। तथा इन चारों भाईयों को जागीर में राज्य दिया गया, जो इस प्रकार हैं। यदु के चर पुत्र हुए 1. कोष्ठु 2. नील 3. अन्तिक 4. लघु यदु के 38 वीं पीढ़ी में सम्राट सारस्वत हुए। सारस्वत के दो पुत्र हुए 1. अन्धक, 2. वृष्णि हुए।
इन दोनों भाइयों के नाम से 2 धारा चली। पहला अन्धक वंशीय, व दूसरा वृष्णिय वंशीय। अंधक के 10 वीं पीढ़ी में महाराज आदुक हुए। आदुक के पुत्र उग्रसेन तथा देवक हुए। उग्रसेन की पत्नि पवन रेखा से वन विहार में उग्रसेन को रूप धरकर राक्षस दुर्भलिक ने पवन रेखा से संभोग किया फलस्वरूप कंस का जन्म माघु सुदी 13 दिन गुरुवार को हुआ। कंस के 10 भाई थे। देवक की पुत्री देवकी सहित सात बहन थी कंस और देवकी अंधक वंशीय यादव क्षत्रिय थे। दूसरी शाखा वृष्णि वंशीय यादव क्षत्रिय थे।
वृष्णि के पुत्र भजपान, भजमान के पुत्र विदुरथ, विदुरथ के सुर, सुर के शिवि, शिवि के स्वंभोज, स्वंभोज के हृदक, हृदक के देवबाहु, देवबाहु के विदुरथ (द्वितीय) विदुरथ के देवभीढ़  या देवभढ़ी।
वैभव शाकी सम्राट देवभीढ़ के दो रानियां थी। 1. मरिष्ठा 2. गुणवती थी। प्रथम रानी मरिष्ठा से सुरसेन जिनके नाम पर सुर वंश चला इन्हीं सुरसेन के 10 पुत्र हुए जो इस प्रकार हैं-1. वसदेव, 2. देवभोग, 3. देवश्रवा, 4. कानक, 5. संजय, 6. श्यामक, 7.कंक 8. समोक 9. शत्सक तथा 10. वृक हुए तथा पांच कन्यायें भी हुई।
वसुदेव जी का पहला विवाह राजा रोहण की पुत्री रोहणी से हुआ और अन्य 17 पटरानी थीं जिनमें श्री देवकी जी उनकी 18 वीं रानी हैं। रोहणी के गर्भ से श्री बलराम जी का जन्म श्रावण सुदी चर्तुदशी बुधवार को रोहणी नक्षत्र में हुआ। सम्राट देवभीढ़ की दूसरी रानी, गुणवती से तीन पुत्र उत्पन्न हुए जो इस प्रकार हैं . 1. राजन्य 2. प्रजन्य 3. अर्जन्य हुए।
नोट- सूरसेन और राजन्य, प्रजन्य अर्जन्य ये चारों सौतेले भाई थे।
सूरसेन मथुरा में रहे और ये तीनों भाइयों को मथुरा में मंडल के सारी गोसम्पत्ति जागीर में दिया गया।
ये तीनों भाई अपनी संपत्ति को लेकर यमुना पार कर वृहद जंगल में अपना निवास स्थान बनाए जहां पहले से ही कुछ गोप (यादव) अपनी-अपनी गोसम्पत्ति को लेकर निवास कर रहे थे। उन्होंने इन तीनों भाइयों को राजघराने के जागीरदार के रूप में जाकर उन्हें अपने राजा के पद से विभूषित किए और ये जिस वन में निवास किए उस का नाम गो+कुल (गोकुल) रखा जो आज भी विख्यात है।
इसी गोकुल में राजन्य के पांच पुत्र हुए (1) महानंद (2) उपनंद (3) नंद (4) सानंद (5) अभिनंदन, इसी तरह वासुदेव व नंद आपस के चचेरे भाई थे जो वृष्णि वंशीय यादव हुए।
(मत्स्य पुराण के अनुसार)
मु. बरपाली, पो. बिरकोनी, व्हाया अकलतरा जिला-बिलासपुर।

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