Tuesday 19 February 2013

मुक्ति दायिनी गौ माता

प्राचीन समय से ही मानव समाज की मूल संपत्ति गायें रही हैं उस समय पशुधन की रक्षा एवं पालन पोषण का भार पराक्रमी, साहसी, निडर वर्ग के हाथों सौंपा जाता था। उस समय से लेकर अभी तक गोपालन का कार्य यादव जाति के लोग ही करते चले आ रहे हैं।
गौ की कितनी अनंत महिमा है तथा गौ सेवा क्या है उसका क्या फल है, भली भांति जाने। 'सर्वे देवा: स्थिता डेहेसर्व देवमयी हि गौ:।Ó (गाय के शरीर में सभी देवताओं का निवास है अत: गाय सर्व देवमयी है)।
भारत वर्ष में प्राचीन काल से ही बड़े-बड़े महापुरुषों द्वारा गौ सेवा और गोपालन होता चला आया है। रघुवंशी महाराज दिलीप नंदिनी गौ के लिए अपने प्राण देने हेतु प्रस्तुत हो गये। भगवान श्रीराम का अवतार ही गौ, ब्राह्मण हितार्थ हुआ था। भगवान श्री कृष्ण का बाल्य जीवन गौ सेवा में बीता, उन्होंने जंगलों में घूम-घूम कर गाय चराये। इसी से उनका नाम गोपाल पड़ा।
गौ सेवा और गौ वंश की उन्नति भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। गौ सेवा ही सच्ची राष्ट्र सेवा एवं सर्वोत्तम भगवदाराधना है। गोचर भूमि छोडऩा पुण्य माना गया है। गौ से हमारा आध्यात्मिक संबंध है। मृत्यु के पश्चात गौ वैतरणी पार कराती है, इसलिए गौ सदैव पूज्या है।
हवन में गाय के घी की आहुति दी जाती है जिससे सूर्य की किरणें पुष्ट होती है जिससे वर्षा होकर अन्न, पौधे, घास के पैदा होने से संपूर्ण प्राणियों का भरण पोषण होता है। गाय के गोबर में लक्ष्मी जी का और गौमूत्र में गंगाजी का निवास माना गया है जिससे अनेकों औषधियां बनाई जाती हैं।
गौ भारत वर्ष की कृषि प्रधान अर्थ व्यवस्था की भी रीढ़ है। अमृततुल्य दूध के अतिरिक्त खेत जोतने एवं बोझा ढोने हेतु बैलों तथा भूमि की उर्वरता बनाए रखने के लिए उत्तम खाद भी हमें गाय से मिलना है। गाय और बैल अपनी दृढ़पीठ पर हमारी अर्थव्यवस्था का भार उठाए हुए हैं। अत: मनुष्य को गौ की महिमा महत्ता का ध्यान रखते हुए उसकी तन, मन, धन से सेवा करनी चाहिये। हमें सभी प्रकार से गाय की रक्षा एवं उन्नति के लिए कटिबद्ध हो जाना चाहिये।
समस्त मनुष्यों के लिए सुख-शांति के भण्डार एवं समस्त फल दायिनी गौ माता का वर्तमान में घोर तिरस्कार हो रहा है। बड़े दुख की बात है गोपाल के देश में आज निर्बाध गो-वध जारी है और गो रक्त से भारत की पवित्र भूमि लाल हो रही है। ऐसे में राष्ट्र कवि की ये पंक्तियां बरबस याद आती हैं-
'है भूमि वन्ध्या हो रही, वृष जाति दिन-दिन घट रही,
घी दूध दुर्लभ हो रहा, बल वीर्य की जड़ कट रही।
गो वंश के उपकार की सब ओर आज पुकार है,
तो भी यहां उसका निरंतर हो रहा संहार है।।Ó
गर्व की बात है कि आज भी गांवों में यादव जाति के लोग सिर पर पागा, शरीर में पागी, हाथ में नोई तथा तेंदू की लाठी लेकर सुबह से शाम तक गो सेवा का कार्य करते हंै। यदि हम गो के प्रति अपने कत्र्तव्यों के लिए जागरुक बनें तभी सही मायने में हम लोग गो भक्त कहलाने के हकदार होंगे।
जय गो माता की।
साभार - रऊताही 2001

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