Thursday 30 October 2014

उज्जर देवारी तिहार अऊ राऊत नाचा

किसान अऊ अन्न : देवारी तिहार के नाँव आते च सुरता आये बर लगथे उमंग, जोश, नवा जिन्गी के रद्दा देखइया तिहार के। चारो कोती एक बढिय़ा वातावरण बन जाथे। सबो के चेहरा म गोंदा फूल फूलगे अइसन लागथे। घरो-घर के दूवारी अंगना म बइठे नानकुन लइका अऊ डोकरी दाई काली अवइया आनंद के सुरता करत मुस्कुरावत हावे। गांव-गांव, सहर-सहर, जम्मो जगा के मकान, घर-कुरिया म अपन-अपन हैसियत ले रंग-रोगन किये जाथे। चारों कोती अइसने चमक-दमक ल देख के अइसन लागथे, आज धरती म सरग उतर आय हावे। येही च अइसन तिहार आय जौन के चार महीना ले अगोरा करे जाथे। बरसात के आखिरी भादो महीनो हाथे येखर बाद मौसम ह अपन रंग-ढंग बदले बर लागथे। का लइका, का जवान, का सियान, सब कार्तिक महीना ले अपन-अपन जिन्गी म नवा-नवा सृजन करे बर धर लेथें। भविष्य बर बिचार बदलथे। क्वारं महीना के घाम जादा चरचराथे, अऊ खेत म निंदा गडिय़ावन किसान निहरे रहिथे। ये बेरा किसान अपन खेती खार के मया म बूड़े रहिथे। किसान अपन चुहत पसीना ल खेत के पानी संग मिलाथे तब धान के नान्हे पौधा आनंदित होके लहलहाय बर धरथे, अऊ कंसा लेथे। एक ठन पौधा के चार-पांच कँसा हो जाथे। ओहा किसान के आभार मानथे। किसान अपन मेहनत ल जानके, धनहा के धान के खुसी ल मान के अपन भाग सहराथे। जिन्गी के पल-पल लोकगीत म संवर जाथे। खेत के मेड़ म चोंगी पियत गाये बर धर लेथे-
'कुंवार गइस, कातिक आगे, बादर निच्चट फरियागे,
देख देवारी लक्ठागे, धान लुये के दिन आगे।Ó
अन्न माता के आनंद : दशहरा अऊ सरद पुन्नी माने के बाद धान मोटियारी ले अधेर हो जाथे। ओहा अपन घेरा च भर म हवा के संग झूम-झूम के मानो नाचे बर धर लेथे। खेत के धान किसान संग बात करथे- 'बाबू, हमन ल अब हमर मइके में लेवा के कब लेके जाहू। अब तो चुंदी पाकगे, हाथ-गोड़ पडऱागे।Ó किसान ह मुचमुचाके कहिथे- 'थोरिक दम धरव माता, ये दे देवारी तिहार के करत हावंव अगोरा, फांफा, माहू दिया के बाती के आंच म सब जर जाही, तब राऊत मन दोहा पारही, बियारा के खुरदई कराके बरोबर करके ओला गोबर म लिप के तोर ठौर ल सुग्घर बना डारे हन, तोर अगवानी म लोग लइका संग मिलके आरती सजाबो, फूल पान सकेल के तोर पंवरी म चढ़ाबो, अन्न माता, हमर घर म जब होही तुंहर आना, तभे तो हमर भरही खजाना, हमर खुलही भाग, कर्जा-बोड़ी ल छूट के अपन भाग ल सहराबो, बारहो महीना के कमई तभे सफल होही। ओखरे खातिर देवारी तिहार के करत हवन अगोरा। हांसत धान के बाली ह किसान के बात सुनके गौर करत केहे लागिस- 'भइया किसनहा, रोज सुकुवा उगत उठथस तैं बिहनिहा, तोरे मिहनत म तो मोर बांचे हावे जिन्गानी, तोरे उज्जर मन ले बने हावे मोर चिन्हारी। तोरे पसीना मोर तन हरियाय हे, तभे तो तोर कोठार म मोर मन भाय हे। बारहो महीना खटावत रहिथस तन ला, खाये पीये के सुध नइ रहय तभो मनावत रहिथस मन ला, थोरहे दिन अऊ होही कस्ट सहना, ये हा कोनो चिंता के बात नइये, इही हावे मोर कहना, आवन दे देवारी, मना ले भइया तिहार, परन दे राऊत के दोहा, गांव म रहिके सबला कर जोहार।Ó किसान कथे- 'तै बने केहे अन्नमाता, जइसन तुंहर बिचार, ओला लगाहूं माथा, रात दिन तोरे गावत रहिथंव गाथा, मैं बिस्वास के कोड़त हावंव कोर, हाथ के मिहनत मजबूत हावय मोर, माता रात-दिन करते रहिथंव तोरे शोर।Ó
सुरहोती अऊ गौरा-गौरी: वास्तव में देवारी अइसन तिहार आय, जेमा अन्न गऊ गौरा-गौरी के होथे गोहार, राऊत मन इन सबके करथें जोहार। सुरहोती के दिन अन्नमाता लक्ष्मी के होथे पूजा। फूल, पान, मिठाई, नवा कपड़ा के करथे माता बर बिछौना, तन समर्पित, मन अर्पित कर उजराथें घर के कोना-कोना, घर भर के लोगन करथें मिलके आरती, माता के चरन म नवाथे माथ बेटी भारती, फोरत फटाका मजा उड़वाय, घर-घर, द्वार-द्वार माटी के दीया बारके अंचरा सजावय, जगमग-जगमग जोत जलाके पर्वा म मढ़ावय, फराक नवा पहिरे चुनमुन मुस्कावय, खेती खार लगय चकाचक, माता अन्नपूर्णा के आसन ममहावय। रतिहाकुन फेर ओ बेरा आथे जिहां गांव के बीचो-बीच गौरा चौंरा म गौरा-गौरी के स्थापना करे जाथे। ओ समे कलसा गीत गूंजत रहिथे-
'करसा सिंगारत बहिनी रिगबिग सिगबिग,
करसा सिंगारत बहिनी बड़ निक लागे,
बहिनी सिंगारत बड़ सुख लागे भइया।
गौरा-गौरी के जुलूस : गांव के हर घर ले कलसा पूजा करके ओमा दीया बार के उही गौरा-गौरी के चौरा म लाये जाथे। गौरा-गौरी के जुलूस आगू चलथे, पाछू-पाछू घर-घर ले आये कलसा चलथे। गांव भर के कलसा ऊपर माटी दीया के ज्योत जलत रहिथे। ओ समे अइसे लागथे जानो मानो गंगान में चमकत चंदइनी-सुकुवा मन धरती म आ गे हावे। ये जुलूस  मं गांव के सब मनखे मन सामिल रहिथें। उंकर मन म भारी उछाह मंगल बने रहिथे। माइ लोगन मन गौरी माता के रुप में चुंदी छरिया के गौरा-गौरी के धुन में बाजत बाजा अऊ गीत के संग डड़इया चढ़के नाचत-गावत चलथें। वो बेरा के वातावरण देखे के लाइक रहिथे। नवजवान लड़का मन देवता बनके आगू-आगू झूपत रहिथे। ओ बेरा बर कासी डोरी के बने सांकड़ रखाय रहिथे। दूसर जवान हर उंकर हाथ-पाँव म ऊही सांकड़ से सड़ाक-सड़ाक सोंट थे। ओला सांकड़ लेना केहे जाथे। अइसन खेल-खेलत रतिहा पहा जाथे। येखर पाय के पता घला चल नी पाय कि बिहनिया कब होगे। गौरा चौरा म आये के बाद, गौरा-गौरी ल पहिली मढ़ाये जाथे। ओखर चारो कोती घर-घर ले आये कलसा मन ल ओरी ओर रखे जाथे। गांव के बैगा अऊ माइलोगन मन सबके पूजा करथें। एक बात के जिकर करना जरुरी हो जाथे कि गौरा-गौरी ल कइसे बनाय जाथे, अऊ ओला कइसे सजावट करे जाथे। वास्तव में गौरा-गौरी भगवान भोले शंकर अऊ माता पार्वती के मूर्ति होथे। गौरा-गौरी बनाना अऊ पूजा, वास्तव में ये संसार के बनइया आदि देव शंकर जी हरे, येखर पाय के उंकरे पूजा-पाठ करे जाथे। गौरा-गौरी दू ठन लकड़ी के पीढ़ा में माटी के मूर्ति बनाके रखे जाथे। मूर्ति पीढ़ा के बीच में स्थापित रहिथे। पीढ़ा के चारों कोना म माटी के खम्भा बनाये जाथे। उंकर आधार बनाय बर भरुहा काड़ी बांस के कमचील के उपयोग करे जाथे। ओखर आधार ले के माटी के खम्भा खड़ा करे जाथे। चारो खम्भा ल काड़ी से जोड़ के मजबूती दिये जाथे। ये खम्भा मन ला चाउंर, धान ल रंगा के कलाकारी करके सुन्दर रुप दिये जाथे। येखर ऊपर म दीया मढ़ाये जाथे। चारो खम्भा म दीया जलाये जाथे। गौरा-गौरी दूनो झन बन अलग-अलग पीढ़ा में मूर्ति स्थापित करे जाथे। मूर्ति बनाये बर पहिली माटी लाय बर जाथे। माटी लान के ओकर पूजा किये जाथे। माटी म पोनी अऊ राखड़ डाल के ओला मुलायम किये जाथे, जेकर सेती ओहा नई चटके। गौरा ल नंदी में बइठारे जाथे। गौरी माता ल कछुआ में बइठारे जाथे। गौरा-गौरी के हर प्रकार ले सिंगार करे जाथे। गौरा भगवान तिरसूल धरे रहिथे। ओकर पारम्परिक पहनावा करे जाथे। दोनों पीढ़ी के सवारी ल सिलियारी, धान के बाली, मेमरी के डारा लगा के जंगल असन सजाये जाथे। कल्पना करे जा सकथे गौरा-गौरी कैलास पहाड़ ले उतर के धरती म आ गे हावे। दूनो पीढ़ा ल लड़का अऊ लड़की मन मुड़ म बोह के चलथें। कुल मिलाके सुरहोती के रतिहा ले बिहिनिया तक लोगन मन म भारी उमंग बने रहिथे। ओ समे लोकगीत माई लोगन मन लोकधुन म गाये लगथे-
'धान के भूसा समुन्दर के पानी, गौरी ह साने माटी,
धनि-धनि बइला हो, धनि हो गोसइया,
हो काकर बइला तो आय।Ó
गौरा-गौरी बने के बाद गौरा-गौरी के
पूजा करत धानी उंकर सम्मान म धला
लोकगीत गाये जाथे-
'एक पतरी रइनी, राय रतनपुरि
दुर्गा देवी, तोरे सीतल छांव,
चौंकी चन्दन, पिढ़ली मढ़ाके,
गौरी के होथे मान।Ó
सब देवता मन ल मान देवत ओमन ल पूजा ठौर म आये के नेवता दिये जाथे। ओ समे लोकगीत फूट पड़थे-
'बारे डड़इया मोर बड़ रंगरेली, चढ़े लीमन के डार,
लिमुआ के डारा टूटि-टूटि जइहे, तिरनी जाही छरियाय,
कोन सकेले मूठ म तिरनी, कोन सकेले तोर केंस,
भौजी सकेले तोर मूठ म तिरनी, भइया सकेले केंस।Ó
येखर बाद बिहिनिया के उत्सव के आखिरी बेरा म गौरा-गौरी ल सोय बर बिनती किये जाथे ओ बेरा म गांव के लोक गायिका ह गा उठथे-
'गौरी सुते, गौरा सुते, सुते सहर के लोग,
बइगा सुते, बैगिन सुते, सुते जगइया लोग,
गौटिया सुते, गौटिया सुते, सुते मुखिया लोग,
बाजा सुते, बजइया सुते, सुते देखइया लोग,
गौरी सुते, गौरा सुते, सुतन चले सब लोग।Ó
गौरा-गौरी के बिदाई : ये लोकगीत के गुंजार के बीच देवारी तिहार के दिन खरखा उसलत ले गौरा गौरी के मूर्ति ल बाजा गाजा के साथ तरिया म विसर्जन कर दिए जाये। येमा को नो प्रकार ले संदेह नइये कि ये लोकगीत लोगन मन मा आस्था अऊ विश्वास के संस्कार लगे हावे। जौन ह आदिकाल ले पारम्परिक रूप से चले आवत हावे। ये समे लोगन मन म भारी उछाह भरे रहिथे। अपन जिन्गी म आय दुख ल भुलाके एक जूट होके ये परब ल उत्साहपूर्वक सबो जुर मिलके मनाथे।
राऊत मन के तैयारी : गौरा-गौरी ल बिदा करे के बाद राऊत मन के कार्यक्रम चालू होथे। देवारी तिहार मनाय खातिर राऊत और रौताइन मन तन-मन-धन ले जुट जाथे। देवारी तिहार के दिन राऊत मन बिहिनिया नौ-दस बजे गरूआ उसलत समे उंकर जागरन के समे आये। देवारी तिहार बर राऊत मन ल बरदी चराय के, दूध दुहे ले छुट्टी मिले रहिथे। राऊत मन अपन घर म तेल पियाय लाठी रखे रहिथे। ओला साल भर म निकालथे। ये बेरा ओमन सिंगार नई करे रहंय, वो मन दोहा घला पारथे:-
''तेंदुसार के लाठी भइया, सेर-सेर घी खाय,
एके लाठी परे ले, पुरखा याद आय।
सादा सर्वदा रोजमर्रा के अंगरखा पहिरे दुनो हाथ म लाठी ले के, पगड़ी बांधे सब राऊत मन के घरो घर जाके ऊंकर घर के भीतर बिराजे देवता मन ल नेवते बर जाथें। उंकर बाजा-गाजा संग म रहिये। उहां जाके दूवारी म जाते च दोहा पारथे अऊ पर्वा म लाठी बरसाथें। देवारी तिहार म खपरा फोरना गरब के बात माने जाथे:-
''एक काछ काछैंव मइया, दूसर दियेंव मलाई,
तीसर कांछ काछेंव तो माता-पिता के दुहाई,
कलकत्ता के कालिका, पर्वत के किलकार,
जा दुस्मन ल चांट मइया, देहंव रकत के धार।ÓÓ
सबो राऊत मन के घर के देवता धामी ल नेवते के बाद गांव के जाने-माने परमुख मनखे मन के घर जाके ओमन ल घला देवारी तिहार के गोवर्धन खुंदाय के परब म सामिल होय खातिर नेवता देथें। रौताइन मन मंझनिया ले गोबर्धन खुंदाय के तैयारी करथें।
गोबर के गोवर्धन पहाड़ बनाके, गोबरे के गौरा-गौरी बनाथे। ओ जगा ल ठाकुर देव कहिथें। उहां गोवर्धन पहाड़ म सिलियारी मेमरी धान के बाली ल पौधा बनाके खोंचथे। उहें धजा, नारियल, बंदन, दुबी रखथे। फूल पान के साथे-साथ सुपारी घला चढ़ाके गोवर्धन पर्वत बनाके किसन-कन्हैया के पूजा-आरती करथे।
राऊत मन के सिंगार : नेवता नेवते के बाद राऊत मन अपन-अपन घर लहुटथे, अऊ अपन सिंगार करथें। सबले पहिली ओमन नवा धोती या पंछा अलग ढंंग ले पहिनथें। धोती के एक भाग ल कनिहा म अइसे लपेट के गांव बांधथे, जेकर से साधारण रूप ले छूट झन जाय। धोती के दूसर भाग के तोनगी कसथे। तोनगी ल अइंठ के करधन म फंसाके कनिहा में अइसे खोंचथे जौन ह बिना निकाले नई छूट सके। ओमन अंगरखा पहिनथे, जौन ह रंग-बिरंगी अऊ चमकदार होथे। चमकदार कपड़ा पहिरना जादा पसन्द करथें। बहुत झन राऊत मन कोसाही या अंडी के कुरता सिलवा के पहिनथें। ओ कुरता के ऊपर अइसन सलूखा पहिनथें जेकर पहिचान अलग होथे। सलूखा के ऊपर म कौड़ी व मंजूर पाख के बनाये साज पहिनथें, जौन उंकर चिन्हारी बनथे। आंखी म काजर आंजे, मुंह म करताल चुपरे रहिंथे। ओ दिन ओमन दाढ़ी बनाके मेंछा अन्टियाय रहिथें। मुड़ म पगड़ी विसेस रूप से रंगीन पंछा ल अंटिया के बांधे रहिथें। उंकर पगड़ी म रंगीन कागज ले बने फूल के कलगी लगे रहिथे। दूनो हाथ म करिया तेल चुपरे लाठी धर के अपर गोर्ररइयां अऊ देवता ल सुमर के बाहिर निकरथे। गांव के मुखिया राऊत मन पहली संभर के बाजा-गाजा के साथ दोहा पारत सबे राऊत मन घर दूसर घावं परघाय बर जायें। जेकर घर मुखिया मन जाथें, ओमन पर्वा ल पीटत खपरा फारत दोहा पारत हुंत कराथे। घर वाला राऊत ह पहिली च ले तैयार बइठे रहिथे। ओ समे ओ राऊत ह दोहा पारत काछन चाड़त अपन देवता म हुंम देके राऊत दल के स्वागत करत ओमा सामिल हो जाथे। सबे राऊत मन राऊत नाचा करत दोहा पारत बिधुन होके मस्ती म चलथें। ये बेरा उंकर नाचा देखे के लाइक रहिथे। इही ह तो हमर छत्तीसगढ़ के राऊत नाचा आय, जौन हमर सान आय। भगवान किसन कन्हैया गाय चरावत रहिस। गाय के सेवा करत उनला पुचकारत रहिस। येखर कारन ओकर नांव गोपाल परिस। ये राऊत मन उंखरे बंसज आय। येमन गोवर्धन खुंदात ले ओकर जय जयकार करथें। गाय गरू के संग रहत, उंकर सेवा करत पूरा जिन्गी बीत जाये। बात चले हे गऊ सेवा के, तो ये राऊत मन अपना बरदी के हर गाय बछरू के पहिचान रखथें। ओमन के अलग-अलग नांव ले पुकारथें। ओ गाय मन अपन राऊत ल पहिचानथें। जब राऊत ऊंकर नाव ले के बलाथे, तब अपन कान ल टेड़ के देखके अऊ ओकर नजीक आ जाथें। ओमन देख के रंभाये अऊ अपन राऊत के पुचकारे के आसा करथें। दूध दुहे बर जब राउत ह ओ घर म जाथे, तब ओकर आरो पाके बछरू अऊ गाय दुनों गजब खुस हो जाथें। गाय बछरू अऊ राऊत के बीच अइसे प्रेम के संबंध बन जाथे जौन कभू दूरिहा नई हो पाय। ओमन जब गाय ल सोहई बांधथे तेन समय के दोहा सुनके मन गदगद हो जाथे। वास्तव म केहे जाय कि आज के किसन कन्हैया इही राऊते च मन हंय। ये मन अपन ठाकुर मन के भारी मान रखथें। उंकर मया, दया अऊ सेवा च उंकर चिन्हारी आय। येखरे पाय के राऊत मन बर मोर मन म भारी सरधा हे, मान हे, आभार हे।
गोवर्धन खुदाना: जब राऊत मन सज संवर के पगड़ी बांधे मेछा अंटिया के दूनो हाथ म लाठी पकड के दोहा पारत नाचथें, तब अइसे लागथे आज गांव गली ह बिंदाबन बन गे हे। जिहां ग्वाल बाल मन हांसत गावत दोहा पारत, नाचा करत चलथे अऊ जोन धूर्रा उड़थे, अइसे लगथे मानो गोकुल के गली म ग्वाल बाल अऊ धेनु के खुर ले धुर्रा उड़त आवत हे। गली में आके दोहा पारत कहिथे:-
''ओहो, दसो अंगूठी धरी-धरे, ऊपर धरे पचासे,
तीन मूर्ति नेत्र हरे कि पंडित करे बिचारे।
बाजा के धुन आगू बढ़थे। सबो झन झमाझम पांव उठाके पांव म पहिरे घुंघरू बजाके नाचत जाथें। थोरकिन दूरिहा जाके दूसर राऊत ह दोहा पारथे:-
''ओहो, करकर-करकर कुकरा करय, फरफर-फरफर पांखी,
तरमर-तरमर झन करबे, बइरी तोला जमाहूं लाठी।ÓÓ
ये ग्वाल बाल संग गांव के जवान, सियान, बहू बेटी, माई सबो झन ये उमंग के साथी बनथे। आगू-आगू राऊत चले, मंझोत म बाजा-गाजा, पाछू-पाछू जनता चले लेवत उत्सव के मजा। इही बेरा राऊत मन मस्ती म दोहा पारके, लाठी लहरा के लोगन मन ल चकित कर देथे। सबो दोहा परइया राऊत ऊपर नजर दौड़ाथे:-
''रंग माते रंगीला, छापा माते गाय,
राऊत माते देवारी रे, देखत मन भर जाय।ÓÓ
अइसने गली-गली गिंजरत य टोली गोवर्धन खुंदाय के जगा ठाकुर देव के ठौर म पहुंचत बहुत बेरा हो जाथे। दिन बुड़ताही सबो झन पहुंच पाथे। ओही बेरा म खइरखा के गरूवा मन ल गोवर्धन ठाकुर के जगा सकेल के लाय जाथे। ओ बेरा गाय गरू मन आधा डर आधा बल करके मेछराय बर धर लेथे। जेती जगा पाथें, ओती दौड़े बर धर लेथें। उही बरदी के एक ठन बछरू ल पकड़ के गोवर्धन ठाकुर देवता के जगा लान के ओकर पूजा पाठ करथें। फेर ओला सिलियारी, मेमरी अऊ धान के बनाय सोहई ल पहिराथे अऊ बने गोबर के गोवर्धन पहाड़ के ऊपर ओला रेंगा के खुंदावथे अऊ राऊत मन ओ बेरा मार्मिक रूप ले अइसे दोहा पारथे कि ओ समे आम जानता के हिरदे गदगदायमान हो जाये:-
''बोकरा लेबे ते मेंदरा नाचन, लेबे रकत के धार,
मय तो जावत हंव मतराही मा, तोला लागे भार।ÓÓ
फेर बाजा बाजे बर लगथे। ओखर बाद सबो झन बछरू के खुंदाय गोवर्धन के गोबर लेके एक दूसर के माथ म गोबर के टीका लगाके अपन अपन नता के अनुसार अभिवादन करथें, गला लगाथें, पैर छूके परनाम करथें। ये दिन गांव के सब लोगन मन सबके टीका लगाथें। अपन जुन्ना मन मुटाव, बैरभाव ल भुलाके परेम से मिलथे। ओ दिन के भाईचारा एकता के परतीक आय। एक दूसर बर परेम के सागर उमड़े परथे। ये दिन जिन्गी जिये के नवा दिन होथे। ये देवारी तिहार एक-दूसर के सुख-दुख म साथ देय के संकलप के दिन आय। राऊत मन भगवान राधे-गोपाल ले बिनती करथें कि हमर गांव अइसने एकता के डोरी में बंधाय रहय। मुखिया राऊत ह आय सबो जनता जनार्दनके आभार मानत कहिथे-आप मन इहां आके हमर उछांह ल दुगुुना कर देव। ये गाँव के सबो सियान, माई, बहू, बेटी, लइका, पिचका सबला मोर जय जोहार। सब परिवार के उन्नत के भार आपे मन के हावे। येखर बर जौन बलिदान लगही हमर ये समाज देय बर सदा तैयार रही। येखर बाद दोहा पारथे:-
''हरी खाय खरी भइया, दूबर खाय मोटाय,
सब झन खांवव दूध भात, बइरी रहय मुरझाय।
येखर बाद देवारी के तिहार के समापन के बाद गाय मन सोहई बांधे के रिवाज रतिहा तक बाजा गाजा अऊ दोहा के साथ पूरा करथें। तब तक गांव म सोवा पर जाय रहिथे।
मातर मनाना : देवारी परब मनाय के बाद राऊत मन के खास तिहार बिहाने दिन मातर आथे। ये दिन गांव के सबे समाज के लोगन मन ल ये तिहार म आय बर राऊत मन के तरफ ले नेता दिये जाथे। गांव के खइरथा डाड़ जेला दईहान भी कहे जाथे, में ये तिहार के जबरदस्त कार्यक्रम के आयोजन राऊत समाज द्वारा किये जाथे। ये दिन उहां मेला लगे रहिथे। लोग मन परम्परागत ये तिहार देखे खातिर बिहिनिया आठ नौ बजे ले आय बर धर लेथें। राऊत मन बिसेस रूप से गांव के सब ठाकुर मन ल नेवता दिये बर घरो घर जाथें। अऊ मातर म आय बर बिनती करथें। मातर में गोड़ समाज के बनाय बैरक अऊ मड़ई देवता ल नरियर भेंट करके मातर म बिनती करके लाये जाथे। बैरक मड़ई पकड़ के लाने वाला बइगा या बैरक वाला होथे। बैरक सम्हालके मातर ठौर म लानथे। ओमन मड़ई, बैरक ल नाच नचावत लाथें। जेकर मजा जनता जनार्दन ल अबड़ बढिय़ा ढंग ले लेथें। दोपहर तक नेवता नेवतई म अऊ बेवस्था करई म समय निकर जाथे। दर्शक मन मेला दूसर काम में व्यस्त रहिथें। दूसर पहर में मंझनिया कुन से राऊत मन सबे देवता धामी करा जाके दोहा पारत नेवते बर जाथे। सबे राऊत मन घर-घर जाके बलाथे। ओ दिन सबे ठाकुन मन घर ले पूरा बरवाही मंाग के दूध इकट्ठा करथें। रौताइन मन खइरवा डांड़ आके देवता धामी के पूजा पाठ करथे। सबे राऊत मन के घर के देवता मन ल घला नेवत के लाय जाथे। मातर परब म गांव भर के जनता-जनार्दन तो आबे च करथें, आस-पास के गांव के रहइया मन घला आथें। बैरक या मड़ई पकडऩे वाला मन मातर ठौर खइरखा डाड़ म आके मड़ई दौड़ करथे, बैगा अपन अनुसार ओला दौड़े पर दिसा बताथे। मंतर पढ़े के नाटक करके कार्यक्रम ल रोचक बना देथे। कार्यक्रम के आयोजन एकदम खुले जगा करे जाथे। लाठी चलाय के कमाल दिखाय जाथे। अपन-अपन कला के प्रदर्शन कलाकार मन करथें। अऊ जनता के मनोरंजन करथें। कुस्ती, लाठी लेझिम के अचरज भरे कतको कमाल होथें। आखिर म पूरा गांव के लोगन मन ल खीर खाये बर दिये जाथे। आये जनता के अभिनंदन करथें।
ठाकुर जोहारना : देवारी अऊ मातर परब ल निपटाय के बाद पारम्परिक कार्यक्रम में राऊत नाचा के माध्यम ले ठाकुर जोहारे के बुता करथें। सज-धज के दूनो हाथ म लाठी लेके, नाचत, दोहा पारत घर-घर ठाकुर जोहारे बर जाथें। ये बात के उल्लेख करना जरूरी हो जाथे के ओ बेरा ओमन देवारी अऊ मातर तिहार जइसन पूरा सिंगार के साथ ताल-लय के साथ बहुते बढिय़ा ढंग ले रोचक ढंग ले झूमत, नाचत ठाकुर जोहारे के काम करथें। वास्तव में ये कहना गलत नई होही कि राऊत मन हमर संस्कृति, परम्परा ल बचाय रखे हावे। राऊत मन के ये कार्यक्रम ल देखे बर लोगन मन म भारी उत्साह बने रहिथे। उंकर काछन चढऩा अऊ देवता धामी म हूंम धूप दे के धर्म के प्रति आस्था रखना ही संस्कृति ल बचाय हावे। अपन ले बड़का मन के कइसे अभिवादन किये जाथे। ये बात उंकर ले सीख मिलथे। ठाकुर जोहारे के समय डरौठी में जाके लाठी ल जमीन पटकत कथे-ओहो। अऊ दोहा पारथे। आखिरी म ऊंकर तरफ ले ठाकुर मन के प्रति आभार व्यक्त किये जाथें। ठाकुर जोहारे के समे राग से दोहा पारथे, जौन हिरदे ल छूने वाला होथे:-
 ''ठाकुर जोहारे ल आयेन संगी, खायेन पान सुपारी,
रंगमहल म बइठव मालिक, राम रमऊवा लेव हमारी,
जइसन मालिक लियेन-दियेन तैसे के देबोन आसिसे,
रंगमहल म बइठव मालिक, तुम जीवव लाख बरिसे।
अइसन प्रकार ले देवारी तिहार किसान, अन्न, मान-सम्मान, ईमानदार, मेहनत के प्रति आस्था आय। राऊत मन के कला-संस्कृति अऊ संस्कार के बार-बार नमन हे।
साभार रउताही 2014

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