Tuesday 21 October 2014

अपनी भू की सुगंध बिहार के लोकगीत

जनजीवन में विभिन्न अवसरों पर गाये जाने वाले लोकगीत होते हैं, जो भावुक और संवेदनशील जनता के हृदय के स्वाभाविक उदगार होते हैं। लोकगीतों में छन्द का नहीं वरन लय का माधुर्य होता है जो आनन्दबिहार के लोकगीतों को सुनने में आता है। वह पढऩे में नहीं आता। बिहार की माटी की अपनी सुगंध है और यहाँ के लोकगीतों की आवाज सुरीनाम से लेकर सिंगापुर तक गई है यहाँ पर मैथिली बज्जिका, भोजपुरी, मगधी अंगिका आदि जैसी कोयल की भाषाएँ मौजूद है।
मैथिली लोकगीत केवल विभिन्न संस्कारों के अवसर पर ही नहीं, वरन् प्रात: दोपहर संध्या, मध्य निशा आदि प्रत्येक अवसर पर गाने के लिए अलग-अलग लय में प्रचलित हैं। संस्कार गीतों में मोहर, खेलवना, मुंडन, जनेऊ विवाह सम्मरि जोग समदाऊनी आदि प्रमुख है। विशेष तथा विवाह सम्बन्धी विभिन्न विधियों से संबंधित लोकगीतों की जितनी अधिकता मैथिली में है उतनी बिहार के अन्य भाषाओं में नहीं। कुछ गीतों में लय-भिन्नता भी यहाँ मिलती है। मिथिला की समदाउनी हृदय विदारक होती है। कुछ विशिष्ट गीत भी है, जो उत्तर बिहार में प्रचलित हैं। उन गीतों में चांचरि, मलार, तिरछुति मधुश्रावणी, कुमार, बहगमनी, ग्वालरि, महेशवानी, गोसावनि, उचिती, लगनी आदि हंै। अंगिका के लोकगीतों पर अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य का सबसे अधिक प्रभाव देखने को मिलता है। मगही के लोकगीतों में बसंत का उल्लास, बरसात के हिडोल, विरह की कारूणिक दशा, पति-पत्नी और सास पुतोहू की कलह, ननद-भाभी का विनोद, भाई-बहन का स्नेह, माता-पिता का वात्सल्य आदि के हृदयगाही वर्णन हुए हंै। बज्जिका भाषा में विवाह गीत, छठ गीत, बसावन भुइयाँ लोक गीत, मुंडन गीत, जनेऊ गीत एवं कीर्तन गीत श्रोताओं को झूमा देते हैं। जहाँ तक भोजपुरी का सवाल है तो इसके लोकगीत सहज और मर्मस्पर्शी होते ही हैं। इसकी परम्परा भी प्राचीन है। इसके लग्र गीतों में विवाह की मर्यादा तथा ग्राम देवताओं के गीतों में सिद्धों और नाथ पंथियों के प्रभाव परिलक्षित होते हैं। कई जंत सारी के गीतों में मुगलों और तुर्कों की काम-लिप्सा और भोजपुरी रमणियों के सतीत्व की महिमा भी वर्णित है। भोजपुरी क्षेत्र तथा उसके नजदीक रहने वाले थारू विकृत भोजपुरी बोलते हैं। इनके रस्म रिवाजों में लोकगीतों का विशेष प्रचलन है और उन लोकगीतों को धान उपजाने पर, शिकार खेलने पर या भूत-प्रेत की पूजा करने आदि पर गाते हैं।
बिहार के लोकगीतों को निम्रलिखित श्रेणियों में बाँटते हैं:
1. पर्वगीत : विभिन्न पर्व त्यौहारों जैसे छठ, तीज, जिउतिया, नागपंचमी, नहुरा, गोधन, पीडिय़ा, दीपावली, मधुश्रावणी, रामनवमी, कृष्णाष्टमी, आदि अवसरों पर स्त्रियों अथवा पुरूषों द्वारा सामूहिक रूप से गाये जाने वाले गीत इसके अन्तर्गत आते हैं।
2. ऋतु गीत : विभिन्न ऋतुओं से संबंधित गीत जैसे फगुआ या होली, चैता, कजली, हिंडोली, चतुर्मासा, बारहमासा आदि गीत इसके अंतर्गत आते हैं।
3. व्यवसाय गीत : रोपनी और सोहनी के गीत, कोल्हू के गीत, जंतसार गीत इसके अन्तर्गत आते हैं।
4. जाति संबंधी गीत : विभिन्न जातियों, यादवों, दुसाधों, चमारों, कहारों, धोबियों आदि के अपने अलग-अलग गीत हैं।
5. भजन या श्रुति गीत : इसके अंतर्गत प्रभावी, निरगुन, शीतलमाता के गीत, ग्राम देवताओं के गीत तथा अन्य पूजा पाठ से संबंधित गीत गाये जाते हैं।
6. बाल क्रीड़ा गीत : इसके अंतर्गत ओका बोका तीन तड़ोका, कबड्डी, पहाडे के गीत आदि आते हैं।
7. संस्कार गीत : मनुष्य के जन्म, मुंडन, जनेऊ विवाह, द्विरागमन इत्यादि के अवसरों पर गाये जाने वाले सोहर खेलवना, कोहब्बर, समुझवनी, बेटी-विदाई गौना आदि गीत।
8. गाथा गीत : इस प्रकार गीत बिहार में सुनाई जाने वाली विविध लोकगाथाओं पर आधारित होते हैं। इनमें प्रमुख गाथा गीत निम्रलिखित हैं-
मीरायन : इस गाथा गीत का नायक मीरा नामक एक युवक है। डिहरी नगर का हरफुल नुनजा गढ़ की लड़ाई में अपनी पुत्रोंं के साथ मारा गया। उसकी मृत्यु के पत्नी के गर्भ से उत्पन्न पुत्र मीरा युवा होकर नुनजागढ़ को दखल कर अपने पिता की मौत का बदला लिया।
लोरिकायन : इस गीत को लोरिक मनियार भी कहा जाता है। यह वीर रस से ओतप्रोत एक बहुत बड़ी गाथा है। यह पूरे बिहार में गायी जाती है। मुख्यत: इसे यादव लोग आते हैं। इस गाथा को मैथिली, भोजपुरी एवं मगही क्षेत्र के लोग अपने ढंग से गाते हैं। इस गाथा का नायक भी यादव ही है।  इसके मुख्य भाग है- लोरिक संवरु का जन्म, संबरु का विवाह, लोरिक का विवाह, चनना-उड़ार, हल्दी घाटी की लड़ाई, नेकरापुर की लड़ाई, पिपटी की पहली लड़ाई, पिपटी की दूसरी लड़ाई (लोरिक के साथ) लोरिक का काशीवास और मृत्यु।
विजयमल: इस गीत में राजा विजयमल की वीरता का वर्णन है। विजयमल धुनधुनिया के राजा धुरमल सिंह का पुत्र है। विजयमल विवाह करने हेतु बावनगढ़ जाता है। वहाँ वह बारातियों के साथ बंदी बना लिया जाता है। हिंघल बघेड़ा किसी तरह विजयमल को अपनी पीठ पर बैठाकर वापस घर लाता है। विजयमल जब बड़ा होता है तो वह प्रतिशोधवश बावनगढ़ पर चढ़ाई करता है। इसमें वह अदम्य वीरता का प्रदर्शन कर काफी समय से बंदी अपने पिता तथा बारातियों को कैद से छुड़ाकर अपनी पत्नी को साथ लेकर घर लौटता है। यह गीत भी बिहार के अधिकांश क्षेत्रों में गाया जाता है।
धुधली घटमा : यह गाथा गीत अंगिका क्षेत्र में विशेष रुप से प्रचलित है। इस गाथा का नायक धुबली अपने पिता रैया रनपाल की मृत्यु का बदला अपने मामा घटमा सहित सातों भाइयों को मारकर लेता है। यह गाथा गीत चम्पारण जिले में धुधली बहेडिय़ाँ और दरभंगा जिल में 'राय रन पालÓ के नाम से प्रसिद्ध है।
छतरी चौहान: यह गाथा मगही क्षेत्र में विशेष रुप से प्रचलित है। इस गाथा में छतरी चौहान अपने पिता की मृत्यु का बदला अपने अत्याचारी मामा से लेता है। इसमें छतरी चौहान की वीरता का वर्णन है।
नूनाचार: यह गाथा गीत विशेष रुप से मैथिली क्षेत्र में प्रचलित है। इसमें वीर रस तथा करुण रस की प्रधानता है। यह गाथा राजा करनू से संबंधित है। राजा करनू अपने दामाद को मरवा डालता है। राजा की विधवा बेटी अपने देवर को खबर करती है। उसका देवर राजा करनू को मार देता है। ततपश्चात वह राजा की छोटी बेटी से विवाह कर लेता है। बाद में राजा की विधवा बेटी सती हो जाती है।
दीना भदरी : करुण रस से भरे इस गीत में दीना और भदरी नामक दो बहादुर भाइयों की गाथा का वर्णन है। इसके नायक दीना और भदरी मुसहर जाति के थे। वे जोगिया नगर के रहने वाले थे और बहादुर थे। उस वक्त जोगिया नगर पर राजा कनक सिंह का राज चलता था। एक बार राजा ने सारे नगर के लोगों को बुलाया जिसमें दीना-भदरी नहीं पहुँचे। राजा कु्रद्ध होकर दीना भदरी के घर गया, परन्तु दोनों भाइयों ने राजा की बड़ी दुर्गति की। विक्षिप्त अवस्था में राजा घर पहुँचा। राजा की जादूगरनी  बहनें जदुआ और बचुआ को बड़ी चिंता हुई और दोनों ने मिलकर दीना और भदरी को मरवा डाला।  कुछ दिनों के बाद दोनों की मृतात्माओं ने जदुआ-बचुआ को मारकर बदला चुकाया।
नयका बन्जारा : इस गाथा में मुख्य पात्र के रुप में शोभनयका नामक वणिक पुत्र है, जिसका विवाह तिरहुत में बारी नामक लड़की से हुआ था। शोभनयका गौना कराकर पत्नी को लाता है। परन्तु व्यापार के उद्देश्य से उसे मोरंग जाना पड़ता है। रास्ते में रात को एक हंस के जोड़े की बात सुनकर उसे पता चलता है कि आज रात्रि के शुभ मुहूर्त में पत्नी के साथ समागम से उत्पन्न पुत्र बहुत प्रतिभावान होगा। उसने लौटकर पत्नी के साथ समागम किया और फिर वापस चला गया। तेरहवें वर्ष वह मोरंग व्यापार करके लौटा। इस बीच गर्भवती रानी को सास-ससुर ने घर से निकाल दिया और वह अपने देवर चतुरमुन के साथ रहने लगी थी। शोभयनका के लौटने पर लोगों का संदेह खत्म हुआ। अब दोनों सुख से रहने लगे। यह गाथा गीत समूचे बिहार में गाया जाता है।
मनसाराम छेछनमल: मनसा राम चमार तथा छेछनमल डोम इस गाथा गीत के नायक है। मनसाराम मोरंग के राजा का सिपाही था। छेछनमल भी सीटी राजखंड के राजा का सिपाही था। मोरंग के राजा ने सीटी राजखंड को अपने अधीन करना चाहा तो छेछनमल की वीरता से सम्भव नहीं हो सका। दोनों बहादुरों का वर्णन इस गाथा में है।
हिरनी-बिरनी: पोसन सिंह नामक एक व्यक्ति था जो काफी चरित्रवान और विवाहित था। नट जाति से संबंधित हिरनी-बिरनी नामक दो बहनें उस पर पूरी तरह आसक्त थीं। परन्तु पोसन सिंह अपनी मर्यादा का पालन करता रहा। दोनों बहनों ने पोसन सिंह को बहुत परेशान किया। अंतत पोसन सिंह ने एक खूंखार भैंस को नाथा और दोनों बहनों को अपनी दासी बनाया। यह गाथा गीत बिहार के अधिकांश हिस्से में प्रचलित है।
कुंवर वृजभार: इस गाथा गीत को सोरठी वृजभार भी कहा जाता है, इस तरह का गाथा गीत बहुत ही मार्मिक और रोमांचक है। यह बिहार के अलावे दूसरे प्रदेशों में भी प्रचलित है। इस गाथा गीत पर नाग पंथियों का स्पष्ट प्रभाव है। इस गाथा गीत में राजा उदय भान सोरहपुर का राजा था। उसकी सात रानियाँ थी, परन्तु वह नि:संतान था। उसने घोर तपस्या की। तत्पश्चात उसे सोरठी नामक एक पुत्री की प्राप्ति हुई, परंतु पुत्री पितृकूल घातिनी है, राजा ने अपनी पुत्री को बक्से में बंद करवाकर नदी में बहवा दिया। एक नि:संतान कुम्हार ने उस कन्या को नदी से निकालकर उसका लालन-पालन किया। जब ज्योतिषयों ने यह भविष्यवाणी की कि उक्त कुम्हार की कन्या से राजा को पुत्र की प्राप्ति होगी और राजा का भगिना (भांजा) कुंवर वृजभार उसे लाने में समर्थ होगा। राजा ने कुँवर वृजभार को बुलाया। वृजभार अपनी नई पत्नी को छोड़कर राजा के यहाँ आया। अपने मामा के आदेशानुसार कुंवर वृजभार योगी का वेश धारण कर उक्त कुमारी के पास गया और कुमारी (कन्या) को राजा के पास लाने में समर्थ हुआ।  इस पर राजा को वृजभार के आचरण पर शंका हुई। यह पता चलते ही सोरठी और कुंवर वृजभार मोर-मोरनी बनकर उड़ गये। बाद में जाकर राजा को पता चला कि कुमारी सोरठी उसकी ही परित्यक्ता पुत्री है, राजा को बहुत आत्मग्लानि हुई। यह  गाथा गीत बहुत ही मार्मिक है।
लुकेसरी देवी: यह गाथा गीत लुकेसरी देवी पर आधारित है, जो एक चमार कन्या थी। वह छेछनमल को पाने हेतु व्रत कर रही थी। जब उसे पता चला कि उसका प्रेमी जोगी बन गया है, तो वह उसे ढूँढने चली गई। अंत में उसकी भेंट छेछनमल से हुई। छेछनमल ने उसे पूजनीया देवी के रूप में ग्रहण किया। सम्प्रति आज भी वह देवी की रूप में पूजी जाती है।
अमरसिंह बरिया : यह गाथा गीत वीर रस से ओत प्रोत है। अमरसिंह बरिया एक वीर पुरुष थे। उन्होंने तिरहुत के एक अत्याचारी राजा उपमार को परास्त किया था। कहा जाता है कि वे कमल के परम उपासक थे और कमला नदी की कृपा से ही उन्हें विजय की प्राप्ति हुई।
राजा बिकरमादित : यह गाथा गीत कुंडिलपुर के राजा बिकरमादित से संबंधित है। यह गाथा वात्सल्य तथा करुण रस प्रधान है। यह नर्तकों के द्वारा पखावज पर गाये जाते हैं।
लाल महाराज : यह गाथा गीत विशेष रुप से अंगिका क्षेत्र में काफी प्रचलित है। अंधविश्वास से भरा यह गाथा गीत में सोनामनी के अनुरोध पर महिला देवी द्वारा भेजी गई बाघिन के द्वारा लाल महाराज की हत्या हो जाती है। मृत्यु के बाद लाल महाराज भूत बनकर सोनामनी के परिवार वालों को तंग करता है। अंत में गाँव वाले उसकी पूजा करने लगते हंै, तब जाकर भूत का उत्पाद बंद हो जाता है।
राजा हरिचन : यह गाथा गीत राजा हरिचन से संबंधित है इस गाथा गीत को नेटुआ लोग ही गाते हैं। इस गाथा गीत में राजा हरिचन बड़ा ही तपस्वी राजा था। उनके तपस्या से पूरा इन्द्र लोक भयभीत हो गया। विश्वमित्र को राजा की तपस्या भंग करने के लिए भेजा गया। विश्वमित्र ने राजा के एक मात्र पुत्र रोहित दास के दाहिने अंग का मांस खाने की इच्छा जताई। राजा रानी द्वारा चीरते समय रोहित की आँखों में इसलिए आँसू आ गये कि ऋषि ने उसके दूसरे अंग को अपवित्र क्यों समझा? इस पर ऋषि दुखित होकर लौट गये। फिर भगवान विष्णु ने बराह रूप में राजा के उद्यान को नष्ट कर दिया और ब्राह्मण रूप में राजा को सपरिवार बेचवा कर भोजन करने पर विवश कर दिया। रोहित के मरने पर राजा की निष्ठा की परीक्षा लेकर  विष्णु प्रकट होते है और अंत में विष्णु राजा को सपरिवार स्वर्ग लोक ले जाते हैं।
गरबी दयाल सिंह: इस गाथा का नायक गरबी दयाल सिंह है। वह भड़ौरा के दुखहरण सहनी का पुत्र था, जिसका विवाह बखरी की धनिया मुरउनी से हुआ था। गरबी दयाल सिंह के विवाह के समय सभी बाराती जादू में कैद कर लिये गये। किसी प्रकार गरबी दयाल सिंह लेकर उसका पिता वहाँ से भागने में सफल हुआ। गाँव के बाहर तुलसी इनार पर उसकी भेंट धनिया से हुई। वह मंत्र के बल से बखरी वालों को परास्त कर धनिया को लेकर तथा कैद से बारातियों को छुड़ाकर घर लौटा। यह गाथा गीत बज्जिका क्षेत्र में प्रचलित है।
राजा ढोलन सिंह: यह गाथा गीत भोजपुरी क्षेत्र में काफी गाया जाता है। इस गाथा गीत में ढोलन के पिता का नाम हरिचन है जो अपने बुरे दिन के फेरे में पड़कर पिंगलराज के यहाँ नौकरी करता है। ढोलन का विवाह राजा की बेटी मखन के साथ हुआ। कुछ समय बाद ढोलन पिता सहित स्वदेश लौट गया। यहाँ वह रेखा नामक मालिन के प्रेम जाल में फंसकर मरवन  को भूल जाता है। अंत में ढोलन एवं मरवन का मिलन हो जाता है।
बिहार के लोक गीतों का प्रमुख वाद्य यंत्र : लोकगीतों में वाद्ययंत्रों के प्रयोग होने प्रस्तुतीकरण में जीवंतता आ जाती है। लोकगीतों में प्रयोग होने वाले वाद्य यंत्रों में प्रमुख हैं- हारमोनियम, ढोलक, झाल, मजीरा, खरताल, खंजरी, बाँसुरी, नाल, घड़ा, मृदंग, सितार, सारंगी इत्यादि। संकीर्तन एवं भजन में झाल, खरताल और खजुरी बजाये जाने की परम्परा है। मिथिला भोजपुरी, बज्जिका मगधी एवं अंगिका क्षेत्रों में डमरु, डुग्गी, डफली, डफरा, डंका, ढोल ढोलक, ढोलकी, ढोलका, तबला, हारमोनियम, नगाड़ा, रोशन चौकी, शहनाई, रबाब, सिंगा, शंख आदि बजाए जाते हैं।
साभार रउताही 2014 
 

No comments:

Post a Comment