Monday 20 October 2014

लोक गीत बिहार के

हर मनुष्य अपने जीवन में हमेशा गाता गुनगुनाता रहता है। चाहे वह मन ही मन गुनगुनाये या बोल कर गाये गाता जरूर है। जब किसी के मन में जो भावना जगती है वह अपने भावों को प्रकट करने के लिए बातचीप से या संलाप से या गीत के रूप में अवश्य गायेगा। वह भी मनुष्य जिस परिवेश में या वातावरण में रहता है, उसी वातावरण से प्रभावित होकर गीत गाता है और उस गीत पर आंचलिक भावों का व्यवहारों का एवं भाषाओं का पूर्ण रूपेण प्रभावित होता है इसे ही हम लोकगीत कहते हैं।
लोकगीत हमारे जीवन काल के वर्षों के महीनों में आने वाले सांस्कृतिक शादी-विवाह, त्यौहार, पूजा-पाठ के कार्यक्रम के अवसरों के हिसाब से बंधा हुआ होता है और उसी पर आधारित है- जैसे कि शादी-विवाह पर गाये जाने वाले, सन्तान प्राप्ति के उत्सव पर गाये जाने वाले तीज त्यौहार पर एवं अन्य उत्सवों पर होते रहते हैं। ऐसे ही बिहार के मिथिला के आंचलिक गीत आप के सामने कुछ प्रस्तुत हैं।
वैसे तो गुलाल का टीका हर खुशी के अवसर पर लगाये जाते हैं परन्तु खासकर जब माता सरस्वती की पूजा जब हो जाती है उस दिन से गुलाल का टीका या मुखड़े पर हल्का सा लगाना शुरू कर देते हैं। परन्तु बसंत पंचमी से तो अधिकाधिक प्रयोग किया जाता है। होलिका दहन एवं नवसंवत सर के अवसर पर वो कहना ही कया? तभी तो होली के हुड़दंग में गा एवं नाच उठते हैं। फिर क्या डफली ढोलक लेकर नगाड्े की घाव पर गा उठते हैं-
भर फागुन, भर फागुन बुढ़वा देवर लागे भर फागुन।
काहू के हाथ में रंग पिचकारी,
हां काहू काहू के हाथ में रंग पिचकारी
कोई लगा के गुलाल भागे।। भर फागुन।।
चाहे कोई पहिने सफेद नवा साड़ी
नव रंग डाल चहेरा बिगाड़ डारे भर फागुन
इसके बाद कोई दूसरी टोली गाते हुए आते है और गाती है
जिसमें कोई कृष्ण जी का वेश बनाये रहता है।
होली से खेलत है नंदलाल बिरज में।
केहू के हाथ में रंग पिचकारी
केहू के हाथ में गुलाल बिरज में।।
राधा के हाथ में रंग पिचकारी
कान्हा के हाथ में गुलाल।
बिरज में होली खेलत हैं नंदलाल।।
बिहार में देवर भाभी की होली सदा खेली जाती है परन्तु अन्यों के साथ नहीं, अन्यसाथ और पुरूष और गैर औरत से। औरत औरतों के साथ, पुरूष पुरूषों के साथ ही। चैत महीनें में चैता गाये जाते हैं। छत्तीसगढ़ जिस तरह अषाढ़ महीनेें में सावन महीने में, हरितालिका, कमरछठ मनाया जाता है, बिहार में उसी तरह हरियाली सावनी घड़ी मनायी जाती है। भादो महीने में जन्माष्टमी, गणेश पूजा होती है। गणेश पूजा बिहार में स्कूलों में ही ज्यादातर मनाये जाते हैं। घरों में भी परन्तु साधारण तौर पे, मूर्ति स्थापना करके नहीं। उस रोज उपवास रहकर एवं पुआ-पकवान बनाकर शाम को चाँद को दिखाकर अर्ध देकर देकर फिर उस घर में भोजन कर लिया जाता है और सथ ही इष्ट मियों को दावत दिया जाता है। जन्माष्टमी पर भी ऐसे ही होता है। दिन भर उपवास रहते हैं शाम को बैठकर रात्रि के बारह बजे तक भजन कीर्तन करते हैं। फिर भगवान के जन्म के बाद उनकी आरती उतार कर प्रसाद वितरण करके लोग भोजन कर लेते हैं। यह कार्यक्रम अधिकतर मंदिरों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
आज कन्हैया के जन्म भयो रे,
सब दुख दूर भ गइले रे।
जेल के द्वार खुल खुल गइले,
कंश गरव चूर भइले रे।
माई यशोदा के भाग-जग गइले
नंदबाबा खुश गइले रे।।
मइया देवकी देखि कान्हा के
ले वसुदेव भागी भइले रे
बटथीन नंद बाबा सूपा भर अंजूरी
देत साड़ी मुस्कइसे रे।।
सब दूख दूर भ गइले रे।।
जब सावन का महीना आता है तब कदम की डाली पर फूल लग जाता है। एक तरफ कृष्णा सब साथियों के साथ दूसरे तरफ राधा अपनी सहेलियों के साथ झूला झूलने लगती हैं। लोग देख देख कर आनंद विभोर हो जाते हैं। आनंद का वातावरण इतना बढ़ जाता है कि लोग देखकर दिल से गा उठते हैं-
झूला लगे कदम की डारी झूले कृष्ण मुरारी का।
माथे पे मोर मुकुट बिराजे, कानों में कुंडल वा।
श्याम सुन्दर चित चोर जो झूले राधा मुस्काए ना।।
एक टक देखे राध प्यारी, दिल हर्षाये ना,
बोली मोहन प्यारे रूक जा, भुले भी झुलाओ ना।।
फूलत फूलत मारे नजरिया जग को भुलाये ना
कहां जाऊं तुम्हें छोड़ कन्हैया, कहीं लागे न मनया ना।।
तदुपरांत दशहरा का समय आता है जिसे नौरात्री भी कहा जाता है। लेकिन बिहार में इसे दसईं कुंछ क्षेत्रों में कहा जाता है। इस दसई में मां भगवती कहें या मां दुर्गा की तो हर घर में मंदिरों में पूजा होती ही है शाम को लड़कियाँ एवं नवयुवतियां इकट्ठी हो कर पांच पांच या दस दस के झुण्ड में एक मटका रखती है। यह मटका कुम्हारों द्वारा अलग से बनाया जाता है। जिसमें करीब 15-20 छिद्र चारों तरफ से किया जाता है। उस मटके में दीप जला कर रख दिया जाता है। उसे एक लड़की सिर पर रख कर वही नृत्य करती है जिसे कुछ नृत्य करने का अभ्यास हो, क्योंकि गोल गोल बार बार नृत्य करने से सिर चकरा जाता है। गिरने का भय भी रहता है। अन्य सहेलियां अनेकों गीत गाते रहती है जिसे देख और सुनकर बड़ा ही मनो भावन लगता है। यह गीत मां दुर्गा के प्रति होती है जिसमें उनसे विनती की जाती है कि मां यहां पर बहुत से जादू-टोना वाले हैं उनसे मेरे भाईयों-भतीजों व अन्य प्रिय जनों की रक्ष करो मैं तेरी हमेशा पूजा करूंगी। इस नृत्य को उत्तरी बिहार के मिथिलांचल में झिंझिया कहते हैं। प्रस्तुत है गीत-
सात बहिनियां हे भागमत, सातो कुमार हे।
हर बहिनी योगे रे कुम्हारा, झिंझिया गढि़ लाब रे।
एके वहिनिया हे भागमत, गेल कुम्हरा दुकान रे।
लेई कर झिंझिया रे भागमत, ललई मकान रे।
सातो वहिनिया रे भागमत, गेल तेलिया दुकान रे।
वहिनि योगे आ रे तेलिया, तेलवा पेडि़लाव रे
लेइ के वहिनिया तेल, दीया तेल कई जराये हे।
रखि दीया झिंझिया में बहिनी, नान्की रहथी रिझाए हैं।
सब सखी कलकई विनितिया, मोर भइया के देहू बचाये हे।
बहुत हउए इहवा टोनहिया, ओकरा से करहू दोराप हे।
मोर भतीजवा के माता, देहू उमर का बढा़ए हे
सब दिन पुजबौ हे माता, सिन्दुरवा चुड़ी चढ़ाए हे।
उसके बाद भैरव बाबा गंगा स्नान की तैयारी करने लगते हैं तब उनके सेवक रोकते हैं:-
भैरव बाबा चलल गंगा स्नान, सेवक भेल उनके अगुआर।
मति जाहू गंगा स्नान हो बाबा, अंगना
देवौ दोनों कुंइया खोदाई।
चंदन, चौका इहवा पुराई देव बाबा,
दुध से भी पंईया देवभरवाड़
तब भैरव बाबा बोले:- अंगना के कुंइया
नरक होत-भष्म चाहे देव लगाव
फिर बहने भतीजों से- जिय हो अमुक
भैया के बेटवा, जे झिंझिया मैं तेल पहुंचाय
मर ऊंक डयनी के बेटवा, जे हमरा के देत सराप।
जे झिंझिया में नजर लगौलक अब गेल झिंझिया बताये।
धन भाग तोहरा के झिंझिया,
जे भइया के दिहलक बचाये।।
और जब दशहरा समाप्त हो जाता है तब सहेलियां शाम को एक जगह इकट्ठा हो कर पुष्प एवं दीप अगरबत्ती से पूजा करके गीत गा करके घर लौट जाती है।
जाऊ जाऊ भगवती मैया, गोर लगइथी दू आशीष हे।
रऊआ के रहिते बड़ा सुख पउली किये दीअऊ नेबकशीष हे
घर उजियारा भेल पावन म गेलई और का चाहिए मइया आस हे।
मेवा मिठाई पेड़ा लड्डू के खोंइथा करीं स्वीकार सनंस हे।
धन भाग जिनगी के राऊर भइल दरशन आगे कब होई मिलाप हे
ऐई जिनगी कौन टिकाना कब मिलक देदी आशीष है।
इसके बाद कार्तिक महीनें में दशहरा के 26 दिनों बाद यह व्रत जिसे डाला धट भी कहते हैं। यह हिन्दुओं का खास कर बिहार वासियों के लिए बहुत ही पुष्पशीला मनोकामना पूर्ति करने वाला व्रत है। इसमें बहुत ही स्वच्छता पूर्वक कार्य किया जाता है। कहते हैं कि इसमें पवित्रता की थोड़ी सी भी लापरवाही हुई तो दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है। इस व्रत में जो भी सामग्री प्रयोग में थानी काम में लाये जाते हैं वे सभी नये होते हैं तो यह व्रतियों के लिए हैं। वहीं लड़कियों एवं नव युवतियों के लिए मनोरंजन का कार्यक्रम भी है जिसने शामो चकवा एवं खंरचीच का प्रसंग है साम्ब बाबा चकवा पोता औरा संरिच पोती का संलाप डाला के साथ होता है और सब सहेलियां गाती है।
खंररिच- डाला ले बाहर भेली खंररिच बहिनी,
चकवा भैया तेल डाला छीन, सुनु राम सजनी।
सामने बैतल तुहु बाबा तु बर जिता-
चकवा भैया तेल डाला छीन, सुनुराम सजनी।
साम्ब- कथीं के तोहर डलवा के मोती
कथीं ए लगा ओल चारो कोण, सुनुराम सजनी।
खंररिच- कांचही बांस के डलवा हो बावा,
चम्पा, चमेलिया चारो कोण, सुनु राम सजनी।
साम्ब- जब हम डलवा देआइदेब गे पोती
भैया के लिए देबू दान सुनु राम सजनी।
खंररिच- जब हम बसवई सजन घर हो बाबा
सासू दोहन देऊआ ननदिया, खोइंहल धान सनु राम सजनी
फिर तोहरो देवौ बा, चढऩे के घोड़वा,
भैया के देवई नन्दी दान, सुनु राम सजनी।
जब चकवा भैया जुआ खेलने जाता है तो वहन खंररिच को बहुत दुख होता है परिवार समेत तब बहन को दुख होता है कि भाई कहीं जुए में सब हार जाए तो मेरा और परिवार का भविष्य क्या होगा। इसी पर दुख प्रकट करती है बहन:-
ओई पार चकवा भैया खेले जुआ सार, एई पार खररिच वहिनी रोइना पसार।
चकवा:- चुप होहु चुपहोहु खंररिच बहिनी, बहवा के संपतिया देवौ तोहरो बांट।
खंररिच:- बाबा के संपतिया हो भैया तुही लोग भागिहा जाये,
बाकी भतिजवा भैया भोगतई खुश हो राज जाये।
हम बेटी पर देशी भेलि अई भइया केवल मोटरी के आस।
और मोर जिनगी भैया सिन्दुरवा करतई आस।
छोटकी वहिनिया के भइया मत विस रईहा।
बाबूजी के हम सब डाल पात।
इसी तरह अपनी अपनी व्यथा शिकायत जिन्दगी को संभालने के लिए करते हैं जब बहन खेलते खेलते भैया के द्वार तक जाती है तो डाला और बिछिया चोरी हो जाती है तो शिकायत, मां और भाई से करती है।
सामा खेले गेली आई हे चकवा भाई दुअरा,
खेलइते बिछिया गेल हेराय।
रहलई अनमोल बिछिया खोजइते खोजइते
डलवा भी लेलकई चोराय।
एक मुट्टी खर हो भइया, फुंकी कर इजोर करा,
देखा त कौन लेल चोराय
खोजते खोजइते में बहनोइया निकलल चोर हो
बांधी भार धंडकी से जाय।
छाती चढि़ मारिहा भैया चोरवा बहनोइया के
जब ले न ढारे नयना लोर।
कर जोड़े लगलथीन बहिनियां माफी कर दहू
बड़ा दुलरूआ हवे चोर।
            म. 2 ए सड़क-25 सेक्टर 5 भिलाई नगर जिला दुर्ग छत्तीसगढ़ 490006
आज मेरी नातिक का जन्म तिथि
है जो वर्षा की हो गयी है,
उसके जन्म पर बधाई है।
नातिन का नाम अमूबा सिंह है।
जन्मदिन
जगदीश राय गुमानी -
जन्मदिन पे मूली है तुमकी बधाई।
जन्म दिन तेरे बटेंगे लड्डू पेड़े।
खुशियों की घडिय़ा मजे की आज आई।।
सब आये हैं मेहमां ले आशिषों के अरमां।
शतायु बनने की कसमें हैं खायी अरमां।
सबकी है तु प्यारी दिल की है दुलारी
तु हर की जबां पर बन लक्ष्मी है आयी।।
तुमको पाकर माता खुश हुए बाबा पापा।
दादी खुश हो मुस्काई जो फूले न समाई।।
तू जब से घर में आई है रौनक बढ़ाई।
दिल वाग वाग हो कर चिडिय़ो सी चहचहाई।।
गुमानी नानी-नाना लाया प्यार का नजराना।
देकर शुकुन पाया अपनी जीया जुड़ाई।।
 साभार रउताही 2014

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