Thursday 30 October 2014

छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य रहस में गीत योजना

छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य रहस में एक ओर यदि कथानक के साथ गीत की योजना मिलती है,तो दूसरी ओर छत्तीसगढ़ी लोकगीतों का भी समाहार किया जाता है। जहाँ भाव या विचार प्रमुख होते हैं, वहाँ कथानक को छोड़कर गीत नि:सृत होते हैं। छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य रहस में कई प्रकार के गीत गाये जाते है, जिनका विवरण अधोलिखित है-
(1) मंगलगीत :
मंगलगीत सामान्यत: मांगलिक अवसरों पर ही गाये जाते हैं, चाहे वह पुत्र जन्म का उल्लाह भरा अवसर हो, विवाह की शुभ बेला हो या अन्य मांगलिक अनुष्ठान हो। भगवान श्री कृष्ण के जन्म सुनकर सखियाँ मंगल-कलश सजाकर नंद जी के द्वार पहुंचकर गीत गाती है-
''प्रगटे अज यदुरैया, गोकुलपुर बाजे बधैया।
थोड़ा भी लूँगी, हाथी भी लँूगी,
लूँगी लागत गैया।
हीरा भी लूँगी, मोती भी लूँगी,
लूँगी ठनम रूपैया।ÓÓ
(2) 'नाल छीलने का गीत :
जन्म के बाद बच्चे की नाल काटी जाती है। जो दाई यह काम करती है, वह उसके बदले में अच्छा सा उपहार चाहती है। लोकनाट्य रहस में भी भगवान श्रीकृष्ण की नाल काटने हेतु मैया यशोदा के आँगन में दाई आती है यथा-
''हरि के नारा छिनन आई।
सजना सप्त श्रंृगार अंग पर,आई महर अंगनाई।
पद पखारि गयो गृह भीतर, जिये तेरे कुंवर कन्हाई।
शिशु के काज करत में झंगुरी, मुख चुमन पर पाई।
भूषन बसन न्योछावर दीन्हों, प्रभु के चरन मन लाई। ''मैया यशोदा दाई को बदले में वस्त्राभूषण दिये और दाई प्रसन्न होकर अपने घर चली गई।
(3) न्योछावर :
छोटे बालक को देखने और प्यार करने से बहुधा उसे अपनी ही प्रियजनों की नजर लग जाती है। एेसे में राई नमक या मिर्च से उसकी नजर उतारी जाती है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव में नंदजी अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिए,जिसे देखकर कुबेर जी लज्जित हो गये-
''पूत सपूत जनि यशोदा, इतनी सुनिके वसुधा सब दौरी।
देवन को आनंद भयो, सुनि गावत धावत मंगल गौरी।
नंद कछु इतनी जो दियो, घनश्याम कुबेरहु के मति बौरी।
ब्रज देख ही लुटाय दियो, न बचे बछिया-छछिया न पिछौरी।ÓÓ
(4) बधाई :
पुत्र जन्म के उपलक्ष्य में माता को बधाई दी जाती है,तथा नवजात शिशु को जो आशीर्वाद दिया जाता है, वही बधावा कहलाता है। श्रीकृष्ण के  जन्मोत्सव के समय ब्रज में बधाई का बाजा बज रहा है-
''ब्रज बाजे रे आज बधाई।
कान्हा के जन्म ला सुनके सखियाँ,
दउड़े कुदै रे धाई।
नाचय रे गावय,बजावै सुनावै,
देखय देखावै परम सुख पावे।
देवय आशीष धन-धन हे कुंवर कन्हाई।। ''ब्रज मण्डल में बधाई के समय नंदजी अन्न-धन लुटा रहे हंै।ÓÓ
(5) असीस :
बस्ती जनपद में शिशु -जन्म क समय 'असीस 'नाम का गीत गाया जाता है। यो इस अवसर पर प्राय: सभी प्रदेशों में बच्चे को आशीर्वाद देने और उसकी मंगल मनाने की प्रथा है। कृ ष्ण के जन्म सुनकर सखियाँ नंद गृह पहँुचकर बाले कृष्ण को आशीर्वाद देती हैं-
''आजु  सखी श्री नंद महर घर,
गृह - गृह से गोप -ग्वालनी,
मंगल गावत आई री।
आसीस देत सकल ब्रजनारी
जुग-जुग जिये कन्हाई री।ÓÓ
6) झूला गीत :
 मैया यशोदा बालक श्रीकृष्ण को झूला में लेकर झूलाने लगती है। सखियाँ भी यशोदा मैया की आज्ञा पाकर हरि को झूला झूलाने हेतु पँहुचती हैं:-''आवो री सखी , झुलावै हरि पलना।
कंचन पलना रतन जड़ो है,
मोतियन लागी डोरना।
रेशम डोर झूल मोतियन के, सोवत नंद जू के छौना।
चंद्रसखी भजु बाल-कृष्ण छवि,
ध्यान लगे तोर चरना। '' कृष्ण पालने में पड़े-पड़े रोते है,शायद किसी गुजरिया की नजर उन्हें लग गई है। यशोदा मैया राई और नमक से उनकी नजर उतारती है, और कहती है, जो मेरे लाल का पालना झुलाएगा उसे मैं जड़ाऊ कं गन दूँगी-
''झूला दे मैया श्याम परे पलना।
काहू गुजरिया की नजर लगी है,
सो रोवत हैं ललना।
रई नोन उतारो जशोदा,
खुशी भये ललना।
जो मोरे ललना को पलना झूला है,
दैहों जगऊ कंगना।
(7) नामकरण :
यों तो बच्चे के जन्म की प्रसन्नता से संसार का हर कोना सराबोर होता है, किन्तु लोक -सस्ंकृति में यह खुशी गीतों के माध्यम से प्रकट होती है। श्रीकृष्ण के जन्म सुनाकर और वसुदेव जी के कहने पर गर्गाचार्य जी महाराज नामकरण हेतु गोकुल पहँुचते हैं, और भगवान के नाम रखते है-''नामकरण को गर्ग ऋषि आयो।
चंदन खड़ाऊ बेद कर सोहा,
द्वादस तिलक लगायो
नंद बाबा ने देखत पंडित
पुस्तक बगल दबायो।।''
''नान धरे बर भगवान के,
गर्गाचार हर आईस।
माथा म चंदन, भुजा मा बंदन,
कि ताब ला काख दबाईस।
(8) विवाह गीत :
विवाह गीत वर और कन्या दोनों पक्षों में समान रूप से गाये जाते हैं। वर पक्ष के गीतों में उल्लास और कन्या पक्ष के गीतों में करूणा होती है।
महाराज कंस अपनी बहन देवकी की विवाह श्री वासुदेव जी के साथ किये। देवकी जी को लेकर सब सखियाँ मण्डप की ओर चली-
''चलो दुल्हनियाँ पिया मिलन को,
छोटी सी घुंघट निकालिके।
गोरे-गोरे हाथों में मेंहदी लगी है,
नयनों में कजना डारिके। ''श्री देवकी-वासुदेव विवाह प्रसंग से गीत प्रस्तुत है- ''बिहा लगाइस कंस,देवकी,
बहिनी के बसुदेव संग मा।
धूमधाम से बिदा करिस,
दे दाइज छोर अतेक संग म।
दाइज डोर सबे ला गाड़ी मा भरवा के,
देवकी बहिनी ला सोनहा रथ मा बइठा के।
सोयम कंस बइठिस रथ ऊपर अमराये बर,
हाँसत मारे खुसी रास ला घोड़ा के घर ।ÓÓ
(9) जादू-टोना के गीत :
छत्तीसगढ़ अंचल में टोना-जादू आज भी दृष्टिगोचर होता है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोग टोना-जादू के नाम से भयभीत रहते हंै। रहस में श्रीकृष्ण के विरह में राधा मूर्छित होकर गिर पड़ती है, और गिरते समय सखियों से कहती है-सखियों ! मुझे काले साँप ने डस लिया है, देखों कहीं किसी की नजर मुझ पर न लग जाय। सखियाँ माता कीर्ति से जाकर कहती है-''याको कारो डसो री माई।
कहत सखी सब आपस माहीं,
देखत नीको आई।
भई बिकल बन सुधि कछु नाहीं,
कहा भयो कछु जान न जाई।
देह गेह कर नेह भलायो,
याको कारो कुंवर कन्हाई।
हरि मुसक्यात विषम बिष डारै ,
हमहँू पर फ ँूक चलाई।
10) चकई :
भौंरा खेलना-ग्रामीण अचंल में भौंरे का खेल आज भी बहु प्रचलित है। लोकनाट्य रहस में भी इसका निर्वाह हुआ है। मैया यशोदा बाल-कृष्ण को चकई-भौंरा लेकर देती है। तब श्री कृष्ण सब सखाओं के साथ मिलकर भौंरा खेलते हैं-
''खेलत कान्ह भँवर चक डोरी।
कांहू सो हँसि बोलहि कान्हा,
काहू सो मुख मोरी।
संग सखा मिलि खेलत कान्हा,
लेकर ब्रज की खोरी।
लै आये हँसि श्याम तुरूतहि,
बहुत रंगन की डोरी।ÓÓ
(11) बियारी गीत :
सब सखियाँ मिलकर भगवान श्री कृष्ण को भोजन खिलाने के लिए अपने -अपने घर से व्यंजन बनाकर ले जाती हैं और खाना खिलाती हैं। मैया यशोदा भी आनंद के साथ खाना खिलाती है-''आज ललन करत बियारी,
करत बियारी श्री गिरधारी।
जेवन बइठे मदन गोपाल,
हुलसि-हुलसि परसैं महतारी।
सोने की थारी गंगाजल झारी,
निरखि-निरखि हरषत महवारी।
खाजा-खुरमा सुघर-जलेबी।
सीरा  पुरी सरस सोंहारी।
भाँति-भाँति के बन अथाना,
नाना भाँति की बनी तरकारी।ÓÓ
(12) गाली :
 भगवान श्री कृष्ण को भोजन खिलाने के पश्वात् सब सखियाँ भगवान को गालियाँ देती हंै। इस गीत में श्रीकृष्ण की बहन, उसकी फूफू आदि को भी समेटकर गाली गाई जाती है, यथा-''गारी गावे सकल ब्रजनारी, सुनिये हो घनश्याम
गोरे नंद यशोदा गोरी, गोरे बरण बलराम।
कैसे तुम भये कारे मोहन, प्रगटे नंद के धाम।
बहन तुम्हारी रानी सुभद्रा, जानत सकल जहान।
सो भागी अर्जुन के संग में ,डूबेउ कुल के नाम।
धरणी भार उतारण कारण, प्रकट भये ब्रज धाम।ÓÓ
इस प्रकार की गाली मे अभद्रता न होकर प्रेमभाव छिपा है, ये सखियों की मंगल गाली है।
(13) कृष्ण विदाई के गीत :
 भगवान श्रीकृष्ण को मथुरापुरी भेजते समय मैया यशोदा पथिक से कहती है-''संदेशों देकी सो कहयो।
हँू तो दासी तिहारे सूत की, सूरत करत रहियो।ÓÓ
(14) मृत्यु के गीत :
गीता के अनुसार वस्तुत: मृत्यु मात्र शरीर बदलते की प्रक्रिया है।''मृ'' धातु में 'ल्यूकÓ प्रत्यय लगाकर 'मृत्युÓशब्द बनता है जिसका अर्थ है- मरण। आत्मा एक शरीर से निकलकर अपने प्रियतम मरमात्मा से मिलने जाती है। संसार से उसकी विदाई का अत्यन्त करूण एंव मार्मिक चित्रण मिलता है, किन्तु जाने वाले को तो परमात्मा प्रियतम से साक्षात्कार होता है,  इसलिए संसाररूपी नैहर को छोडऩे की व्यवस्था उसे छू भी नहीं पाती। छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य रहस में पूतना की मृत्यु पर बाल-सखाओं द्वारा इस प्रकार के गीत गाये जाते हैं-''मर गे पुतना नारी रे।
तोर मरे के बेरीया मा रहितेन,
तोर मँुह मा पानी डारतेंन,
आज्ञा लेकर कंसराय के गोकुल मा छलठानी रे। '' कवि कपिलनाथ कश्यप पूतना वध को इस प्रकार व्यक्त करते हैं-
''दूध पियत पीरा के मारे, होगे नियट बिहाल।
संग मा लेके बाल कृष्ण ला, उडि़स उहाँ ले व्याकुल होके।
हाय-हाय करिस गर्जना, गिरते भुईयाँ पाँपिन मरगे।ÓÓ
ऋतुओं के गीत
(1) वर्षा ऋतु के गीत :
वर्षा ऋतु गीतों की ऋतु है। पावस के गीत लगभग चार महीने तक गाये जाते हैं किन्तु इनमें सावन सबसे अधिक वर्षा की प्रतीक है। सावन की ऋतु में राधा अपनी सखी से कहती है, कि सखी! वर्षा ऋतु का आगमन हो गया है, किन्तु अभी तक वो संावला-कन्हैया नहीं आया-''सावन की ऋतु आई री सजनियाँ,
कान्हा घर नहीं आये।  भादो भोरवा बोल रहा है,
मनवा मोरा रो- रो रहा है। नाहक प्रित लगाए।।ÓÓ
(2) बारहमासा :
जैसा कि नाम से स्पष्ट है 'बारहमासाÓ नामक गीत में बारहों महीने के गीत का बड़ा रूचिकर वर्णन होता है। ऋतु गीतों मे यह बड़ा लोक प्रिय है। ये गीत वर्षा ऋतु से प्रारंभ होकर ज्येष्ठ मास तक गाया जाता है।
(3) झूला गीत :
बारह मासों के मासक्रम को कोई नियम नहीं है। यह वर्णन चैत से आरंभ कर के फागुन में भी समाप्त किया जा सकता है।
भादों में तीज तक हिंडोला चलता है तथा गीत गाये जाते हैं इस प्रकार के गीत विशेष रूप से झूले पर ही बैठकर गाये जाते हं। लोकनाट्य रहस में भी इस प्रकार के गीत का प्रचलन है यथा-''झूला-झूले राधिका प्यारी
संग में कृष्ण मुरारी ना।
सोने के पलना रेशम के डोरी,
कदम के डारी ना।
साभार रउताही 2014
 

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