Thursday 21 February 2019

मालवा की खास लोकगीत शैलीहुण

मालवा भारत का हिरदा का माया बस्यो हे। उकी खास लोकगीत शैलीहुण के ओलखने-परखणे का पेलाँ हमारे एका आड़े-छोड़े का वातावरण के पेचाणनों घणो अच्छो रेगा।
मालवा का आड़े-छोड़े को वातावरण घणो अच्छो, धनी आने तरे-तरे को हे। भारत की धरऊ आड़ी से दखणऊ आने उगणु आड़ी से आथणु तक की आणे जाने की बातहुण को चौरायो मालवा की जुन्नी राजधानी उज्जण हे। इणी बात की मालम नरा जुग हुण का सिक्का पे उज्जण निसाण दिखणे से पड़ती अइरी हे। धन (+) जेसा बण्यो इणा निसाण चारीमेर से आणे वाली जात्राबाट का रुप में इणी जगा के बतई है। आज को मालवो आखा अथणऊ मध्यप्रदेश आने एका साँतेज उगणऊ राजेस्थान का डाक जिलाहुण तक फेल्यो हे। ईका बारा में दुहो सुणने में आयो हे।
इत चम्बल उत बेतवा मालव सीम सुजान।
दक्षिण दिसि हे नर्मदा, यह पुरी पहचान।।
एका बले यो केणो फाँकणो नी हे के  मालवा की संस्कृति को रंग धनकताण जसो हे ने साहित्य से भर्यो-पुर्यो भी हे। मालवो कलाहुण को घर हे। एमे लोकगायन-लोकनृत्य-लोकनाट्य-लोकचित्र-तेवार मेला-ठेला, की पेलाँ सेज परथा चली अईरी हे। जदे हम लोक शैलीहुण की बात कराँ तो हमारा मन में लोक सबद जाणनें की हरस आये हे। लोक सबद को अरथ हे चल्यो अरइ्यो या फेर जीवन को हिस्सो। 'भारती नजर मेंÓ 'लोकÓ महज अथणऊ आड़ी से आयो सबद 'फोकÓ को दूसरो नी हे। फोक का माय अथणऊ ज्ञानी ध्यानीहुण उणा लोगहुण की बोलने (गाने) की परथा ने राखे हे जिवाकी लिखी हुई परना हेज कोनी/ फेर भारत में लोकपरथा की बड़ी हुई सभ्यताहुण की जसी भूली जईरी, घणी जुन्नी या पुरानी भी नी हे। उतो जवीन को हिस्सो है। मालवा की लोक शैली लोकहुण के गाणे की नरी शैलीहुण पेलासेज चली आईरी हे। तीज-तेवार, पूजा-पाठ-अनुष्ठान-रितु-आने संस्कार से जुड्या लोकगीत गाणे की परम्परा या परथा सगलीज जगे मले हे। आदमीहुण आने बैराहुण दोई सेज जुड़ी   गाणे की शैली हुण जागे जाग पाय हे। आबे यां बस मालवा ठाम की गाणे की शैलीहुण की बात करनो घणो अच्छो रेगा
मालवी लोकगीत- मालवा में पुसंवन, जनम, मुंडन, जणेऊ, सगई-ब्याव का टेम पे पेलां से चल्या अइर्या लोकगीत गाणे का नेम हे। तीज-तेवार रितु, किरावर से, जुड्या, गीतहुण गाणे का रिवाज मालवा में हे। मालवी लोकगायन में एकतरे से बोली के रस के गेले-गेल वा को प्रकृति धरती आने संस्कृति की उन्नति अच्छी लागे हे। लाड़ा-लाड़ी के नव्हाण्ने का बाद ग्राम की बैराहुण जसी के काकी-भाभी, भुआ-मासी, हुण लाड़ा-लाड़ी का मुण्डा में पतासा दई के गीतहुण गाय है। एक एसोज गीत देखो-
म्हारा नाना सो लाड़ो कोल्या जीमे रे
ओकी काकी भाभी आड़े छेड़े ढुकी रई रे
एक पतासा का दोई चार बटका दोई चार बटका
लाड़ा सी काकी भाभी करे दूणा लटका। योज गीत लाड़ी बेले भी गाय है।
भरथरी गायन- मालवा का माय नाथपंथ से जुड्या लोगहुण चिंकारा (वाद्ययंत्र) की धून पे भरथरी कथा गाता रेहे। चिंकारो नायल की नट्टी, बस आने घोड़ा की पूंछ का बाल से बण्यो जुन्ना आने पेलासेज चल्यो अइर्यो बजाणे को समान है। चिंकारो घोड़ा की पूंछ का बाल से बण्या धनुष से बजे हे जेमे से रुँ-रुँ को मीठो-मीठो राग हिटे हे। राजा भरथरी राणी पिंगला से घणो हेत राखता था पिंगला के मरीजाणे का बाद में राजा भरथरी एकेज रट्टो लगाता र्या। यो गीत म्हने गॉम में एक जोगी बाबा से बालपणा में सुण्यों यो
हाय पिंगला हाय पिंगला
इणी बात पे स्माईल जोगी केणे लम्यो-
हाय! पिंगल!  हाय पिंगला! कई करेरे
पिंगला बणइदू नो लाख
म्हरी डिबिया सर की डिबिया नी मले जी।
फेर राजा भरथरी केणे लग्या- हाय! डिबीया, हाय! डिबिया कंई करे र डिबीया बणई दू नो लाख म्हारी पिगलां सरकी पिगलां नी मले जी।
स्माईल जोगी ने तो नो लाख पिंगला बणईदी या पण राजा भरथरी से एक डब्बी भी नी बणी
निरगुणिया भजनगायन - मालवा में निर्गुणी भजन गाणे की परथा भोत जुन्नी हे। इणा भजणहुण माय परमात्मा की आस्था की छाप रे हे जेमे काया का नास ने आत्मा के अमर होने की बात करी हे। निरगुणिया भजणहुण में इकतार या फेर तंबुरा ने मजीराहुण की धुन का गेल-गेल मालवा की लोकधुन ने मालवी बोली की मीठास दिखे हे। आज भी मालवा में नरी निरगुणिया भजनमंडली हे उणमें से श्री पेलादसिंग ठीपाण्या की मण्डली सबसे अच्छी बतई हे। इन्ने निरगुणिया भजन गाणे में खाली देस मेज नी परदेश में भी अपणी अलग पेचाण बणई। एक निरगुणिया भजन का चरण देखो-
थारा भर्या समंद माय हीरा मरजीवाल लावीया
थारा घटमाय ज्ञान का जंजीरा मालिक सुलझावीया
यो मन लोभी लालची रे यो मन कालूकीट कुबुद्धि की जाला चलावे
यो मन लोभी लालची रे यो मन कालूकीट भरम की जाल चलावे रे हाँ
संजागीत- दख्यो जाय तो संजागीत खास रुप से मालवा की मोट्यार छोरीहुण को पेला स चली अईरी गाणे की शैली हे इ गीतहुण में बजाणे की कोई समान नी रे। सीलेसराद में छोरीहुण संजा को तेवार मनाय हे। गोबर ने फूल-पत्ति हुण से संजा की तरे-तरे की मन में भाव जसी चित्रावण बणय हे, सांजे उनकी पूजा ने आरती करे ने संजा का गीत भी गाती जाया। रोज तरे-तरे की संजा बणाय ने अम्मास का दन की राते राज बणई हुई संजा बणाय हे ने उणा दन छोरीहुण गोयण संजा के मोज मनाती हुई गीत गई के बिदा कर हे। संजा एक गीत तेवार के एक संजा गीत दिखी र्यो हे-
एतल बेतला को तोर्यो बेतल की तलवार
प्रदीप बीरो भाग लगावे सोना बेन्या छींछे रे।
हीड़ गायन- मालवा में हीड़ गाणे की नेम खाली सावण मइनामेज हे। अँयड़ी बाग-बगीचा हुण में झूला पडय़ा हे गाम हुण में हीड़ गाणे सी होड़ पड़ी हे। हीड़ की खास रुप में तो अहीर हुण से जुड्यो गीत हे जेमे खेती संस्कृति के भीतर की परता हुण को भोत नाना सो बखान मिले हे। ग्यारस माता की कथा चालर माता की छोला बैला की कथा हुण के गणे को भी योज ओसर हे। हीड़ ने बड़ा आलाप भी ले हे। इणा तेवार पे पड़वा का दन भेंस का मर्या होया पड़ा-पाड़ी (बछड़ा) हुण की छाल सुखई के ओड़को (छोड़ो) बाणइ के ओसे गायहुण के छोड़ो खलाय भड़काय गाय जदे छोड़ा में माया से मारे उणी बखत गाँम का लोग-लुगाया छोरा-छोरीहुण के घणा मजा आया। चालर की हिड़ को एक उधारण तो देखा-
'हे हीड़ बरस दना में नापो आयो पामणो जी।
भाई रे जेकी कई हे रे मखार हे हे होय।।Ó
पर्व तेवार से जुड्या गीतहुण- होली पे फागण दिवाली पे जनमअठमी पे कृष्णलीला गीत नोमीनोड़ता में देवी गीत की परम्परा आखा मालवा में हे। भाभी-देवर में मजाक को एक गीत (फाग) -हाँरे देवर म्हारा
रे यो केशरिया रुमाल वालो रे देवर म्हारो रे
भम्मर्यो घड़य्दे देवर घर में थारो तारो रे।
बरसाती बारता : मालवा में बरसात में बारता गई-गई ने के हे इकाबेल इको नाम बरसाती बारता पडि़ग्यो। मालवा का गाँमहुण में घर में बैठी के बारता रात-रात भरलोग हुणे हे। इणी बारता की शैली चम्पूकाव्य जसी हे इने मालवी गद्य आने पद्य दोई की बड़ा ऊँचो स्थान है। बारहमासा गीत भी बरसात मेज गायो जाय है।
सार : सार बात तो या हे के मालवो साहित्य का हिसाब से घणोज घनी हे। यॉ का लोगहुण सो-सो साल से कथा बार्ता गाथा, गीत नाटक पारसी केवात असा नरा ठंग बात विचार आने समझता बुझाता अईर्या हे।  जिनगी को असो कई को भी टेम नी हे के जदे मालवा का लोग लुगाया हुण हॉसी खुशी सुख दुख के बताणे बले लोकसाहित्य का सामरो नपी ले हे। इणा सगलाज ढंग हुण में लोकगीत लोकगायन शैली हुण को अपनी एक बगतेज घणी हव जागा है।
एक खास बात- इणा लिख्या हाया बिचार में यो बात खास हे के म्हने जो गरंथ हुण के बाची ने एक सरमाण द्या के वी सब हिन्दी में था पण म्हने मालवी में करल्या हे म्हार माफ करजो! जे मालवी जीवे मालवी।
साभार रऊताही 2015

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