Sunday 24 February 2019

लोकगीत

लोकगीत- जीवन का एक अद्भुत और अनोखा संसार है। माटी की सोंधी-सोंधी महक से आत्मा आत्मविभोर हो उठती है।
वेद भारतीय संस्कृति की अमृत धारा है। यदि वेदों में आत्मा-परमात्मा जीव जगत के बारे में गहन चिंतन मनन है तो लोकगीत इन्हीं धारणाओं को एक सूत्र में पिरोने का महान कार्य का एक नया आयाम है। लोकगीतों में सरस्वती को जिह्वा पर विराजने का आशीर्वाद माना जाता है। वेदों में शिव की स्तुति के संकेत है। लोकगीतकार ने उसे अपने ''बमलहरीÓÓ गीत में सजाकर गाया है। लोकगीतों में इन्द्र की स्तुति, उनसे अनुनय-विनय संबंधी अनेक गीत मिलते हैं। गृहय सूत्र और धर्मसूत्र साहित्य के आधार पर लोकगीतों में सांस्कृतिक परम्परा का निर्वाह निर्बाध गति से किया गया है। पुत्र जन्म और विवाह, यज्ञोपवित, संस्कार के समय का तो नारी-समाज ने पूरा साहित्य लोकगीतों के माध्यम से रच डाला। संतान जन्म के समय देवी देवताओं की स्तुतिगान और उनके प्रति कृतज्ञता के आभार व्यक्त की असंख्य लोकगीत मुखरित हो उठते हैं कभी गणपति वंदना तो कभी शिव-गौरी की कृपाकांक्षा कभी जातक में राम के गुणों की स्थापना है तो कभी कृष्ण की मनोहरता की। बालिकाएं, माताओं और बुजुर्ग महिलाओं के मधुर वाणी से लोकगीत सुनती हंै तो उनमें श्रेष्ठ संस्कारों का अंकुरण होता है। विवाह संबंधी लोक गीतों में भारतीय संस्कृति मुखरित हो उठती है। अचल दांपत्य, अंचल सुहाग, एक पत्नीनिष्ठ या पतिव्रता होना इन लोकगीतों का एक संदेश है।
कार्तिक माह में गाये जाने वाले लोकगीतों में राधा-कृष्ण गंगा स्नान तुलसी पूजन आदि मकर संक्रांति में गाये जाने वाले गीत, फाल्गुन में होली गीत, गंगा दशहरा, देवी जागरण के लोकगीतों की धारा प्रवाहित होती है। सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के समय युगों से महिलाएं भक्ति तथा विरक्तिपरक लोकगीत गाती चली आ रही है। इनमें दो लोक गीत लोकप्रिय है। भर्तृहरि और सीता समाधि। राष्ट्रीय आंदोलन के समय नारियों ने गांधी आंदोलन और देश भक्ति गीतों से नवजागरण की ज्योत जलाई। लोकगीतों की यात्रा सदियों से चली आ रही है और जन मानस के मानस पटल में अंकित है, लोकगीतों में पारिवारिक संबंधों की मीठी तान मन को रोमांचित कर देती है। माता-पुत्र, पुत्री, सास-बहू, देवर-भाभी, भांजा, ननद, पति-पत्नी, जीजा-साली आदि। भाई-बहन संबंधी लोकगीतों का सुंदर चित्रण देखने को मिलता है। पारिवारिक संबंधों में करुणा, स्नेह, ठिठोली, व्यंग्य, आशीर्वाद, वात्सल्य, प्रेम की फुहार का मिश्रण होता है। ननद के पति, नंदोई, का रिश्ता सरहज के साथ ठिठोली, हास्य विनोद का होता है। लोकगीतों में बचपन की तोतली मीठी बातें, जवानी नयी उमंग और बुढ़ापा का एक सार्थक संयोग को रेखांकन, संगीतमय स्वरों से तन मन में उत्साह की एक लहर दौड़ पड़ती है। लोकगीतकारों में जवानी को फूलों की बगिया तो बुढ़ापा को ढलते सूर्य कहते हैं। सूर्योदय और सूर्यअस्त दोनों मानव जीवन का दर्शन होता है। यह भी सत्य है बुजुर्ग व्यक्ति से ही घर की शोभा है। लोकगीतों का विश्व में अथाह भण्डार है। इसे समेटने एवं आत्मसात करने की आवश्यकता है। गांव का जंगलों में दिन भर के कठोर परिश्रम के बाद थिरकते हुए कदम सारा वातावरण संगीत और लोकगीतों से झूम उठता है। एक जोश, स्फूर्ति, उमंग की अनुभूति करा जाता है।
पौराणिक साहित्य के आधार पर लिखित लोकगीतों और लोक कथाओं के सशक्त माध्यम से संस्कृति का संरक्षण होता है। हमारे साधु-संतों ने सगुण-निर्गुणधारा के गीत गाए हैं। सारा साहित्य संत साध लोक के लिए भक्तिपदों के माध्यम से तन्मय होकर जो भी गाया है। वह  लोकगीत ही है। गुरु गोरखनाथ, मंछदरनाथ, भरथरी, कबीर, मीरा, तुलसी, सूर बाबा गुरुघासीदास का नाम हर व्यक्ति के जिह्वा पर है।
खेत जाती महिलाएं झुण्ड में लोकगीत गाई जाती हंै। खेत में हल चलाता किसान मस्ती में झूमता हुआ गीत गुनगुनाता रहता है। लोकगीतों में वर्णित भक्ति का रुप बाह्य दिखावा मात्र नहीं है, बल्कि वह भक्तों के हृदय का अंतर्नाद है। गोस्वामी तुलसीदास ने ''रामलला नहछूÓÓ की रचना लोकगीत सूरदास द्वारा कृष्ण पर असंख्य लोकगीत हैं। जे. ऐबट ने सन् 1884 में पंजाबी लोकगीतों के संबंध में लेख लिखे, दक्षिण भारत के लोकगीतों का संग्रह सन् 1871 में चाल्र्स ई. गोवर ने किया। यह भारतीय लोकगीतों का सर्वप्रथम संग्रह माना जाता है। हिन्दी लोकसाहित्य के उत्कर्ष की अगली सीढ़ी देवेन्द्र सत्यार्थी ने रखी। वे भारत, वर्मा, श्रीलंका, आदि देशों में दो दशकों तक घूम-घूमकर तीन लाख लोकगीतों का संग्रह किया। सन् 1872 में आर.सी. कालवेन ने ''तमिल पापुलर पोइट्रीÓÓ नामक अपने लेख में तमिल भाषा में लोकगीतों पर प्रकाश डाला।
सन् 1884 ई में सर जार्ज ग्रियर्सन ने ''सब बिहारी फोक सौग्सÓÓ नामक लेख में बिहारी भाषा के विभिन्न प्रकार के लोकगीतों का संग्रह है। इन्होंने भोजपुरी लोकगीतों का संग्रह 1886 में प्रकाशन किया। जिसमें बिरहा, जंतसार, सोहन आदि गीतों का संग्रह है। आर.एम. लाफ्रनैस ने सन् 1899 में ''सम सांग्स ऑफ दी पोर्चगीज इंडियंसÓÓ में गोवा निवासी भारतीयों के लोकगीतों के संग्रह का प्रकाशन किया।
सन् 1905 में एक हान ने ''कुरुख फोकलोर इन ओरिजिनलÓÓ नामक पुस्तक में उरांव लोगों के 200 लोकगीतों का संग्रह किया। छ.ग. की पावन माटी में अनेक लोकगीतों की महक से सारा विश्व गमक रहा है। जन मानस में सुख दुख, जय पराजय, हर्ष, विषाद, आचार-विचार, रहन-सहन, रीति-रिवाजों परम्पराएं प्रतिबिंबित होती हैं। लोकगीतों में सहज - सरल, माधुर्यता के वीणा के झंझार गूंज उठती है। करमा, सुआगीत, पंथी गीत, भोजली गीत, ददरिया, यदुवंशियों की देवारी, दसमत कैना, गम्मतिहा, देवारों के लोकगीत, लोरिक-चंदा के  गीत, चंदैनी गोंदा, कारी, हरेली, संस्कार गीत, बिहाव गीत, बांस गीत, छेरछेरा, पुन्नी के दिन महिलाएं लोकगीत गाती है, गम्मत आदि लोकगीत छत्तीसगढ़ की अनमोल धरोहर है। लोकगीत की अमृतधारा अनवरत जनमानस में अमृत बनकर बहती रहेगी।
डॉ. छोटेलाल बहरदार ने ठीक ही कहा है कि लोकगीत सामान्य जन जीवन के बीच गूंजने वाली बांसुरी की तान है, उसके अंदर की धड़कन है और है, उसके सुख-दुख हर्ष-विषाद तथा संस्कृति की एक साफ सुथरी तस्वीर लोकगीतों में कृष्ण के सम्पूर्ण स्वरुपों का चित्रण हृदयस्पर्शी दिखाई पड़ता है। खाटू के श्याम तथा अन्य अनेक पौराणिक कथाओं, मानवजीवन के विविध पहलुओं से संबंधित लोकगीत गाये जाते हैं, जिससे तन-मन, प्रफुल्लित होकर आनंदरुपी सागर में गोते लगाता है ये लोकगीत कर्णप्रिय होते हुए जीवन में मार्गदर्शन का संदेश देते हैं। लोकगीत का प्रत्येक स्थान की प्रकृति भौगोलिक परिस्थिति रहन-सहन, रीति-रिवाज, खान-पान, आस्थाओं से ओत-प्रोत रचा बसा होता है। लोकगीत सभ्यता, संस्कृति का अभिन्न अंग है। लोकगीत कबीलों से निकलकर आधुनिक दौर पर भी शान से बढ़ता जा रहा है। लोकगीत की अमृतधारा जनमानस में सदियों तक बहती रहेगी।
 रउताही 2015

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