Saturday 23 July 2011

साहित्य-संस्कृति के क्षेत्र में यदुवंशी

-राम शिव मूर्ति यादव
किसी भी वर्ग के निरंतर उन्नयन और प्रगतिशीलता के लिए जरूरी है कि विचारों का प्रवाह हो। विचारों का प्रवाह निर्वात में नहीं होता बल्कि उसके लिए एक मंच चाहिए।
राजनीति-प्रशासन-मीडिया-साहित्य-कला से जुड़े तमाम ऐसे मंच हैं, जहाँ व्यक्ति अपनीअभिव्यक्तियों को विस्तार देता है। आधुनिक दौर में किसी भी समाज-राष्ट्र के विकास में साहित्य और मीडिया की प्रमुख भूमिका है, क्योंकि ये ही समाज को चीजों के अच्छे-बुरे पक्षों से परिचित करने के साथ-साथ उनका व्यापक प्रचार-प्रसार भी करती हैं।
व्यवहारिक तौर पर भी देखा जाता है कि जिस वर्ग की मीडिया - साहित्य पर जितनी मजबूत पकड़ होती है, वह वर्ग भी अपनी बुद्धिजीविता के बल पर उतना ही सशक्त और प्रभावी होता है और लोगों के विचारों को भी प्रभावित करने  की क्षमता रखता है। तमाम राजनैतिक -प्रशासनिक-सामाजिक क्षेत्रों में कार्यरत यदुवंशियों ने इस क्षेत्र में समय-समय पर अलख जगाई है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री रहे देवनन्दन प्रसाद यादव, चन्द्रजीत यादव
इत्यादि ने वैचारिक स्तर पर भी लोगों को जागरुक करने का प्रयास किया। ललई सिंह
यादव के नाम से भला कौन अपरिचित होगा। कानपुर देहात में जन्में ललई सिंह यादव
(1 सितम्बर 1911- 7 फरवरी 1993) को उत्तर भारत का पेरियार कहा जाता है। ललई
सिंह ने वैचारिक आधार पर सवर्ण वर्चस्व का विरोध किया और साहित्य के व्यापक
प्रचार-प्रसार द्वारा पिछड़ों -दलितों में चेतना जगाई। पेरियार ने अपनी पुस्तक 'द रामायण
-ए ट्रू रीडिंगÓ के उत्तर भारत में प्रकाशन का जिम्मा ललई सिंह यादव को सौंपा और
उन्होंने इसे 'सच्ची रामायणÓ नाम से प्रकाशित किया। पुस्तक प्रकाशित होते ही हड़कम्प
मच गया और 8 सितम्बर 1969 को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इसे जब्त करने का आदेश
पारित कर दिया गया। अन्तत: इस प्रकरण पर लम्बा मुकदमा चला और हाईकोर्ट व
सुप्रीमकोर्ट से ललई सिंह यादव की जीत हुई। प्रखर सामाजिक क्रान्तिकारी ललई सिंह
अंबेडकर व पेरियार से काफी प्रभावित थे और दबी, पिछड़ी, शोषित मानवता को उन्होंने
सच्ची राह दिखाई।
यादव समाज से जुड़े तमाम बुद्धिजीवी देश कोने-कोने से पत्र -पत्रिकाओं का
प्रकाशन/संपादन कर रहे हैं। जरूरत है कि इनका व्यापक प्रचार-प्रसार हो और इनके
पाठकों की संख्या में भी अभिवृद्धि हो। यदि भारत में आज हिन्दी साहित्य जगत के
मूर्धन्य विद्वानों का नाम लिया जाये तो सर्वप्रथम राजेन्द्र यादव का नाम सामने आता है।
कविता से शुरुआत करने वाले राजेन्द्र यादव आज अन्य विधाओं में भी निरन्तर लिख रहे
हैं। राजेन्द्र यादव ने बड़ी बेबाकी से सामंती मूल्यों पर प्रहार किया और दलित व नारी
विमर्श को हिन्दी साहित्य जगत में चर्चा का मुख्य विषय बनाने का श्रेय भी उनके खाते में
है। कविता में ब्राह्मणों के बोलबाला पर भी वे बेबाक टिप्पणी करने के लिए मशहूर हैं।
मात्र 13-14 वर्ष की उम्र में जातीय अस्मिता का बोध राजेन्द्र यादव को यूँ प्रभावित कर
गया कि उसी उम्र में 'चन्द्रकांताÓ उपन्यास के सारे खण्ड वे पढ़ गये और देवगिरी
साम्राज्य को लेकर तिलिस्मी उपन्यास लिखना आरंभ कर दिया। दरअसल देवगिरी
दक्षिण में यादवों का मजबूत साम्राज्य माना जाता था। साहित्य सम्राट प्रेमचंद की विरासत
व मूल्यों को जब लोग भुला रहे थे, तब राजेन्द्र यादव ने प्रेमचंद द्वारा प्रकाशित पत्रिका
'हंसÓ का पुनप्र्रकाशन आरम्भ करके साहित्यिक मूल्यों को एक नई दिशा दी। आज भी
'हंसÓ पत्रिका में छपना बड़े-बड़े साहित्यकारों की दिली तमन्ना रहती है। न जाने कितनी
प्रतिभाओं को उन्होंने पहचाना, तराशा और सितारा बना दिया, तभी तो उन्हें हिन्दी साहित्य
का 'द ग्रेट शो मैनÓ कहा जाता है।
राजेन्द्र यादव के अलावा मराठी में ग्रामीण साहित्य को नई दिशा देने वाले एवं 1990 में
उपन्यास जॉम्बी के लिए साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित मराठी साहित्यकार
आनंद यादव शोध पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव, अखिल भारत वर्षीय
यादव महासभा के अध्यक्ष पूर्व सांसद कविवर उदय प्रताप सिंह यादव, समालोचक
वीरेन्द्र यादव (लखनऊ), वरिष्ठ बाल साहित्यकार स्वर्गीय चन्द्र पाल सिंह यादव
'मयंकÓ (कानपुर) की सुपुत्री प्रसिद्ध साहित्यकार उषा यादव (आगरा), 30 वर्ष की उम्र
में ही पाँच कृतियों की अनुपम रचना और व्यक्तित्व-कृतित्व पर जारी पुस्तक 'बढ़ते चरण
शिखर की ओरÓ से चर्चा में आये भारतीय डाक सेवा के अधिकारी एवं युवा साहित्यकार
कृष्ण कुमार यादव (आजमगढ़) व उनकी पत्नी साहित्यकार आकांक्षा यादव, वरिष्ठ
समालोचक व कथाकार गोवर्धन यादव (छिंदवाड़ा), वरिष्ठ कवि व गजलकार केशव
शरण (वाराणसी), कथाकार अनिल यादव (लखनऊ) शाइरा उषा यादव (इलाहाबाद),
युवा कहानीकार योगिता यादव (जम्मूकश्मीर), जैसे तमाम लोग साहित्य के क्षेत्र में
निरंतर सक्रिय हैं। यादवों द्वारा तमाम पत्र-पत्रिकाओं में राजेन्द्र यादव (हंस), डॉ.
शोमनाथ यादव (प्रगतिशील आकल्प), कालीचरण यादव (मड़ई), योगेन्द्र यादव
(सामयिक वार्ता), प्रो. अरुण कुमार (वस्तुत:) जगदीश यादव (राष्ट्रसेतु एवं छत्तीसगढ़
समग्र), मांघीलाल यादव (मुक्तिबोध), आर.सी. यादव (शब्द), गिरसंत कुमार यादव
(प्रगतिशील उद्भव), पूनम यादव (अनंता), डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव (कृतिका), डॉ.
सूर्यदीन यादव (साहित्य परिवार), डॉ. अशोक अज्ञानी (अमृतायन), रामचरण यादव
(नाजनीन), श्यामल किशोर यादव (मंडल विचार), डॉ. राम आशीष सिंह (आपका
आईना), प्रेरित प्रियंत (प्रियंत टाइम्स), रमेश यादव (डगमगाती कलम के दर्शन),
ओमप्रकाश यादव (दहलीज), सतेन्द्र सिंह (हिन्द क्रान्ति), आनंद सिंह यादव
(स्वतंत्रता की आवाज), पल्लवी यादव (सोशल ब्रेनवाश), नंदकिशोर यादव (बहुजन
दर्पण) का नाम लिया जा सकता है।
इसके अलावा यादव समाज पर भी तमाम पत्रिकायें प्रकाशित हो रही हैं। यादव समाज पर
आधारित सबसे पुरानी पत्रिका 'यादवÓ है। बताते हैं कि राव दलीप सिंह शिकोहाबाद से
'आभीरÓ समाचार पत्र का प्रकाशन करते थे। उनके बाद राजित सिंह यादव ने इसे
गोरखपुर से प्रकाशित करना आरम्भ किया। 1923-24 में अखिल भारतीय यादव
महासभा का गठन होने पर राजित सिंह ने 'आभीरÓ का नाम 'यादव मित्रÓ कर दिया और
1925 में पत्रिका का नाम 'यादवÓ हो गया। 1927 में राजित सिंह ने बनारस में एक पे्रस
खरीदकर वहाँ से 'यादवÓ को प्रकाशित करना आरम्भ किया। 'यादवÓ अखिल भारतीय
यादव महासभा की वैधानिक पत्रिका थी पर राजित सिंह के स्वर्गवास के बाद उनके पुत्र
धर्मपाल सिंह शास्त्री ने इसे 'यादव-ज्योतिÓ के रूप में निकालना आरंभ किया। इन
पत्रिकाओं में बनारस से यादव-ज्योति 'संपादक लालसा देवीÓ, बनारस से ही अब बन्द
हो चुकी यादवेश  (संपादक- स्व. मन्नालाल अभिमन्यु), दिल्ली से यादव कुल दीपिका
(संपादक-चिरंजी लाल यादव), आगरा से यादव निर्देशिका सह पत्रिका (संपादक-
सत्येन्द्र सिंह यादव), कानपुर से यादव साम्राज्य (संपादक भंवर सिंह यादव),
गाजियाबाद से यादवों की आवाज(संपादक डॉ. के.सी. यादव), सीतापुर से यादव शक्ति
(संपादक राजबीर सिंह यादव), नोएडा से यादव दर्पण (संपादक- डॉ. जगदीश व्योम),
मुंबई से यदु यादव कोश (संपादक एस.एन. यादव) एवं तमिलनाडु से नामाधु यादवंम्
उल्लेखनीय हैं। यादवों से जुड़े विभिन्न विषयों पर स्वामी सुधानन्द योगी, फ्ला. ले.
रामलाल यादव, अनिल यादव, प्रो. आनंद यादव, इत्यादि की पुस्तकें भी महत्वपूर्ण हैं।
यादवों से जुड़े विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा समय-समय पर जारी स्मारिकायें भी
महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है।
अन्तर्जाल पर यादवों से जुड़ी पत्रिका 'यदुकुलÓ का संचालन राम शिव मूर्ति यादव द्वारा
कुशलता के साथ किया जा रहा है। प्रिन्ट मीडिया की जहाँ अपनी सीमायें है वहीं इंटरनेट
के माध्यम से यादवों के बीच संवाद आसानी से किया जा सकता है। पटना से वीरेन्द्र
सिंह यादव ने साप्ताहिक पत्रिका आवाह्न का संपादन नेट पर आरंभ किया है। अन्तर्जाल
पर शब्द सृजन की ओर, डाकिया डाक लाया (कृष्ण कुमार यादव), शब्द शिखर, उत्सव
के रंग (आकांक्षा यादव), युवा (अमित कुमार यादव), सार्थक सृजन (सुरेश यादव),
पाखी की दुनिया (अक्षिता), हारमोनियम (अनि ल यादव), नव सृजन (रश्मि सिंह),
मानस के हंस (अजय यादव), चायघर (ब्रजेश), आवाज यादव की (डॉ. रत्नाकर
लाल), यादव जी कहिन (नवल किशोर कुमार), डॉ. वीरेन्द्र (डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव),
मुझे कुछ कहना है (गौतम यादव), इत्यादि ब्लाग यदुवंशियों द्वारा संचालित हैं। मीउिया
एवं साहित्य के क्षेत्र में तमाम चर्चित-अचर्चित यादव कुशलता से कार्य कर रहे हैं।
इंडिया टुडे के श्याम लाल यादव व राहुल यादव, शुक्रवार के सिंहासन यादव, गृहलक्ष्मी
की सह-कार्यकारी संपादक अर्पणा यादव, दैनिक आज कानपुर के संपादक रामअवतार
यादव, इलेक्ट्रानिक मीउिया में आईबीएन 7 के विक्रांत यादव, स्टार न्यूज की विनीता
यादव, सहारा समय उ.प्र. के अनिरुद्ध सिंह यादव, ईटीवी उ.प्र. के आशीष सिंह यादव
इत्यादि के नाम देखे सुने जा सकते हैं। इसके अलावा साहित्य की तमाम विधाओं में
समय-समय पर ऊषा यादव (इलाहाबाद), मीरा यादव (जबलपुर), अरुण यादव
(जबलपुर), रचना यादव (अहमदाबाद), कौशलेनद्र प्रताप यादव (उ.प्र.) इत्यादि की
रचनायें पढ़ीजा सकती हैं। प्रसिद्ध साहित्यकार राजेन्द्र यादव की नृत्यांगना सुपुत्री रचना
यादव अच्छा नाम कमा रही हैं। इसी प्रकार कला के क्षेत्र में सुबाचन यादव, रत्नाकर
लाल एवं प्रभु दयाल इत्यादि के नाम उल्लेखनीय हैं। रत्नाकर लाल प्रतिष्ठित पत्रिका
'हंसÓ के रेखांकन से भी जुड़े हुए हैं। निश्चित: तमाम यदुवंशी देश के कोने-कोने में
साहित्य-संस्कृति-कला की अलख जगाये हुए हैं और वैचारिकता को धार दे रहे हैं।
                                                                   स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी (सेवानिवृत्त)
                                                               तहबरपुर, पोस्ट-टीकापुर,    आजमगढ़ (उ.प्र.)

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