Saturday 23 July 2011

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री दयाराम जी ठेठवार- रायगढ़

संक्षिप्त जीवन परिचय
श्री दयाराम ठेठवार जी स्वयं द्वारा लिखित-
दोहरी गुलामी में मेरा जन्म रायगढ़ रियासत में 14 अप्रैल 1923 को हुआ। बाल्यकाल बहुत ही सुखद रहा। मैं बचपन में बहुत ही चंचल हाजीर जवाब होने से लोग मुझे काफी चाहते थे। भूपदेव पाठशाला में मुझे शिक्षा मिली और उत्तीर्ण होकर नटवर हाई स्कूल रायगढ़ में प्रवेश लिया। समय दिन व दिन बदलते गए आजादी के दीवाने अन्य प्रांतों तथा शहरों में हल्लाबोल रहे थे। अखबारों में भी समाचार पढऩे को मिलता था। हमें भी ललक
होती थी पर साधन नहीं मिलता था।
सन् 1943 में आखिर लड़कों ने साथ दिया। जूटमिल के कामगारों ने ही सहयोग करने का
वचन दिया। हम सब कागज के तिरंगा बनाकर रेलवे क्रासिंग में इकट्ठे हो गए पर वे
नहीं आए पोलिस का जत्था वहां पहुंच कर हटाने लग गया। बहुत से लड़के डर के मारे
भाग गए, शेष स्व. ब्रजभूषण शर्मा, स्व. शंकर नेगी, स्व. हमीर चंद अग्रवाल जनकराम
और मैं बच गए। हमें गुरुजी ने चमकी धमकी दिया और झंडे ले लिया, हम घर वापस
आ गए। पश्चात बच्चों ने एक जुलूस चालीस पचास की तादाद में निकाला वह भी
पुलिस की डर से तितर-बितर हो गया। हम तीन बच गए। स्व. ब्रजभूषण शर्मा, मैं और
जनकराम हमको पुलिस थाना में बिठाया गया और कई किस्म की बात सुननी पड़ी, परंतु
हम यह कार्य करते ही रहे।
अचानक सन् 1944 में हमारी भेंट स्व. वी.बी. गिरी जो पूर्व राष्ट्रपति थे उनसे हुई वे मेरे
भूमिगत के समय हमारे पड़ोस में कांग्रेसी कार्यकर्ता स्व. श्री सिद्धेश्वर गुरू के मकान में
ठहरे थे उनसे भेंट हुई फिर तो तांता ही लग गया प्रसन्न पंडा, गोविंद मिश्र, मथुरा प्रसाद
दुबे, स्व. छेदीलाल बैरिस्टर, स्व. मगनलाल बागड़ी, स्व. श्यामनारायण कश्मीरी आदि
हमारा हौसला बढ़ते ही गया।
इसी तरह हमें रुचि इस कार्य में हो गई। इसलिए दसवीं कक्षा में मैं तो दो साल फेल हो
गया सबसे बड़ा सहयोग हमें हमारे हेडमास्टर स्व. पी.आर. सालपेकर से मिला। पुलिस
वाले स्कूल से हमेशा दिन में दो तीन बार बुलाकर ले जाते थे।
एक दिन हेडमास्टर ने हमें बुलाया सच-सच कहने को कहा, सच्ची चीज हम खोल कर
रख दिए उनने हमें आगजनी, मारपीट, लूट-खसोट नहीं करने को कहा और जो करते हो
वही करते जाओ कहा। तुम लोगों को संभाल लूंगा कहा इस दरम्यान करो या मरो का
परचे तथा अन्य परचे हमें सुबह डाक से और रात्रि साढ़े छै: बजे मेल से मिलते थे। उसे
बड़ी हिफाजत से हम बांट देते थे अत: रियासती लोगों में जाने आने लगी थी इसी बीच
स्व. अमरदास देशम व स्व. तोड़ाराम जोगी से भी हमें बहुत सीख मिली। वे हमें पोस्टर
लगाने की सलाह देते रहे और हम अखबारों में स्याही के मार्के की जगहों में रात को
चिपका देते थे और मजा लेने को सुबह घूमते थे, हमें बड़ा शकुन मिलता था। दिवान,
कप्तान व अधिकारी सब के खिलाफ राजा, अंग्रेज के खिलाफ पढ़कर लोग बड़े प्रसन्न
होते थे।
अंग्रेज सरकार के प्रशासक श्रीराम जी घुई यहां पदस्थ थे, उनके दो लड़के हमारे साथ
पढ़ते थे उनके बच्चों की पुस्तक में करो या मरो की पर्चा देखकर महोदय को कहा
प्रशासक महोदय दलबल समेत स्कूल पहुंचकर तलाशी श्ुाुर कर दी। इसे देख हेडमास्टर
हड़बड़ाते हुए आए पूछे तुम लोग कौन हो यहां क्या कर रहे हो, किसने आपको स्कूल में
घुसने की अनुमति दी है, बाहर चले जाओ मैं यहां का प्रशासक हूँ। आप लोग नहीं
जाओगे तो ऐसा कहकर गुस्से में उस बूढ़े हेडमास्टर ने स्कूल के चपरासी को बुला
लिया। इसके बाद मुझे उन्नीस सौ छियालिस में कांग्रेस समाजवादी पार्टी का शहरी मंत्री
बनाया गया और मुझे गांव-गांव जाकर अंग्रेज व राजा के खिलाफ आजादी की बात
कहकर लोगों को आकर्षित करते गए। किसी गांव में हमें कष्ट नहीं मिला। कुछ दिनों के
बाद गांवों में रियासती राजाओं ने एलान करवाना शुरु कर दिया कि बाहरी आदमी को
जगह जो भी देगा उसकी जमीन जब्त कर ली जावेगी। गांवों में राजनैतिक चेतना तो थी
नहीं, गांव वाले हमें खाना खिलाकर विदा कर देते थे। हम चिन्हित हो गए थे, हमारे नाम
से वारंट जारी हो गया था।
रायगढ़ से भागकर सारंगढ़ के सरिया, बरमकेला क्षेत्र में आसानी से प्रवेश मिलता था परंतु
वहां के राजा स्व. जवाहर सिंह जहां उतरते थे वहां पहुंच ही जाते थे। बड़े ही क्रूर राजा थे
हमें ढोलगी ढंककर रहना पड़ा था बरबस इस तरह का समय काटना पड़ा। अंतत: स्वराज
मिला, भूमिगत रहने से जो कष्ट मिला था वह मिट गया इसके पश्चात हमें जोरशोर से
रियासती आंदोलन राजाओं के खिलाफ करना पड़ा स्वर्गीय वल्लभ भाई पटेल पूर्व
केन्द्रीय मंत्री के आह्वान पर सक्ती रियासत में हम पड़ाव डाले और गांव-गांव घूमकर
लोगों को समझाने का क्रम चलता रहा। सक्ती से सारंगढ़, रायगढ़ तथा धरमजयगढ़ में
कार्यक्रम प्रारंभ करते हुए हम इसमें भी सफल हुए।
अविस्मरणीय घटनाएं दो, जो जीवन में भुलाया नहीं जा सकता।
1. पहाड़ के ऊपर बड़ा भारी अजगर सांप झूल रहा था मुंह फाड़े वह एक बित्ते की दूरी
सर के ऊपर था मेरे मित्र ने देख लिया, मैं बाल-बाल बचा।
2. राजा, सारंगढ़ के चमड़े का हंटर वह पहले एक, दो हंटर लगाकर बाद में बात करते
थे। भूमिगत रहने से बहुत ही कष्ट मिला और आजाद हुए देशी राज्य खत्म हुए पर हमें
हमारी जनता को कोई फायदा नहीं मिला। इससे उस परतंत्रता में हम सुखी थे। ऐसा
लगता है वर्तमान में गलत कार्य करने वाले ही सुखी हैं। यहाँ कहने में हमें हिचक नहीं है
छोटे राज्य के आंदोलन में रायगढ़ की भूमिका प्रशंसनीय होते हुए इनाम में रायगढ़ को
उद्योग मिला और समस्त खेती की जमीन, जंगल, नदी, नाला, मरघट, गौचर जमीन सब
उद्योगपतियों को देदिया गया। भविष्य में हमें पानी और अनाज के लिए कष्ट होगा।
पर्यावरण तो चरम सीमा पर दूषित हो गया है। यह है आजादी, क्या कहें? सब आर्थिक
पहलू की ओर नजर रखकर देश अपना है कहना भूल बैठे हैं।
                                                                                       भेंटकर्ता
                                                                                     एम.आर. यादव
                                                                                    पूर्व जिला खेल अधिकारी, रायगढ़ (छ.ग.)

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