Saturday 23 July 2011

यादवों से अपेक्षा

- आर.डी. यादव
हमारा यादव वंश बहुत महान वंश रहा है। हम यादव भगवान श्री कृष्ण के वंशज है और
यदुवंशी, कृष्णवंशी के नाम से जाने जाते हैं। हमारी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर दृष्टिपात किया
जाए तो यादवी वीरता का बखान हर युग में मिलता है। हमारी उत्पत्ति ही वीरता, शौर्यता
प्रदर्शन करने के लिए हुई है। सर्वधर्म, समभाव, प्रेम और शांति के लिए ही श्रीकृष्ण ने
यदुवंश में अवतार लिया और बांसुरी के माध्यम से पूरे विश्व को सद्भावना और प्रेम का
संदेश दिया, उन्होंने अन्याय और उत्पीडऩ से समाज को मुक्ति दिलाए हंै। यदि श्री कृष्ण
के आदर्शों का पालन यादव नहीं करेंगे तो कौन करेगा। दूसरों के उपदेश से यादव कैसे
प्रभावित होंगे। हमें उनके विचारों तथा उनके द्वारा किए गए कार्यों को जाति  तथा समाज,
देशहित में अनुकरण करना चाहिए। यदि हम सबकी उनकी नीति के अनुसार आचरण
करने का निश्चय कर ले तों पुन: यादव जाति का सम्मान बढ़ेगा।
यदुवंशियों के विकास के मार्ग पर अनेक कुरीतियां, बाधाओं के रूप में आड़े आती हैं।
अशिक्षा, आर्थिक पिछड़ापन, वैचारिक एकाग्रता का अभाव, सुदृढ़ एकता में कमी,
संगठनों का विकासोन्मुख न होना, महिलाओं का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष सहयोग प्राप्त न
होना, युवाओं की निष्क्रियता, विकास की ओर अग्रसर न होने की चाह सशक्त नेतृत्व का
अभाव तथा अन्य सामाजिक एवं गैर सामाजिक कुरीतियों की अधिकता का होना आदि
कारण प्रमुख हैं। इन मूलभूत  समस्याओं के रहते हुए यदुवंशी क्या कोई भी जाति विकास
रूपी चरम लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता।
आज समाज में जो अशांति, असंतोष या विकृतियां देख रहे हैं वह सब हमारी गलत सोच
का परिणाम है। आज हर व्यक्ति स्वहित को प्राथमिकता देने लगा है। लोग कत्र्तव्यों के
प्रति उदासीन है, परन्तु अधिकारों  के प्रति अत्यधिक सचेत । लोगों को दूसरे के दुख दर्द
की कोई चिंता नहीं है लेकिन लोग भूलते हैं कि असली सुख तो दूसरों को सुखी देखने में
ही है। समाज से बुराइयों को दूर करने के लिए हर व्यक्ति को अपने नैतिक मूल्यों को
अहमियत देनी होगी।  दूसरों के सुख सुविधा का ध्यान रखना होगा। हम जो कार्य करें
उसके परिणाम के बारे में अवश्य सोंचे हमें कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे
हमारे समाज के नाम कोई धब्बा लगे।
समाज को गतिशील बनाएं रखने के लिए आज आवश्यकता है दृढ़ इच्छा शक्ति की,
आत्म विश्वास से भरे लोगों की जिन्हें केवल सामाजिक हित व जातीय प्रतिष्ठा को पुन:
स्थापित करने का लक्ष्य हो, बुजुर्ग समाज सेवकों को अपनी कुर्सी सस्नेह युवाओं को
देकर स्नेहिल मार्गदर्शन प्रदान करें, उन्हें अपने अनुभवों से समाज निर्माण व यादवोत्थान
का मार्ग प्रशस्त करें।
मनुष्य साहसी प्रवृत्ति का है इसलिये अनेक कार्य करने में वह सफल हो जाता है, जो
आमतौर पर असंभव लगता है। सफलता एवं उन्नति अपने हाथ-पैरों के बल और
आत्मविश्वास से मिलता है। हम अपनी शक्ति को पहचानें और पूरी तन्मयता से गन्तव्य
की ओर बढ़ चलें। अपने को ठीक कर लेने से चारों ओर का वातावरण बनने में देर नहीं
लगती। आज इस बात की आवश्यकता है कि हमारा समाज जो कि अभावग्रस्त है,
उसकी दुर्बलता को मिल जुलकर दूर करना होगा। कठिनाई और कष्ट का व्यवधान
उन्नति की हर दिशा में मौजूद रहना है। ऐसी कोई भी सफलता नहीं है जो कठिनाईयों से
संघर्ष किए बिना ही प्राप्त हो जाती है।
इस हेतु समाज के गरीब, अपाहिजों, अशिक्षितों बेरोजगारों एवं शिक्षा से वंचित होनहार
छात्रों को योग्यतानुरुप सहयोग प्रदान करें। आकांक्षा, जागरुकता और परिश्रमशीलता से
बड़े से बड़े काम पूरे हो जाते हैं। हमारा समाज है तो ही हम हैं। समाज की शक्ति का
सहारा पाकर ही हमारी व्यक्तिगत क्षमताएं एवं योग्यताएं प्रस्फुटित होकर उपयोगी बन
जाती हंै। यदि हमारे गुणों और शक्तियों को समाज का सहारा न मिले तो वे निष्क्रिय होकर
बेकार चली जायेंगी। उनका लाभ न तो स्वयं हमकों ही होगा न समाज को।
आज समय की मांग है कि आप अपने शक्ति का, श्रम का, समय का बड़े से बड़ा हिस्सा
समाज के उत्थान में लगाएं। अंत में यही कहूंगा कि आप अपने कत्र्तव्यों और ज्ञान को
समाज के विकास के लक्ष्य की ओर निरंतर अग्रसित रहें।
                                                                             भारतीय नगर, बिलासपुर (छ.ग.)

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