Monday 1 August 2011

यात्रा-संस्मरण

-डॉ. मन्तराम यादव
लौकिक एवं भौतिक सुख में फंसे मनुष्य असली पारलौकिक सुख से सदैव वंचित रहते
है, परिणाम मकडज़ाल की तरह उसी में फंसकर नरदेह समाप्त कर देता है किन्तु ईश्वर
कृपा एवं गुरु माता-पिता की कृपा दृष्टि से  मनुष्य की ज्ञानचक्षु खुल जाती है, तो इस
सुख से उबकर पारलौकिक सुख खोजने लगता है तब गुरु माता-पिता के बताए मार्ग,
बनाए संस्कार का सहारा लेकर, यात्रा में निकल पड़ता है, यह अवसर भाग्योदय से तथा
अनेक जन्मों के सुकर्मों के फलस्वरूप मिल पाता है। ''हानि कुसंग, सुसंगति लाहुÓÓ,
उक्ति को चरितार्थ करते हुए मुझे भी पश्चिम बंगाल की यात्रा में जाने का सुअवसर श्री
आर.एस. यदु सहा. महाप्रबंधक लाफार्ज एवं श्री आर.आर. सिंह जी दुर्गापुर के प्रेरणा से
प्राप्त हुआ। अनजान जगह के दर्शन की चाह बालमन सा होता है, तीव्र जिज्ञासा बनी रहती
है। दिनांक 13.11.09 शनिवार शाम 4 बजे पूणे-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस से बिलासपुर
से यात्रा में निकल पड़ा साथ में श्री भागीरथी यादव (चोरभट्ठी)  थे। मार्ग के अनुपम
दृश्य का आनंद लेते हुए सुबह 5 बजे हावड़ा स्टेशन पहुंच गए, हावड़ा से ब्लैक डायमण्ड
सुपरफास्ट ट्रेन से प्रात: 9.30 बजे  स्टील कारखाना दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) पहुंचे।
अगुवानी हेतु स्टेशन में मौजूद श्री आर.आर. सिंह जी से मुलाकात हुई, प्रत्यक्ष साक्षात्कार
एवं दर्शन पहली बार हुई यद्यपि फोन पर बातें होती रहती थी। बड़े ललक एवं आवभगत
के साथ अपनी गाड़ी में लेकर श्री बाबूराम यादव जो लाफार्ज में अधिकारी हैं, उनके घर
ले गये वे मेरे नजदीकी रिश्तेदार हैं। स्टेशन से रास्ते में पडऩे वाले अनेक कारखाना व
शहर के बसाहट को आर.आर. सिंह जी बताते हुए आ रहे थे, उनके साथ श्री सीताराम
यादव जी थे। दुर्गापुर के बसाहट एवं कारखाना की झांकी देखकर, तन-मन की थकावट
दूर हो गई। इधर अंदर-ही-अंदर मन सोचने लगा कहाँ ये उद्योगपति लोग और हम कहां
साधारण लोग इनके मन में कितना आदर, क्या सेवाभाव, मनभावन मीठी बाते इन्हें पाकर
हम अभिभूत हो गये, साथ ही गौरवान्वित भी। गुरु माता-पिता के दिए संस्कार एवं प्रेरणा
सहसा याद आ गया। इन्हीं संस्कारों की फलस्वरूप इन महान लोगों का साक्षात्कार  हो
सका इनके हृदय में स्थान मिल सका।
पूर्वज से संस्कार प्राप्त, व्यवहार, कुशल, प्रसन्नचित्त, मृदुभाषी रायपुर निवासी लाफार्ज में
सहायक महाप्रबंधक जैसे महत्वपूर्ण पद में आसीन श्री आर.एस. यदु के कारण यह
सौभाग्य हमें प्राप्त हो सका। अन्र्तहृदय श्री आर.एस. यदु का मन ही मन धन्यवाद दे रहा
था। प्रेम से आंखे नम किन्तु मन प्रफुल्लित था। कुछ विश्राम के बाद  40 वें वर्ष आयोजित
भगवान श्री कृष्ण लोक सांस्कृति-महोत्सव ''आसनसोलÓÓ के लिए प्रस्थान किए,
कार्यक्रम के संस्थापक श्री नन्दबिहारी यादव, वरिष्ठ अधिवक्ता एवं नेता राजद आसनसोल
थे, पहुंचते ही जो स्वागत वहां वकील साहब और उनके महोत्सव के सदस्यों ने किया
अविस्मरणीय है। कार्यक्रम का शुभारंभ पूज्य कृपालु महाराज के शिष्यों द्वारा भगवान श्री
कृष्ण की आरती से किया गया। तत्पश्चात माता रासेश्वरी देवी के शिष्यों द्वारा भजन
प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम के अतिथियों द्वारा उद्बोधन हुआ मुझे भी विशिष्ट अतिथि
बनने एवं उद्बोधन का सौभाग्य मिला, भोजन प्रसाद पश्चात रात भर बिरहा गायकी श्री-
--- एवं बिरहा गायिका श्रीमती--- की बिरहा गायन चला, वाद-विवाद प्रतियोगिता
की तरह बिरहा गायन के माध्यम से, राम कथा, महाभारत कथा का गायन करते रहे,
वाहवाही बिना शोर शराबा के दोनों गायक दक्षिणा पाते रहे, हजारों श्रोता किन्तु शांत सभा
मण्डप क्या अलौकिक दृश्य वर्णन के लिए शब्द नहीं है, भाव जरूर है। सदस्यों के
उत्साह देखते बनता था। फूहड़ क्रिया कलाप का नामोनिशान नहीं।  सभी एकटक चित्त
मन से देख सुन रहे थे। छत्तीसगढ़ के पण्डवानी जैसा ही बिरहा गायन है।
उस क्षेत्र की प्रथम यात्रा थी दर्शनीय स्थानों की जानकारी नहीं थी। 15.12.09 को वापस
बिलासपुर आने का रिजर्वेशन था। पर श्री आर.आर. सिंह का आकर्षक व्यक्तित्व उनका
संग छोडऩा नामुमकिन। 15.12.09 को दुर्गापुर से चैतन्य महाप्रभु के जन्म स्थली नवदीप
जहां गंगा मैय्या बहती है, दर्शन हेतु श्री आर.आर. सिंह, आर.एस. यदु, भागीरती यादव
सभी प्रात: 8 बजे निकल पड़े। रास्ते में, आयल डिपो, सैनिक कैम्प, हराभरा क्षेत्र,
लहलहाती धान की फसल,  क्या मनोरम दृश्य शुद्ध जलवायु देखकर मन प्रसन्न हो गया।
चैतन्य महाप्रभु के सिर घुटन का केश आज भी सुरक्षित रखे है वह स्थान भी रास्ता में
पड़ा, वर्धमान शहर देखने लायक है सीता भोग वहां का प्रसिद्ध व्यंजन उसको ग्रहण कर
जी भर गया। नवदीप में गंगा के किनारे लगभग डेढ़ सौ से ज्यादा मंदिरें है दीपावली के
समय एक माह का लीला होता है। गंगा मैय्या पारकर श्री कृष्णानगर होते हुए इस्कान
मंदिर का दर्शन करने मायापुरी पहुंचे।
स्वामी प्रभुपाद जी द्वारा स्थापित भव्य इस्कान मंदिर जहां बारहो महिना दर्शनार्थी पहुंचते
रहते है। ठहरने के लिए कई धर्मशाला 5-6 कि.मी. क्षेत्र में फैला है। बाहर भी कई मंदिर
एवं धर्मशाला है। यथा नाम तथा गुण मायापुरी में पहुंचकर केवल भगवान श्री कृष्ण के
माया ही माया है। सभी मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण कई भाव मुद्रा में विराजमान हैं। स्वामी
प्रभुपाद जी के बचपन से लेकर संन्यासी बनने तथा देह छोडऩे तक के विभिन्न झांकियों
से युक्त मंदिर  है जिसमें म्युजियम भी है बीस रु. के टिकिट ने  भक्तों सहित स्वामी
प्रभुपाद एवं उनके भक्तों की झांकी करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस्कान मंदिर भव्य है
जिसे स्वामी प्रभुपाद जी ने बनवाया था। अंदर गर्भगृह दो भागों में है, एक तरफ  भगवान
श्री कृष्ण के साथ दाएं तरफ भी तुंग विद्या श्री चित्रा, श्री चम्पकलता, श्री ललिता बीच में
श्री कृष्ण श्री राधारानी  बायें में श्री विशाखा, श्री इन्दुलेखा, श्री रंङदेवी, श्री सुदेवी,
विराजमान है। ऊपर चांद के छात्र, सामने तुलसी रानी, राधाकृष्ण की छोटी मूर्ति,
विराजमान है। सभी मुकुट सोने चांदी तथा हीरा मोती से जुड़े हुए हैं। माधव जी के सामने
श्री गणेशमूर्ति ऐसा लग रहा है मानो द्वारपाल है। दूसरे कोने में बीचो-बीच स्वामी प्रभुपाद
जी का विग्रह है जो राधाकृष्ण को अपलक दर्शन कर रहे है। बाये नरसिंह भगवान के
मंदिर है।
गर्भगृह के दूसरे भाग में कृष्णावतार चैतन्य महाप्रभु बीच में है नित्यानंद स्वामी और देव्य
जी है बाएं गदाधर एवं श्रीवास स्वामी जी विराजमान है, मन मोहक झांकी देखते ही बनता
है।
आरती अलग-अलग समय कई बार होती है पर शाम के छै बजे और प्रात: चार बजे के
आरती में भाग लेना अहोभाग्य है। शाम को तुलसी की आरती पहले फिर चैतन्य महाप्रभु
की आरती, इधर राधाकृष्ण की आरती मधुर शंख ध्वनि मन के मैल को धो देता है।
प्रात: भगवान श्री कृष्ण की आरती पहले तत्पश्चात् नरसिंह भगवान की फिर तुलसी रानी
की होती है। आरती पश्चात प्रतिदिन सत्संग  होता है। प्रसाद स्वरूप तुलसी माला भेंट में
दी जाती है।
परिसर में पूजा के सभी प्रकार के प्रसाद एवं सामग्रियां मिलतीहै। मायपुरी वर्धमान से ट्रेन
जाती है तथा बस भी। दर्शन सौभाग्य से मिला जो गुरु माता-पिता के द्वारा दिए संस्कार
एवं प्रेरणा संभव हो सका।
मायापुरी से सिद्धपीठ मां महाकाली के दर्शन हेतु कलकत्ता आ गए, श्री आर.एस. यदु,
आर.आर. सिंह वर्धमान से रेल बैठाकर बिदा हो लिए पर हृदय में सदैव के लिए बस
गए। मां काली की मूर्ति भव्य, भयावह, दर्शनीय है मंदिर में आज भी बलि प्रथा लागू है,
दर्शनकर 16 जनवरी 09 को ग्वालियर एक्सप्रेस से बिलासपुर आ गये। यहां कहूंगा जा
पर कृपा राम के होईता पर कृपा करे सब कोई। बिनु सत्संग विवेक न होई, रामकृपा बिनु
सुल मन न सोई ।
वन्देकृष्ण जगत गुरुम
  संपादक, रऊताही 

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