Monday 1 August 2011

चार यादव विभूतियों पर जारी हुए डाक टिकट

-राम शिव मूर्ति यादव
राष्ट्र को अप्रतिम योगदान के मद्देनजर डाक विभाग विभिन्न विभूतियों पर स्मारक डाक टिकट जारी करता है। अब तक चार यादव विभूतियों को यह गौरव प्राप्त हुआ है। इनमें राम सेवक यादव ( 2जुलाई 1997) बी.पी. मण्डल (1 जून 2001) चौ. ब्रह्मा प्रकाश (11 अगस्त 2001) एवं राव तुलाराम (23 सितम्बर 2001) शामिल हैं। जिस प्रथम यदुवंशी के ऊपर सर्वप्रथम डाक टिकट जारी हुआ  वे हैं राम सेवक यादव। उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जनपद में जन्मे राम सेवक यादव ने छोटी आयु में ही राजनैतिक-सामाजिक मामलों में रुचि लेनी आरम्भ कर दी थी। लगातार दूसरी, तीसरी और चौथी लोकसभा के सदस्य रहे राम सेवक यादव लोक लेखा समिति के अध्यक्ष, विपक्ष के नेता एवं उत्तरप्रदेश विधानसभा के सदस्य भी रहे। समाज के पिछड़े वर्ग के उद्धार के लिए
प्रतिबद्ध राम सेवक यादव का मानना था कि कोई भी आर्थिक सुधार यथार्थ रूप तभी ले सकता है जब उससे भारत के गाँवों के खेतिहर मजदूरों की जीवन दशा में सुधार परिलक्षित हो। इस समाजवादी राजनेता के अप्रतिम योगदान के मद़देनजर उनके सम्मान में 2 जुलाई 1997 को स्मारक डाक टिकट जारी किया गया।
वर्ष 2001 में तीन यादव विभूतियों पर डाक टिकट जारी किये गये। इनमें बिहार के पूर्व
मुख्यमंत्री एवं मण्डल कमीशन के अध्यक्ष बी.पी. मण्डल का नाम सर्वप्रमुख है। स्वतंत्रता
पश्चात यादव कुल के जिन लोगों ने प्रतिष्ठित कार्य किये, उनमें बी.पी. मंडल का नाम
प्रमुख है। बिहार के मधेपुरा जिले के मुरहो गाँव में पैदा हुए बी.पी. मंडल 1968 में बिहार
के मुख्यमंत्री बने। 1978 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के रूप में 31 दिसम्बर
1980 को मंडल कमीशन के अध्यक्ष के रूप में इसके प्रस्तावों को राष्ट्र के समक्ष उन्होंने
पेश किया। यद्यपि मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने में एक दशक का समय
लग गया पर इसकी सिफारिशों ने देश के सामाजिक व राजनैतिक वातावरण में काफी
दूरगामी परिवर्तन किए। कहना गलत न होगा कि मंडल कमीशन ने देश की भावी
राजनीति के समीकरणों की नींव रख दी। बहुत कम ही लोगों को पता होगा कि
बी.पी.मंडल के पिता रास बिहारी मंडल जो कि मुरहो एस्टेट के जमींदार व कांग्रेसी थे, ने
'अखिल भारतीय गोप जाति महासभाÓ की स्थापना की और सर्वप्रथम माण्टेग्यू चेम्सफोर्ड
समिति के सामने 1917 में यादवों को प्रशासनिक सेवा में आरक्षण देने की मांग की।
यद्यपि मंडल परिवार रईस किस्म का था और जब बी.पी.मंडल का प्रवेश दरभंगा महाराज
(उस वक्त दरभंगा महाराज देश के सबसे बड़े जमींदार माने जाते थे) हाईस्कूल में कराया
गया तो उनके साथ हॉस्टल में दो रसोईये व एक खवास (नौकर) को भी भेजा गया। पर
इसके बावजूद मंडल परिवार ने सदैव सामाजिक न्याय की पैरोकारी की, जिसके चलते
अपने हलवाहे किराय मुसहर को इस परिवार ने पचास के दशक के उत्तराद्र्ध में यादव
बहुल मधेपुरा से सांसद बनाकर भेजा। राष्ट्र के प्रति बी.पी. मंडल के अप्रतिम योगदान पर
1 जून 2001 को उनके सम्मान में स्मारक डाक टिकट जारी किया गया।
एक अन्य प्रमुख यादव विभूति, जिन पर डाक टिकट जारी किया गया, वे हैं दिल्ली के
प्रथम मुख्यमंत्री चौ. ब्रह्मा प्रकाश। 1952 में मात्र 34 वर्ष की आयु में मुख्यमंत्री पद पर
पदस्थ चौधरी ब्रह्मा प्रकाश 1955 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। बाद में वे संसद हेतु
निर्वाचित हुए एवं खाद्य एवं केन्द्रीय खाद्य, कृषि सिंचाई और सहकारिता मंत्री के रूप में
उल्लेखनीय कार्य किये। 1977 में उन्होंने पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों एवं
जनजातियों व अल्पसंख्यकों का एक राष्ट्रीय संघ बनाया ताकि समाज के इन कमजोर
वर्गों की भलाई के लिए कार्य किया जा सके। राष्ट्र को अप्रतिम योगदान के मद्देनजर 11
अगस्त 2001 को चौधरी ब्रह्मा प्रकाश के सम्मान में स्मारक डाक टिकट भी जारी किया
गया।
1857 की क्रान्ति में हरियाणा का नेतृत्व करने वाले रेवाड़ी के शासक यदुवंशी राव
तुलाराव के नाम से भला कौन वाकिफ नहीं होगा। 1857 की क्रान्ति के दौरान राव
तुलाराम ने कालपी में नाना साहब, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई के साथ मंत्रण की
और फैसला हुआ कि अंग्रेजों को पराजित करने के लिए विदेशों से भी मदद ली जाये।
एतदर्थ सबकी राय हुई कि राव तुलाराम विदेशी सहायता का प्रबंध करने ईरान जायें। राव
साहब अपने मित्रों के साथ अहमदाबाद होते हुए बम्बई चले गये। वहां से वे लोग
छिपकर ईरान पहुंचे। वहां के शाह ने उनका खुले दिल से स्वागत किया। वहां राव
तुलाराम ने रूस के राजदूत से बातचीत की। वे काबुल के शाह से मिलना चाहते थे।
एतदर्थ वे ईरान से काबुल गये जहां उनका शानदार स्वागत किया गया। काबुल के अमीर
ने उन्हें सम्मान सहित वहां रखा। लेकिन रुस के साथ सम्पर्क कर विदेशी सहायताका
प्रबंध किया जाता तब तक सूचना मिली कि अंगे्रजों ने उस विद्रोह को बुरी तरह से
कुचल दिया है और स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को पकड़-पकड़कर फांसी दी जा रही
है। अब राव तुलाराम का स्वास्थ्य भी इस लम्बी भागदौड़ के कारण बुरी तरह प्रभावित
हुआ था। वे अपने प्रयास में सफल होकर कोई दूसरी तैयारी करते तब तक  उनका
स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हो गया था। वे काबुल में रहकर ही स्वास्थ्य लाभ कर कुछ
दूसरा उपाय करने की सोचने लगे। उस समय तुरंतभारत लौटना उचित भी नहीं था।
उनका काबुल में रहने का प्रबंध वहां के अमीर ने कर तो दिया पर उनका स्वास्थ्य नहीं
संभला और दिन पर दिन गिरता ही गया। अंतत: 2 सितम्बर 1863 को उस अप्रतिम वीर
का देहांत काबुल में ही हो गया। वीर-शिरोमणी यदुवंशी राव तुलाराम के काबुल में देहान्त
के बाद वहीं उनकी समाधि बनी जिस पर आज भी काबुल जाने वाले भारतीय यात्री बड़ी
श्रद्धा से सिर झुकाते हैं और उनके प्रति आदर व्यक्त करते हैं। राव तुलाराम की वीरता एवं
अप्रतिम योगदान के मद्देनजर 23 सितम्बर 2001 को उनके सम्मान में स्मारक डाक
टिकट जारी किया गया। (साभार रउताही-2011 )
स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी (सेवानिवृत्त)
 तहबरपुर, पोस्ट-टीकापुर, आजमगढ़ (उ.प्र.)

No comments:

Post a Comment