Monday 1 August 2011

अपनाना होगा श्रेष्ठ पशु गाय को

-समसेर कोसलिया 'नरेश'
      गाय को धरती के पालतू पशुओं में श्रेष्ठ पशु का दर्जा प्राप्त है। इस पशु को छोड़ अन्य किसी भी पशु को धरती माँ के नाम से संबोधित क्यों नहीं किया जाता है ? इस पर चिंतन करना निहायत जरूरी है। इसका दूध भी इंसान की माँ के दूध के समान हल्का, मीठा एवं पौष्टिक होता है तथा बच्चे के शारीरिक विकास के लिए सहायक आहार होता है। गाय को धेनु, गौ, धनेका, धेनुष्ठरी, गैया, गौरी, कामधेनु, मही, माता, मातृ, मातु, पयस्विनी, वृर्षा, रेवती, सुरभि, धेन आदि नामों से जाना जाता है। गाय की अनेक नस्लें होती हैं- हरियाणी,
देसी, चारणारकर एवं साहीवाल, राठी आदि नस्लें अच्छी एवं श्रेष्ठ हैं।
गाय के दूध का उपयोग मरीज दवाओं के साथ करता है। दूध से क्रीम, निकाला जाता है।
दूध को जमाने के पश्चात दही बन जाता है। दही को हिन्दी में दही, संस्कृत में दधि, दध,
पयंसी, मंगल्य, अनेतर, तक्रजन्म, क्षरत, क्षारोदभव, दिग्ध, तक्रजन्य, बंगाली-गुजराती में
दही, कन्नड़ में भसरू, तेलगू में पेरगु, फारसी में दोग नाम से जाना गया है। घी को हिन्दी
में घी, घृत, नवनीतक, नवीनतज, दहिभोग्य, मराठी में तूप, गुजराती में घी, तेलगू में नेई,
फारसी में रोगने जर्द, अरबी में समन दूहनूलक्कर, नामों से जाना जाता है। मक्खन को
स्तन्यतत्व, मखन, माखन, नवनीत, तक्रजनीन नामों से जाना जाता है। तक्रपिंड व तक्र
कपिका नामों की जननी छाछ को मठा, मट्ठा, छाय, लस्सी, शीत, तक्र, मनित, द्रव्य,
तक्रजननी के नामों से जाना जाता है। दूध को हिन्दी में दूध, संस्कृत में दुग्ध, मराठी में
दूध, गुजराती में दूध, कन्नड़ में हालू, तेलगू में पालू, फारसी में शीरे, अरबी में लवनुख,
लेटिन में लक्टस नामों से जाना जाता है। 'पीयूषÓ गाय ब्याहने से सात दिन तक का दूध
है। दूध, दही, मठा, छाछ के इन्द्रिय सुख गोरस कहलाते हैं।
दूध से बनने वाली वस्तुओं में दही, मक्खन, घी, खोवा, पनीर, रसगुल्ला, बर्फी, गुलाब
जामुन, कलाकन्द, गाजरपाक, रसभरी, हिना मुर्गी, रस मलाई, रसपट, क्रीम, रसराज,
टोटरू, रबड़ी और छाछ मुख्य है। फाड़े हुए दूध के छेना से पनीर बनाया जाता है, पनीर
से जलेबी भी बनती है। रबड़ी को वसौंधी राबड़ी कहते हैं। गाय का दूध दूहना
(दोहना)अन्य पशुओं से कठिन होता है। गाय के मूत्र को गौमूत्र, गौमत नाम प्रसिद्धि है।
इसका मूत्र कीट एवं रोगनाशक एवं सब्जियों एवं फसलों में कीटनाशक के स्थान पर
प्रयोग होता है। गौमूत्र के छिड़काव से कीटों का नाश होता है साथ ही सब्जी अन्न को
खाने पर मानव शरीर पर कोई गलत प्रभाव नहीं पड़ता। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार गौमूत्र
पवित्र है। आजकल अमेरिका जैसे पाश्चात्य संस्कृति के धनी देश ने गौमूत्र का पेटेन्ट कर
दिया है।

गाय के गोबर को गोबर, गोमय, गोपुरीष, गोविष्ठा, गोमल, गोविट्, गोशकृत कहा जाता है।
आधुनिक चिकित्सा शास्त्र के डाक्टर तथा वैज्ञानिक अब कहते हैं कि गाय के गोबर से
लीपने पर ऊर्जा तरंगित होती है। गोबर में गैस शक्ति बहुत होती है। गोबर के विषय में
खोज का श्रेय उत्तरप्रदेश के बरेली जनपद के गांव भूवा के नवोदित पब्लिक स्कूल के
कक्षा सातवीं के छात्र आशुतोष यादव को है। आशुतोष यादव ने सीसे और तांबे की प्लेट
के सिरों में तार जोड़कर एक डिब्बे में रखकर उस डिब्बे में गाय का गोबर भर दिया और
आधे धंटे बाद गाय का गोबर बैटरी की तरह विद्युत ऊर्जा देने लग गया। बाहर निकले
तारों के सिरे स्कूल की घड़ी से जोडऩे पर वह चलने लगी।  'कमल ज्योतिÓ पाक्षिक
लखनऊ के अनुसार 28 अगस्त 2000 की खोज से 16 मार्च 2002 तक स्कूल घड़ी चल
रही है।
      यूनानी मतानुसार महिलाओं के दूध के बाद गाय का दूध सबसे उत्तम है। बच्चा जब तक
40 दिन का न हो जाए तब तक उसे जानवर का दूध देना हानिकारक है। आयुर्वेद में दूध,
मधुर, स्निग्ध, वात-पित्तनाशक, मृददृविरेचक, तत्काल वीर्यजनक, शीतल, सब प्राणियों
की आत्मा, जीवन, वृहण, बलकारक, बुद्धिवर्धक, वाजीकरण, अव्यवस्थापक ओज के
बढ़ाने में विरेचन, वमन और वस्ति के समान गुण करता है। जीर्णज्वर, मानसिक रोग,
क्षयरोग, मूच्र्छा, भ्रम संग्रहणी, पांडुरोग, दाह तृषा, हृदय रोग, शूल उदावर्त गुल्म, गुदांकर,
रक्तपित्त, अतिसार, योनिरोग श्रम और गर्भस्त्राव में निरंतर हितकारी है जो बालक वृद्ध,
क्षतक्षीण भूखे और मैथुन करने से क्षीण हो गए हैं उनको दूध बहुत लाभ पहुंचाता है, मगर
तरुण ज्वर में इसका पीना विष के समान है।

     गाय का दूध रस और पाक मधुर, शीतल, स्तनों में दूध उत्पन्न करने वाला और पित्त को
नष्ट करने वाला, भारी, हमेशा सेवन करने वाले मनुष्यों को बुढ़ापे से बचाने वाला और
सभी रोगों को नष्ट करने वाला है। काली गाय का दूध वातनाशक और अधिक गुणकारी,
पीली गाय का दूध पित्तनाशक और वातनाशक, सफेद गाय का दूध कफकारक लाल
और चितकबरी गाय का दूध वातनाशक और तरुणी गाय का दूध मधुर, रसायन और
त्रिदोषनाशक होता है। वृद्ध गाय का दूध दुर्बलताजनक होता है। जिस गाय को गर्भवती
हुए तीन महीने बीत गए हैं उसका दूध पित्तकारक, खारा मधुर दोष वाला, जिस गाय ने
पहली बार बच्चा दिया है उसका दूध रुखा, दाहकारक, रक्त को कुपित करने वाला और
पित्तनाशक, जिस गाय को बच्चे दिए बहुत दिन बीत गए हो उसका दूध बलवर्धक और
जिन गायों का बछड़ा मर गया हो अथवा छोटा काल का हो उसका दूध भारी, कब्जियत
करने वाला और दुष्पाच्य होता है, अताब्व पथ्य, दीपन और हल्का होता है। (साभार रउताही-2011 )
(धन्वन्तरी कृत- भारतीय, जड़ी-बूटियाँ नामक पुस्तक से)
                                             साहित्य वाचस्पति मुकाम+पोस्ट- स्याणा, 
                                            तहसील व जिला- महेन्द्रगढ़ हरियाणा, पिन 123027

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