Wednesday 10 April 2019

छत्तीसगढ़ की संस्कृति में रावत नाच

रावत नाच को एक महोत्सव का स्वरुप देने एवं उसे क्रमबद्ध करने के पीछे हमारी मंशा यही रही है कि इस लोकनृत्य का पारंपरिक एवं कलात्मक स्वरुप मुखर होकर सामने आये।
समाज में बरसों तक बने रहने वाले आपसी झगड़ों के कारण अनेक यादव परिवार आर्थिक चिन्ता के शिकार होते जा रहे थे। रावत नाच जो कि समूह में नाचा जाने वाला नृत्य है शस्त्र एवं श्रृंगार का अद्भुत नृत्य है वह विवादों एवं कुरीतियों से प्रभावित हो रहा था। समाज के पढ़े लिखे यादव समाज के लोग उन्हीं बुराईयों के कारण नृत्य में भाग नहीं लेते थे। आपसी झगड़ों एवं विवादों को दूर करने के लिए समिति का गठन किया गया इसी समिति के फलस्वरुप यादव समाज में बैर भाव लगभग खत्म होता जा रहा है और भाई चारे की भावना विकास हो रहा है।
रावत नाच के कलात्मक एवं पारंपरिक स्वरुप को उजागर करने के लिए व्याप्त बुराईयों को दूर करने के लिए तथा देश में इस लोकनृत्य को सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए अहीर नृत्य कला परिषद देवरहट के तत्वावधान में अनेक निर्णय लिए गए। समिति के संचालक के रुप में डॉ. मन्तराम यादव को सर्वसम्मति से स्थान दिया गया।
श्री मंतराम यादव जी प्राथमिक शाला अमेरी में सहायक शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं व उनमें समाज कल्याण की भावना है और यादव समाज का नाम उजागर करने में तन-मन-धन से त्याग की भावना से समाज के कार्य में जुटे रहते हैं।
छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति में रावत नाच
छत्तीसगढ़ में मिलने वाली विभिन्न जातियों में रावत जाति का विशिष्ट स्थान है। यहां के लोक जीवन और लोक संस्कृति को जितना इस जाति में प्रभावित किया है संभवत: उतना किसी अन्य ने नहीं, यह जाति रावत, अहीर, यादव, यदुवंशी, पहटिया आदि अनेक नामों से अभिहित है। रावत शब्द अपने साथ एक पीछे ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक परंपरा लिए हुए है। शब्दकोष से पता चलता है कि राऊत का अर्थ राजा और राऊत का अर्थ राजवंश कोई व्यक्ति क्षत्रिय वीर पुरुष अथवा बहादुर दिया गया।
अत: यह सिद्ध हो जाता है कि गोचरण एवं दुग्ध दोहन आदि की अपनी रीति को लिए हुए थे, रावत पूर्ण युग में राज्य का संचालन करते रहेंगे और राजवंशी है। रावत की उत्पत्ति राव से हुई प्रतीत होती है जब यदुवंशी नरेश थे तब से यह नाम आज तक प्रवाहित है।
स्पष्ट है कि यदुवंशियों के सभ्य ही रावतों का संबोधन होता रहा है। यही कारण है कि बांसगीतों में नायक रावत राजा या राजवीर के रुप में विख्यात है इनके राज्यकाल में प्रजा सुखी थी और दूधो नहाओं से अलंकृत थी। यह तथ्य बांसगीतों में संरक्षित है। रावतों की अलौकिक वीरता का निदर्शन आज हमें भले ही अतिश्योक्ति पूर्ण या विचित्रता से युक्त लगते हों लेकिन यह उनकी पूर्वजों में श्रद्धा और अलौकिक वीरता के प्रति भक्ति भावना को ही चरितार्थ करती है।
रावत नाच लोक कला एवं साहित्य की दृष्टि में
रावत जाति के संबंध में अपने विचार व्यक्त करतेहुए कह रहा हूं कि छत्तीसगढ़ की यह रावत जाति भी बड़ी रहस्यमय है इसने छत्तीसगढ़ लोक जीवन को कई प्रकार से प्रभावित किया है राजपूत का अपभ्रंश ही रावत हुआ है।
ये अपने को कृष्णानुयामी अमीर वंशज अहिरा कहते हैं मानस में तुलसीदास ने भी बहादुर के अर्थ में रावत शब्द का प्रयोग किया है।
निज निज साजु समाजु बनाई।
गुह राउतहि जोहोरे जाई।।
छत्तीसगढ़  के रावत स्वयं को यदुवंशी मानते हैं और यादव कहलाकर गर्व का अनुभव करते है। प्रसिद्ध पौराणिक पुरुष यदु से यादव वंश चला। वैवश्वत मनु के दस बेटे-बेटी थी इसमें एक इला थी, इला का विवाह सोम या बुध के साथ हुआ जिसके बेटे पुरुरवा ने ऐलवंश से यादव वंश निकला ।
रऊताही 1994 से साभार

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