Sunday 19 June 2011

बुधराम यादव द्वारा छत्तीसगढ़ी में अनुदित संग्रह ‘डोकरा भइन कबीर’ विमोचित

बिलासपुर. छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति जिला शाखा के तत्वावधान में डॉ. अजय पाठक के
चर्चित नवगीत संग्रह बूढ़े हुए कबीर का वरिष्ठ गीत कवि बुधराम यादव द्वारा छत्तीसगढ़ी में
अनुदित संग्रह डोकरा भइन कबीर का विमोचन स्थानीय लायंस क्लब सभागार में कबीर
जयंती पर सम्पन्न हुआ. समारोह में मुख्य अतिथि डॉ. बिहारी लाल साहू प्राचार्य शासकीय
महाविद्यालय रायगढ़ एवं विशिष्ट अतिथि नंदकिशोर तिवारी थे. समारोह की अध्यक्षता डॉ.
विनय कुमार पाठक प्रसिद्ध भाषाविद एवं समीक्षक ने की.
स्वागत भाषण के दौरान कवि मनोहर दास मानिकपुरी ने बताया कि अन्य भाषाओं में उपलब्ध
उत्कृष्ट साहित्य का छत्तीसगढ़ी में अनुवाद का कार्य भाषायी समरसता की दृष्टिकोण से एक
सुखद संकेत है. डोकरा भइन कबीर हिंदी के किसी नवगीत संग्रह का प्रथम छत्तीसगढ़ी
अनुवाद है.
अपने उदबोधन में संग्रह के मूल कृतिकार कवि डॉ. अजय पाठक ने शीर्षक में प्रयुक्त शब्द
की व्याख्या करते हुए बताया कि कबीर वस्तुत: कभी बूढेÞ नहीं हुए. वह तो कालजयी है. वह
हम ही है जिन्होंने अपने अंतस में बैठे कबीर पर इतने अत्याचार किये है कि हम सबके
भीतर बैठे कबीर असमय बूढ़े और अशक्त हो गये है. कवि बुधराम यादव ने डोकरा कबीर
संग्रह के अनुवाद के दौरान अपने अनुभवों को व्यक्त करते हुए कहा कि अनुवाद एक
जोखिम भरा कार्य है और वह यदि गीतिकाव्य का अनुवाद हो तो यह जोखिम दो गुना हो
जाता है. मूल कविता के भावों और उसके शब्दों का विकल्प तलाशते हुए छंदों की
लयबद्धता बनाये रखना बहुत श्रमसाध्य है मैंने प्रयास किया है कि बूढ़े हुए कबीर के भाव
शब्द लय और अर्थ यथावत रहे इसमें मैं कितना सफल हुआ हूं यह भविष्य बतायेगा.
विशिष्ट अतिथि नंदकिशोर तिवारी ने संग्रह पर कहा कि अनुवाद एक कठिन विधा अवश्य है
किंतु इसके माध्यम से अन्य भाषाओं में लिखे जा रहे साहित्य से पाठकों का एक बड़ा वर्ग
लाभान्वित होता है इससे भाषाओं का साहित्य समृद्ध होता है. मुख्य अतिथि डॉ. बिहारी लाल
साहू ने कहा कि छत्तीसगढ़ी में अनुवाद की परंपरा बहुत प्राचीन और समृद्ध रही है उन्होंने
पंडित मुकुटधर पांडेय द्वारा अनुदित मेघदूत का स्मरण करते हुए उसे सहज और बोधगम्य
अनुवाद निरूपित किया. अध्यक्षीय आसंदी से बोलते हुए डॉ. विनय पाठक ने क हा कि
अनुवाद की चार प्रक्रिया होती है और डोकरा भइन कबीर में इन चारों प्रक्रिया का सफलता
पूर्वक निर्वहन किया गया है. उन्होंने आगे कहा कि भाषा और शब्द की अपनी एक संस्कृति
होती है. अनुवाद में उसे यथावत रख पाना सहज कार्य नहीं है किंतु कवि बुधराम यादव ने इसे
सहजता से निभाया है.
कार्यक्रम के दौरान जांजगीर से पधारे कवि भैयालाल भागवंशी एवं मनोहर दास मानिकपुरी ने
संग्रह के कुछ गीतों का सस्वर पाठ कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. कार्यक्रम का
संचालन महेश श्रीवास ने किया. देर शाम तक चले इस कार्यक्रम में रायगढ़ मुंगेली और
जांजगीर सहित बिलासपुर के अनेक प्रबुद्धजन कवि एवं साहित्यकार मौजूद थे. जिनमें गंगा
प्रसाद बाजपेयी डॉ. पालेश्वर शर्मा राजमलकापुरी मंजूर अली राही नरेंद्र श्रीवास्तव विजय
राठौर सतीश सिंह जांजगीर डॉ. विजय सिन्हा बल्लू दुबे आनंद प्रकाश गुप्ता विजय तिवारी
डॉ. बृजेश सिंह अशोक मिश्र इंजी. ए.के. यदु सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे

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