Tuesday, 21 October 2014

बज्जिका मगही एवं भोजपुरी क्षेत्र के चर्चित विवाह लोकगीत

लोक साहित्य में लोक गीतों का प्रमुख स्थान है। जनजीवन में इनका व्यापक प्रचार है। ये गीत भावुक और संवेदनशील जनता के हृदय के स्वाभाविक उद्गार होते हैं। बिहार में भोजपुरी, मिथिला, बज्जिका, मगधी, अंगिका जैसी लोक भाषाओं में लोकगीत बिहार को हमेशा आनंदित एवं ऊर्जा देता रहा है। बज्जिका बज्जी जनपद की भाषा है। डॉ. ग्रियर्सन ने इस क्षेत्र की बोली को पश्चिमी मैथिली या मैथिली भोजपुरी कहा है। पंडित राहुल सांकृत्यायन आदि विद्वानों ने बृज्जियों की बोली समझकर इसका नाम बृज्जिका दिया है, लेकिन इस भाषा के लिए बज्जिका अधिक उपयुक्त है। यह भाषा बोली या इनके लोकगीत मैथिली से सर्वथा भिन्न है। मैथिली भाषा, सभ्यता और संस्कृति का क्षेत्र पूर्व विदेह रहा है और इस क्षेत्र की अपनी लिपि भी पूर्व विदेह लिपि रही है। बज्जी जनपद की भाषा, सभ्यता और संस्कृति में पूर्व विदेह क्षेत्र में प्रारंभ से ही भिन्नता रही है। बज्जिका भाषा की अपनी सीमा है पश्चिम में गंडक नदी से लेकर पूरब में कोसी और हानंद नदी तक तथा उत्तर में नेपाल के पहाड़ से लेकर दक्षिण में गंगा नदी तक बज्जिका बासी मौजूद हैं। भाषा के अन्तर्गत बज्जिका सम्पूर्ण मुजफ्फरपुर वैशाली समस्तीपुर, दरभंगा, सीतामढ़ी आदि जगहों पर बोली जाती है। बज्जिका का क्षेत्र करीब चौवालीस सौ वर्ग मील में फैला है। इस भाषा को बोलने वालों की संख्या करीब बासठ लाख है। बज्जिका भाषा का लोकगीत काफी चर्चित है। विवाह गीत, बज्जिका भाषा में काफी लोकप्रिय है जैसे
धान कुट हो दूल्हा, धान कुट हो
अपन मइया के ओखली में धान कुट हो।
धोती पहन हो दूल्हा, धोती पहना हो,
अपन बाबू के गाँव के धोती पहना हो।
लोकगीत बज्जिका, भोजपुरी, मैथिली एवं मगधी का मिश्रित रूप है। बेटी विवाह का एक गीत प्रस्तुत है, जिसमें यह वर्णित है कि सास ने कोरे नदिया में अमृत का जामन देकर दही जमाया। उसी दही से मंडप पर होम किया गया, जिसके धुएं से दूल्हा मात गया और रुठकर बारात को चल पड़ा। उसकी सास ने उसे मनाते हुए पुन: कोहबर में लौटने का आग्रह किया तथा यह आश्वासन दिया कि मैं आंचल में बेनिया (पंखा)डुला दूंगी, जिसमें तुम्हें धुआँ नहीं लग पाएगा-
कोरे नदियवा सासु दहिया हे जमवलो
इमरित नवलो जोरन हे।
वोही जे दहिया से हुमवा करवलो
धुँअवाँ अकाश लगि जाय हे।
वोहि धुँअवे मातल दुलहा कवन दुलहा,
रुसि चलत बरियात हे।
फिरु-फिरु हे बर येहि  कोहबरवा।
अंचरे से बेनिया डोलायब हे।
 इसी ढंग से बिहार की राजधानी पटना की भाषा 'मगहीÓ है। मगही मागधी का अपभ्रंश है। डॉ. ग्रियर्सन ने मगही भाषा को दो रुपों में बाँटा है- शुद्ध मगही और पूर्वी मगही शुद्ध मगही पटना गया और मुंगेर के कुछ हिस्सो में बोली जाती है। पूर्वी मगही नागपुरिया और कुरमाली क्षेत्रों में बोली जाती है। मगही में मुद्रित साहित्य बाजारों में आने लगे हैं, इसके लोकगीत भावों में सुकुमारता और काव्य की मनोहरता की दृष्टि से उच्चकोटि के है।
बेटी विदाई के अवसर पर गाये जाने वाले एक चर्चित मगही विवाह गीत के कुछ अंश उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं जो आँसू की बूँदों के साथ काँपते हुए स्वर से गाये जाते हैं-
सुरुज के जोते बाहर भेलन दुलरइतो बेटी,
गोरे बदन कुम्हलाय।
पहिले जनइतूं बेटी तमुआ तनइतूं,
गोरे बदन कुम्हलाय।।
काहे लागि अजी बाबा तमुआ तनइतऽ
गोरे बदन कुम्हलाय।
होयते भिनसखा बाबू कोइली कुहुंकतो,
लगबो सुन्नर बर साथ।।
काहे लागि अगे बेटी खोआ खांड़ खिलउलूं,
काहेला पिअवलूं दूध।
काहे लागि बेटी पुतर जानि भानलूँ,
लगबऽ सुन्नर बर साथ।
जनइत हलइजी बाबू हई कुमारी,
लगतई सुन्नर बर साथ।
काहे लागि अजो बाबू खोआ खांड खिलवलऽ
काहेला पिअबलऽ दूध,
काहे लागि अजो बाबू पुतर जानि भानलऽ
लगबो सुन्नर बर साथ।।
सूरज की ज्योति में दुलारी बेटी बाहर निकली उसका गोरा बदन कुम्हला गया। पिता ने पूछा बेटी मैं अगर पहले जानता तो तम्बू बनवा देता, तुम्हारा गोरा बदन कुम्हला रहा है। बेटी ने उत्तर दिया, ''बाबू जी किसलिए तम्बू लगवाएंगे ? मैं तो भोर होते जब कोयले कुहुकने लगेगी, अपने सुन्दर बर के साथ चली जाऊंगी।ÓÓ
पिता ने कहा बेटी किसएिल मैंने तुम्हें खोआ खांड खिलाया, किसलिए दूध पिलाया तथा तुम्हें किसलिए पुत्र की तरह प्यार किया, जो तुम सुन्दरबर के साथ चली जाओगी? बेटी ने सांत्वना देते हुए कहा- पिताजी आप जानते थे कि बेटी कुमारी है, जो सुन्दर बर के साथ चली जाएगी फिर आपने मुझे क्यों खोआ खांड खिलाया, किसलिए दूध पिलाया और किसलिए पुत्र की तरह प्यार किया? मैं तो सुन्दर बर के साथ चली जाऊंगी।
इसी प्रकार भोजपुरी लोकगीत भोजपुरी क्षेत्र में गाया जाता है। भोजपुरी का नामाकरण शाहाबाद जिले के उमरांव के समीप भोजपुर नामक गांव के आधार पर हुआ है। प्राचीन काल में भोजपुर समृद्धशाली उज्जैन के क्षत्रियों की राजधानी थी। आज भी इस नाम की परगना है। बिहार में भोजपुरी सारण, सिवान, गोपालगंज, भोजपुर बक्सर, रोहतास, कैमुर, चम्पारण में बोली जाती है। लोकगीत की दृष्टि से भोजपुरी लोकगीत चर्चित रहे हंै। भोजपुरी लोकगीत सरस और मर्मस्पर्शी होते हैं। एक चर्चित भोजपुरी विवाह गीत प्रस्तुत है, जो मगही के विवाह गीत में काफी समानता रखता है-
सांझ के उगती अंजोरिया ए बाबा,
सुगवा उगेला भिनुसार ए।
सुरुज किरिनिया हमरा लागल ए बाबा
गोर बदन कुम्हिलाय ए।
कहतु तऽ ए बेटी तंबुआ तनवतीं
कहतु तऽ छतर उरेहब ऽए।
आजु के रतिया बाबा तोहरे मड़उआ
बिहने सुन्नर बर साथ ए।
कटोरिन, कटोरिन, दुधवा, पिअवलों
पुतवा से अधिक दुलार ए
दुधवा के नेकी नाहिं दिहलु ए बेटी,
लागेलु सुन्नर बर साथ ए।
काहे के बाबा ए दुधवा पिअवल ऽ
काहे के कइलऽ अतना दुलार ए।
दुधवा के नेकी रउरा दोहें कवन भइया,
जिनि भइया दाहिन बांअ ए।
इस विवाह गीत में बेटी कहती है 'संध्या को अंजोरिया (चांद) और भोर का शुक्र तारा उगता है। सूरज की किरणें मुझे लग रही है, जिस कारण मेरा गोरा बदन कुम्हला रहा है। पिता ने पूछा-बेटी अगर तुम कहती तो मैं तम्बू तनवा देता या छत्र ही बनवा देता।Ó
बेटी ने जवाब दिया- पिताजी आपने मुझे दूध क्यों पिलाया तथा इतना दुलार क्यों किया? दूध का बदला मेरे अमुक भइया देंगे, जो दाहिने बांह की तरह है।
इस प्रकार बज्जिका, मगही एवं भोजपुरी भाषाओं में विवाह लोकगीत चर्चित है और इन विवाहगीतों को शादी मंडप में महिलाएँ गाती हैं और शादी मंडप में बैठे श्रोतागण मनोरंजन करते हैं।
साभार रउताही 2014 
 

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