यादव वंश भारतीय इतिहास में बहुत प्राचीन है और यह अपना सम्बन्ध प्राचीन यदुवंशी क्षत्रियों से मानता है। राष्टकूटों और चालुक्यों के उत्कर्ष काल में यादव वंश के राजा अधीनस्थ सामन्त राजाओं की स्थिति रखते थे, लेकिन जब चालुक्यों की शक्ति क्षीण हुई तो वे स्वतंत्र हो गए और वर्त्तमान हैदराबाद के क्षेत्र में स्थित देवगिरि (आधुनिक दौलताबाद) को केन्द्र बनाकर उन्होंने अपने उत्कर्ष का प्रारम्भ किया।
कोल्हापुर के शिलाहार, बनवासी के कदम्ब और पांड्य देश के राजाओं को भी सिंघण ने आक्रान्त किया और अपनी इन दिग्विजयों के उपलक्ष्य में कावेरी नदी के तट पर एक विजय स्तम्भ की स्थापना की। इसमें सन्देह नहीं कि यादव राज सिंघण एक विशाल साम्राज्य का निर्माण करने में सफल हुआ था और न केवल सम्पूर्ण दक्षिणापथ अपितु कावेरी तक का दक्षिणी भारत और विंध्याचल के उत्तर के भी कतिपय प्रदेश उसकी अधीनता में आ गए थे। सिंघण न केवल अनुपम विजेता था, अपितु साथ ही विद्वानों का आश्रयदाता और विद्याप्रेमी भी था। 'संगीतरत्नाकर' का रचयिता सारंगधर उसी के आश्रय में रहता था। प्रसिद्ध ज्योतिषी चांगदेव भी उसकी राजसभा का एक उज्ज्वल रत्न था। भास्कराचार्य द्वारा रचित 'सिद्धांतशिरोमणि' तथा ज्योतिष सम्बन्धी अन्य ग्रंथों के अध्ययन के लिए उसने एक शिक्षाकेन्द्र की स्थापना भी की थी।
भिल्ल्म तथा बल्लाल का संघर्ष
1187 ई. में यादव राजा 'भिल्लम' ने अन्तिम चालुक्य राजा सोमेश्वर चतुर्थ को परास्त कर कल्याणी पर भी अधिकार कर लिया। इसमें सन्देह नहीं कि भिल्लम एक अत्यन्त प्रतापी राजा था और उसी के कर्त्तृत्व के कारण यादवों के उत्कर्ष का प्रारम्भ हुआ था। पर शीघ्र ही भिल्लम को एक नए शत्रु का सामना करना पड़ा। द्वारसमुद्र (मैसूर) में यादव क्षत्रियों के एक अन्य वंश का शासन था, जो होयसाल कहलाते थे। चालुक्यों की शक्ति क्षीण होने पर दक्षिणापथ में जो स्थिति उत्पन्न हो गई थी, होयसालों ने भी उससे लाभ उठाया और उनके राजा वीर बल्लाल द्वितीय ने उत्तर की ओर अपनी शक्ति का विस्तार करते हुए भिल्लम के राज्य पर भी आक्रमण किया। इस प्रकार बल्लाल और भिल्लम के मध्य एक ज़ोरदार संघर्ष हुआ। वीर बल्लाल के साथ युद्ध करते हुए भिल्लम ने वीरगति प्राप्त की और उसके राज्य पर, जिसमें कल्याणी का प्रदेश भी शामिल था, होयसालों का अधिकार हो गया। इस प्रकार 1191 ई. में भिल्लम द्वारा स्थापित यादव राज्य का अन्त हुआ।जैत्रपाल की वीरता
भिल्लम की इस पराजय से यादव वंश की शक्ति का मूलोच्छेद नहीं हो सका। भिल्लम का उत्तराधिकारी 'जैत्रपाल प्रथम' था, जिसने अनेक युद्धों के द्वारा अपने वंश के गौरव का पुनरुद्धार किया। होयसालों ने कल्याणी और देवगिरि पर स्थायी रूप से शासन का प्रयत्न नहीं किया था, इसलिए जैत्रपाल को फिर से अपने राज्य के उत्कर्ष का अवसर मिल गया। उसका शासन काल 1191 से 1210 तक था। अपने पड़ोसी राज्यों से निरन्तर युद्ध करते हुए जैत्रपाल प्रथम ने यादव राज्य की शक्ति को भली-भाँति स्थापित कर लिया।सिंघण द्वारा राज्य विस्तार
जैत्रपाल प्रथम का पुत्र 'सिंघण' (1210-1247 ई.) था। वह इस वंश का सबसे शक्तिशाली प्रतापी राजा हुआ। 37 वर्ष के अपने शासन काल में उसने चारों दिशाओं में बहुत से युद्ध किए और देवगिरि के यादव राज्य को उन्नति की चरम सीमा पर पहुँचा दिया। होयसल राजा वीर बल्लाल ने उसके पितामह भिल्लम को युद्ध में मारा था और यादव राज्य को बुरी तरह से आक्रान्त किया था। अपने कुल के इस अपमान का प्रतिशोध करने के लिए सिंघण ने द्वारसमुद्र के होयसाल राज्य पर आक्रमण किया और वहाँ के राजा वीर बल्लाल द्वितीय को परास्त कर उसके अनेक प्रदेशों पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। होयसल राजा कि विजय के बाद सिंघण ने उत्तर दिशा में विजय यात्रा के लिए प्रस्थान किया। गुजरात पर उसने कई बार आक्रमण किए और मालवा को अपने अधिकार में लाकर काशी और मथुरा तक विजय यात्रा की। इतना ही नहीं, उसने कलचुरी राज्य को परास्त कर अफ़ग़ान शासकों के साथ भी युद्ध किए, जो उस समय उत्तर भारत के बड़े भाग को अपने स्वामीत्व में ला चुके थे।कोल्हापुर के शिलाहार, बनवासी के कदम्ब और पांड्य देश के राजाओं को भी सिंघण ने आक्रान्त किया और अपनी इन दिग्विजयों के उपलक्ष्य में कावेरी नदी के तट पर एक विजय स्तम्भ की स्थापना की। इसमें सन्देह नहीं कि यादव राज सिंघण एक विशाल साम्राज्य का निर्माण करने में सफल हुआ था और न केवल सम्पूर्ण दक्षिणापथ अपितु कावेरी तक का दक्षिणी भारत और विंध्याचल के उत्तर के भी कतिपय प्रदेश उसकी अधीनता में आ गए थे। सिंघण न केवल अनुपम विजेता था, अपितु साथ ही विद्वानों का आश्रयदाता और विद्याप्रेमी भी था। 'संगीतरत्नाकर' का रचयिता सारंगधर उसी के आश्रय में रहता था। प्रसिद्ध ज्योतिषी चांगदेव भी उसकी राजसभा का एक उज्ज्वल रत्न था। भास्कराचार्य द्वारा रचित 'सिद्धांतशिरोमणि' तथा ज्योतिष सम्बन्धी अन्य ग्रंथों के अध्ययन के लिए उसने एक शिक्षाकेन्द्र की स्थापना भी की थी।
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