Sunday, 13 March 2011
ओमवीर यादव ने बनाया विमान
कौन कहता है कि आसमान में छेद नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो। इस कहावत को राजस्थान के सोरवा गांव के ओमवीर यादव ने एक वायुयान बना कर सही साबित कर दिया है। छोटे से गांव व साधारण किसान परिवार में जन्में 21 वर्षीय ओमवीर यादव ने कबाड़ से जुगाड़ वाली तकनीक अपनाकर यह विमान तैयार किया है। विमान को तैयार करने में उसे एक साल का समय लगा है। ओमवीर यादव ने उक्त विमान का प्रदर्शन गांव नसीबपुर स्थित राव तुलाराम शहीदी स्मारक पर किया। विमान को देखने के लिए भारी संख्या में लोग आए हुए थे। विमान में फिलहाल चालक व एक अन्य व्यक्ति बैठ सकता है।
ओमवीर यादव के नाना व साहित्यकार जसवंत प्रभाकर ने बताया कि ओमवीर का चयन 2008 में आईआईटी में हो गया था। उसकी रूचि कुछ नया करने की थी, जिसके कारण उसने गहन अध्यन व प्रयोग कर कम लागत से विमान तैयार किया है। ओमवीर ने बताया कि इस विमान में चालक के अलावा एक अन्य व्यक्ति बैठ सकता हैं। इसका वजन कुल 280 किलोग्राम है। उन्होंने यह जेट एक साल में तैयार किया है और उनको दसवीं बार में यह विमान तैयार करने में सफलता मिली है। उन्होंने बताया कि उसके प्रयोग में अभी तक करीब 20 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। वहीं इस विमान के निर्माण में 50 हजार रुपये का खर्चा आया है। ओमवीर यादव के अनुसार जेट में मारुति जिप्सी का एक हजार सीसी का इंजन लगा हुआ है। जिसकी क्षमता 46 होर्स पावर है। ओमवीर ने दावा किया कि उसका जेट दो हजार मीटर की ऊंचाई तक उड़ सकता है। वहीं उसकी गति 150 किलोमीटर प्रति घंटा है। उसने बताया कि इसका प्रयोग विशाल भू-भाग के कृषि क्षेत्रों में कीटनाशक दवाओं के छिड़काव को अल्प समय में तथा प्राकृतिक आपदाओं में संकट के समय जीव रक्षा व राहत सामग्री पहुंचाने में कर सकते हैं। उसने बताया कि उनका लक्ष्य अब छह व आठ सीट वाला विमान बनाने का है। वहीं उसे बोइंग विमान कंपनी से जॉब का भी आफर मिल चुका है।
इस अद्भुत कार्य के लिए ओमवीर यादव को 'यदुकुल' की तरफ से हार्दिक बधाइयाँ !!
(फेसबुक पर हितेंद्र सिंह यादव द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी..)
ओमवीर यादव के नाना व साहित्यकार जसवंत प्रभाकर ने बताया कि ओमवीर का चयन 2008 में आईआईटी में हो गया था। उसकी रूचि कुछ नया करने की थी, जिसके कारण उसने गहन अध्यन व प्रयोग कर कम लागत से विमान तैयार किया है। ओमवीर ने बताया कि इस विमान में चालक के अलावा एक अन्य व्यक्ति बैठ सकता हैं। इसका वजन कुल 280 किलोग्राम है। उन्होंने यह जेट एक साल में तैयार किया है और उनको दसवीं बार में यह विमान तैयार करने में सफलता मिली है। उन्होंने बताया कि उसके प्रयोग में अभी तक करीब 20 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। वहीं इस विमान के निर्माण में 50 हजार रुपये का खर्चा आया है। ओमवीर यादव के अनुसार जेट में मारुति जिप्सी का एक हजार सीसी का इंजन लगा हुआ है। जिसकी क्षमता 46 होर्स पावर है। ओमवीर ने दावा किया कि उसका जेट दो हजार मीटर की ऊंचाई तक उड़ सकता है। वहीं उसकी गति 150 किलोमीटर प्रति घंटा है। उसने बताया कि इसका प्रयोग विशाल भू-भाग के कृषि क्षेत्रों में कीटनाशक दवाओं के छिड़काव को अल्प समय में तथा प्राकृतिक आपदाओं में संकट के समय जीव रक्षा व राहत सामग्री पहुंचाने में कर सकते हैं। उसने बताया कि उनका लक्ष्य अब छह व आठ सीट वाला विमान बनाने का है। वहीं उसे बोइंग विमान कंपनी से जॉब का भी आफर मिल चुका है।
इस अद्भुत कार्य के लिए ओमवीर यादव को 'यदुकुल' की तरफ से हार्दिक बधाइयाँ !!
(फेसबुक पर हितेंद्र सिंह यादव द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी..)
Tuesday, 8 March 2011
छत्तीसगढ़ की लोकगाथा-लोरिक चंदा - डा. सोमनाथ यादव
छत्तीसगढ़ी लोक-साहित्य की विधाओं में लोकगाथाओं का प्रमुख स्थान है, गाथाओं का रचना काल 1100 से 1500 तक माना गया है, अतः छत्तीसगढ़ी लोकगाथाओं में मध्य युगीन स्थितियों का ही चित्रण मिलता है, इससे वर्णित घटनाओं के आधार पर ही इतिहासकारों ने छत्तीसगढ़ी लोकगाथाओं का निर्माण काल मध्ययुग माना है, इसी काल में अनेक छत्तीसगढ़ी लोकगाथाओं की रचना हुई तथा आज भी ये पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से चली आ रही है,
छत्तीसगढ़ की लोकगाथाओं के पात्र-प्रायः आदर्श के प्रतीक और लोकार्थ ’’सर्वे भवन्तु सुखिनः’’ को निनादित करते हैं। आंचलिक चरित्र-सृष्टि-रंजित पात्र प्रायः जातीय गौरव और अंचल को महिमा मंडित करते हैं। अन्य लोकगाथाओं को छत्तीसगढ़ी लोकगाथाकार तभी अपनाता है, जब वह उसे अपने परिवेश व मानसिकता के अनुरूप उचित प्रतीत पाता है। लोकगाथाकार अपनी रूचित और युग के अनुसार उसमें परिवर्तन-परिवर्धन करता चला जाता है जिसमें संगीत की विविधता, नृत्य की आंशिक छटा और भाव-प्रणवता का त्रिकोणात्मक रूप उपलब्ध होता है। ’’छत्तीसगढ़ी लोकगाथाओं में अलौकिकता, आंचलिक देवी-देवता, जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, टोटका आदि विविध रूप मिलते हैं। लोक गाथाओं की प्रवृत्ति एवं विषय की दृष्टि से डा. नरेन्द्र देव वर्मा ने छत्तीसगढ़ी लोकगाथाओं का 3 भागों में वर्गीकारण किया है- प्रेम प्रधान गाथाएं, धार्मिक एवं पौराणिक गाथाएं तथा वीरगाथाएं। छत्तीसगढ़ी लोकगाथाओं के अंतर्गत लोरिक चनैनी की गाथा अधिक प्रचलित है। छत्तीसगढ़ी गद्य में इसकी कथा को सर्वप्रथम सन् 1890 में श्री हीरालाल काव्योपध्याय ने चंदा के कहानी के नाम से प्रकाशित किया था। वही बेरियर एल्विन ने सन् 1946 में लोेकगाथा के छत्तीसगढ़ी रूप को अंग्रेजी में अनुवाद करके अपने ग्रंथ फोक सांग्स आफ छत्तीसगढ़ में उद्भूत किया है।
लोरिक चंदा निश्चित रूप से ऐतिहासिक पात्र है। इस तथ्य के प्रमाण में यह तर्क दिया जा सकता है कि लोक में रचे-बसे होने के कारण और छत्तीसगढ़ में इसकी गाथा और स्थान नामों के संदर्भ में लोकमानस आस्थावान है। ऐसा लगता है इसकी मूलकथा और घटना-प्रसंग छत्तीसगढ़ की ही है। मैं जब इस लोकगाथा के संकलन-संपादन के मध्य अन्वेषण-यात्रा में संलग्न था, तब लोकगाथा गायकों के अतिरिक्त अनेक लोकसाहित्य-मर्मज्ञों, लोककलाकारों ने यह राय दी कि रायपुर जिलांतर्गत आरंग एवं रींवा और उसके मध्य की लीलाभूमि ’’लोरिक चंदा’’ के प्रेम प्रसंग की साक्षी है। वास्तव में स्थान-नाम में निहित घटना-कथा ही जनश्रुति और लोककथा बनकर लोकमानस में प्रचलित और प्रतिष्ठित होती है। इसे इतिहास ना मानकर केवल कल्पना की सामग्री समझना गलत है। जिस तथ्य को लोग अनेक पीढ़ियों से मान रहे है और युग उसे गाथा-रूप में स्वीकृत कर रहे हैं। वह लोकगाथा अथवा साहित्य कदापि भ्रामक नहीं हो सकता। वास्तव में लोरिक चंदा की गाथा छत्तीसगढ़ी लोकमानस के लिए वह प्रेरक प्रसंग है जिसे चमत्कार बुद्धि का पुट देकर अलौकिक बनाया गया है।
लोरिक और चंदा की कहानी लोकगीत के मादक स्वरों में गूंथी हुई है जिसे अंचल के लोग ’’चंदैनी’’ कहते है। चंदैनी से पता चलता है कि रींवा लोरिक का मूल गांव था या कम से कम इस गांव से उसका गहरा संबंध था। चंदैनी का एक टुकड़ा ही प्रमाण स्वरूप है-
छत्तीसगढ़ की लोकगाथाओं के पात्र-प्रायः आदर्श के प्रतीक और लोकार्थ ’’सर्वे भवन्तु सुखिनः’’ को निनादित करते हैं। आंचलिक चरित्र-सृष्टि-रंजित पात्र प्रायः जातीय गौरव और अंचल को महिमा मंडित करते हैं। अन्य लोकगाथाओं को छत्तीसगढ़ी लोकगाथाकार तभी अपनाता है, जब वह उसे अपने परिवेश व मानसिकता के अनुरूप उचित प्रतीत पाता है। लोकगाथाकार अपनी रूचित और युग के अनुसार उसमें परिवर्तन-परिवर्धन करता चला जाता है जिसमें संगीत की विविधता, नृत्य की आंशिक छटा और भाव-प्रणवता का त्रिकोणात्मक रूप उपलब्ध होता है। ’’छत्तीसगढ़ी लोकगाथाओं में अलौकिकता, आंचलिक देवी-देवता, जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, टोटका आदि विविध रूप मिलते हैं। लोक गाथाओं की प्रवृत्ति एवं विषय की दृष्टि से डा. नरेन्द्र देव वर्मा ने छत्तीसगढ़ी लोकगाथाओं का 3 भागों में वर्गीकारण किया है- प्रेम प्रधान गाथाएं, धार्मिक एवं पौराणिक गाथाएं तथा वीरगाथाएं। छत्तीसगढ़ी लोकगाथाओं के अंतर्गत लोरिक चनैनी की गाथा अधिक प्रचलित है। छत्तीसगढ़ी गद्य में इसकी कथा को सर्वप्रथम सन् 1890 में श्री हीरालाल काव्योपध्याय ने चंदा के कहानी के नाम से प्रकाशित किया था। वही बेरियर एल्विन ने सन् 1946 में लोेकगाथा के छत्तीसगढ़ी रूप को अंग्रेजी में अनुवाद करके अपने ग्रंथ फोक सांग्स आफ छत्तीसगढ़ में उद्भूत किया है।
लोरिक चंदा निश्चित रूप से ऐतिहासिक पात्र है। इस तथ्य के प्रमाण में यह तर्क दिया जा सकता है कि लोक में रचे-बसे होने के कारण और छत्तीसगढ़ में इसकी गाथा और स्थान नामों के संदर्भ में लोकमानस आस्थावान है। ऐसा लगता है इसकी मूलकथा और घटना-प्रसंग छत्तीसगढ़ की ही है। मैं जब इस लोकगाथा के संकलन-संपादन के मध्य अन्वेषण-यात्रा में संलग्न था, तब लोकगाथा गायकों के अतिरिक्त अनेक लोकसाहित्य-मर्मज्ञों, लोककलाकारों ने यह राय दी कि रायपुर जिलांतर्गत आरंग एवं रींवा और उसके मध्य की लीलाभूमि ’’लोरिक चंदा’’ के प्रेम प्रसंग की साक्षी है। वास्तव में स्थान-नाम में निहित घटना-कथा ही जनश्रुति और लोककथा बनकर लोकमानस में प्रचलित और प्रतिष्ठित होती है। इसे इतिहास ना मानकर केवल कल्पना की सामग्री समझना गलत है। जिस तथ्य को लोग अनेक पीढ़ियों से मान रहे है और युग उसे गाथा-रूप में स्वीकृत कर रहे हैं। वह लोकगाथा अथवा साहित्य कदापि भ्रामक नहीं हो सकता। वास्तव में लोरिक चंदा की गाथा छत्तीसगढ़ी लोकमानस के लिए वह प्रेरक प्रसंग है जिसे चमत्कार बुद्धि का पुट देकर अलौकिक बनाया गया है।
लोरिक और चंदा की कहानी लोकगीत के मादक स्वरों में गूंथी हुई है जिसे अंचल के लोग ’’चंदैनी’’ कहते है। चंदैनी से पता चलता है कि रींवा लोरिक का मूल गांव था या कम से कम इस गांव से उसका गहरा संबंध था। चंदैनी का एक टुकड़ा ही प्रमाण स्वरूप है-
बारह पाली गढ़ गौरा, सोलह पाली दीवना के खोर
अस्सीपाली पाटन, चार पाली गढ़ पिपही के खोर
अस्सीपाली पाटन, चार पाली गढ़ पिपही के खोर
चंदैनी लोकगीत नाट्य ही लोरिक चंदा और रींवा के गहरे संबंध का पुखता ऐतिहासिक प्रमाण है। अगर गहरी पुरातात्वीय पड़ताल हो तो संभव है और प्रमाण मिले। अस्तु यह निश्चिित है रींवा लोरिक नगर था। लोकगीतात्मकता प्रणय गाथा चंदैनी तथा कुछ और माध्यमों से इतिहास के जो पन्ने खुलते है, उनके अनुसार-वर्तमान मे आरंग विकासखंड मुख्यालय है। यह रायपुर जिले के तहत है और राजमार्ग क्रमांक छह पर स्थित है। इसके नामकरण के संबंध में यह जनयुक्ति प्रचलित है कि यह राजा मोरध्वज का नगर था। उनकी भगवान श्रीकृष्ण ने परीक्षा ली थी। इस महादानी राजा ने भगवान और उनके साथ आये भूखे शेर को जो छद्म रूप था- अपना पुत्र ही दान कर दिया गया। राजा ने अतिथियों के मांग पर स्वयं अपनी धर्मपत्नी सहित पुत्र को आरे से चीरकर उसका भोजन बनाया। चूंकि आरे से राजा मोरध्वज को अपने पुत्र को चीरना पड़ा था, अतएव उसी वक्त इस नगर का नाम ‘‘आरंग’’ पड़ा। मगर लोरिकचंदा की कथा के अनुसार आरंग का पूर्वनाम ‘‘गढ़गौरा’’ था, यहां राजा महर का राज्य था। राजा महर के चार पुत्र क्रमशः इदेचंद्र, बिदेचंद, महादेव और सहदेव थे। राजा की एकमात्र पुत्री चंदा थी जो सबकी लाडली थी। ग्राम रीवां गढ़गोरा के राजा महर के अधीन था। चूंकि रींवा आरंग से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, अतएव यह संभव प्रतीत होता है।
कथानुसार एक रोज पनागर नामक राज्य से बोड़रसाय अपनी पत्नी बोड़नीन तथा भाई कठावत और उसकी पत्नी खुलना के साथ गढ़गौरा अर्थात् आरंग आयें। उन्होंने राजा महर को एक ‘‘पॅंड़वा’’ (भैंस का बच्चा) जिसका नाम सोनपड़वा रखा गया था, भेंट किया, इस भेंट से राजा महर अति प्रसन्न हुए और बोड़रसाय को बदले में रीवां राज्य दे दिया। बोड़रसाय राऊत अपने परिवार सहित रींवा राज्य में राज करने लगा। इसी बोड़रसाय का एक पुत्र था- बावन और सहोदर का पुत्र था-लोरिक। संयोग की बात है कि राजा महर की लाडली बेटी और बोड़रसाय का पुत्र बावन हम उम्र थे। राजा महर ने बावन की योग्य समझकर चंदा से उसका विवाह कर किया, पर कुछ समय व्यतीत हो पाया था कि बावन किसी कारणवश नदी तट पर तपस्या करने चला गया (संभवतः बावन निकटस्थ महानदी पर तपस्थार्थ गया हो) उधर राजा महर का संदेश आया कि चंदा का गौना करा कर उसे ले जाओ। इस विकट स्थिति में राजा बोड़रसाय को कुछ सूझ नहीं रहा था। अंततः इस विपदा से बचने का उन्हें का ही उपाय नजर आया। लोरिक, जो कि बावन का चचेरा भाई था, दूल्हा बनाकर गौना कराने भेज दिया। लोकगीत नाट्य चंदैनी में लोरिक का रूप बड़ा आकर्षण बताया गया है। लोरिक सांवले बदन का बलिष्ठ शरीर वाला था। उसके केश घुंघराले थे, वह हजारों में अलग ही पहचाना जाता था। लोरिक गढ़गौरा चला गया और सभी रस्मों को निपटाकर वापसी के लिए चंदा के साय डोली में सवार हुआ। डोली के भीतर जब चंदा ने घूंघट हटाकर अपने दूल्हे को निहारा तो उसके रूप में एक अज्ञात व्यक्ति को देखकर वह कांप उठी। चंदा इतनी भयभीत हो गई कि वह तत्क्षण डोली से कूदकर जंगल की ओर भाग गयी। लोरिक भी घबरा गया और चंदा के पीछे भागा। उसने चंदा को रोका और अपना परिचय दिया। अब जब संयत होकर चंदा ने लोरिक को देखा, तब वह उस पर मुग्ध हो गयी। लोरिक सीधे उसके मन में समाता चला गया। लोरिक का भी लगभग यही हाल था। यह चंदा के धवल रूप को एकटक देखता रहा गया। दोनों अपनी समस्या भूलकर एक-दूसरे के रूप-जाल में फंस गये। वही उनके कोमल और अछूतेे मन में प्रणय के बीच पड़े। दोनों ने एक दूसरे से मिलने का और सदा संग रहने का वचन किया।
लोरिक चंदा में महाकाव्य-सदृश मंगलाचरण से गाथा का प्रारंभ होता है। कवि इस लोकगाथा के माध्यम से सरस्वती और उसकी बहन सैनी का स्मरण करते है। उनके अनुसार सरस्वती को नारियल और गुड़ तथा सती सैनी को काजल की रेख भेंट करेगा-
सारद सैनी दोनों बहिनी ये रागी,
कथानुसार एक रोज पनागर नामक राज्य से बोड़रसाय अपनी पत्नी बोड़नीन तथा भाई कठावत और उसकी पत्नी खुलना के साथ गढ़गौरा अर्थात् आरंग आयें। उन्होंने राजा महर को एक ‘‘पॅंड़वा’’ (भैंस का बच्चा) जिसका नाम सोनपड़वा रखा गया था, भेंट किया, इस भेंट से राजा महर अति प्रसन्न हुए और बोड़रसाय को बदले में रीवां राज्य दे दिया। बोड़रसाय राऊत अपने परिवार सहित रींवा राज्य में राज करने लगा। इसी बोड़रसाय का एक पुत्र था- बावन और सहोदर का पुत्र था-लोरिक। संयोग की बात है कि राजा महर की लाडली बेटी और बोड़रसाय का पुत्र बावन हम उम्र थे। राजा महर ने बावन की योग्य समझकर चंदा से उसका विवाह कर किया, पर कुछ समय व्यतीत हो पाया था कि बावन किसी कारणवश नदी तट पर तपस्या करने चला गया (संभवतः बावन निकटस्थ महानदी पर तपस्थार्थ गया हो) उधर राजा महर का संदेश आया कि चंदा का गौना करा कर उसे ले जाओ। इस विकट स्थिति में राजा बोड़रसाय को कुछ सूझ नहीं रहा था। अंततः इस विपदा से बचने का उन्हें का ही उपाय नजर आया। लोरिक, जो कि बावन का चचेरा भाई था, दूल्हा बनाकर गौना कराने भेज दिया। लोकगीत नाट्य चंदैनी में लोरिक का रूप बड़ा आकर्षण बताया गया है। लोरिक सांवले बदन का बलिष्ठ शरीर वाला था। उसके केश घुंघराले थे, वह हजारों में अलग ही पहचाना जाता था। लोरिक गढ़गौरा चला गया और सभी रस्मों को निपटाकर वापसी के लिए चंदा के साय डोली में सवार हुआ। डोली के भीतर जब चंदा ने घूंघट हटाकर अपने दूल्हे को निहारा तो उसके रूप में एक अज्ञात व्यक्ति को देखकर वह कांप उठी। चंदा इतनी भयभीत हो गई कि वह तत्क्षण डोली से कूदकर जंगल की ओर भाग गयी। लोरिक भी घबरा गया और चंदा के पीछे भागा। उसने चंदा को रोका और अपना परिचय दिया। अब जब संयत होकर चंदा ने लोरिक को देखा, तब वह उस पर मुग्ध हो गयी। लोरिक सीधे उसके मन में समाता चला गया। लोरिक का भी लगभग यही हाल था। यह चंदा के धवल रूप को एकटक देखता रहा गया। दोनों अपनी समस्या भूलकर एक-दूसरे के रूप-जाल में फंस गये। वही उनके कोमल और अछूतेे मन में प्रणय के बीच पड़े। दोनों ने एक दूसरे से मिलने का और सदा संग रहने का वचन किया।
लोरिक चंदा में महाकाव्य-सदृश मंगलाचरण से गाथा का प्रारंभ होता है। कवि इस लोकगाथा के माध्यम से सरस्वती और उसकी बहन सैनी का स्मरण करते है। उनके अनुसार सरस्वती को नारियल और गुड़ तथा सती सैनी को काजल की रेख भेंट करेगा-
सारद सैनी दोनों बहिनी ये रागी,
नइते कउन लहुर कउन जेठ
कौन ला देवउ मेहा गुड़ अउ नरियर
कोने काजर के रेख
मइया ल देवंव मेहा गुड़ अउ नरियर
सति काजर के रेख।
कौन ला देवउ मेहा गुड़ अउ नरियर
कोने काजर के रेख
मइया ल देवंव मेहा गुड़ अउ नरियर
सति काजर के रेख।
गुरू बैताल और चौसठ जोगिनी के साथ ठाकुर देवता, साहड़ा देवता को उनके रूचि के अनुरूप लोकगाथाकार संतृप्त करना चाहता है-
अखरा के गुरू बैताले ला सुमरो,
नइते पल भर सभा म चले आव,
चौसठ जोगिनी जासल ला सुमरव,
नइते भुजा में रहिबे सहाय,
गांव के ठाकुर देवता ला सुमरव
नइते पर्रा भर बोकरा ला चढ़ाव
नइते पल भर सभा म चले आव,
चौसठ जोगिनी जासल ला सुमरव,
नइते भुजा में रहिबे सहाय,
गांव के ठाकुर देवता ला सुमरव
नइते पर्रा भर बोकरा ला चढ़ाव
गांव के साहड़ा देवता ला सुमरव
नइते कच्चा गो-रस चड़ाव,
नइते कच्चा गो-रस चड़ाव,
इसके बाद लोक गाथाकार आत्मनिवेदन का आश्रय-ग्रहण करता है, वह लोरिक चंदा की सुरम्य प्रणय गाथा को सुखे मीठे गुड़ अथवा गन्ने के रस की तरह अत्यन्त मीठा एवं सरस स्वीकारता है। यह सुन्दर गाथा जो कोई भी श्रोता श्रवण करेगा। वह प्रेम के पावन सरिता में अवगाहन करके जीवन की जटिलता दूर कर सकने में समर्थ होगा-
खावत मीठ गुड़ सुखरी ये रागी
नइते चुहकत मीठ कुसियार,
सुनत मीठ मोर चंदैनी ये रागी,
नइते कभुना लागे उड़ास
नइते चुहकत मीठ कुसियार,
सुनत मीठ मोर चंदैनी ये रागी,
नइते कभुना लागे उड़ास
लोकगाथाएं मंगलाचरण के पश्चात् प्रबंध-काव्य-सदृश आत्मनिवेदन की शैली में गाथाओं की विशिष्टता को सूत्रपात के रूप में प्रस्तुत करता है। उसके द्वारा प्रयुक्त उपमान आंचलिक और मौलिक ही नहीं, अपितु लोक से रचे-बसे भी हैं। इसके पश्चात् कथा की शुरूआत को लोकगाथाकार बहुत ही सहज, सरल ढंग से प्रस्तुत करता है-
राजा महर के बेटी ये ओ
लोरिक गावत हंवव चंदा
ये चंदा हे तोर
मोर जौने समे के बेटा म ओ
लोरिक गावत हंवव चंदा
ये चंदा हे तोर।
लोरिक गावत हंवव चंदा
ये चंदा हे तोर
मोर जौने समे के बेटा म ओ
लोरिक गावत हंवव चंदा
ये चंदा हे तोर।
प्रायः समीक्षक लोरिक चंदा को वीराख्यानक लोकगाथा के अंतर्गत स्वीकार करते हैं। यदि लोरिक केवल वीर चरित्र होता तो इसे राजा या सामंत वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में चित्रित किया जाता। महाकाव्य अथवा लोकगाथाओं में वीर लोकनायक प्रायः उच्च कुल अथवा नरेशी होते हैं। इस आधार पर लोरिक वीर होते हुए भी सामान्य यदुवंशियों के युद्ध कौशल का प्रतीक है। उसके रूप और गुण से सम्मोहित राजकुमारी चंदा अपने पति और घर को त्यागकर प्रेम की ओर अग्रसित होती है। इस दोनों के मिलन में जो द्वन्द और बंधन है, उसे पुरूषार्थ से काटने का प्रयास इस लोकगाथा का गंतव्य है। इस आधार पर उसे प्रेमाख्यानक लोकगाथा के अंतर्गत सम्मिलित करना समीचीन प्रतीत होता है।
उपर्युक्त गाथाओं से स्पष्ट है कि लोरिक चंदा की गाथा अत्यंत व्यापक एवं साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यद्यपि इसे अहीरों की जातीय धरोहर माना जाता है तथापि यह संपूर्ण हिन्दी प्रदेश की नहीं वरन् दक्षिण भारत में भी लोकप्रिय एवं प्रचलित है। श्री श्याम मनोहर पांडेय के अनुसार - ‘‘बिहार में मिथिला से लेकर उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ में इसके गायक अभी भी जीवित है’’ वे प्रायः अहीर है जिनका मुख्य धंधा दूध का व्यापार और खेती करना है। लोरिक की कथा लोकसाहित्य की कथा नहीं है, बल्कि इस कथा पर आधारित साहित्यिक कृतियां भी उपलब्ध है। विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित ‘‘लोरिकी’’ लोकगाथा के नाम एवं कथा में अंतर सर्वाधिक व्यापक रूप से ‘‘भोजपुरी’’ में उपलब्ध होता है जहां यह लोकगाथा चार खंडों में गायी जाती है। ‘‘लोरिक’’ की लोकगाथा का दूसरा भाग, ‘‘लोरिक एवं चनवा का विवाह’’ भोजपुरी क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य प्रदेशों में भी प्रचलित है। मैथिली और छत्तीसगढ़ी प्रदेशों में तो यह अत्यधिक प्रचलित है। विभिन्न प्रदेशों में प्रचलित ‘‘लोरिकी’’ की कथा में परिलक्षित साम्य-वैषम्य अधोलिखितानुसार है-
‘‘भोजपुरी रूप में चनवा का सिलहर (बंगाल) से लौटकर अपने पिता के घर गउरा आना वर्णित है। छत्तीसगढ़ी रूप में भी यह समादृत है, परन्तु कुछ विभिन्नताएं है। इसमें चनैनी का अपने पिता के घर से पति वीरबावन के घर लौटना वर्णित है। अन्य रूपों में यह वर्णन अलभ्य है।’’
भोजपुरी रूप में चनैनी को मार्ग में रोककर बाठवा अपनी पत्नी बनाना चाहता है, परन्तु वह किसी तरह गउरा अपने पिता के घर पहुंच जाती है। बाठवा गउरा में आकर उसको कष्ट देता है, राजा सहदेव भी बाठवा से डरता है। मंजरी के बुलाने पर लोरिक पहुंचता है और बाठवा को मार भगाता है। जिसकी सब लोग प्रशंसा करते हैं।
छत्तीसगढ़ी रूप में यह कथा वर्णित है परन्तु उसमें थोड़ा अंतर है महुआ (बाठवा) मार्ग में चनैनी को छेड़ता है। लोरिक वहां आकर उसे मार भगाता है। लोरिक की वीरता देखकर वह मोहित हो जाती है, लोरिक को वह अपने महल में बुलाती है। शेष अन्य रूपों में वह वर्णन नहीं मिलता।
भोजपुरी में राजा सहदेव के यहां भोज है, चनवा लोरिक को अपनी ओर आकर्षित करती है, रात्रि में लोरिक रस्सी लेकर चनवा के महल के पीछे पहुंचता है, जहां दोनों का मिलन वर्णित है। छत्तीसगढ़ में भोज का वर्णन नहीं मिलता, परन्तु रात्रि में लोरिक उसी प्रकार रस्सी लेकर जाता है और कोठे पर चढ़ता है तथा दोनों मिलकर एक रात्रि व्यतीत करते है।
श्री हीरालाल काव्योपाध्याय द्वारा प्रस्तुत छत्तीसगढ़ी कथायान ‘‘लोरिक’’ में भी इसका वर्णन है परन्तु कुछ भिन्न रूप में इसमें चंदा (चनैनी) का पति वीरबावन महाबली है, जो कुछ महीने सोता और छह महीने जागता है। उसकी स्त्री चंदा, लोरी से प्रेम करने लगती है, वह उसे अपने महल में बुलाती है और स्वयं खिड़की से रस्सी फेंककर ऊपर चढ़ाती है। मैथिली तथा उत्तरप्रदेश की गाथा में यह वर्णन प्राप्त नहीं होता।
भोजपुरी लोकगाथा में रात्रि व्यतीत कर जब लोरिक चनैनी के महल सें जाने लगता है। तब अपनी पगड़ी के स्थान पर चनैनी का चादर बांधकर चल देता है। धोबिन उसे इस कठिनाई से बचाती है। वेरियर एल्विन द्वारा प्रस्तुत छत्तीसगढ़ी रूप में यह वर्णन नहीं है परन्तु काव्योपाध्याय द्वारा प्रस्तुत गाथा में यह अंश उसी प्रकार वर्णित है। शेष अन्य रूपों में यह वर्णन नहीं मिलता।
चनैनी के बहुत मनाने पर लोरिक का हरदी के लिए पलायन की घटना सभी क्षेत्रों की गाथा में उपलब्ध है।
लोरिक को मार्ग में मंजरी और संवरू रोकते है। छत्तीसगढ़ी रूप में भी यह वर्णित है, परन्तु केवल संवरू का नाम आता है। शेष रूपों में यह नहीं प्राप्त होता है।
भोजपुरी रूप में लोरिक मार्ग में अनेक विजय प्राप्त करता है तथा महापतिया दुसाध को जुए और युद्ध में भी हराता है, छत्तीसगढ़ी तथा अन्य रूपों में इसका वर्णन नहीं हैं।
भोजपुरी में लोरिक अनेक छोटे-मोटे दुष्ट राजाओं को मारता है, मार्ग में चनवा को सर्प काटता है, परन्तु वह गर्भवती होने के कारण बच जाती है। बेरियर एल्विन द्वारा संपादित छत्तीसगढ़ी में लोरिक को सर्प काटता है तथा चनैनी शिव पार्वती से प्रार्थना करती है। लोरिक पुनः जीवित हो जाता है। शेष रूपों में यह वर्णन नहीं प्राप्त होता।
भोजपुरी के अनुसार लोरिक की हरदी के राजा महुबल से बनती नहीं थी। महुबल ने अनेक उपाय किया, परन्तु लोरिक मरा नहीं। अंत में महुबल ने पत्र के साथ लोरिक की नेवारपुर ‘‘हरवा-बरवा’’ दुसाध के पास भेजा। लोरिक वहां भी विजयी होता है। अंत में महुबल को अपना आधा राजपाट लोरिक को देना पड़ता है और मैत्री स्थापित करनी पड़ती है।
मैथिली गाथा के अनुसार हरदी के राजा मलबर (मदुबर) और लोरिक आपस में मित्र है। मलबर अपने दुश्मन हरबा-बरवा के विरूद्ध सहायता चाहता है। लोरिक प्रतिज्ञा करके उन्हें नेवारपुर में मार डालता है।
एल्विन द्वारा प्रस्तुत छत्तीसगढ़ी रूप में यह कथा विशिष्ट है इसमें लोरिक और करिंधा का राजा हारकर लोरिक के विरूद्ध षड़यंत्र करता है और उसे पाटनगढ़ भेजना चाहता है। लोरिक नहीं जाता।
भोजपुरी रूप में कुछ काल पश्चात् मंजरी से पुनः मिलन वर्णित है। छत्तीसगढ़ी रूप में हरदी में लोरिक के पास मंजरी की दीन-दशा का समाचार आता है। लोरिक और चनैनी दोनों गउरा लौट आते है। उत्तरप्रदेश के बनारसी रूप में भी लोरिक अपनी मां एवं मंजरी की असहाय अवस्था का समाचार सुनकर चनैनी के साथ गउरा लौटता है। शेष रूपों में यह वर्णन नहीं मिलता।
भोजपुरी रूप सुखांत है, इसमें लोरिक अंत में मंजरी और घनवा के साथ आनंद से जीवन व्यतीत करते है। मैथिली रूप में भी सुखांत है परन्तु उसमें गउरा लौटना वर्णित नहीं है। एल्विन द्वारा प्रस्तुत छत्तीसगढ़ी रूप में लोरिक अपनी पत्नी व घर की दशा से दुखित होकर सदा के लिए बाहर चला जाता है। छत्तीसगढ़ में काव्योपाध्याय द्वारा प्रस्तुत रूप का अंत इस प्रकार से होता है-
लोरी चंदा के साथ भागकर जंगल के किले में रहने लगता है। वहां चंदा का पति वीरबावन पहुंचता है। उससे लोरी का युद्ध होता है। वीरबावन हार जाता है और निराश होकर अकेले गउरा में रहने लगता है।
लोकगाथा के बंगला रूप में वर्णित ‘‘लोर’’, मयनावती तथा चंद्राली वास्तव में भोजपुरी के लोरिक मंजरी और चनैनी ही है। बावनवीर का वर्णन छत्तीसगढी़ रूप में भी प्राप्त होता है। बंगला रूप में चंद्राली को सर्प काटता है। भोजपुरी रूप में भी गर्भवती चनैनी को सर्प काटता है। दोनों रूप में वह पुनः जीवित हो जाती है। बंगला रूप में मयनावती के सतीत्व का वर्णन है। भोजपुरी में भी मंजरी की सती रूप में वर्णन किया गया है। लोकगाथा का हैदराबादी रूप छत्तीसगढ़ी के काव्योपाध्य के अधिक साम्य रखता है।
श्री सत्यव्रत सिन्हा द्वारा उल्लेखित उपर्युक्त साम्य वैषम्य के सिवाय भी लोरिक लोकगाथा में कतिपय अन्य साम्य वैषम्य भी परिलक्षित होते है। यथा-गाथा के भोजपुरी रूप में मंजरी द्वारा आत्महत्या करने तथा गंगामाता द्वारा वृद्धा का वेष धारण कर मंजरी को सांत्वना देने, गंगा और भावी (भविष्य) का वार्तालाप, भावी का इन्द्र एवं वशिष्ठ के पास जाना आदि घटनाओं का वर्णन है जो गाथा के अन्य रूपों में प्राप्त नहीं है। इसी प्रकार मंजरी के मामा शिवचंद एवं राजा सहदेव द्वारा मंजरी के बदले चनवा के साथ विवाह करने पर दुगुना दहेज देने का वर्णन अन्य क्षेत्रों के ‘‘लोरिक’’ में अप्राप्त है।
‘‘लोरिक’’ लोकगाथा के बंगाली रूप में एक योगी द्वारा चंद्राली के रूप में वर्णन सुनकर उसका चित्र देखकर लोरिक को चंद्राली के प्रति आसक्त चित्रित किया गया है। यहां बावनवीर (चंद्राली का पति) को नपुंसक बताया गया है। मैनावती पर राजकुमार दातन की अनुरक्ति तथा उसे प्राप्त करने के लिए दूतियों को भेजने का वर्णन है तथा मैनावती द्वारा शुक्र और ब्राम्हण द्वारा लोरिक के पास संदेश प्रेषित करने का वर्णन प्राप्त होता है जो कि अन्य लोकगाथाओं में नहीं है। गाथा के हैदराबादी रूप में ही बंगाली रूप की भांति उस देश के राजा का मैना पर मुग्ध होना वर्णित है।
‘‘लोरिक’’ गाथा के उत्तरप्रदेश (बनारसी रूप) में प्रचलित चनवा द्वारा लोरिक को छेड़खानी करने पर अपमानित करना तथा बाद में दोनों का प्रेम वर्णित है। इस प्रकार लोरिक द्वारा सोलह सौ कन्याओं के पतियों को बंदी जीवन से मुक्त कराने का वर्णन है, जो अन्य क्षेत्रों के ‘‘लोरिक’’ लोकगाथा में उपलब्ध नहीं है। गाथा के छत्तीसगढ़ी रूप में चनैनी और मंजरी दोनों सौत के बीच मार-पीट एवं विजयी मंजरी द्वारा लोरिक के स्वागतार्थ पानी लाने तथा पानी के गंदला होने पर लोरिक का विरक्त होकर घर छोड़ चले जाने का वर्णन है, आज के इस प्रगतिशील दौर में भी जब प्रेमी हृदय समाज के कठोर-प्रतिबंध तोड़ते हुए दहल जाते है। तब उस घोर सामंतवादी दौर में लोरिक और चंदा ने सहज और उत्कृष्ट प्रेम पर दृढ़ रहते हुए जाति, समाज, धर्म और स्तर के बंधन काटे थे। लोरिक चंदा छत्तीसगढ़ी लोकमानस का लोकमहाकाव्य है जिसे प्रेम और पुरूषार्थ की प्रतिभा के रूप में छत्तीसगढ़ी जन प्रतिष्ठित किये हुये है। इसलिए वे आज छत्तीसगढ़ के आदर्श प्रेमी है और गीत बनकर लोगों के हृदय में राज कर रहे हैं।
डा. सोमनाथ यादव
1. प्रेस क्लब भवन,
ईदगाह मार्ग, बिलासपुर (छ.ग.)
उपर्युक्त गाथाओं से स्पष्ट है कि लोरिक चंदा की गाथा अत्यंत व्यापक एवं साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यद्यपि इसे अहीरों की जातीय धरोहर माना जाता है तथापि यह संपूर्ण हिन्दी प्रदेश की नहीं वरन् दक्षिण भारत में भी लोकप्रिय एवं प्रचलित है। श्री श्याम मनोहर पांडेय के अनुसार - ‘‘बिहार में मिथिला से लेकर उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ में इसके गायक अभी भी जीवित है’’ वे प्रायः अहीर है जिनका मुख्य धंधा दूध का व्यापार और खेती करना है। लोरिक की कथा लोकसाहित्य की कथा नहीं है, बल्कि इस कथा पर आधारित साहित्यिक कृतियां भी उपलब्ध है। विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित ‘‘लोरिकी’’ लोकगाथा के नाम एवं कथा में अंतर सर्वाधिक व्यापक रूप से ‘‘भोजपुरी’’ में उपलब्ध होता है जहां यह लोकगाथा चार खंडों में गायी जाती है। ‘‘लोरिक’’ की लोकगाथा का दूसरा भाग, ‘‘लोरिक एवं चनवा का विवाह’’ भोजपुरी क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य प्रदेशों में भी प्रचलित है। मैथिली और छत्तीसगढ़ी प्रदेशों में तो यह अत्यधिक प्रचलित है। विभिन्न प्रदेशों में प्रचलित ‘‘लोरिकी’’ की कथा में परिलक्षित साम्य-वैषम्य अधोलिखितानुसार है-
‘‘भोजपुरी रूप में चनवा का सिलहर (बंगाल) से लौटकर अपने पिता के घर गउरा आना वर्णित है। छत्तीसगढ़ी रूप में भी यह समादृत है, परन्तु कुछ विभिन्नताएं है। इसमें चनैनी का अपने पिता के घर से पति वीरबावन के घर लौटना वर्णित है। अन्य रूपों में यह वर्णन अलभ्य है।’’
भोजपुरी रूप में चनैनी को मार्ग में रोककर बाठवा अपनी पत्नी बनाना चाहता है, परन्तु वह किसी तरह गउरा अपने पिता के घर पहुंच जाती है। बाठवा गउरा में आकर उसको कष्ट देता है, राजा सहदेव भी बाठवा से डरता है। मंजरी के बुलाने पर लोरिक पहुंचता है और बाठवा को मार भगाता है। जिसकी सब लोग प्रशंसा करते हैं।
छत्तीसगढ़ी रूप में यह कथा वर्णित है परन्तु उसमें थोड़ा अंतर है महुआ (बाठवा) मार्ग में चनैनी को छेड़ता है। लोरिक वहां आकर उसे मार भगाता है। लोरिक की वीरता देखकर वह मोहित हो जाती है, लोरिक को वह अपने महल में बुलाती है। शेष अन्य रूपों में वह वर्णन नहीं मिलता।
भोजपुरी में राजा सहदेव के यहां भोज है, चनवा लोरिक को अपनी ओर आकर्षित करती है, रात्रि में लोरिक रस्सी लेकर चनवा के महल के पीछे पहुंचता है, जहां दोनों का मिलन वर्णित है। छत्तीसगढ़ में भोज का वर्णन नहीं मिलता, परन्तु रात्रि में लोरिक उसी प्रकार रस्सी लेकर जाता है और कोठे पर चढ़ता है तथा दोनों मिलकर एक रात्रि व्यतीत करते है।
श्री हीरालाल काव्योपाध्याय द्वारा प्रस्तुत छत्तीसगढ़ी कथायान ‘‘लोरिक’’ में भी इसका वर्णन है परन्तु कुछ भिन्न रूप में इसमें चंदा (चनैनी) का पति वीरबावन महाबली है, जो कुछ महीने सोता और छह महीने जागता है। उसकी स्त्री चंदा, लोरी से प्रेम करने लगती है, वह उसे अपने महल में बुलाती है और स्वयं खिड़की से रस्सी फेंककर ऊपर चढ़ाती है। मैथिली तथा उत्तरप्रदेश की गाथा में यह वर्णन प्राप्त नहीं होता।
भोजपुरी लोकगाथा में रात्रि व्यतीत कर जब लोरिक चनैनी के महल सें जाने लगता है। तब अपनी पगड़ी के स्थान पर चनैनी का चादर बांधकर चल देता है। धोबिन उसे इस कठिनाई से बचाती है। वेरियर एल्विन द्वारा प्रस्तुत छत्तीसगढ़ी रूप में यह वर्णन नहीं है परन्तु काव्योपाध्याय द्वारा प्रस्तुत गाथा में यह अंश उसी प्रकार वर्णित है। शेष अन्य रूपों में यह वर्णन नहीं मिलता।
चनैनी के बहुत मनाने पर लोरिक का हरदी के लिए पलायन की घटना सभी क्षेत्रों की गाथा में उपलब्ध है।
लोरिक को मार्ग में मंजरी और संवरू रोकते है। छत्तीसगढ़ी रूप में भी यह वर्णित है, परन्तु केवल संवरू का नाम आता है। शेष रूपों में यह नहीं प्राप्त होता है।
भोजपुरी रूप में लोरिक मार्ग में अनेक विजय प्राप्त करता है तथा महापतिया दुसाध को जुए और युद्ध में भी हराता है, छत्तीसगढ़ी तथा अन्य रूपों में इसका वर्णन नहीं हैं।
भोजपुरी में लोरिक अनेक छोटे-मोटे दुष्ट राजाओं को मारता है, मार्ग में चनवा को सर्प काटता है, परन्तु वह गर्भवती होने के कारण बच जाती है। बेरियर एल्विन द्वारा संपादित छत्तीसगढ़ी में लोरिक को सर्प काटता है तथा चनैनी शिव पार्वती से प्रार्थना करती है। लोरिक पुनः जीवित हो जाता है। शेष रूपों में यह वर्णन नहीं प्राप्त होता।
भोजपुरी के अनुसार लोरिक की हरदी के राजा महुबल से बनती नहीं थी। महुबल ने अनेक उपाय किया, परन्तु लोरिक मरा नहीं। अंत में महुबल ने पत्र के साथ लोरिक की नेवारपुर ‘‘हरवा-बरवा’’ दुसाध के पास भेजा। लोरिक वहां भी विजयी होता है। अंत में महुबल को अपना आधा राजपाट लोरिक को देना पड़ता है और मैत्री स्थापित करनी पड़ती है।
मैथिली गाथा के अनुसार हरदी के राजा मलबर (मदुबर) और लोरिक आपस में मित्र है। मलबर अपने दुश्मन हरबा-बरवा के विरूद्ध सहायता चाहता है। लोरिक प्रतिज्ञा करके उन्हें नेवारपुर में मार डालता है।
एल्विन द्वारा प्रस्तुत छत्तीसगढ़ी रूप में यह कथा विशिष्ट है इसमें लोरिक और करिंधा का राजा हारकर लोरिक के विरूद्ध षड़यंत्र करता है और उसे पाटनगढ़ भेजना चाहता है। लोरिक नहीं जाता।
भोजपुरी रूप में कुछ काल पश्चात् मंजरी से पुनः मिलन वर्णित है। छत्तीसगढ़ी रूप में हरदी में लोरिक के पास मंजरी की दीन-दशा का समाचार आता है। लोरिक और चनैनी दोनों गउरा लौट आते है। उत्तरप्रदेश के बनारसी रूप में भी लोरिक अपनी मां एवं मंजरी की असहाय अवस्था का समाचार सुनकर चनैनी के साथ गउरा लौटता है। शेष रूपों में यह वर्णन नहीं मिलता।
भोजपुरी रूप सुखांत है, इसमें लोरिक अंत में मंजरी और घनवा के साथ आनंद से जीवन व्यतीत करते है। मैथिली रूप में भी सुखांत है परन्तु उसमें गउरा लौटना वर्णित नहीं है। एल्विन द्वारा प्रस्तुत छत्तीसगढ़ी रूप में लोरिक अपनी पत्नी व घर की दशा से दुखित होकर सदा के लिए बाहर चला जाता है। छत्तीसगढ़ में काव्योपाध्याय द्वारा प्रस्तुत रूप का अंत इस प्रकार से होता है-
लोरी चंदा के साथ भागकर जंगल के किले में रहने लगता है। वहां चंदा का पति वीरबावन पहुंचता है। उससे लोरी का युद्ध होता है। वीरबावन हार जाता है और निराश होकर अकेले गउरा में रहने लगता है।
लोकगाथा के बंगला रूप में वर्णित ‘‘लोर’’, मयनावती तथा चंद्राली वास्तव में भोजपुरी के लोरिक मंजरी और चनैनी ही है। बावनवीर का वर्णन छत्तीसगढी़ रूप में भी प्राप्त होता है। बंगला रूप में चंद्राली को सर्प काटता है। भोजपुरी रूप में भी गर्भवती चनैनी को सर्प काटता है। दोनों रूप में वह पुनः जीवित हो जाती है। बंगला रूप में मयनावती के सतीत्व का वर्णन है। भोजपुरी में भी मंजरी की सती रूप में वर्णन किया गया है। लोकगाथा का हैदराबादी रूप छत्तीसगढ़ी के काव्योपाध्य के अधिक साम्य रखता है।
श्री सत्यव्रत सिन्हा द्वारा उल्लेखित उपर्युक्त साम्य वैषम्य के सिवाय भी लोरिक लोकगाथा में कतिपय अन्य साम्य वैषम्य भी परिलक्षित होते है। यथा-गाथा के भोजपुरी रूप में मंजरी द्वारा आत्महत्या करने तथा गंगामाता द्वारा वृद्धा का वेष धारण कर मंजरी को सांत्वना देने, गंगा और भावी (भविष्य) का वार्तालाप, भावी का इन्द्र एवं वशिष्ठ के पास जाना आदि घटनाओं का वर्णन है जो गाथा के अन्य रूपों में प्राप्त नहीं है। इसी प्रकार मंजरी के मामा शिवचंद एवं राजा सहदेव द्वारा मंजरी के बदले चनवा के साथ विवाह करने पर दुगुना दहेज देने का वर्णन अन्य क्षेत्रों के ‘‘लोरिक’’ में अप्राप्त है।
‘‘लोरिक’’ लोकगाथा के बंगाली रूप में एक योगी द्वारा चंद्राली के रूप में वर्णन सुनकर उसका चित्र देखकर लोरिक को चंद्राली के प्रति आसक्त चित्रित किया गया है। यहां बावनवीर (चंद्राली का पति) को नपुंसक बताया गया है। मैनावती पर राजकुमार दातन की अनुरक्ति तथा उसे प्राप्त करने के लिए दूतियों को भेजने का वर्णन है तथा मैनावती द्वारा शुक्र और ब्राम्हण द्वारा लोरिक के पास संदेश प्रेषित करने का वर्णन प्राप्त होता है जो कि अन्य लोकगाथाओं में नहीं है। गाथा के हैदराबादी रूप में ही बंगाली रूप की भांति उस देश के राजा का मैना पर मुग्ध होना वर्णित है।
‘‘लोरिक’’ गाथा के उत्तरप्रदेश (बनारसी रूप) में प्रचलित चनवा द्वारा लोरिक को छेड़खानी करने पर अपमानित करना तथा बाद में दोनों का प्रेम वर्णित है। इस प्रकार लोरिक द्वारा सोलह सौ कन्याओं के पतियों को बंदी जीवन से मुक्त कराने का वर्णन है, जो अन्य क्षेत्रों के ‘‘लोरिक’’ लोकगाथा में उपलब्ध नहीं है। गाथा के छत्तीसगढ़ी रूप में चनैनी और मंजरी दोनों सौत के बीच मार-पीट एवं विजयी मंजरी द्वारा लोरिक के स्वागतार्थ पानी लाने तथा पानी के गंदला होने पर लोरिक का विरक्त होकर घर छोड़ चले जाने का वर्णन है, आज के इस प्रगतिशील दौर में भी जब प्रेमी हृदय समाज के कठोर-प्रतिबंध तोड़ते हुए दहल जाते है। तब उस घोर सामंतवादी दौर में लोरिक और चंदा ने सहज और उत्कृष्ट प्रेम पर दृढ़ रहते हुए जाति, समाज, धर्म और स्तर के बंधन काटे थे। लोरिक चंदा छत्तीसगढ़ी लोकमानस का लोकमहाकाव्य है जिसे प्रेम और पुरूषार्थ की प्रतिभा के रूप में छत्तीसगढ़ी जन प्रतिष्ठित किये हुये है। इसलिए वे आज छत्तीसगढ़ के आदर्श प्रेमी है और गीत बनकर लोगों के हृदय में राज कर रहे हैं।
डा. सोमनाथ यादव
1. प्रेस क्लब भवन,
ईदगाह मार्ग, बिलासपुर (छ.ग.)
Monday, 7 March 2011
विदेशी राजनीति में भी छाये यदुवंशी
भारत वर्ष में यादवों के राजनैतिक उत्कर्ष के तमाम उदाहरण मिलते हैं, पर अब विदेशों में भी तमाम उदाहरण मिलने लगे हैं। नेपाल की जनता ने अपने 240 वर्ष पुराने राजतंत्र को उखाड़कर लोकतांत्रिक पद्धति अपनाई है और डाॅ0 रामबरन यादव को अपना पहला राष्ट्रपति चुना है। डाॅ0 रामबरन यादव ने 1981 में मेडिकल कालेज कलकत्ता से एम0बी0बी0एस0 की डिग्री प्राप्त की और उसके बाद 1985 में एम0डी0 (फिजीशियन) की डिग्री चंडीगढ़ से प्राप्त की। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने लगभग आठ साल तक चण्डीगढ़ में रहकर ही अपनी मैडिकल प्रैक्टिस की। यह भारत और विशेषकर यहांँ के यादवों के लिए गौरव का विषय है।
इससे पूर्व विदेशों में त्रिनिडाड व टोबैगो के पूर्व प्रधानमंत्री श्री वासुदेव पांडे (उनके पूर्वज पानी पिलाते थे, अतः पानी पांडे कहलाने से पांडे सरनेम आया) और मारीशस के पूर्व प्रधानमंत्री अनिरूद्ध जगन्नाथ को भी यादव मूल का माना जाता है। इतिहास गवाह है कि नेपाल में प्रथम राजनेता या राजा यदुवंशी भुक्तिमान गोप रहे हैं। उसी परंपरा में नेपाल के उपप्रधानमंत्री रहे उपेन्द्र यादव, शिक्षा मंत्री रेणु कुमारी, इंग्लैंड में नेपाल के राजदूत राम स्वारथ राय और नेपाल के संसद की डिप्टी स्पीकर चन्द्र लेखा यादव भी यादवों की ही वंशज हैं।
Thursday, 3 March 2011
यदुवंशियों द्वारा प्रकाशित पत्र-पत्रिकाएं
किसी भी वर्ग के निरंतर उन्नयन और प्रगतिशीलता के लिए जरुरी है कि विचारों का प्रवाह हो। विचारों का प्रवाह निर्वात में नहीं होता बल्कि उसके लिए एक मंच चाहिए। राजनीति-प्रशासन-मीडिया-साहित्य-कला से जुड़े तमाम ऐसे मंच हैं, जहाँ व्यक्ति अपनी अभिव्यक्तियों को विस्तार देता है। आधुनिक दौर में किसी भी समाज-राष्ट्र के विकास में साहित्य और मीडिया की प्रमुख भूमिका है, क्योंकि ये ही समाज को चीजों के अच्छे-बुरे पक्षों से परिचित करने के साथ-साथ उनका व्यापक प्रचार-प्रसार भी करती हैं। व्यवहारिक तौर पर भी देखा जाता है कि जिस वर्ग की मीडिया-साहित्य पर जितनी मजबूत पकड़ होती है, वह वर्ग भी अपनी बुद्धिजीविता के बाल पर उतना ही सशक्त और प्रभावी होता है और लोगों के विचारों को भी प्रभावित करने की क्षमता रखता .है यादव समाज से जुड़े तमाम बुद्धिजीवी देश के कोने-कोने से पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन/संपादन कर रहे हैं. जरुरत है की इनका व्यापक प्रचार-प्रसार हो और इनके पाठकों की संख्या में भी अभिवृद्धि हो. यदुकुल की कोशिश होगी कि इन पत्र-पत्रिकाओं को सामने लाया जाय। कुछ प्रमुख पत्र-पत्रिकाएं-
हंस(मा0): सं0-राजेन्द्र यादव, अक्षर प्रकाशन प्रा0 लि0, 2/36 अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली
सामयिक वार्ता(मा0):सं0-योगेन्द्र यादव, एक्स बी-4, सह विकास सोसायटी, 68, इंद्रप्रस्थ विस्तार, पटपड़गंज, दिल्ली
प्रगतिशील आकल्प(त्रै0): सं0-डा0 शोभनाथ यादव, पंकज क्लासेज, पोस्ट आफिस बिल्डिंग, जोगेश्वरी (पूर्व), मुम्बई
मड़ई (वार्षिक): सं0-डा0 कालीचरण यादव, बनियापारा, जूना विलासपुर, छत्तीसगढ़-495001
राष्ट्रसेतु(त्रै0):सं0-जगदीश यादव, मिश्रा भवन, आमानाका, रायपुर (छत्तीसगढ़)
छत्तीसगढ़ समग्र(मा0):सं0-जगदीश यादव, मिश्रा भवन, आमानाका, रायपुर (छत्तीसगढ़)
मुक्तिबोध (अनि0):सं0-मांघीलाल यादव, साहित्य कुटीर, टिकरापारा, गंडई-पंडरिया, राजनादगाँव(छ0ग0)
बहुजन दर्पण(सा0):सं0- नन्द किशोर यादव, विजय वार्ड नं0 2, जगदलपुर, छत्तीसगढ़
नाजनीन():सं0-रामचरण यादव ‘याददाश्त‘, सदर बाजार, बैतूल (म0प्र0)
डगमगाती कलम के दर्शन(मा0):सं0-रमेश यादव, 127-गोकुलगंज, कन्डीलपुरा, इंदौर - 452006
प्रियंत टाइम्स(मा0): सं0-प्रेरित प्रियन्त, 22- भालेकरीपुरी, इमली बाजार, इन्दौर-4
वस्तुतः (अनि0): सं0-अरुण कुमार, तरुण-निवास, त्रिवेणीगंज, बिहार-852139
मण्डल विचार (मा0): सं0-श्यामल किशोर यादव, श्यामप्रिया सदन, गुलजारबाग, मधेपुरा, बिहार-852113
आपका आईना(त्रै0):सं0-डा0 राम अशीष सिंह, समीक्षा प्रकाशन, मानिक चंद तालाब, अनीसाबाद, पटना-800002
अनंता(मा0):सं0-पूनम यादव, 203-204, सरन चैंबर-IIदितीय तल, 5 पार्क रोड, लखनऊ (यू.पी.)
शब्द (मा0): सं0-आर0सी0यादव, सी-1104, इन्दिरा नगर, लखनऊ-226016
अमृतायन():सं0-डा0 अशोक ‘अज्ञानी‘, हिन्दी अनुभाग, राजकीय हुसैनाबाद इंटर कालेज, चौक,लखनऊ-226003
प्रगतिशील उद्भव(त्रै0):सं0-गिरसन्त कुमार यादव, 1/553, विनयखण्ड, गोमती नगर, लखनऊ- 226010/
कृतिका(छ0):सं0-डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव, 1760, नया रामनगर, उरई, जालौन (उ0प्र0)-285001
सोशल ब्रेनवाश (द्वै०):सं0-कौशलेन्द्र प्रताप यादव, 405 शिवपुरी लेन, सिविल लाइन-2, बिजनौर उ0प्र0)-246701
बाबू जी का भारतमित्र(अर्ध0):सं0-रघुविंदर यादव, प्रकृति भवन, नीरपुर, नारनौल, हरियाणा-123001
पर्यावरण संजीवनी():सं0-डा0 राम निवास यादव, पर्यावरण भवन, धिकाडा रोड, चरखी दादरी, हरियाणा.
हिन्द क्रान्ति(पा0):सं0-सतेन्द्र सिंह यादव, आर-4/17, राजनगर, गाजियाबाद (उ0प्र0)
स्वतन्त्रता की आवाज(सा0):सं0-आनन्द सिंह यादव, ग्राम-ईशापुर पो0-मलिहाबाद, लखनऊ
दहलीज(पा0):सं0-ओमप्रकाश यादव 13,पटेल परमानंद की चाली(पठान की चाली), अमृता मील के सामने, सरसपुर, अहमदाबाद/
द्वीप मंथन (सा०):सं0-श्याम सिंह यादव, MB/22 अबरदीन गाँव, पोर्टब्लेयर, दक्षिण अंडमान************************************************************यादव ज्योति(मा0):सं0-श्रीमती लालसा देवी, ‘यादव-ज्योति‘ कार्यालय, के0 54/157-ए, दारानगर, वाराणसी-221001.
यादव कुल दीपिका(मा0):सं0- चिरंजी लाल यादव, बी-73, शिवाजी रोड, उत्तरी घोण्डा, दिल्ली-53.
यादव डायरेक्ट्री (वार्षिक): सं0-सत्येन्द्र सिंह यादव, 27, सुरेश नगर, न्यू आगरा, आगरा-5.
यादवों की आवाज(त्रै0): सं0-डा0 के0सी0 यादव, अखिल भारत वर्षीय यादव महासभा, श्री कृष्ण भवन, सेक्टर-IVवैशाली, टी0एच0ए0, गाजियाबाद -201011.
यादव साम्राज्य(त्रै0):सं0-भंवर सिंह यादव, 130/61, बगाही, बाबा कुटी चौराहा, किदवई नगर, कानपुर-208011.
यादव शक्ति(त्रै0): सं0- राजबीर सिंह यादव, 161, बाजार दक्षिणी सिधौली, सीतापुर (उ0प्र0)-261303
यादव दर्पण():सं0-डा0 जगदीश व्योम, 1206, सेक्टर-37, नोएडा, गौतमबुद्ध नगर
राऊताही(वा0): स0-डा0 मंतराम यादव, जब्बल एंड संस गली, नेहरु नगर, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
हंस(मा0): सं0-राजेन्द्र यादव, अक्षर प्रकाशन प्रा0 लि0, 2/36 अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली
सामयिक वार्ता(मा0):सं0-योगेन्द्र यादव, एक्स बी-4, सह विकास सोसायटी, 68, इंद्रप्रस्थ विस्तार, पटपड़गंज, दिल्ली
प्रगतिशील आकल्प(त्रै0): सं0-डा0 शोभनाथ यादव, पंकज क्लासेज, पोस्ट आफिस बिल्डिंग, जोगेश्वरी (पूर्व), मुम्बई
मड़ई (वार्षिक): सं0-डा0 कालीचरण यादव, बनियापारा, जूना विलासपुर, छत्तीसगढ़-495001
राष्ट्रसेतु(त्रै0):सं0-जगदीश यादव, मिश्रा भवन, आमानाका, रायपुर (छत्तीसगढ़)
छत्तीसगढ़ समग्र(मा0):सं0-जगदीश यादव, मिश्रा भवन, आमानाका, रायपुर (छत्तीसगढ़)
मुक्तिबोध (अनि0):सं0-मांघीलाल यादव, साहित्य कुटीर, टिकरापारा, गंडई-पंडरिया, राजनादगाँव(छ0ग0)
बहुजन दर्पण(सा0):सं0- नन्द किशोर यादव, विजय वार्ड नं0 2, जगदलपुर, छत्तीसगढ़
नाजनीन():सं0-रामचरण यादव ‘याददाश्त‘, सदर बाजार, बैतूल (म0प्र0)
डगमगाती कलम के दर्शन(मा0):सं0-रमेश यादव, 127-गोकुलगंज, कन्डीलपुरा, इंदौर - 452006
प्रियंत टाइम्स(मा0): सं0-प्रेरित प्रियन्त, 22- भालेकरीपुरी, इमली बाजार, इन्दौर-4
वस्तुतः (अनि0): सं0-अरुण कुमार, तरुण-निवास, त्रिवेणीगंज, बिहार-852139
मण्डल विचार (मा0): सं0-श्यामल किशोर यादव, श्यामप्रिया सदन, गुलजारबाग, मधेपुरा, बिहार-852113
आपका आईना(त्रै0):सं0-डा0 राम अशीष सिंह, समीक्षा प्रकाशन, मानिक चंद तालाब, अनीसाबाद, पटना-800002
अनंता(मा0):सं0-पूनम यादव, 203-204, सरन चैंबर-IIदितीय तल, 5 पार्क रोड, लखनऊ (यू.पी.)
शब्द (मा0): सं0-आर0सी0यादव, सी-1104, इन्दिरा नगर, लखनऊ-226016
अमृतायन():सं0-डा0 अशोक ‘अज्ञानी‘, हिन्दी अनुभाग, राजकीय हुसैनाबाद इंटर कालेज, चौक,लखनऊ-226003
प्रगतिशील उद्भव(त्रै0):सं0-गिरसन्त कुमार यादव, 1/553, विनयखण्ड, गोमती नगर, लखनऊ- 226010/
कृतिका(छ0):सं0-डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव, 1760, नया रामनगर, उरई, जालौन (उ0प्र0)-285001
सोशल ब्रेनवाश (द्वै०):सं0-कौशलेन्द्र प्रताप यादव, 405 शिवपुरी लेन, सिविल लाइन-2, बिजनौर उ0प्र0)-246701
बाबू जी का भारतमित्र(अर्ध0):सं0-रघुविंदर यादव, प्रकृति भवन, नीरपुर, नारनौल, हरियाणा-123001
पर्यावरण संजीवनी():सं0-डा0 राम निवास यादव, पर्यावरण भवन, धिकाडा रोड, चरखी दादरी, हरियाणा.
हिन्द क्रान्ति(पा0):सं0-सतेन्द्र सिंह यादव, आर-4/17, राजनगर, गाजियाबाद (उ0प्र0)
स्वतन्त्रता की आवाज(सा0):सं0-आनन्द सिंह यादव, ग्राम-ईशापुर पो0-मलिहाबाद, लखनऊ
दहलीज(पा0):सं0-ओमप्रकाश यादव 13,पटेल परमानंद की चाली(पठान की चाली), अमृता मील के सामने, सरसपुर, अहमदाबाद/
द्वीप मंथन (सा०):सं0-श्याम सिंह यादव, MB/22 अबरदीन गाँव, पोर्टब्लेयर, दक्षिण अंडमान************************************************************यादव ज्योति(मा0):सं0-श्रीमती लालसा देवी, ‘यादव-ज्योति‘ कार्यालय, के0 54/157-ए, दारानगर, वाराणसी-221001.
यादव कुल दीपिका(मा0):सं0- चिरंजी लाल यादव, बी-73, शिवाजी रोड, उत्तरी घोण्डा, दिल्ली-53.
यादव डायरेक्ट्री (वार्षिक): सं0-सत्येन्द्र सिंह यादव, 27, सुरेश नगर, न्यू आगरा, आगरा-5.
यादवों की आवाज(त्रै0): सं0-डा0 के0सी0 यादव, अखिल भारत वर्षीय यादव महासभा, श्री कृष्ण भवन, सेक्टर-IVवैशाली, टी0एच0ए0, गाजियाबाद -201011.
यादव साम्राज्य(त्रै0):सं0-भंवर सिंह यादव, 130/61, बगाही, बाबा कुटी चौराहा, किदवई नगर, कानपुर-208011.
यादव शक्ति(त्रै0): सं0- राजबीर सिंह यादव, 161, बाजार दक्षिणी सिधौली, सीतापुर (उ0प्र0)-261303
यादव दर्पण():सं0-डा0 जगदीश व्योम, 1206, सेक्टर-37, नोएडा, गौतमबुद्ध नगर
राऊताही(वा0): स0-डा0 मंतराम यादव, जब्बल एंड संस गली, नेहरु नगर, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
आकांक्षा यादव को 'न्यू ऋतंभरा भारत-भारती साहित्य सम्मान'
युवा कवयित्री एवँ साहित्यकार सुश्री आकांक्षा यादव को हिन्दी साहित्य में प्रखर रचनात्मकता एवँ अनुपम कृतित्व के लिए छत्तीसगढ़ की प्रमुख साहित्यिक संस्था न्यू ऋतंभरा साहित्य मंच, दुर्ग द्वारा ''भारत-भारती साहित्य सम्मान-2010'' से सम्मानित किया गया है। गौरतलब है कि सुश्री आकांक्षा यादव की आरंभिक रचनाएँ दैनिक जागरण और कादम्बिनी में प्रकाशित हुई और फ़िलहाल वे देश की शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं। नारी विमर्श, बाल विमर्श एवँ सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रूचि रखने वाली सुश्री आकांक्षा यादव के लेख, कवितायेँ और लघुकथाएं जहाँ तमाम संकलनों/पुस्तकों की शोभा बढ़ा रहे हैं, वहीँ आपकी तमाम रचनाएँ आकाशवाणी से भी तरंगित हुई हैं। पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ अंतर्जाल पर भी सक्रिय सुश्री आकांक्षा यादव की रचनाएँ इंटरनेट पर तमाम वेब/ ई-पत्रिकाओं और ब्लॉगों पर भी पढ़ी-देखी जा सकती हैं।
आपकी तमाम रचनाओं के लिंक विकिपीडिया पर भी दिए गए हैं। 'शब्द-शिखर', 'सप्तरंगी-प्रेम', 'बाल-दुनिया' और 'उत्सव के रंग' ब्लॉग आप द्वारा संचालित/सम्पादित हैं। 'क्रांति-यज्ञ : 1857-1947 की गाथा' पुस्तक का संपादन करने वाली सुश्री आकांक्षा के व्यक्तित्व-कृतित्व पर वरिष्ठ बाल साहित्यकार डॉ. राष्ट्रबन्धु जी ने ‘‘बाल साहित्य समीक्षा‘‘ पत्रिका का एक अंक भी विशेषांक रुप में प्रकाशित किया है।
मूलत: उत्तर प्रदेश के एक कॉलेज में प्रवक्ता सुश्री आकांक्षा यादव वर्तमान में अपने पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ अंडमान-निकोबार में रह रही हैं और वहाँ रहकर भी हिन्दी को समृद्ध कर रही हैं। श्री यादव भी हिन्दी की युवा पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं और सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर पदस्थ हैं। एक रचनाकार के रूप में बात करें तो सुश्री आकांक्षा यादव ने बहुत ही खुले नजरिये से संवेदना के मानवीय धरातल पर जाकर अपनी रचनाओं का विस्तार किया है। बिना लाग लपेट के सुलभ भाव भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें यही आपकी लेखनी की शक्ति है। उनकी रचनाओं में जहाँ जीवंतता है, वहीं उसे सामाजिक संस्कार भी दिया है।
सुश्री आकांक्षा यादव को इससे पूर्व भी विभिन्न साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती ज्योति‘‘, ‘‘एस0एम0एस0‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, मध्यप्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘‘साहित्य मनीषी सम्मान‘‘ व ‘‘भाषा भारती रत्न‘‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘‘साहित्य सेवा सम्मान‘‘, ग्वालियर साहित्य एवँ कला परिषद द्वारा ‘‘शब्द माधुरी‘‘, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘‘साहित्य गौरव‘‘ व ‘‘काव्य मर्मज्ञ‘‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘‘साहित्य श्री सम्मान‘‘, मथुरा की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘‘आसरा‘‘ द्वारा ‘‘ब्रज-शिरोमणि‘‘ सम्मान, देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़ द्वारा ‘‘देवभूमि साहित्य रत्न‘‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘‘उजास सम्मान‘‘, ऋचा रचनाकार परिषद, कटनी द्वारा ‘‘भारत गौरव‘‘, अभिव्यंजना संस्था, कानपुर द्वारा ‘‘काव्य-कुमुद‘‘, महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा ’महिमा साहित्य भूषण सम्मान’, अन्तर्राष्ट्रीय पराविद्या शोध संस्था, ठाणे, महाराष्ट्र द्वारा ‘‘सरस्वती रत्न‘‘, अन्तज्र्योति सेवा संस्थान गोला-गोकर्णनाथ, खीरी द्वारा श्रेष्ठ कवयित्री की मानद उपाधि इत्यादि प्रमुख हैं। सुश्री आकांक्षा यादव को इस अलंकरण हेतु हार्दिक बधाईयाँ।
गोवर्धन यादव, संयोजक-राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, छिन्दवाड़ा
103 कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)-480001
आपकी तमाम रचनाओं के लिंक विकिपीडिया पर भी दिए गए हैं। 'शब्द-शिखर', 'सप्तरंगी-प्रेम', 'बाल-दुनिया' और 'उत्सव के रंग' ब्लॉग आप द्वारा संचालित/सम्पादित हैं। 'क्रांति-यज्ञ : 1857-1947 की गाथा' पुस्तक का संपादन करने वाली सुश्री आकांक्षा के व्यक्तित्व-कृतित्व पर वरिष्ठ बाल साहित्यकार डॉ. राष्ट्रबन्धु जी ने ‘‘बाल साहित्य समीक्षा‘‘ पत्रिका का एक अंक भी विशेषांक रुप में प्रकाशित किया है।
मूलत: उत्तर प्रदेश के एक कॉलेज में प्रवक्ता सुश्री आकांक्षा यादव वर्तमान में अपने पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ अंडमान-निकोबार में रह रही हैं और वहाँ रहकर भी हिन्दी को समृद्ध कर रही हैं। श्री यादव भी हिन्दी की युवा पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं और सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर पदस्थ हैं। एक रचनाकार के रूप में बात करें तो सुश्री आकांक्षा यादव ने बहुत ही खुले नजरिये से संवेदना के मानवीय धरातल पर जाकर अपनी रचनाओं का विस्तार किया है। बिना लाग लपेट के सुलभ भाव भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें यही आपकी लेखनी की शक्ति है। उनकी रचनाओं में जहाँ जीवंतता है, वहीं उसे सामाजिक संस्कार भी दिया है।
सुश्री आकांक्षा यादव को इससे पूर्व भी विभिन्न साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती ज्योति‘‘, ‘‘एस0एम0एस0‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, मध्यप्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘‘साहित्य मनीषी सम्मान‘‘ व ‘‘भाषा भारती रत्न‘‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘‘साहित्य सेवा सम्मान‘‘, ग्वालियर साहित्य एवँ कला परिषद द्वारा ‘‘शब्द माधुरी‘‘, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘‘साहित्य गौरव‘‘ व ‘‘काव्य मर्मज्ञ‘‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘‘साहित्य श्री सम्मान‘‘, मथुरा की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘‘आसरा‘‘ द्वारा ‘‘ब्रज-शिरोमणि‘‘ सम्मान, देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़ द्वारा ‘‘देवभूमि साहित्य रत्न‘‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘‘उजास सम्मान‘‘, ऋचा रचनाकार परिषद, कटनी द्वारा ‘‘भारत गौरव‘‘, अभिव्यंजना संस्था, कानपुर द्वारा ‘‘काव्य-कुमुद‘‘, महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा ’महिमा साहित्य भूषण सम्मान’, अन्तर्राष्ट्रीय पराविद्या शोध संस्था, ठाणे, महाराष्ट्र द्वारा ‘‘सरस्वती रत्न‘‘, अन्तज्र्योति सेवा संस्थान गोला-गोकर्णनाथ, खीरी द्वारा श्रेष्ठ कवयित्री की मानद उपाधि इत्यादि प्रमुख हैं। सुश्री आकांक्षा यादव को इस अलंकरण हेतु हार्दिक बधाईयाँ।
गोवर्धन यादव, संयोजक-राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, छिन्दवाड़ा
103 कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)-480001
Ram Shiv Murti Yadav
उ0प्र0 के जौनपुर जनपद के मूल निवासी, फ़िलहाल आजमगढ़ में. 1962 में तिलकधारी महाविद्यालय, जौनपुर से स्नातक एवं काशी विद्यापीठ से 1964 में समाज शास्त्र विषय से स्नाकोत्तर. नौकरीपेशा के रूप में स्वास्थ्य विभाग, उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी के पद पर सेवारत. वर्ष 2003 में सेवानिवृत्ति पश्चात् स्वतंत्र लेखन, अध्ययन और समाज सेवा में रत. मूलत: राजनैतिक-सामाजिक विषयों पर लेखन. "सामाजिक व्यवस्था एवं आरक्षण" नाम से 90 के दशक में एक पुस्तक प्रकाशित. देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं- अरावली उद्घोष, युद्धरत आम आदमी, समकालीन सोच, आश्वस्त, अपेक्षा, बयान, इंडिया न्यूज, अम्बेडकर इन इण्डिया, अम्बेडकर टुडे, दलित साहित्य वार्षिकी, दलित टुडे, मूक वक्ता, सामथ्र्य, सामान्यजन संदेश, समाज प्रवाह, गोलकोण्डा दर्पण, शब्द, प्रगतिशील उद्भव, सेवा चेतना, यू0एस0एम0 पत्रिका, साहित्य क्रान्ति,साहित्य परिवार,नव निकष, द वेक, नारी अस्मिता, अनीश, सांवली, नवोदित स्वर, तुलसी प्रभा इत्यादि में विभिन्न विषयों पर लेख प्रकाशित। अन्तर्जाल पर सृजनगाथा, साहित्य कुंज, साहित्य शिल्पी, रचनाकार, हिन्दीनेस्ट, वांग्मय पत्रिका इत्यादि में लेखों का प्रकाशन। अंतर्जाल पर 'यदुकुल' नामक ब्लॉग का सञ्चालन. भारतीय दलित साहित्य अकादमी, दिल्ली और राष्ट्रीय राजभाषा पीठ, इलाहाबाद सहित कई प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा सम्मानित.
Tuesday, 1 March 2011
नारी सशक्तिकरण की पर्याय : फूलबासन यादव
महिलाएं आज न सिर्फ सशक्त हो रही हैं, बल्कि लोगों को भी सशक्त बना रही हैं. ऐसी ही एक महिला है-श्रीमती फूलबासन यादव.श्रीमती फूलबासन यादव राजनांदगांव जिले के ग्राम सुकलदैहान की निवासी हैं। उन्होंने ग्रामीण महिलाओं के बीच सामाजिक चेतना जाग्रत कर उनके आर्थिक विकास के लिए जिला प्रशासन का सहयोग लेकर जिले में ग्यारह हजार से अधिक महिला स्व-सहायता समूहों के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने इन महिला समूहों के माध्यम से लगभग साढ़े छह सौ गांवों में बाल विवाह, दहेज और शराब जैसी सामाजिक बुराईयों पर अंकुश लगाने के लिए जन-जागरण का ऐतिहासिक कार्य किया। छत्तीसगढ़ सरकार ने महिला सशक्तिकरण के लिए श्रीमती फूलबासन यादव के रचनात्मक कार्यों को देखते हुए उन्हें वर्ष 2004 में राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर मिनी माता अलंकरण से सम्मानित किया था। राजधानी रायपुर में आयोजित 'राज्योत्सव' में मुख्य अतिथि पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों उन्हें राज्य स्तरीय इस प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा गया था। इसी कड़ी में श्रीमती यादव को वर्ष 2008 में उप राष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी के हाथों जमनालाल बजाज अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
श्रीमती यादव को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर 9 मार्च, 2010 को नई दिल्ली में राष्ट्रपति राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने भी विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में महिला सशक्तिकरण की दिशा में उल्लेखनीय योगदान के लिए 'राष्ट्रीय स्त्री शक्ति' के अंतर्गत कन्नगी एवार्ड से भी सम्मानित किया . गौरतलब है कि केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा स्त्री शक्ति पुरस्कार योजना के तहत देश की प्रसिध्द महिलाओं के नाम पर अलग-अलग एवार्ड दिए जाते हैं। राष्ट्रपति ने श्रीमती यादव को वर्ष 2009 के इस एवार्ड के अंतर्गत तीन लाख रूपए की सम्मान राशि और प्रशस्ति पत्र भेंटकर बधाई और शुभकामनाएं दी।
श्रीमती यादव को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर 9 मार्च, 2010 को नई दिल्ली में राष्ट्रपति राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने भी विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में महिला सशक्तिकरण की दिशा में उल्लेखनीय योगदान के लिए 'राष्ट्रीय स्त्री शक्ति' के अंतर्गत कन्नगी एवार्ड से भी सम्मानित किया . गौरतलब है कि केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा स्त्री शक्ति पुरस्कार योजना के तहत देश की प्रसिध्द महिलाओं के नाम पर अलग-अलग एवार्ड दिए जाते हैं। राष्ट्रपति ने श्रीमती यादव को वर्ष 2009 के इस एवार्ड के अंतर्गत तीन लाख रूपए की सम्मान राशि और प्रशस्ति पत्र भेंटकर बधाई और शुभकामनाएं दी।
आई.ए.एस. राजेश यादव को राष्ट्रीय पुरस्कार
राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने नई दिल्ली में 25 जनवरी को भारत के निर्वाचन आयोग के डॉयमण्ड जुबली समापन समारोह में राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विशिष्ट सचिव और अजमेर के पूर्व जिला कलक्टर राजेश यादव को निर्वाचन कार्यो में सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से नवाचारों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया। पुरस्कार में उन्हें एक लाख रूपये नकद एक ट्राफी और प्रमाण पत्र दिया गया.
राजेश यादव को यह पुरस्कार जिला निर्वाचन अधिकारी अजमेर के पद पर सेवायें देते हुए चुनावी तंत्र में सुधार के लिए ऑन लाईन भुगतान सिस्टम विकसित कर उसे लागू करवाने का प्रयोग करने के लिए दिया गया है। इसके लिए उन्होंने गत लोकसभा चुनाव कार्य में लगाये गये अजमेर जिले के सभी 9211 अधिकारियों और कर्मचारियों के एकाउण्ट्स लेकर उनके टी.ए.डी.ए. बिल की राशि को उनके व्यक्तिगत खातों में एडवांस में ऑन लाईन भुगतान जमा करवाया। उन्होंने यह कार्य जिले की नॉडल बैंक के माध्यम से 32 बैको की 221 ऑन लाईन और 59 ऑफ लाईन शाखाओं के माध्यम से किया। इसी प्रकार जिला परिषद एवं पंचायतों के चुनाव तथा नगर निगम के चुनाव में ब्लॉक लेवल अधिकारियों से एस.एम.एम. पर मतदान प्रतिशत और मतगणना की जानकारी हासिल कर उसका ऑन लाईन प्रसारण करवाने जैसे प्रयोग किए। इस प्रकार सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से उन्होंने चुनावी तंत्र में सुधार के लिए अभिनव प्रयोग किए जिसके परिणाम स्वरूप भारतीय चुनाव आयोग ने अपने हीरक जंयती समापन समारोह और बेहतर चुनाव पद्धति पर आयोजित दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में सर्वश्रेष्ठ चुनाव पद्धति ईजाद करने वाले अधिकारी के रूप में राजस्थान के आई.ए.एस. अधिकारी राजेश यादव को पूरे देश से राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना।
उल्लेखनीय है कि भारत के निर्वाचन आयोग ने देश के सभी राज्यों और केन्द्रीय शासित राज्यों को पांच भागों में बांट कर इन सभी जोन से श्रेष्ठ चुनाव पद्धति पर प्रस्तुतीकरण करवाये थे। जिसमें नॉर्थ जोन से राजस्थान के राजेश यादव को सभी जोन्स में प्रथम चुना गया और उन्हें एक लाख रूपये के नकद राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की गई। समारोह में पुरूस्कृत किये गये अन्य क्षेत्रीय जोन्स के सात अधिकारियों को 25-25 हजार रूपये का नकद पुरस्कार और ट्रॅाफी प्रदान की गई। उल्लेखनीय है कि यादव को अजमेर जिला कलक्टर महानरेगा के क्रियान्वयन का श्रेष्ठ कार्य करने के लिए गत वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार भी मिल चुका है। यादव ने पिछले दिनों दिल्ली में मतदान दल कर्मियों के लिए ऑनलाईन भुगतान पद्धति का प्रस्तुतीकरण किया। उन्होंने इस पद्धति का सोर्स कोड भी भारत के निर्वाचन आयोग को सौंपा है, ताकि चुनावी तंत्र में सुधार के लिए ऑन लाईन भुगतान की इस पद्धति को देशभर में लागू किए जाने की कवायद हो सके।
समारोह में राष्ट्रपति के पति देवीसिंह पाटिल, केंद्रीय मंत्री विधि एवं न्यायमंत्री एम.वीरप्पा मोइली, सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्रीमती अम्बिका सोनी, साख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्री डॉ. एम.एस. गिल और पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगोडा के साथ ही भारत के मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. एस.वाय. कुरेशी और देश-विदेश के जनप्रतिनिधि एवं अधिकारीगण मौजूद थे।
राजेश यादव को यह पुरस्कार जिला निर्वाचन अधिकारी अजमेर के पद पर सेवायें देते हुए चुनावी तंत्र में सुधार के लिए ऑन लाईन भुगतान सिस्टम विकसित कर उसे लागू करवाने का प्रयोग करने के लिए दिया गया है। इसके लिए उन्होंने गत लोकसभा चुनाव कार्य में लगाये गये अजमेर जिले के सभी 9211 अधिकारियों और कर्मचारियों के एकाउण्ट्स लेकर उनके टी.ए.डी.ए. बिल की राशि को उनके व्यक्तिगत खातों में एडवांस में ऑन लाईन भुगतान जमा करवाया। उन्होंने यह कार्य जिले की नॉडल बैंक के माध्यम से 32 बैको की 221 ऑन लाईन और 59 ऑफ लाईन शाखाओं के माध्यम से किया। इसी प्रकार जिला परिषद एवं पंचायतों के चुनाव तथा नगर निगम के चुनाव में ब्लॉक लेवल अधिकारियों से एस.एम.एम. पर मतदान प्रतिशत और मतगणना की जानकारी हासिल कर उसका ऑन लाईन प्रसारण करवाने जैसे प्रयोग किए। इस प्रकार सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से उन्होंने चुनावी तंत्र में सुधार के लिए अभिनव प्रयोग किए जिसके परिणाम स्वरूप भारतीय चुनाव आयोग ने अपने हीरक जंयती समापन समारोह और बेहतर चुनाव पद्धति पर आयोजित दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में सर्वश्रेष्ठ चुनाव पद्धति ईजाद करने वाले अधिकारी के रूप में राजस्थान के आई.ए.एस. अधिकारी राजेश यादव को पूरे देश से राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना।
उल्लेखनीय है कि भारत के निर्वाचन आयोग ने देश के सभी राज्यों और केन्द्रीय शासित राज्यों को पांच भागों में बांट कर इन सभी जोन से श्रेष्ठ चुनाव पद्धति पर प्रस्तुतीकरण करवाये थे। जिसमें नॉर्थ जोन से राजस्थान के राजेश यादव को सभी जोन्स में प्रथम चुना गया और उन्हें एक लाख रूपये के नकद राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की गई। समारोह में पुरूस्कृत किये गये अन्य क्षेत्रीय जोन्स के सात अधिकारियों को 25-25 हजार रूपये का नकद पुरस्कार और ट्रॅाफी प्रदान की गई। उल्लेखनीय है कि यादव को अजमेर जिला कलक्टर महानरेगा के क्रियान्वयन का श्रेष्ठ कार्य करने के लिए गत वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार भी मिल चुका है। यादव ने पिछले दिनों दिल्ली में मतदान दल कर्मियों के लिए ऑनलाईन भुगतान पद्धति का प्रस्तुतीकरण किया। उन्होंने इस पद्धति का सोर्स कोड भी भारत के निर्वाचन आयोग को सौंपा है, ताकि चुनावी तंत्र में सुधार के लिए ऑन लाईन भुगतान की इस पद्धति को देशभर में लागू किए जाने की कवायद हो सके।
समारोह में राष्ट्रपति के पति देवीसिंह पाटिल, केंद्रीय मंत्री विधि एवं न्यायमंत्री एम.वीरप्पा मोइली, सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्रीमती अम्बिका सोनी, साख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्री डॉ. एम.एस. गिल और पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगोडा के साथ ही भारत के मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. एस.वाय. कुरेशी और देश-विदेश के जनप्रतिनिधि एवं अधिकारीगण मौजूद थे।
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